घर की कहानी- (भाग-2)

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अपनी बेटे को गुलाम बनाते हुए माँ ने उसे सारे कला सिखाये
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अपने देवरानी शोभा को पूरी तरह चोदने के बाद अगली सुबह दीप्ति उठीं तो उसकी पूरे बदन में मीठा मीठा दर्द हो रहा था । कमरे में कोई नहीं था । पति गोपाल कभी के उठ कर छोटे भाई के साथ सुबह की सैर के लिये जा चुके थे । दीप्ति हैंग ओवर (शराब पीने के कारण अगली सुबह व्यक्ति का सिर दुखता है, इसी को हैंग ओवर कहते है.) की वजह से सिर को दबाये चादर के नीचे बिस्तर में लेटी हुईं थीं । थोड़ा सामान्य हुईं तो पिछली रात की बातें याद आने लगीं । शराब के नशे मेँ कैसे एक अश्लील सिनेमा से उनके उत्तेजना बढीँ और अपनी लंड से पहली बार अपनी देवरानी की झांटेदार बुर की घनघोर चुदाई का आनन्द उठाया था और उन दोनों की आवाजें सुनकर अजय खुद दरवाजे तक चला आया था । इसी रात, जीवन में पहली बार पतिदेव ने भी पीछे से गांड मारी थी । अजय के बारे में सोचते ही उसे याद आया कि व घर की बडी बहु है और उसे अब तक उठ जाना चाहिये था । रात में जो कुछ भी हुआ वो अब उतना गलत नहीं लग रहा था । शायद उनकी भाग्य में अपनी देवरानी के द्वारा अपने लंड को मर्द बनाने का सौभाग्य लिखा था । पहली बार शोभा की बुर चोदी थी, इससे पहले हस्तमैथुन से और पति के द्वारा लाए गए एक फ्लॉसलाईट(मर्दोँ के हस्तमैथुन यन्त्र, एक नल जैसे चिज मेँ लंड डाल के पम्पिँ किया जाता है ) से अपनी लंड की गरमी को शांत करती थी । बूर चोदने मेँ मिला सुख दीप्ति पहले कभी नहीँ पाई थी ।

कमरे में बिखरे हुये कपड़े इकट्ठे करते दीप्ति को अब सब कुछ सामान्य लग रहा था । खैर, अब उनको एक संस्कारी बहु की तरह नीचे रसोई में जाकर देवरानी का हाथ बटाना था । उधर ये शंका भी कि शायद अजय ने कल रात को दोनों को संभोग करते देख लिया था... दीप्ति के मन में डर पैदा कर रही थी । दीप्ति रसोई में घुसी तो शोभा सब के लिये चाय बना रही थी । "गुड माँर्निंग, दीदी!", "ओह, गुड माँर्निंग शोभा ।" दीप्ति ने जवाब दिया । तभी अजय वहां पानी लेने आ गया । दीप्ति तो जड़वत रह गई । कहीं अजय ने सच में अपनी माँ को शोभा की बुर मेँ चोदते देख तो नहीं लिया, या वो सिर्फ़ अन्दाजा लगा रही हैं ।

"सो, कैसा रहा सब कुछ माँ ।" अजय ने सामान्य बनते हुये पूछा । "बेटा, कल शाम को शराब पीने के बाद, हम सब को थोड़ा नशा हो गया था ।" कहते हुये दीप्ति के हाथ काँप रहे थे । "कल रात को मजा आया कि नहीं ।" आखिरकार अजय अपना गुस्सा जाहिर कर ही डाला । अब शक की कोई गुन्जाईश नहीं थी की अजय ने कल रात मम्मी और चाची का चोदाई देख लिया था और मम्मी की मूषल लंड को भी । "देखो बेटा, ये सब गलती से हुआ ।" अब दीप्ति भी टूट गई । दिल जोरो से धड़क रहा था और तेजी से चलती सांसो से सीना भी ऊपर नीचे हो रहा था । अजय कुछ नहीँ बोला और सिधे अपने कमरे मेँ चला गया । शर्म के मारे दीप्ति के दोनों गाल लाल हो गये थे ।

अजय बचपन से अपने माता पिता के साथ एक ही कमरे में सोता आया था । जब वो तेरह साल का हुआ तो एक दिन दीप्ति को उसके बिस्तर में कुछ धब्बे मिले । उस दिन से उसने अजय का दूसरे कमरे में सोने का इन्तजाम कर दिया और साथ ही उसे नहलाना और उसके कपड़े बदलना भी बन्द कर दिया ।

