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पुणे में औंध के बंगला सोसाइटी में, कविता शर्मा अपने बंगले की खिड़की पर खडी हो कर गली में बाहर का नज़ारा देख रहीं थीं. कविता एक बहुत की खूबसूरत औरत थीं - गोरा रंग, लम्बा कद, काले लम्बे बाल, . उनका बदन एक संपूर्ण भारतीय नारी की तरह भरा पूरा था. कविता एक जिन्दा दिल इंसान थीं जिन्हें जिन्दगी जी भर के जीना पसंद था. कविता इस घर में अपने हैण्डसम पति विवेक और अपनी बेटी तृषा के साथ रहती थी. तृषा यूनिवर्सिटी में फाइनल इयर की क्षात्र थीं. कविता एक गृहणी थीं. विवेक एक सॉफ्टवेयर कंपनी में ऊंची पोस्ट पर थे. कविता को ये बिलकुल अंदाजा नहीं था की उसकी जिन्दगी में काफी कुछ नया होने वाला है.
कविता के सामने वाला घर कई महीनों से खाली था. उसके पुराने मालिक उनका मोहल्ला छोड़ कर दिल्ली चले गया थे. आज उस घर के सामने एक बड़ा सा ट्रक खड़ा था. उसके ट्रक के बगल में एक BMW खडी थी जिसमें मुंबई का नंबर था. लगता था मुंबई से कोई पुणे मूव हो रहा था. पुराने पडोसी काफी खडूस थे. मोहल्ले में कोई उनसे खुश नहीं था. कविता मन ही मन उम्मीद कर रही थी कि नए पडोसी अच्छे लोग होंगे जो सब से मिलना जुलना पसंद करते होंगे.
कविता ने देखा की उस परिवार से तीन लोगों थे. पति पत्नी शायद 40 प्लस की उम्र में होंगे. उनकी बेटी कविता की अपनी बेटी तृषा की उम्र की लग रही थी.
कविता ने अपने पति विवेक को पुकारा, "हनी, जल्दी आओ. हमारे नए पडोसी आ चुके हैं"
विवेक लगभग दौड़ता हुआ आया और बाहर का नज़ारा देखते ही उसकी बांछे खिल उठीं. बाहर एक हैण्डसम आदमी की बहुत ही सेक्सी बीवी अपने बॉब कट हेयर स्टाइल में एकदम कातिल हसीना लग रही थी. जैसे जैसे वो चलती थी, उसकी चून्चियां उसकी टी-शर्ट में इधर से उधर हिलती थीं. इसी बीच विवेक की नज़रों में उनकी कमसिन जवानी वाली बेटी आई. विवेक का तो लंड उसके पाजामें के अन्दर खड़ा होने लग गया. नए पड़ोसियों की बेटी ने लो-कट टी-शर्ट पहन रखी थी. इसके कारण उसके आधे मम्मे एकदम साफ़ दिखाई पड़ रह थे. उसके मम्मे उसके माँ की भांति सुडौल थे जो एक नज़र में किसी को भी दीवाना बना सकते थे. उसने बहुत छोटे से शॉर्ट्स पहन रखे थे जिससे उसके गोर और सुडौल नितंब दिखाई पद रहे थे.
विवेक सारा नज़ारा अपनी पत्नी कविता ने पीछे खड़ा हो कर देख रहा था. विवेक ने पीछे से कविता को अपने बाहीं में भर लिया. उसके हाथ कविता के दोनों चून्चियों पर रेंगने लगे. कविता मुस्कराई और उसने अपनी गुन्दाज़ चूतडों को विवेक के खड़े लंड पर रगड़ना शुरू कर दिया. इससे विवेक का खड़ा लंड कविता की गांड की दरार में गड़ने लगा.
कविता ने धीरे से हँसते हुए पूंछा, "डार्लिंग! तुम्हारा लंड किसे देख के खड़ा हो गया?"
विवेक बोला, "दोनों को देख कर. तुमने देखा की उनकी लडकी ने किस तरह के कपडे पहने हैं"?
"वो बहुत हॉट है न? जरा सोचो अपनी तृषा अगर ऐसे कपडे पहने तो?" कविता बोली.
विवेक के हाथ अब कविता के ब्लाउज के अन्दर थे. वो उसकी ब्रा का आगे का हुक खोल रहा था. विवेक कविता की चून्चियों को अपने हाहों में भर रहा था और धीरे मसल रहा था. विवेक को अपनी चून्चियों के साथ खेलने के अनुभव से कविता भी गर्म हो रही थी.
