Jaal

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जाल पार्ट--1
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dil1857
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जाल पार्ट--1
दोस्तो आपकी सेवा मे मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ
"और अब आपके सामने है आज की नीलामी की सबसे आख़िरी मगर सबसे खास पेशकश..",डेवाले के क्लॅसिक ऑक्षन हाउस के मेन हॉल मे स्टेज पे खड़ा इंसान 1 पैंटिंग से परदा हटा रहा था.उसके सामने 20-20 कुर्सियो की 2 कतारो मे 40 आदमी बैठे थे.अभी तक 10 चीज़ो की नीलामी हुई थी मगर सबका ध्यान इसी पैंटिंग पे था.ये पैंटिंग मशहूर पेंटर गोवर्धन दास की थी जोकि अभी कुच्छ ही दिनो पहले 1 आर्ट कॉलेज की लाइब्ररी मे पड़ी मिली थी.सभी जानकरो का मानना था कि ये दास बाबू की है,जिन्हे गुज़रे 70 से भी ज़्यादा साल हो चुके थे,सबसे उम्दा तस्वीरो मे से 1 है.

"..इस तस्वीर की नीलामी की शुरुआती कीमत 10 लाख तय की गयी है.क्या कोई है जो इस रकम से ज़्यादा बोली लगा सकता है?",सामने बाई कतार मे बैठे 1 शख्स ने अपना हाथ उपर उठाया.

"15 लाख..और कोई?",इस बार दाई कतार मे बैठे 1 शख्स ने हाथ उठाया.नीलामी करने वाला आक्षनियर मुस्कुराया.वो जानता था कि दोनो शख्स खुद के लिए नही बल्कि अपने मालिको के लिए बोली लगा रहे हैं.हॉल मे बैठे बाकी लोग भी हल्के-2 मुस्कुरा रहे थे.खेल शुरू जो हो चुका था & उन्हे ये देखना था कि इस बार कौन जीतता है!

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होटेल वाय्लेट शहर की सबसे ऊँची इमारत थी & उसकी 25वी मंज़िल पे खड़ा विजयंत मेहरा फ्लोर तो सीलिंग ग्लास से डेवाले को देख रहा था.शीशे की उस दीवार से उसे डेवाले शहर का बिल्कुल बीच का हिस्सा दिख रहा था जहा की आसमान छुति इमारतो की क़तारे लगी थी.वो उनमे से ज़्यादातर इमारतो का मालिक था & होटेल वाय्लेट का भी.विजयंत मेहरा ट्रस्ट ग्रूप का मालिक था.इस ग्रूप ने अपने कदम इनफ्रास्ट्रक्चर यानी कि सड़के,इमाराते,एरपोर्ट,बंदरगाह और ऐसी ही बुनियादी चीज़ो को बनाने के कारोबार से जमाए थे मगर आज ट्रस्ट ग्रूप ना केवल ये सब बनाता था बल्कि उसके मुल्क के 15 शहरो मे होटेल्स भी थे & पिच्छले 5 बरसो से वो फिल्म बनाने के भी धंधे मे उतर चुका था.

विजयंत के होंठो पे हल्की मुस्कुराहट खेल रही थी.यहा खड़े होके उसे अपनी ताक़त का एहसास होता था.इस शहर का बड़ा हिस्सा उसका था सिर्फ़ उसका.जहा वो खड़ा था वो वाय्लेट होटेल के उस सूयीट का बेडरूम था जिसे उसने खास खुद के लिए बनवाया था.ट्रस्ट ग्रूप का दफ़्तर होटेल से 300मीटर की दूरी पे 1 12 मंज़िला इमारत मे था.विजयंत वही से अपना कारोबार संभालता था मगर जब भी वो उस इमारत से उकता जाता था तो अपने इस सूयीट मे आ जाता था.सूयीट क्या 1 छ्होटा सा फ्लॅट ही था.1 बेडरूम,1 सा गेस्ट रूम जहा की 6-7 लोगो की मीटिंग करने का भी इंतेज़ाम था,1 अटॅच्ड बाथरूम & उसके साथ 1 किचेन थी.