अपनी इकलौते बेटे की मन से सारे उलझनोँ को मिटाना होगा । और अब दीप्ति को आज रात तक चैन नहीं लेने देगा । गोपाल ने ऑफ़िस का कुछ जरूरी काम बता वहां से विदा ली । सवेरे जब चाय बना कर उसने सब को आवाज लगाई तो अजय सबसे आखिर में पूरी तरह से तैयार हो कर डाईनिंग टेबिल पर आया था और पूरे दिन के लिये कॉलेज जाने का बहाना बना कर निकल गया और फ़िर दीप्ति के सामने नहीं आया । दीप्ति समझ गई ये सब पिछले रात शोभा को चोदने का नतीजा जो अजय ने देख लिया था । अजय को उसकी रहस्य का पता चल गया था । दीप्ति अपने कमरे में बैठी कुछ सोच रही थी । गोपाल सो रहे थे । आज का पूरा दिन मानसिक और शारीरिक उथल पुथल से भरा रहा था । दीप्ति ने आज पूरे दिन अजय पर नज़र रखी थी । अजय दिन भर उनसे बातेँ तक नहीँ किया । एक वास्तविकता ये भी थी कि वो अजय की मां थी । ममता और वासना की मिली जुली भावनाओं से दीप्ति के दिमाग में हलचल सी मची हुई थी । लेकिन जल्द ही अपने को काबू में कर लिया । दिमाग अब सिर्फ़ अजय के बरताव के बारे में सोचने लगा । बेचारा क्या सोच रहा होगा अपने माँ के बारे मेँ । माँ औरत है या मर्द । इन सब विचारों से दीप्ति का शरीर कांप रहा था । अब निर्णय की घड़ी पास ही थी । दीप्ति अजय के कमरे मे दबे पांव घुसी । आज रात अपने बच्चे का सारा उलझनेँ दुर करना चाहती थी । रात होने का इंतजार करने लगी ।

रात को जब थोड़ी देर के लिये दीप्ति की आंख भी लग गयी । अचानक अजय के कमरे से कुछ आवाज आयी तो वो जाग गयी, धीरे से वो कमरे के अन्दर दाखिल हुयी और अजय के बिस्तर के पास पहुँच गयी । आंखें जअब अन्धेरे की अभ्यस्त हुयीं तो देखा कि अजय चादर के अन्दर हाथ डाले किसी चीज को ज़ोर ज़ोर से हिला रहा था । अजय, कमरे में अपनी मां कि मौजूदगी से अनभिज्ञ मुट्ठ मारने में व्यस्त था । शायद अजय कल की रात को अपनी माँ और चाची के करतुत को सपनों में ही दुहरा रहा था । "आह, चाचीईईई" अजय की कराह सुनकर दीप्ति को कोई शक नहीं रह गया कि अजय उसकी सच्चाई जान चुका था । शोभा और अपने के लिये उनका मन घृणा से भर उठा ।

आखिर क्यूं हो गया ऐसा ? आज उनका लाड़ला ठीक उनके ही सामने कैसा तड़प रहा है । और वो भी उस शोभा का नाम ले कर, नहीं । अजय को और तड़पने की जरुरत नहीं है । उसकी मां है यहां पर उसकी हर ज़रुरत को पूरा करने के लिये । अजय के लिये उनके निर्लोभ प्रेम और इस कृत्य के बाद में होने वाले असर ने क्षण भर के लिये दीप्ति को रोक लिया । अगर उनके पति अजय के पिता को कुछ भी पता चल गया तो ? कहीं अजय ये सोचकर की उसकी मां एक सामान्य औरत नहीँ है उन्हें नकार दे तो ? तो, तो, तो? बाकी सब की उसे इतनी चिन्ता नहीं थी । और अपने पति को वो सब कुछ खुद ही बता कर समझा सकती थी कि अजय की जरुरतों को पूरा करना कितना आवश्यक था । नहीं तो जवान लड़का किसी भी बाजारु औरत या मर्द के साथ आवारागर्दी करते हुये खुद को किसी भी बिमारी और परेशानी में डाल सकता था । पता नही कब, लेकिन दीप्ति चलती हुई सीधे अजय की तरफ़ बिस्तर के पास जाकर खड़ी हो गईं । अजय ने भी एक साये को भांप लिया । तुरन्त ही समझ गया की ये शख्स कोई औरत ही है और मम्मी ही होगी । पिछले रात की द्रुश्य मन मेँ आते ही अपने लन्ड पर उसकी पकड़ मजबूत हो गयी । बचपन से देखती आई उसकी ममतामयी मम्मी बाकी औरतोँ से कितनी भिन्न है, उनकी गठीले औरत की बदन पर ईतना बडा पुरुषत्व ! मम्मी को औरत नाम दिया जाए या मर्द । कितना लम्बा और मोटा था मम्मी का लंड और क्या चोदाई कर रही थी चाची की बुर मेँ ! किसी hardcore porn फिल्म से कम नहीँ । कितना परेशान था सवेरे से । दसियों बार मुत्ठ मार मार कर टट्टें खाली कर चुका था । लेकिन अब मम्मी उसके पास थी । और वो ही उसको सही तरीके से शान्त कर पायेंगी ।