वो बोली, "विवेक डार्लिंग! आह.. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. मुझे खुशी हुई की नए पड़ोसियों को देख कर तुम्हें "इतनी" खुशी हुई... अब मुझे तुम्हें यहाँ बुला कर उन्हें दिखाने का इनाम मिलेगा ना?"
विवेक कविता को जोर जोर से चूमने लगा. उसने कविता का गर्म बदन अपने ड्राइंग रूम में बिछे हुए कालीन पर खींच लिया. उसके हाथ अब कविता के स्कर्ट के अन्दर थे, उसकी उंगलिया उसकी गीली चूत पर रेंग रहीं थी. कविता ने अपनी टाँगे पूरी चौड़ी कर रखीं थीं. हालांकि दोनों के विवाह को 19 साल हो गए थे, पर दोनों आज भी ऐसे थे जैसे उनका विवाह 19 घंटे पहले ही हुआ है - जब भी उन्हें जरा भी मौका मिलता था, चुदाई वो जरूर करते थे.
विवेक ने अपना पजामा उतार के अपने लौंड़े को आज़ाद किया. कविता इस लंड को अपनी चूत में उतार के चोदने के लिए एकदम तैयार थी. कविता को चुदाई बहुत पसंद थी. वो वाकई चुदवाना चाहती थी. पर विवेक को चिढाने के लिए उसने बोला,
"विवेक डार्लिंग... नहीं...तृषा के घर आने का टाइम हो गया है. वो कभी भी आ सकती है"
विवेक ने अपना लौंडा कविता के चूत के मुहाने पर टिका के एक हल्का सा धक्का लगाया जिससे उसके लंड का सुपाडा कविता की गीली चूत में जा कर अटक सा गया. कविता ने अपनी गांड को ऊपर उठाया ताकि विवेक का पूरा का पूरा लंड उसकी चूत के अन्दर घुस सके. विवेक धीरे धीरे अपनी गांड हिलाने लगा ताकि वो अपनी पूरी तरह गरम चुकी बीवी की गांड के धक्कों को मैच कर सके और बोला,
"अच्छा को कि तृषा किसी दिन हमारी चुदाई देख ले...कभी कभी मुझे लगता है कि उसकी शुरुआत करने की उम्र भी अब हो गयी है."
कविता ने अपने पैर विवेक की गांड पर लपेट लिए और अपनी भरी आवाज में बोली,
"अरे गंदे आदमी...यहाँ तुम अपनी बीवी की ले रहा है और साथ में अपनी बेटी को चोदने के सपने देख रहा है...सुधर जा...."
विवेक ने कविता को दनादन फुल स्पीड में चोदना चालू कर दिया. उसका लंड कविता की चूत के गीलेपन और गहराइयों को महसूस कर रहा था. कविता आह आह कर रही थी और अपनी चूत को विवेक के लंड पर टाइट कर रही थी. विवेक को कविता की चूत की ये ट्रिक बेहद पसंद थी. विवेक ने धक्कों की रफ़्तार खूब तेज कर दी और वो कविता की चूत में झड़ने लगा. कविता ने अपने चूत में विवेक के लंड से उसके वीर्य की गरम धार महसूस की और वो भी झड़ गयी. कविता झड़ते हुए इतनी जोर से चिल्लाई की उसकी अवाज नए पड़ोसियों तक भी शायद पहुची हो. दोनों एक दुसरे से लिपटे हुए थोड़े देर पड़े रहे. फिर विवेक के अपना लौंडा उसकी चूत से निकाला उसे होठों पर चूमा और बाथरूम की तरफ चला गया.
कविता ने अपने कपडे ठीक किये और वापस खिड़की पर चली गयी ताकि देख सके की नए पड़ोसी अब क्या कर रहे हैं.
अब माँ और बेटी शायद घर के अन्दर थे और पिता बाहर खड़ा हुआ था. विवेक बाथरूम से लौट आया और उसने कविता के गर्दन के पीछे चूमा. कविता गर्दन के पीछे चूमा जाना बहती पसंद था. कविता ने अपनी भरी आवाज में बोला
"मज़ा आया विवेक. मुझे बहुत अच्छा लगता है जब तुम कहीं भी और कभी भी मेरी लेते हो.."