"सर..",दरवाज़े पे दस्तक दे 1 लड़की अंदर दाखिल हुई.उसने ग्रे कलर की घुटनो तक की कसी फॉर्मल स्कर्ट & सफेद ब्लाउस पहना था.पैरो मे हाइ हील वाले जूते थे & बॉल 1 कसे जुड़े मे बँधे थे.ये लड़की देखने से होटेल की कर्मचारी नही लग रही थी,उनकी पोशाक वैसे भी अलग थी,"..1 घंटे मे वो शुरू होने वाला है.",वो आगे आई & हाथो मे पकड़ा फोन उसने बिस्तर पे रख दिया.विजयंत उसकी ओर पीठ किए खड़ा था.उसने बिना घूमे सर हिलाया अपनी बाहे उपर कर दी.लड़की मुस्कुराते हुए आगे आई.विजयंत ने 1 सफेद कमीज़ पहनी & काली पतलून थी.लड़की ने कमीज़ की बाजुओ के कफलिंक्स खोले & फिर विजयंत की कमीज़ के बटन खोलने लगी.अगले ही पल विजयंत का नंगा सीना उसके सामने था.

विजयंत मेहरा की उम्र 53 बरस थी मगर शायद ही उसे देख कोई उसकी असली उम्र बता सकता था.वो कही से भी 45 से ज़्यादा नही लगता था.उसका रंग इतना गोरा था की केयी लोगो को उसके विदेशी होने की ग़लतफहमी हो जाती थी.उसके बाल भी काले नही बल्कि कुच्छ भूरे रंग के थे जोकि कभी-2 सुनहले भी लगने लगते थे.चेहरे पे हल्की दाढ़ी & मूँछ थी.उसका कद 6'3" था & उसका कसरती जिस्म बहुत मज़बूत दिखता था.चमकते बालो से भरे उसके ग़ज़ब के चौड़े सीने को देख उस लड़की ने हल्के से अपने निचले होंठ को दांतो से दबाया.विजयंत मेहरा मर्दाना खूबसूरती की जीती-जागती मिसाल था.लड़की की धड़कने तेज़ हो गयी थी & उसके गाल भी लाल हो गये थे.उसने काँपते हाथो से विजयंत की पतलून उतारी.उसका बॉस अब केवल 1 अंडरवेर मे उसके सामने खड़ा था.उसने हाथ से उसे रुकने का इशारा किया.

"नीशी..",1 रोबिली & बहुत गहरी भारी,भरकम आवाज़ ने नीशी को जैसे नींद से जगाया.

"ज-जी.."

"क्या हुआ?ये कोई पहली बार तो नही.",विजयंत मुस्कुराया.

अफ!..इतनी दिलकश मुस्कान..& ये आवाज़..वो तो दफ़्तर मे उस से लेटर्स की डिक्टेशन लेते हुए ही अपनी टाँगो के बीच गीलापन महसूस करने लगती थी.

"नही सर.वो बात नही.",उसने अपनी पीठ विजयंत की तरफ की & अपने कपड़े उतारने लगी.लड़की का जिस्म बिल्कुल वैसा था जैसा विजयंत को पसंद था.बड़ी छातियाँ,चौड़ी गंद मगर सब कुच्छ कसा हुआ.2 साल से नीशी उसकी सेक्रेटरी थी & नौकरी जाय्न करने के 4 दिनो के अंदर ही वो अपने बॉस के बिस्तर मे भी ड्यूटी करने लगी थी.

"आहह..!",विजयंत ने उसे पीछे से बाहो मे भर लिया था & उसके पेट को सहलाते हुए उसके दाए कान मे जीभ फिरा दी थी.वो भी पीछे हो उसके जिस्म से लग गयी.उसने महसूस किया कि उसकी निचली पीठ पे उसके बॉस का गर्म लंड दबा हुआ था.उसका दिल और ज़ोर से धड़क उठा.ना जाने कितनी बार वो लंड उसकी चूत मे उतार चुका था मगर हर बार वो उसके एहसास से रोमांचित हुए बिना नही रहती थी.ये विजयंत के लंड का जादू था या उसकी शख्सियत का?..इस सवाल का जवाब ढूँढते हुए उसे 2 बरस हो गये थे मगर वो तय नही कर पाई थी & आज शायद आख़िरी बार वो उसके साथ हमबिस्तर हो रही थी.

"आज तुम्हारा आख़िरी दिन है ट्रस्ट ग्रूप के साथ,नीशी.",विजयंत ने कान के बाद उसके तपते गालो को चूमा था & फिर उसके नर्म लबो को & फिर उसे आगे जाने की ओर इशारा किया.नीशी आगे बढ़ी & बिस्तर पे पेट के बल लेट गयी,"सभी तैय्यारियाँ हो गयी शादी की?"