दीप्ति कांपते कदमों से अजय कि तरफ़ बढ़ी । सही और गलत का द्वंद्ध अभी तक उसके दिमाग में चल रहा था । डर था कि कहीं अजय उससे नफ़रत ना करने लगे । तो वो क्या करेगी ? कहीं वो खुद ही अपने आप से नफ़रत ना करने लगे । इन सारे शकों के बावजूद व अजय को धीरे से पुकारा

"अजय बेटा तुम अभी तक सोए नहीँ ।" दीप्ति बेटे से पुछी । अजय ने मम्मी की बात का कोई जवाब नहीँ दिया । अजय को चुप देख दीप्ति दोबारा पुछी- "तुम अभी तक जाग रहे हो बेटा । "

"ये सब क्या है मम्मी, मेरा तो कुछ समझ नहीँ आ रहा है पागल हो जाउंगा ।" अजय गुस्से से बोला ।

दीप्ति को झटका लगा । कैसे बेटे को समझाए । लेकिन व आज सारी बात का खुलासा करेगी । यही सोचते हुए दीप्ति बोली-"बेटा, मैँ तुम्हारी माँ ही हुं, पर मेरे शरीर मेँ बदकिस्मत से पुरुषोँ की निशानी आ चुकी है । पर बेटा मैँ तुम्हेँ अब भी उतना ही प्यार करती हुं जितना पहले करती थी ।" कहने के साथ दीप्ति की आंखोँ से आंसु टपक पडे ।
मम्मी की आंखोँ मेँ पछतावे के आंसु देख अजय का गुस्सा एकदम ठंडा पठ गया । मम्मी की एक हाथ को हाथ मेँ लिए बोला-"सॉरी मम्मी, मुझे ये सब बातेँ मालुम नहीँ था, व तो आपको चाची के साथ देखा और बस.....।"
दीप्ति आंखोँ मेँ आए आंसु पोछा और चेहरे पर मुस्कराहट लाती हुई बोली- "सॉरी बेटा, मुझे इस तरह हॉल मेँ तुम्हारे चाची के साथ नहीँ करना चाहिए था । पर बेटा न चाहते हुए भी मुझे इस पुरुषांग को अपनी नारी शरीर मेँ अपनाना पडा ।"

"नहीँ मम्मी, अब मुझे आपसे कोई शिकायत नहीँ । पर क्या आपको ऐसी ही रहनी पडेगी ।"

"अब मेरी इस बदलाव के कारण मेरी शरीर की जरुरतेँ भी बदल गई । और शरीर की मांग को पुरा करने के लिए ही मैँने तुम्हारी चाची के साथ हो गई । मजबुरी मेँ मुझे अब इसी पुरुषत्व को अपना कर जिन्दगी गुजारनी होगी । ऐसा नहीँ करती तो बेटा मैँ आज तुम्हारी मम्मी नहीँ रहती बल्की एक मर्द बन गई होती ।" दीप्ति ने बातेँ खतम की । मम्मी की बातेँ सुनकर अब अजय का मन साफ हो चुका था । व माँ के गोद मेँ सर रखते हुए बोला-"मैँ आपके साथ हुं मम्मी, आप मेरी प्यारी मम्मी हो ।"

"क्या आप इसी शरीर के साथ पूरी उम्र बिताऐंगी? अचानक आपकी शरीर मेँ ये बदलाव कैसे आया ।" अजय ने पुछा ।

अपने बेटे के सवाल का जवाब देती हुई दीप्ति बोली-
"बेटा, मैँ तो पूरी तरह से मर्द बनने जा रही थी । पर सामाजिक नियमोँ का उलंघन करके मैँ पुरुष बनना नहीँ चाहती थी । इसिलीए हमने डॉक्टरोँ के सलाह लिए और मेरी बदलती शरीर को रोक लिया । पुरे शरीर पहले जैसा स्त्री का ही रहा लेकिन मेरे शरीर मेँ लंड और अंडकोष बढ चुका था । इसे हटाना बहुत मुस्किल काम था । जब डॉक्टरोँ ने बताया की मैँ इसी के साथ भी खुशी से जी सकती हुं तो तुम्हारे पिताजी और मैँ खुशी-खुशी इसे ग्रहण किया । जो तुमने कल देखा वही सच है । अब मैँ भी इस सच को मानसिक तौर से अपना लिया है ।" दीप्ति आँसूओँ को पोछती हुई बोली ।