"ओह यस बेबी...इस शहर का सबसे टॉप माल तो तू है न..."
कहते हुए विवेक ने कविता की गांड पर एक हल्की चपत लगाईं.
कविता हंसने लगी और विवेक की बाहों में लिपटने लगी और बोली,
"थैंक्स डार्लिंग....मैं टॉप माल हूँ..और तुम्हारी बेटी तृषा? क्या तुम उसे हमारे खेल में जल्दी शामिल करने की सोच रहे हो?"
"पता नहीं बेबी....पर मुझे लगता है इस मामले में किसी तरह की जल्दबाजी ठीक नहीं है"
कविता को फिर से अपनी गांड में कुछ गड़ता हुआ सा महसूस हुआ. उसे विवेक का ये कभी भी तैयार रहने का अंदाज़ बड़ा भाता था. कविता जब विवेक से मिली थी तब तक सेक्स के प्रति उसका रुझान कुछ ख़ास नहीं था. पर विवेक के साथ बिठाये पहले 6 महीने में कविता एक ऐसी औरत में तब्दील हो गयी जिसे हमेशा सेक्स चाहिए. वो एक दुसरे के लिए एकदम खुली किताब थे. उन्हें एक दुसरे की पसंद, नापसंद, गंदी सेक्सी सोच सब बहुत अच्छी तरह से पता था. वो दोनों बहुत दिन से अपने १८ वर्ष की बेटी को अपने सेक्स के खेल में लाने की सोच रहे थे. जब भी मौका मिलता, वे दोनों इस विषय में चर्चा करना नहीं चूकते थे. कविता को ये अच्छी तरह से पता था की तृषा का काम तो होना ही है, आज नहीं तो कल ...
विवेक खिड़की से झांकता हुआ बोला,
"अपना नए पडोसी की बॉडी तो एकदम मस्त है और देखने में भी हैण्डसम है. उसे उतार लो शीशे में. किसी दिन जब मैं ऑफिस में हूँ, तुम उसे किसी बहाने से यहाँ बुला कर जम कर चोदना"
कविता आनंदातिरेक से भर उठी. उसकी एक और कल्पना थी की वो अपने पति विवेक के अलावा किसी गैर मर्द के साथ यौन सुख का आनंद ले. विवेक को ये बात पता थी. वो इस बारे में अक्सर बात करते थे. वो सेक्स करने के दौरान गैर मर्द वाला विषय अक्सर ले आते थे. ऐसा करने से इससे उन्हें चुदाई में अतिरिक्त आनंद मिलता था.
कविता और विवेक दोनों एक दुसरे के पसंद अच्छी तरह समझते थे. शायद यही उनके खुश वैवाहिक जीवन का राज था.
उनके पडोसी का सामन अब तक अनलोड हो चुका था. वो मूविंग ट्रक के ड्राईवर से कुछ बात कर रहा था. उसने एक पतली टी-शर्ट और टाइट शॉर्ट्स पहन रखे थे. विवेक ने कविता के कान के पीछे का हिस्सा चूमते हुए पूछा,
"कविता, उसके टाइट शॉर्ट्स में उसका सामान देख रही हो? मुझे पक्का पता है कि तुम उसका लौंडा मुंह में लेकर चूस डालोगी न? सोचो न उसका लंड तुम्हारे मुंह में अन्दर बाहर हो रहा है."
कविता गहरी साँसे ले कर कुछ बडबडायी. विवेक ने उसकी स्कर्ट उठा दी और अपना लौंडा उसकी गांड की दरार में रगड़ने लगा. कविता आगे झकी और अपने चूतडों को उठाया. विवेक ने अपना लंड कविता की चूत के छेद पर भिड़ाया और एक ही झटके में पूरा घुसेड़ दिया. कविता इस अचानक आक्रमण से सिहर सी उठी. उसकी सीत्कार से पूरा कमरा गूंज उठा.
कविता बोली,
"एस..विवेक सार्लिंग...चोदो मुझे...हाँ मुझे पडोसी का लंड बड़ा मजेदार दिख रहा है....मैं किसी दिन जब तुम ऑफिस में होगे ...उसे यहाँ बुलाऊंगी ...और जम के चुद्वाऊंगी.....आह...आह...पेलो...."
जल्दी ही विवेक कविता की चूत में झड गया. कविता को विवेक से चुदना और साथ में पडोसी को ले कर गंदी गंदी बात सुनने में बड़ा मज़ा आया.