"जी.",10 दिन बाद नीशी की शादी थी & वो चेन्नई जा रही थी.हर लड़की की तरह वो भी बहुत खुश थी मगर 1 अफ़सोस था कि अब वो कभी उस बांके मर्द की चुदाई का लुफ्त नही उठा पाएगी,"उउन्न्ञन्....!",विजयंत ने उसके पैरो को उपर उठाया & बाए हाथ से थाम उसकी पिंदलियो को चूमने लगा,उसका दया हाथ निश्ी की मोटी गंद को सहला रहा था.निश्ी बिस्तर की चादर को बेचैनी से भींचते हुए हल्की-2 आहे ले रही थी.विजयंत का हाथ उसकी गंद की दरार को सहला रहा था.सहलाते हुए उसने हाथ को दरार मे तोड़ा अंदर घुसाया तो अपना सर उपर झटकते हुए निश्ी ने ज़ोर से आ भारी & उसकी जंघे खुद बा खुद फैल गयी.विजयंत ने उन्हे धीरे से तोड़ा और फैलाया & नीचे झुक गया.

"आन्न्न्नह.....उउन्न्ञणनह.....!",निश्ी की आहो के साथ-2 उसके हाथो तले बिस्तर की चादर की सलवटें बढ़ने लगी.विजयंत अपनी सेक्रेटरी की चिकनी चूत को पीछे से चाट रहा था.उसकी लपलपाति ज़ुबान उस नाज़ुक अंग से बह रहे रस को सुड़कते हुए उसके दाने को छेड़ रही थी.नीशी के जिस्म मे बिजली दौड़ रही थी.रोम-2 मे 1 अजीब सा मज़ा भर गया था.उसकी गंद की फांको को दबा के फैलाता हुआ विजयंत बड़ी गर्मजोशी से उसकी चूत पे अपनी जीभ चला रहा था & जब उसने उसने अपने होंठो को उसकी चूत पे दबा ज़ोर से चूसा तो नीशी चीख मारते हुए झाड़ गयी.तभी बिस्तर पे रखा फोन बज उठा.खुमारी मे झूमती नीशी ने थोड़ी देर बाद उसे उठाया & फिर सुन के रख दिया,"शुरू हो गया.",उसने जिस्म थोड़ा बाई तरफ मोड़ के सर पीछे घुमा के अपने बॉस को नशीली नज़रो से देखा.

उसकी फैली टाँगो के बीच विजयंत घुटनो पे खड़ा था.उसके चौड़े फौलादी सीने के सुनहले बालो & उसके मज़बूत बाजुओ को देख नीशी का जिस्म 1 बार फिर से कसक से भर उठा.बड़े-2 हाथो से विजयंत उसकी गंद को सहला रहा था & उस हल्की सी हरकत से भी उसके बाजुओ की मांसपेशिया फदक रही थी.उसने थोडा नीचे देखा & उसकी निगाह विजयंत के सपाट पेट पे गयी.पेट के बीचोबीच बालो की 1 मोटी लकीर नीचे जा रही थी.जब नीशी की नज़र वाहा पहुँची तो उसकी कसक 1 बार फिर चरम पे पहुँच गयी.टाँगो के बीच बालो से घिरा विजयंत का लंड अपने पूरे शबाब पे था.9.5 इंच लंबा & बहुत ही मोटा लंड 2 बड़े-2 आंडो के उपर सीधा तना खड़ा था.

नीशी अब तक 3-4 मर्दो से चुद चुकी थी जिनमे उसका मंगेतर भी शामिल था मगर उसने विजयंत जैसा लंड किसी के पास नही देखा था.उसने 1 बार फिर निचले होंठ को दाँत से दबाया & अपना सर बिस्तर मे च्छूपाते हुए अपनी कमर उपर कर अपनी गंद को हवा मे उठा दिया.हर बार ऐसा ही होता था.बंद कमरे मे विजयंत के साथ वो सब कुच्छ भूल जाती थी केवल अपने जिस्म की खुशी का ख़याल उसके ज़हन पे हावी रहता था.मुस्कुराते हुए विजयंत ने अपना तगड़ा लंड हाथ मे पकड़ा & उसे नीशी की जानी-पहचानी चूत मे घुसने लगा.