"लेकिन अब मैं आ गयी हूँ, तुम्हें मुठ मारने की कोई जरुरत नहीं ।" कहने के साथ ही मम्मी ने चादर के अन्दर हाथ डाल कर लन्ड के ऊपर जमे अजय के हाथों को अपने दोनो हाथों से ढक लिया । अब जैसे जैसे मम्मी लन्ड पर हाथ ऊपर नीचे करती अजय का हाथ भी खुद बा खुद उपर नीचे होता. "मम्मी" अजय ने फ़ुसफ़ुसाया । अपना हाथ लन्ड से अलग कर अजय उठ खडा हुआ और अपनी मम्मी को बिस्तर पर लिटा दिया । मम्मी की साडी को पेटीकोट समेत कमर के उपर तक सरका दिया और अपनी माँ के 8 इंच के मुरझा पडा लंड को मुठ्ठी मेँ भर लिया । दीप्ति ने अपनी बेटे के हाथों को पूरी आजादी दे दी उस शानदार खिलौने से खेलने की । अपने सपनों की मलिका को पास पाकर अजय का लन्ड भी फुल गया । अजय ने मम्मी के लन्ड पर उन्गलियां फ़िराईं तो उसकी नसों में बहता गरम खून साफ़ महसूस हुआ । आंखे बन्द करके पूरे ध्यान से मम्मी की उस महान औजार को दोनो हाथों से मसलने लगा । मम्मी की ये लन्ड इतना कठोर, इतना तगड़ा, इससे पहले अपनी जिन्दगी में उसने कभी औरत की ऐसे लन्ड को हाथ में नहीं लिया था ।

याद नहीं अजय के जन्म के बाद क्या दवा खाया था कि आज उसकी औरत के बदन पे ये लन्ड उग अया जो अपने पति, बेटे के लंड से भी कहीं आगे था । अपने ही ख्यालों में डूबी हुई उस मां को ये भी याद नहीं रहा कि कब अजय की मुट्ठी ने उसकी लंड को कसके दबाकर जोर जोर से दुहना चालू कर दिया । लन्ड की मखमली खाल खीचने से दीप्ति दर्द से कराह उठी । हाथ बढ़ा कर दीप्ति ने बेटे की अनियंत्रित कलाई को थामी । अजय ने दूसरे हाथ से अपनी मम्मी की चुचियोँ को सहलाया । खुद को घुटनों के बल बिस्तर के पास ही स्थापित करती हुई अजय ने
मम्मी की लन्ड को मुठियाना चालू रखा और आनन्द देने के काम में लग गया । "हाँ आआआआहहहह" । शरीर पर दौड़ती जादुई उन्गलियों का असर था ये, और ज्यादा आनन्द की चाह में दीप्ति बेकरारी में अपनी कमर हिलाने लगी ।

तुरन्त ही झुकते हुये अजय ने पूरा मुहं खोला और मम्मी की तन्नाये लंड को निगल लिया । उसके होंठ मम्मी की लंड के निचले हिस्से पर जमे हुये थे । दीप्ति के हाथ अजय के कन्धों पर जम कर उसे अपने पास खीचने लगे । अन्धेरी रात में अजय भी उस मादा शरीर को अपने पूरे बदन पर महसूस करना चाहता था । लेकिन उसकी मम्मी ने तो पूरे कपड़े पहने हुये है । दीप्ति की उत्तेजना अपने चरम पर थी । उधर अजय ने भी शरीर को थोड़ा और झुकाते हुए मम्मी की खड़ी लंड तक पहुंचने की चेष्टा की । जो शोभा ने किया वो वह भी कर सकता है । तो क्या हुआ अगर लंड चूसने का उसका अनुभव जीरो है, भावनायें तो प्रबल हैं ना । एक बार के लिये उसे ये सब लार का समुन्दर सा बह रहा था । आखिर पहली बार कोई औरत की लंड गलत लगा किन्तु अपने ही मम्मी के साथ सैक्स करने से ज्यादा गलत भला क्या होता ।