विवेक ने अपना लंड कविता की चूत से निकाल लिया और ऊपर शावर लेने चला गया. ऊपर से बोला.
"कविता, तुम जा कर हेल्लो हाय कर के आ जाओ. और उन्हें शाम को बाद में चाय नाश्ते के लिए इनवाईट लेना"
बाद में, विवेक जब शावर से निकला, उसने देखा कविता वहां खडी हो कर कपडे उतार रही थी, नीचे ब्रा नहीं पहनी थी.
"ओह... तुम्हारी ब्रा को क्या हुआ जानेमन?" विवेक ने पूछा.
"वो मैंने पड़ोसियों से मिलने जाने के पहले उतार ली थी." कविता ने आँख मारते हुए बोला.
"ह्म्म्म..तो पड़ोसियों ने तुम्हारे शानदार मम्मे ठीक से ताके की नहीं" विवेक ने पूछा.
"शायद.... एनी वे, बंसल्स यानी की हमारे नए पडोसी शाम को 6:00 बजे आयेंगे. ओह विवेक वो बहुत अच्छा आदमी है...अब तुम देखते जाओ..वो जिस तरह से मुझे तक रहा था..मुझे लगता है की मेरा बरसों पुराना सेक्सी सपना पूरा होने वाला है..."
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बंसल्स ठीक शाम 6:00 बजे पहुँच गए. सब ने एक दुसरे से परिचय किया. हर आदमी एक दुसरे को टाइट हग कर रहा था. तृषा वहां खड़े हो कर आश्चर्य से इन सब का मिलाप देख रही थी. कविता को जब गौरव ने हग किया तो वो इतना टाइट हग था की कविता उसका मोटा और लम्बा लंड अपने बदन पर गड़ता हुआ महसूस कर सकती थी. गौरव ने अपना हाथ कविता की गांड पर रखा और हलके से मसला. कविता ने घूम कर इधर उधर देखा - विवेक रेनू लगभग उसी हालत में थे. सायरा और तृषा पीछे के दरवाजे से निकल रहे थे. कविता ने गौरव से नज़रें मिलाईं और मुस्कराई और फुसफुसाई
"ध्यान से गौरव...जरा ध्यान से"
इस बात का मतलब था की मेरी गांड से खेलो जरूर पर तब जब कोई देख न रहा हो.
सब लोगों ने ड्राइंग रूम पार कर के पेटियो में प्रवेश किया. कविता ने वहां सैंडविच, समोसे, चाय वगैरह लगवा रखे थे. विवेक और कविता एक दुसरे के देख कर बीच बीच में मुस्करा लेते थे. विवेक ने ध्यान दिया की उनकी बेटी तृषा एक वहां अकेली लडकी थी जिसने ब्रा पहनी हुई थी.
सायरा हर बहाने से अपने शरीर की नुमाइश कर रही थी. उसे पता था की विवेक उसे देख देख के मजे ले रहा है.
गौरव की पत्नी रेनू काफी खुशनुमा स्वभाव की थी. तब वो झुक कर खाना अपनी प्लेट में डाल रही थी, उसके लो-कट ब्लाउज से उसके मम्मे दिखते थे. विवेक को यह देख कर बड़ा आनंद आ रहा था. वैसे रेनू और कविता दोनों की दिल्ली की लड़कियां थीं. शायद इसी लिए इस मामले में दोनों काफी खुले स्वभाव की थीं.
सब लोग नाश्ता खाते हुए एक दुसरे से बात कर रहे थे. सायरा और तृषा जल्दी से गायब हो गए. शायद वे दोनों तृषा के रूम में बैठ कर कुछ मूवी देख रहे थे. कविता गौरव को अन्दर ले कर गयी और उसे दिखाने लगी की उनका इम्पोर्टेड स्टोव कैसे काम करता है. रेनू विवेक को देख कर मुस्कुरा रही थी.
"सो ये मोहल्ला मजेदार है की नहीं विवेक. हम जब मुंबई से मूव हो रहे थे, तो वहां के पड़ोसियों को छोड़ने का बड़ा अफ़सोस था हमें. हम उनसे काफी करीब भी आ चुके थे"
रेनू ने पूछा.
विवेक मुस्कराने हुए रेनू के मस्त उठे हुए मम्मे देख रहा था. उसने उसे देखा और जवाब दिया,
"मुझे लगता है आप लोगों के आने से मोहल्ले में नयी रौनक आ जायेगी."