"ऊन्नह.....!",आज तक नीशी को उस लंबे,मोटे लंड की आदत नही पड़ी थी & आज भी शुरू मे उसे हल्का दर्द होता था लेकिन उसकी चूत की आख़िरी गहराइयो मे उतार वो लंड जब अपना कमाल दिखाता तो सारा दर्द हवा हो जाता & रह जाता सिर्फ़ मज़ा,बहुत सारा मज़ा!विजयंत ने अपनी सेक्रेटरी की नाज़ुक कमर थामी & धक्के लगाने शुरू कर दिए.वो बहुत गहरे मगर धीमे धक्के लगा रहा था.लंड बड़े हौले-2 नीशी की चूत को पूरे तरीके से चोद रहा था.वो मस्ती मे पागल हो चुकी थी.पूरे सूयीट मे उसकी आहें गूँज रही थी.बिस्तर की चादर को तो शायद वो अपने बेचैन हाथो से तार-2 कर देना चाहती थी.अपने बॉस के हर धक्के का जवाब वो अपनी कमर हिला अपनी गंद को पीछे धकेल के दे रही थी.

विजयंत को भी बहुत मज़ा आ रहा था.पिच्छले 2 बरसो मे नीशी की चूत ज़रा भी ढीली नही हुई थी.उसके धक्को की रफ़्तार बढ़ी तो नीशी की मस्तानी आहे भी साथ मे बढ़ी.विजयंत ने उसकी कमर को थाम अपनी ओर खींचते हुए ज़ोर से धक्के लगाए तो नीशी 1 बार और झाड़ गयी & बिस्तर पे निढाल हो गिर गयी.विजयंत उसके उपर लेट गया & फिर उसे लिए-दिए उसने दाई करवट ली.लंड अभी भी चूत मे था,विजयंत ने अपनी दाहिनी बाँह नीशी की गर्दन के नीचे लगाई & बाई को उसके पेट पे डाला.नीशी ने गर्दन पीछे घुमाई & अपने बॉस को चूमने लगी.उसका दिल करा रहा था कि वो बस ऐसे ही पड़ी उसे चूमती रही.1 बार फिर विजयंत ने हल्के धक्को के साथ उसकी चुदाई शुरू कर दी.

नीशी को मजबूरन किस तोड़नी पड़ी क्यूकी चुदाई की वजह से उसका जिस्म झटके खा रहा था लेकिन उसके होंठो की प्यास बुझी कहा थी.उसने बिना लंड को निकलने देते हुए अपनी पीठ को बिस्तर पे जमा लिया & अपने हाथो मे विजयंत के चेहरे को भर उसे चूमने लगी.विजयंत भी उसकी मोटी छातियो को दबाते हुए उसकी ज़ुबान से ज़ुबान लड़ा रहा था.विजयंत ने अपने बाए बाज़ू को नीशी की भारी जाँघो के नीचे लगा के उन्हे 1 साथ हवा मे उठा दिया & उसे चोदने लगा.इस पोज़िशन मे उसका लंड जड़ तक तो उसकी चूत मे नही जा रहा था मगर फिर भी दोनो को मज़ा बहुत आ रहा था.तभी 1 बार फिर फोने बजा.नीशी ने बिना अपने बॉस के होंठो को आज़ाद किए अपने दाए हाथ से टटोलते हुए बिस्तर पे फोन को ढूंड लिया & उसे कान से लगाया,"उम्म..हेलो.....ओके."

"आप जीत गये.",उसने विजयंत के चेहरे को थाम चूम लिया.उसकी बात ने विजयंत को जोश को मानो दुगुना कर दिया.उसने अपनी दाई बाँह जोकि नीशी की गर्दन के नीचे पड़ी थी & बाई जो उसकी जाँघो को थामे थी,दोनो को मोड़ लेते हुए उसके जिस्म को अपनी ओर घुमा लिया,जैसे लेते हुए उसे गोद मे ले रहा हो & नीचे से बड़े क़ातिल धक्के लगाने लगा.नीशी की मस्ती का तो कोई हिसाब ही नही रहा,वो अपने बॉस के खूबसूरत चेहरे को चूमते हुए आहे भरते हुए उसकी चुदाई का मज़ा लेने लगी.