मन थोड़ा अजीब सा हो रहा था लेकिन फ़िर उसकी लंड का ख्याल आते ही नया जोश भर गया । अगर उसने आज मम्मी की लंड नहीं चूसा तो वह कल फ़िर से इस आनन्द को पाने के लिये शोभा के पास जा सकती है । अजय अब अपनी माँ का चेहरा देखना चाहता था वही चेहरा जो किसी देवी की मूर्ति की तरह चमक रहा था । हाथ बढ़ाकर बिस्तर के पास की लैम्प जलाई तो लम्बे बालों मे ढका चेहरा आज कुछ बदला हुआ लगा । दीप्ति ने अपना चेहरा अजय की तरफ़ घुमायी । दीप्ति समझ गईं अभी नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति आ खड़ी हुई है । अगर उन्होनें वासना और अनुभव का सहारा नहीं लिया तो इस मानसिक बाधा को पार नहीं कर पायेंगी और फ़िर अजय भी कभी उनका नहीं हो पायेगा । अपनी लंड चुसवाते हुए भी दीप्ति के दिल में सिर्फ़ एक ही जज्बा था कि वो अजय को सैक्स के चरम पर अपने साथ ले जायेगी जहां व सब कुछ भूल कर बस लडके को चोदेगी । दो मिनट पहले के मानसिक आघात के बाद दीप्ति का लंड थोड़ा नरम पड़ गया था वो फ़िर से अपने शबाब पर लौट आया । मां के लम्बे बाल अलग ही रेशमी अहसास पैदा कर रहे थे ।

पिछली रात से बहुत ज्यादा अलग ना सही लेकीन काफ़ी मजेदार था ये सब । दीप्ति ने भी अब सब कुछ सोचना छोड़ कर बेटे के सिर को हाथों से थाम लिया और फ़िर अपनी भारी नितम्ब उछालती हुई बेटे के मुहं को चोदने लगी । दीप्ति का नियंत्रण खत्म हो गया । वो अभी झड़ना नहीं चाहती थी परन्तु जोश, वो गर्मी और मुहं से आती गोंगों की आवाजों से आपा खो कर उसकी वीर्य बह निकली."उई मां" दीप्ति सीत्कारी । अजय सब समझ गया । मम्मी छूटने वाली थी । उसकी लंड की नसों मे बहते वीर्य का आभास पाकर अजय ने अपना मुहं हटाय़ा और मुट्ठी में जकड़ कर मम्मी की लंड को पम्प करने लगा ।
अजय का लंड भी फुंकर मारने लगा था । ये देखते हुए दीप्ति अपनी लंड से अजय का हटा दिया और अपनी लंड को अजय के लंड से भिडा दी । मम्मी अब दोनोँ के लंड को अपनी मुठ्ठी मेँ पकड ली और एकसाथ दोनोँ लंड को मुठियाने लगी । अजय माँ की चिकनी लंड का घर्षण अपने लंड पर महसूस कर रहा था ।
"मेरा निकलने वाला है मम्मी ।" अजय बोला ।
"थोडा रुक जाओ बेटा एकसाथ ऑर्गाजम करते हैँ ।" शोभा हाँफती हुई बोली ।
"OK माँ ।" अजय राजी हो गया । दीप्ति दोनोँ के लंड मुठियाना चालु रखा । उसकी हाथ तेजी से चलने लगी । मम्मी की भारी नितम्ब बिस्तर पर उछलने लगा था । अजय अपनी दोनोँ हाथ से माँ के कंधा पकड के रखा था । दोनोँ के लंड फुल गए थे और सुपाडेँ एकदम लाल हो चुके थे ।
"मम्मी...मैँ...अब रहा नहीँ जाता ।" अजय दर्द मेँ कराह उठा ।
"बस एक और सेकॉन्ड रुक जाओ बेटा ।" दीप्ति उत्तेजना मेँ कांपती हुई बोली ।
फिर दीप्ति दोनोँ के लंड को मजबुती से पकडती हुई एक पिस्टन के भांति अपनी हाथ उपर-निचे करने लगी । दोनोँ के नंगे शरीर उत्तेजना के मारे कांप रहे थे, धडकनेँ बढ चुकी थी । तभी मम्मी की आवाज सुनते ही अजय का धर्य का बांध टुट गया और उसके लंड से विर्य की धार निकल पडी और दीप्ति भी कराह उठी मानो रो पडेगी, आआआई....ईईई... के साथ ही दीप्ति ने जोर से गांड उछाली और एक पिचकारी के साथ मम्मी की गुलाबी सुपाड़े में से वीर्य की धार छूट कर सीधे अजय के पेट पर पड़ी । दीप्ति ने दोनो आंखें बन्द कर लीं । दीप्ति की हाथ दोनों के वीर्य से सना हुआ था । अभी तक झटके लेती हुई अपनी लंड के साथ अजय के लंड को भी दीप्ति ने निचोड़ निचोड़ कर खाली कर दिया । मां के हाथ और पेटीकोट उसकी वीर्य से सने हुये थे । दीप्ति ने अजय की जांघों पर सिमटी पड़ी चादर से अपनी लंड रगड़ कर साफ़ की । अजय ने बिस्तर पर एक तरफ़ हटते हुये अपनी मां के लिये जगह बना ली । दीप्ति भी अजय के पास ही बिस्तर पर लेट गयी । खुद को इस तरह से व्यवस्थित किया की अजय का चेहरा ठीक उनके स्तनों के सामने हो और लंड उसके हाथ में । ब्लाउज के सारे बटन खोल कर दीप्ति ने उसे अपने बदन से आज़ादी दे दी ।