रेनू मुस्कराई और बोली,
"ये मुझे एक इनविटेशन जैसा लग रहा है विवेक. जब हम लोग थोडा सेटल हो जाएँ, तुम और कविता हमारे साथ एक शाम गुजारना."
विवेक बोला,
"ओह उसमें तो बड़ा मज़ा आएगा. हम लोग आपके मुंबई के पड़ोसियों वाले खेल भी खेल सकते हैं उस दिन"
"रियली? क्या तुम और कविता वो वाले खेल खेलना चाहोगे?" रेनू ने चहकते हुए पूंछा.
रेनू मनो ये पूँछ रही हो, "अरे विवेक तो तुम्हें मालूम भी है की हम कौन सा खेल खेल खेलते हैं वहां?"
विवेक मन ही मन मुस्कराते हुए मना रहा था कि भगवान् करे तुम उसी खेल की बात कर रही हो जिसमें उसे रेनू की स्कर्ट के अन्दर जाने का मौका मिले.
वह आँख मारते हुए बोला
"रेनू, अगर तुम सिखाने को तैयार को वो खेल तो हम लोग सीखने में बड़े माहिर हैं"
ऐसी गर्म बातें सुनते ही विवेक का लंड न चाहते हुए भी थोडा टाइट हो गया. रेनू ने ये बात तुरंत नोटिस की. वो अपने होठों को होठों से चबाते हुए मुस्कराई और विवेक की तरफ थोडा झुक गयी. उसका बलाउज थोडा खुल सा गया और विवेक को उसकी गुलाबी और मस्त टाइट चून्चियों का मस्त नज़ारा दिख गया. उसने चून्चियों का अपनी आँखों से सराहते हुआ कहा,
"हमको लगता था की हमें दोस्ती करने में थोडा वक़्त लगेगा. पर तुम लोगों से मिल कर लगता है की मैं गलत था."
विवेक और रेनू की नज़रें एक दुसरे से मिलीं. विवेक किसी भी लडकी से इतनी जल्दी नहीं घुला मिला था. दोनों को बहुत अच्छी तरह से पता था की उनके दिमाग में क्या खिचड़ी पाक रही थी. विवेक रेनू को जल्दी से जल्दी चोदना चाह रहा था. रेनू को ये बात बहुत साफ़ दिखाई पद रही थी. और सबसे बड़ी बात तो ये थी की विवेक को रेनू के स्कीम बड़ी अच्छे तरह से पता थी.
विवेक मुस्कराया और बोला,
"मैं हमारे खेल खेलने का बेसब्री से इंतज़ार कर रजा हूँ."
"वो तो ठीक है मिस्टर विवेक, पर तुम्हारी बेगम कविता का क्या"
रेनू ने पूछा.
"मुझे लगता है की उसे भी ये खेल पसंद आएगा, हम दोनों ने कुछ करते हुए इस बारे में कई बारे में बात करी है" , विवेक बोला.
"कुछ करते हुए ..हाँ.. पर क्या करते हुए?" रेनू ने उसे चिढाया.
"वही जो मैं तुम्हारे साथ करना चाह आहा हूँ." विवेक ने अंततः बोल ही डाला. उसने ये मान लिया था की गौरव को इससे कोई समस्या नहीं है.
रेनू ने विवेक के खड़े लंड उसके शॉर्ट्स के अन्दर देखा और एक सिहरन भरते हुए बोला,
"अजीब सी बात है. अभी अभी खाया है पर फिर से कुछ खाने का दिल करने लगा"
विवेक हंसने लगा और बोला,
"मुझे भी. क्या हमने कुछ और खाने के लिए तुम लोगों के सेटल होने का इंतज़ार करना पड़ेगा?"
"किस बात के लिए विवेक" रेनू ने उसे फिर से चिढाते हुए पूछा.
विवेक को रेनू का ये चिढाने का अंदाज़ बड़ा भाया. वो बोला
"वही बात जिसमें मुझे तुम्हारे सारे ओपेनिंग्स भरने का मौका मिले."
"ओह..बात तो ये है की मैं तो बिलकुल तैयार हूँ, अभी के अभी.. पर तुम कल सुबह हमारे यहाँ क्यों नहीं आ जाते...हम मिल कर अपने खेलों की प्रक्टिस जम कर करेंगे ..."