गतान्क से आगे.
"75 लाख..और कोई है जो इस से बड़ी बोली लगाना चाहता है?",उसने उमीद से दाई क़तार मे बैठे शख्स को देखा मगर उसने अपना हाथ नही उठाया,"..75 लाख..1....75 लाख..2..75 लाख....3!",उसने हात्ोड़ा अपने सामने रखे डेस्क पे मारा,"..ये बेहतरीन पैंटिंग 75 लाख रुपयो मे यहा सामने बाई क़तार मे बैठे ग्रे सूट वाले साहब की हुई.",वो शख्स विजयंत का ही 1 आदमी था जो उसके लिए यहा बोली लगा रहा था.उसे सख़्त हिदायत थी कि चाहे जो भी हो उसे ये पैटिंग ख़रीदनी ही है.उसे ताक़ीद की गयी थी कि जो शख्स दाई क़तार मे बैठा था उसका मालिक भी उस पैंटिंग को खरीदने की हर मुमकिन कोशिश करेगा मगर उसे किसी भी कीमत पे कामयाब नही होने देना है.विजयंत के आदमी ने खुशी से भी ज़्यादा चैन की सांस ली & अपने मोबाइल से अपने बॉस की सेक्रेटरी का नंबर मिलाया.बोली यहा तक पहुँचेगी ये किसी को उम्मीद नही थी.उसे समझ नही आ रहा था कि उस पैंटिंग मे ऐसा था क्या जो उसका मालिक उसकी इतनी बड़ी कीमत दे रहा था.

दाई क़तार मे बैठा शख्स थोड़ा मायूस दिख रहा था.नीलामी ख़त्म होते ही वो उठा & फ़ौरन कमरे से बाहर चला गया.बाकी लोग आए तो थे नीलामी मे शरीक होने मगर जब इन दो लोगो ने बोलिया लगानी शुरू की तो वो बस दर्शक ही बन गये थे.उन्हे बड़ा मज़ा आया था ये खेल देख के जिसमे 1 बार फिर विजयंत मेहरा जीत गया था.

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"आआअन्न्‍न्णनह......!",1 लंबी चीख मार नीशी झाड़ते हुए अपने बॉस के आगोश से छिटक उसके उपर से उतरते हुए करवट बदल लेट गयी & सुबकने लगी.झड़ने की शिद्दत उसका दिल बर्दाश्त नही कर पाया था & जज़्बातो का सैलाब उसकी आँखो से फुट पड़ा था.विजयंत प्यार से उसके बाल सहला रहा था.काफ़ी देर तक वो वैसी ही पड़ी रही.उसकी सिसकियाँ बंद हो गयी थी मगर वो घूम नही रही थी.विजयंत भी उसे घूमने को नही कह रहा था.कुच्छ पल बाद नीशी घूमी & अपने बॉस को देखा.विजयंत को उसकी आँखो मे सुकून & वासना का अजीब संगम दिखा.वो लेटे-2 ही आगे सर्की & अपने बॉस के लंड को थाम लिया.विजयंत अभी दाई करवट से लेटा था.नीशी के लंड पकड़ते ही वो पीठ के बल लेट गया.उसके लंड को हिलाते हुए नीशी उसके सीने को चूमने लगी & चूमते-2 लंड तक पहुँच गयी.उसके बाद कोई 5-7 मिनिट तक विजयंत उसके कोमल मुँह के ज़रिए जन्नत की सैर करता रहा.

नीशी जी भर के लंड से खेलने के बाद 1 बार फिर बिस्तर पे लेट गयी & अपने बॉस को अपने उपर खींचा & उसके बालो मे उंगलिया फिराते हुए सर उठा उसके चेहरे & होंठो को चूमने लगी.कुच्छ देर चूमने के बाद विजयंत ने उसकी टाँगे फैला के लंड को दोबारा उसकी चूत मे घुसाना शुरू किया तो नीशी ने खुद ही अपनी बाई टाँग उठा के उसके दाए कंधे पे रख दी.वो चाहती थी कि लंड जड तक उसकी चूत मे उतरे & जब विजयंत झाडे तो वो उसके गर्म वीर्य को अपनी चूत की आख़िरी गहराई मे अपनी कोख मे महसूस करे.विजयंत ने उसकी दूसरी टांग भी अपने कंधे पे चढ़ाई & उसकी चुदाई शुरू कर दी.