अजय की आंखों के सामने मां की नन्गी जवानी बिखरी पड़ी थी । जबसे सैक्स शब्द का मतलब समझने लगा था उसकी मां ने कभी भी उसे अपने इस रूप का दर्शन नहीं दिया था । अजय का सिर पकड़ दीप्ति ने उसे अपने चूंचों मे छिपा लिया । अजय थोड़ा सा कुनमुनाया. "श्श्श्श". "मेरे बच्चे, तेरे लिये तेरी मां ही सब कुछ है । अजय के होठों ने अपने आप ही मां के निप्पलों को ढूंढ लिया । जीवन में पहली बार ना सही लेकिन इस समय अपनी मां के शरीर से अपनी भूख मिटाने का ये अनोखा ही तरीका था । मां के दोनों निप्पल बुरी तरह से तने हुये थे । शायद बहुत उत्तेजित थी । अपने बेटे के लिये उसकी मां ने अपने आनन्द की परवाह भी ना की । अजय का मन दीप्ति के लिये प्यार और सम्मान से भर गया । मां बेटे एक दूसरे से बेल की तरह लपटे पड़े थे । अजय का एक पावं दीप्ति की कमर को जकड़े था तो हाथ और होंठ मां के सख्त हुये उरोजोँ पर मालिश कर रहे थे । दीप्ति की लंड में भी धीरे धीरे जान लौटने लगी । पर दिन भर का थका अजय जल्दी ही अपनी ममतामयी मां के आगोश में सो गया । दीप्ति थोड़ी सी हताश तो थी किन्तु अजय की जरुरतों को खुद से पहले पूरा करना उनकी आदत में था । खुद की टांगों के बीच में आग ही लगी थी पर अजय को जन्मजात अवस्था में खुद से लिपटा कर सोना उसे सुख दे रहा था । थोङी देर में दीप्ति भी नींद के आगोश में समा गयी । जो कुछ भी उन दोनों के बीच हुआ वो तो एक बड़े खेल की शुरुआत भर था । एक ऐसा खेल जो इस घर में अब हर रात खेला जाने वाला था ।

पिछले चौबीस घन्टों में अपने ही घर की सीधी सादी दिखने वाली भद्र महिला के साथ हुये उसके अनुभव को याद करके अजय का लंड फ़िर तेजी से सिर उठाने लगा । बिस्तर पर उसकी मां दीप्ति जन्मजात नन्गी अवस्था में उसकी बाहों में पड़ी हुयीं थीं । मां के मूषल लंड को याद करके अजय का हाथ अपने आप ही मम्मी के मुरझे लंड पर पहुंच गया । हथेली में लंड को भर कर अजय हौले हौले से दबाने लगा । शायद मां जाग जाये । अजय ने धीरे से मां की तरफ़ करवट बदलते हुये अपना लंड उनके भारी नितंबों की दरार में घुसेड़ दिया । अपनी गांड पर दबाब पाकर मां की आंखें खुल गईं । "अजय, ये क्या कर रहे हो?", मां बुदबुदाईं । अजय ने जवाब में अपने गरम तपते होंठों से माँ के कानों को चूमा । बस इतना करना ही काफ़ी था उस उत्तेजना से पागल हुई औरत के लिये । दीप्ति ने खुद पीठ के बल लेटते हुये अजय के हाथों को खींच कर अपनी झांटो के पास रखा और एक पैर सिकोड़ कर घुटना मोड़ते हुये उसे अपनी मुरझी हुई लंड के पूरे दर्शन कराये । अजय ने मां की झांटो भरी लंड पर उन्गलियां फ़िराई ।