"किस वक़्त""
"दस बजे? हमारा दरवाजा खुला छोड़ देंगे. बस आ जाना. और विवेक साहब...मुझे तुम्हारी ओपेनिंग्स भरने वाला खेल बहुत पसंद...बहुत..."
बाहर अँधेरा होने लगा था. वो दोनों वहां बैठ कर बात कर रहे थे. दोनों खड़े होते और उन्हें हाथ एक दूसरे के शरीर पर चल रहे थे मानों एक दुसरे में कुछ ढूंढ रहे हों. विवेक के हाथ रेनू की फिट गांड पर रेंग रहे थे, वो बीच बीच में उसके ब्लाउज में हाथ डाल कर उसके मम्मे मसल लेता. तो कभी पैंटी मन डाल कर उसकी चूत में उंगली डाल देता. रेनू विवेक के शॉर्ट्स में हाथ डाले बैठी थी और उसके खड़े लंड को अपने मुलायम हाथों से सहला रही थी. ये सोच कर की कल ये लंड उसकी चूत में होगा उसे एक अजीब सी सिहरन सी हो रही थी.
इसी बीच किसी के आने की आवाज ने उन्हें चौंका दिया और वो दोनों एक दम से अलग दूर हो कर खड़े हो गए थे मानों उनके बीच कुछ हुआ ही न हो.
गौरव और कविता वापस आ गए थे. विवेक ने देखा की कविता उसकी तरफ देख कर मुस्करा रही थी. शायद वो सोच रही थी की उसके अनुपस्थिति में विवेक और रेनू के बीच क्या हुआ होगा. विवेक भी ये सोच रहा था की गौरव ने कविता के साथ क्या क्या किया होगा.
बाद में उस रात जब विवेक और कविता बिस्तर पर लेटे, कविता बड़ी गर्म थी. वो एक मिनट के लिए विवेक का लंड चूसती, तो दुसरे ही पल विवेक का मुंह अपनी चूत में भिड़ा के अन्दर खींच देती. फिर अगले ही पल वह विवेक को नीचे लिटा कर उसके ऊपर चढ़ गयी और लगी उसे दनादान छोड़ने. कविता को खुद पता नहीं था की वो चोद चोद कर कितनी बार झडी. जब वो आखिरी बार झडी तो वो विवेक के ऊपर से जैसे साइड में बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर पडी.
"आज की चुदाई बड़ी ही मजेदार है मेरी जान."
विवेक थोडा ऊपर खिसका और कविता की चून्चियों से खेलते हुए बोला,
"मुझे लगता है की तुमने आज गौरव के साथ थोड़ी तो मौज की है पर जब तुम लौटे तो तुम्हारे चेहरे पर एक अजीब सा लुक था. हैं ना?"
कविता थोड़ी हिचकिचाई उसने अपने हाथों से विवेक का मुलायम पद गया लौंडा पकड़ लिया और उससे तब तक खेला जब तक की वो फिर से खड़ा बहिन हो गया. वो बोली,
"गौरव मुझे लाइन मार रहा था जोरों से. जब मैं उसे अपना स्टोव दिखा रही थी, वो पीछे खड़ा था. वो अपने हाथ मेरे हाथों के नीचे से ला कर मेरे मम्मे सहलाने लगा. और उसने मेरी गर्दन के पीछे किस भी किया."
"और तुमने क्या किया बेबी डॉल?"
"पहले तो मैं वह चुपचाप खडी रही. मुझे विशवास नहीं हो रहा था की ये सब वास्तव में हो रहा है..... फिर मैं वापस उसकी तरफ घूमी....तुम्हें तो पता ही है की मैं ऐसे समय ब्रा नहीं पहनती ताकि मेरे तगड़े मम्मों की जम के नुमाइश कर सकूं...उसने मेरे मम्मों को देखा..और बोला - कविता तुम्हारे मम्मे तो लाजवाब हैं."
"इसके पहले की मैं कुछ कहती वो मेरे दोनों मम्मे मसलने लगा ...मैं कुछ बुद्बुदाई..मुझे बड़ा आनंद आ रहा था....उसने मेरा ब्लाउज खोल दिया और मेरे मम्मों को एकदम नंगा कर के मसलने लगा ...थोड़ी देर में मैने उसका हाथ हटा दिया और ब्लाउज के बटन लगा दिए."
"तुम्हारा मन नहीं हुआ की गौरव को वहीं के वहीं चोद डालो कविता मेरी जान!"