नीशी अब अपने आपे मे नही थी.उसे सिर्फ़ खुद के मज़े की परवाह थी.उसने विजयंत के गले मे बाहे डाल उसे नीचे झुकाया & खुद भी उचक के उसके चेहरे को चूमने लगी.उसकी आहे 1 बार फिर तेज़ हो रही थी.विजयंत अब उसके उपर पूरा झुक गया था & नीशी की चूचियाँ उसकी खुद की जाँघो से दब गयी थी.विजयंत काफ़ी देर तक उसे चूमते हुए चोद्ता रहा.अब उसकी भी मस्ती बहुत बढ़ गयी थी.उसने नीशी की टाँगो को कंधो से सरकाया तो उसने उन्हे उसकी कमर पे बाँध दिया.विजयंत ने अपना मुँह नीशी के भूरे निपल्स से लगाया & उन्हे चूसने लगा.नीशी के बेसबरा हाथ विजयंत की पीठ & गंद पे घूम रहे थे & वो उसकी छातियो को चूस रहा था.उसका हर धक्का नीशी की कोख पे चोट कर रहा था & अब वो मस्ती मे चीखे जा रही थी.विजयंत काफ़ी देर से उसे बिना झाडे चोद रहा था & अब उसका लंड भी झड़ने को बेकरार था.उसने नीशी के सीने से सर उठाया & अपने धक्के & तेज़ कर दिए.उसके नीचे अपने सर को बेचैनी से झटकती उस से चिपटि नीशी भी अपनी मंज़िल के करीब थी.विजयंत ने अपने लंड को उसकी कोख के दरवाज़े पे आख़िरी बार मारा & अपने बदन को उपर की ओर मोडते,चीखती नीशी झाड़ गयी.ठीक उसी वक़्त उसकी हसरत को पूरा करते हुए उसकी कोख को अपने वीर्य से भरता हुआ विजयंत भी झाड़ गया.

"ऊऊवन्न्न्नह......हाआऐययईईईईईईईईईईई..!",वो खूबसूरत लड़की झाड़ रही थी & उसे चोद्ता उसके उपर झुका मर्द भी उसकी चूत मे अपना वीर्या भर रहा था.तभी बिस्तरे के किनारे रखी साइड-टेबल पे रखा 1 मोबाइल बजा.

"हूँ.",उस मर्द ने पहले अपने नीचे पड़ी लड़की को चूमा & फिर वैसे ही उसके उपर पड़े हुए मोबाइल कान से लगाया.

"सर,वो विजयंत मेहरा ने पैंटिंग खरीद ली."

"वेरी गुड.कितने मे?",लड़की के चेहरे पे 1 अजीब भाव था.झड़ने का सुकून & उसके बाद की चमक उसके चेहरे पे सॉफ दिख रही थी मगर साथ ही वो थोड़ी खफा भी लग रही थी & अपना चेहरा बाई तरफ घुमा रखा था & मर्द को नही देख रही थी जो अभी भी उसके गाल को चूम रहा था.

"75 लाख मे,सर."

"अरे यार!कम से कम करोड़ तो खर्च करवाते!खैर,चलो.ये भी ठीक है.",उसने फोन किनारे रखा & उस लड़की का चेहरा अपनी ओर घुमा उसके होंठ चूमने चाहे मगर उस लड़की ने झल्ला के उसे परे धकेला & उसे खुद के उपर से हटाते हुए बिस्तर से उतर बाथरूम मे चली गयी.मर्द हंसा & बिस्तर से उतर कमरे की खिड़की पे आ गया & वाहा का परदा हटा के बाहर देखने लगा.

"तुम समझते हो तुम जीत गये,मेहरा!",वो दूर सामने दिखाई देते होटेल वाय्लेट की इमारत को देख मन ही मन हंसा,"..कितने ग़लत हो तुम!मैने तुम्हे जीतने दिया है,मेहरा.जीता तो मैं ही हू!",ये शख्स था ब्रिज कोठारी,कोठारी ग्रूप का मालिक.मेहरा के ट्रस्ट ग्रूप की तरह ये भी इनफ्रास्ट्रक्चर के धंधे मे था & फिर ट्रस्ट के पीछे-2 ये भी होटेल के बिज़्नेस मे आया था.पिच्छले 10 सालो मे इनके धंधे से जुड़ा जब भी कोई ठेका या टेंडर निकलता तो ज़्यादातर मुक़ाबला इन्ही दोनो के बीच होता.नतीजा ये था कि दोनो मे 1 दुश्मनी पैदा हो गयी थी.दोनो को अपनी तरक्की से ज़्यादा सामने वाले के गिरने की ज़्यादा फ़िक्र रहती थी.