अजय शायद ये सब सीखने में सबसे तेज था । थोडी देर ध्यान से देखने के बाद बुद्धीमत्ता दिखाते हुये उसने अपनी उन्गली को मां की गांड के छेद के पास से कम बालों वाली जगह से ठीक ऊपर की तरफ़ ठेला और अंडकोष को सहलाने लगा । इस तरह धीरे धीरे ही सही अजय अपनी मां की लंड को मसलने लगा । मां सिसकी और अपनी गदराए जांघोँ को और ज्यादा खोल दिया । साथ ही माँ की झाँटोँ से भरी पूरा लंड और बडे-बडे अंडकोष अजय के सामने आ गया ।. अब एक हाथ से काम नही चलने वाला था । अजय ने कुहनियों के बल मां के ऊपर झुकते हुये एक और उन्गली को अपनी मां की गांड के छेद को घिसने की जिम्मेदारी सौंप दी । "आह, मेरे बच्चे", अत्यधिक उत्तेजना से दीप्ति चींख पड़ी । बाल पकड़ कर अजय का चेहरा अपनी तरफ़ खींचा और अपने रसीलें गरम होंठ उसके होठों पर रख दिये । आग में जैसे घी ही डाल दिया दीप्ति ने ।


दीप्ति ने बिस्तर पर बिखरे हुये नाईट गाऊन को उठा अपनी लंड को रगड़ रगड़ कर साफ़ किया । सवेरे से बनाया प्लान अब तक सही तरीके से काम कर रहा था । अजय को अपना सैक्स गुलाम बनाने की प्रक्रिया का अन्तिम चरण आ गया था । दीप्ति ने अजय के लंड को मुत्ठी में जकड़ा और घुटनों के बल अजय के उपर झुकते हुये बहुत धीरे से अपनी लंड को अजय के मुंह के अन्दर समा दिया । पूरी प्रक्रिया अजय के लिये किसी परीक्षा से कम नहीं थी । "हां मां, प्लीज, फ़क मी, फ़क मी...ओह फ़क" जोर जोर से चिल्लाता हुआ अजय अपनी ही मां की लंड को चुसे जा रहा था । अजय के चेहरे को हाथों में लेते हुये दीप्ति ने उसे आदेश दिया "अजय, देखो मेरी तरफ़" । धीरे धीरे एक ताल से कमर हिलाते हुये वो अपनी लंड की भरपूर सेवा कर रही थीं ।

उस तगड़े हथियार का एक वार भी अपनी हाथ से खाली नहीं जाने दिया । वो नहीं चाहती थी की अजय को कुछ भी गलत महसूस हो । "मै कौन हूं तुम्हारी?" लंड को अजय के होँठोँ पर फ़ुदकाते हुए पूछा । "म्म्मां" अजय हकलाते हुये बोला । इस रात में इस वक्त जब ये औरत उसके साथ हमबिस्तर हो रही है तो उसे याद नहीं रहा की मां किसे कहते है । "मैं वो औरत हूं जो इतने सालों से तुम्हारी हर जरूरत को पूरा करती आई है । है कि नहीं?" दीप्ति ने पासा फ़ैंका । आगे झुकते हुये एक ही झटके में अपना पूरा लंड अजय के मुंह में डाल दिया । "आआआआआह, हां मां, तुम्हीं मेरे लिये सब कुछ हो!" अजय हांफ़ रहा था । उसके हाथों ने मां की चिकनी उभरी गांड को पकड़ कर नीचे की ओर खींचा । दीप्ति ने अपने नितंबों को थोड़ा ऊपर कर दुबारा से लंड को बेटे के मुंह के अंदर तक पेल दिया और कमर ऊपर उछालते हुये मुंह में जबर्दस्त धक्के लगाने लगी ।