कविता विवेक का लौंड़े को जोर से हिला रही थी. उसने विवेक की आँखों में ऑंखें डाल के बोला,
"विवेक, प्लीज बुरा मत मानना पर सच्चाई ये है की मेरा बस चलता तो उसे वहीँ पटक कर चोद देती उसे. अगर तुम दोनों दुसरे कमरे में नहीं होते तो भगवान् न जाने आज मैं क्या कर बैठती"
"ओह, मुझे मालूम है बेबीडॉल की तू क्या करती. तू अपनी टाँगे फैला कर गौरव का बड़ा और मोटा लौंडा अपनी प्यासी चूत में गपाक से डाल लेती ना? वैसे लगता है अब समय आ गया की हम अपना इतना पुराना सपना पूरा करें... गौरव और रीता स्वैप करने में पूरी तरह से इंटरेस्टेड हैं..तू क्या बोलती है मेरी जान? "
कविता पूरे उन्स्माद में भर चुकी थी. वो विवेक के ऊपर चढ़ गयी और उसका लौंडा अपनी खुली चूत में भर कर उसे जम के छोड़ने लगी. जैसे वो ऊपर ने नीचे आती उसकी आज़ाद चुन्चिया हवा में उछल जाती थीं. उन दोनों की ये चुदाई बड़ी की स्पेशल थी क्योंकि पहली बार वो अपनी चुदाई में औरों को सामिल करने के काफी करीब थे.
कविता ने अपनी हस्की आवाज में पूछा,
"क्या तुम पड़ोसियों के साथ ये सब करना चाहोगे? ओह..मुझे तो पहले से पता है की तुम रेनू को चोदना चाहते हो. मुझे पता है की तुम मेरे अलावा और औरतों को चोदते हो और मुझे इससे कोई समस्या नहीं रहे है. तुमने मुझे हमेशा खुश रखा है...पर पड़ोसियों के साथ का ये सब तुम्हें ठीक रहेगा विवेक? गौरव ने मुझे बोल ही रखा है की वो कहीं और मिल कर मेरी लेना चाहता है"
"ओह तो ये बात है बेबी डॉल! लगता है हमारे पडोसी समय बर्बाद करने में बिलकुल विश्वाश नहीं रखते हैं"
विवेक ने भी कविता को बताया कि इस दौरान रेनू और उसके बीच में क्या हुआ. विवेक कविता की चूत में अपना लंड उछल उछल कर डालने लगा. कविता को विवेक का लौंडा अपनी चूत के अन्दर फूलता हुआ सा लगा. विवेक धीमे धीमे से छोड़ने लगा और एक पल बाद ही जोर से चोदने लगता. पूरा कमरा चुदाई की मस्की गंध से भर सा गया. कविता ने झुक कर विवेक का लंड गपागप अपनी चूत में जाते देखा और विवेक से पूछा,
"तो तुम मानसिक रूप से उस बात के लिए बिलकुल तैयार हो की गौरव मुझे छोड़ दे? तुम्हारा रेनू को चोदना मुझे तो बड़ा अच्छा लगेगा....पर तुम गैर मर्द की मेरे साथ चुदाई देख सकोगे?"
"अगर तुम गौरव से चुदना चाह रही तो मुझे इससे कोई समस्या नहीं है बेबी डॉल. मेरी तो ये सब करने की वर्षों की तमन्ना थी."
"ओह शिट विवेक... मैं तो उस समय के लिए तरस रही हूँ जब गौरव मेरी ले रहा होगे और तुम मुझे उससे चुदते हुए देख रहे होगे. गैर मर्द से चुदने के विचार से मुझे मजा आने लगता है"
विवेक ने कविता को अपने रेनू के साथ के अनुभव को अब विस्तार में बता रहा था और उसे चोद रहा था. इस समय कविता को पता चला की उन्हें पड़ोसियों से मिलने अगली सुबह जाना है,
"ओह यस....तुम रेनू को जोर से चोद देना विवेक....ओह...आईईई...ई..ई.....मैं गयी रे... " कहते हुए कविता झड गयी.
दोनो एक दुसरे की बाहों में लिपट कर नंगे ही सो गए. उन्हें अगले दिन की सुबह का इंतज़ार था. उन्हें पता था की वो सुबह उनके जीवन में कई नए आयाम ले कर आयेगी.
शेष अगले भाग में....
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