ब्रिज कोठारी & विजयंत मेहरा मे काई चीज़े 1 जैसी थी.जैसे की बिज़्नेस करने का हुनर & हार ना मानने की ख़ासियत.दोनो की उम्र भी बराबर थी & कद भी.दोनो ही अपनी असल उम्र से कम के दिखते थे.ब्रिज भी 1 फौलादी जिस्म वाला शख्स था & मेहरा की तरह ही चुदाई का शौकीन भी मगर जहा विजयंत 1 गोरा & हॅंडसम शख्स था वही ब्रिज 1 साधारण शक्लोसुरत वाला सांवला इंसान था.

दोनो की ये दुश्मनी अब डेवाले मे मशहूर थी & जब भी इन दोनो की टक्कर होती सभी दम साधे ये देखते की कौन जीतता है.ट्रस्ट ग्रूप कोठारी ग्रूप से बड़ा था & लाख कोशिशो के बावजूद ब्रिज विजयंत को उतनी बार नही हरा पाया था जितना की वो चाहता था लेकिन अब शायद ये बदलने वाला था.

ब्रिज खिड़की पे खड़ा इसी बारे मे सोच रहा था..उसका प्लान कामयाब होगा या नही?..तभी दरवाज़ा खुला & वो लड़की बाहर आई.उसके चेहरे की नाराज़गी बरकरार थी.वो सीधा बिस्तर के पास फर्श पे पड़े अपने कपड़ो को उठाने लगी.

"अरे सोनम,इतनी जल्दी क्या है?",ब्रिज भले ही 53 साल का था मगर अभी भी किस जवान की तरफ फुर्तीला था.वो पलक झपकते ही लड़की के करीब पहुँचा & उसे बाहो मे भर लिया,"मेहरा ने पैंटिंग खरीद ली,मैने उसके 75 लाख पानी मे डूबा दिए!",वो हंसा,"..वो सोच रहा था कि मुझे भी वो पैंटिंग चाहिए.बस,लगवाता रहा बोलियाँ & मेरा आदमी तो बस यू ही बोलिया लगा रहा था.उसका तो मक़सद ही यही था कि मेहरा का आदमी बड़ी से बड़ी बोली लगाए & उसके पैसे बर्बाद हों!",लड़की ने उसकी बात पे कोई ध्यान नही दिया & उसकी बाहो से निकलने की कोशिश करने लगी.

"आख़िर बात क्या है,सोनम?",ब्रिज ने उस लड़की का चेहरा अपनी ओर घुमाया.लड़की की उम्र 26 बरस की थी,रंग सांवला था & जिस्म बिल्कुल कसा हुआ था.लड़की ने कुच्छ जवाब नही दिया मगर काफ़ी देर से रोकी रुलाई अब वो और ना रोक सकी.

"अरे..रो क्यू रही हो?..क्या बात है?"

"कुच्छ नही!",उसने उसे परे धकेला.

"अरे बताओ तो..ऐसा क्या हो गया?"

"आप बस मुझे इस्तेमाल कर रहे हैं..",वो अब फूट-2 के रो रही थी,"..मैं बस 1` खिलोना हू आपके लिए..रखैल बनाके रखा है आपने मुझे!",ब्रिज शांत खड़ा सुन रहा था.लड़की कुच्छ देर तक अपनी भादास निकालती रही.

"हो गया?",ब्रिज ने उसके चुप होने पे उसके कंधो पे हाथ रखा & उसे बिस्तर पे बिठा दिया,"..तुम्हे याद है आज से 3 महीने पहले जब मैने तुम्हारा इंटरव्यू लिया था तब मैने तुमसे क्या कहा था?"

"हां,यही की मुझे आप 1 बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपना चाहते हैं..मुझे क्या पता था कि वो ज़िम्मेदारी ये है!"