अजय के ऊपर झुकते हुये दीप्ति ने सही आसन जमाया । "अजय, अब तुम जो चाहो वो करो । ठीक है" दीप्ति की मुस्कुराहट में वासना और ममता का सम्मिश्रण था । अजय ने सिर उठा कर मां के निप्पलों को होठों के बीच दबा लिया । दीप्ति के स्तनों से बहता हुआ करन्ट सीधा उनकी लंड में पहुंचा । हांलाकि दोनों ही ने अपनी सही गति को बनाये रखा । जवान जोड़ों के विपरीत उनके पास घर की चारदीवारी और पूरी रात थी । दीप्ति ने खुद को एक हाथ अपनी लंड को सहलाते हुये दूसरे हाथ से अपनी चूचीं पकड़ कर अजय के मुहं में घुसेड़ दी । अजय ने भी भूखे जानवर की तरह बेरहमी से उन दो सुन्दर स्तनों का मान मर्दन शुरु कर दिया । मां के हाथ की जगह अपना हाथ इस्तेमाल करते हुये अजय ने निप्पल को जोर से उमेठा । नीचे मां और पुत्र अपनी-अपनी लंड हिलते हुये दोनों के बीच उत्तेजना को नियन्त्रण में रख रही थी । अब मां ने आसन बदलते हुये एक नया प्रयोग करने का मन बनाया । मम्मी की टांगों को चौड़ा करके अजय उनके बीच में बैठा तो उसका लंड खड़ी अवस्था में ही मां के तने हुए लंड से जा भिड़ा ।

2 सेकेन्ड पहले भी ये लंड यहीं था लेकीन उस वक्त यह उनके अन्दर समाया हुआ था । अजय को गोद में बैठा कर दीप्ति ने एक बार फ़िर से अपनी लंड के साथ बेटे के लंड को अपनी मुठ्ठी में भरा । दोनोँ लंड के सुपाड़े के ऊपर के फोर-स्कीन फ़िसल रहे थे । "ऊईईई माआआं" दीप्ति सीत्कारी । दीप्ति ने बेटे के कन्धे पर दांत गड़ा दिये । इतना ज्यादा आनन्द दीप्ति के लिये अब असहनीय हो रहा था । मां पुत्र की ये सैक्सी कुश्ती सिसकियों और कराहों के साथ कुछ क्षण और चली । पसीने से तर दोनों थक कर चूर हो चूके थे पर अभी तक इस राऊंड में चरम तक कोई भी नहीं पहुंचा था । थोड़ी देर रुक कर दीप्ति अपने लाड़ले बेटे के सीने और चेहरे को चूमने चाटने लगी । मां के जोश को देख कर बेटा समझ गया ।

दीप्ति के गुलाबी होंठों पर जीत की मुस्कान बिखर गई । इतनी देर से चल रहे इस हस्तमैथुन कार्यक्रम से दोनोँ के लंड का तो बुरा हाल था । "अजय बेटा । बस बहुत हो गया । अब मैँ झड़ रही हुं । मां कल भी तेरे पास आयेगी" दीप्ति हांफ़ने लगी थी । अजय का भी हाल बुरा था । उसके दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था । समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे । बस माँ के फ़ुदकते हुये मुम्मों को हाथ के पंजों में दबा कमर उछाल रहा था । "ऊहहहहहहहहहह! हां! ऊइइइ मांआआ!" चेहरे पर असीम आनन्द की लहर लिये दीप्ति बिना किसी दया के दोनोँ के मुस्टंडे लंड को जोर जोर से आगे-पिछे करने लगी । "आ आजा बेटा, खुश कर दे अपनी मां को", अजय को पुचकारते हुये बोली । इन शब्दों ने जादू कर दिया । अजय रुक गया । दोनों जानते थे कि अभी ये कार्यक्रम कफ़ी देर तक चल सकता है लेकिन उन दोनों के इस अद्भुत मिलन की साथी उन आवाजों को सुनकर गोपाल किसी भी वक्त जाग सकते थे और यहां कमरे में आकर अपने ही घर में चलती इस पाप लीला को देख सकते थे । काफ़ी कुछ खत्म हो सकता था उसके बाद और दोनों ही ऐसी कोई स्थिति नहीं चाहते थे । अजय ने धक्के देना बन्द कर आंखे मूंद ली । मम्मी की लंड ने गरम खौलते हुये वीर्य की बौछारे उड़ेल दी । "ओह" दीप्ति चीख पड़ी । जैसे ही विर्य की पहली बौछार का अनुभव उन्हें हुआ बेटे को कस के भींच लिया । अगले पांच मिनट तक दीप्ति की लंड से वीर्य की कई छोटी बड़ी फ़ुहारें निकलती रहीं । थोड़ी देर बाद जब ज्वार उतरा तो दीप्ति बेटे के शरीर पर ही लेट गय़ीं । भारी भरकम स्तन अजय की छातियों से दबे हुये थे । दोनोँ के लंड एक दुसरे से रगड खा रहे थे । अजय ने मां के माथे को चूमा और गर्दन को सहलाया । "मां, मैं हमेशा सिर्फ़ तुम्हारा रहूंगा । तुम जब चाहो जैसे चाहो मेरे संग सैक्स कर सकती हो ।

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