"नही..",ब्रिज हंसा,"..सोनम,तुम मुझे बहुत हसीन लगी & मैने तय कर लिया था कि मुझे तुम्हारे हुस्न को करीब से देखना ही है लेकिन इसका ये मतलब नही कि मुझे तुम्हारी बाकी खूबिया नही दिखी.",वो उसके बाई तरफ बैठा था,उसने अपनी दाई बाँह उसकी पीठ पे डाली थी & बाए मे उसका दाया हाथ थामे था.

"मैं हर रोज़ तुमसे मिलता हू,बातें करता हू..& तुम्हे कुच्छ बातें बताता भी हू."

"हां..",सोनम अब ये समझने की कोशिश कर रही थी कि ब्रिज कहना क्या चाह रहा था,"..आप विजयंत मेहरा के बारे मे बातें करते रहते हैं लेकिन वो तो कोई ऐसी बात नही."

"क्यू?..क्यूकी वो मेरा दुश्मन है & मैं दीवाना हू इस दुश्मनी को लेके?..सोनम,सारा शहर यही समझता है कि हम दोनो दुश्मनी मे पागल हैं लेकिन उन बेवकूफो को ये नही पता कि हम दोनो उन सब से ज़्यादा समझदार हैं.हम लड़ते हैं मगर दिमाग़ से & चाहे कुच्छ हो जाए इस दुश्मनी की आग मे खुद को आग नही लगाएँगे..हां दूसरे को जलाने की पूरी कोशिश करेंगे..आगे उपरवाले की मर्ज़ी!"

"..तुम जब मेरे दफ़्तर मे आई थी तो मैने समझ लिया था कि तुम बहुत होशियार हो & मेरा 1 खास काम कर सकती हो."

"कैसा काम?"

"तुम विजयंत की सेक्रेटरी बनोगी."

"क्या?!",सोनम की आँखे हैरत से फॅट गयी,"..आपका मतलब है कि मैं उसके यहा नौकरी करूँगी & वाहा की सारी बातें आपको बताउन्गि?"

"हां & बदले मे तुम्हे मैं अपने यहा वो पोज़िशन & पैसे दूँगा जिसकी तुम हक़दार हो.",ब्रिज ने उसका हाथ अपने लंड पे रखा & उसके कान मे जो रकम बोली वो सुन सोनम की आँखे अब तो बिल्कुल फॅट गयी.

"मगर ये बहुत मुश्किल है..कही पकड़ी गयी तो?",ब्रिज ने उसे अपने करीब खींचा तो बाहो से भिंचे जाने की वजह से उसकी छातियाँ & उभर गयी.सोनम ने उसके लंड को हिलाना शुरू किया.पिच्छले 3 महीनो मे उसे ये ज़रूर लगा था कि ब्रिज उसके जिस्म से खेल रहा था लेकिन उसे भी कम मज़ा नही आया था.वो उस जैसे मर्द से पहले कभी नही मिली थी.शुरू मे उसे लगा था की कोठारी की उम्र चुदाई मे रुकावट बनेगी मगर कितना ग़लत थी वो.ब्रिज मे किसी नौजवान से ज़्यादा जोश & माद्दा था.हर बार वो उसे पूरी तरह थका देता था & भरपूर मज़ा देता था....& उसका लंड..ओफफफफ्फ़..उसके लंड ने तो उसे पागल ही कर दिया था!..उसके हाथ मे 1 बार फिर वो अपनी 9 इंच की पूरी लंबाई तक पहुँच गया था.

----------------------------------------
गतान्क से आगे.
"पकड़ी तो तुम जाओगी नही.इतना यकीन तो है मुझे तुम्हारे दिमाग़ पे.",कोठारी ने उसके होंठ चूम लिए.

"मगर मैं वाहा घुसू कैसे?वो मुझे क्यू रखेगा?",ब्रिज के इशारे पे वो उठ के उसकी गोद मे बैठ गयी.उसका गुस्सा काफूर हो चुका था & अब वो उसके लंड को छोड़ उसके सीने पे बड़े प्यार से हाथ फिरा रही थी.

"देखो,हमारे जैसी बड़ी कंपनीज को जब सेक्रेटरीस की ज़रूरत होती है तो हम अख़बारो मे इश्तेहार तो निकलते नही हैं.हम उसी एजेन्सी को बुलाते हैं जो हमारे लिए खास यही काम करती है.डेवाले मे ऐसी नामचीन 1 ही एजेन्सी है.."

dil1857
dil1857
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AnonymousAnonymousover 4 years ago

Second part कहाँ है?

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