मजदूर नेता

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Tahira has sex with labour leader to save her husband.
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मजदूर नेता

लेखक: अन्जान
*****************************************

मेरा नाम ताहिरा सिद्दिकी है। मैं एक शादी शुदा औरत हूँ। गुजरात में सूरत के पास एक टेक्सटाइल इंडस्ट्री में मेरे शौहर नदीम सिद्दिकी इंजीनियर की पोस्ट पे काम करते हैं। उनके टेक्सटाइल मिल में हमेशा लेबर का मसला रहता है ।

मजदूरों का नेता भोगी भाई बहुत ही काइयाँ किस्म का आदमी है। ऑफिसर लोगों को उस आदमी को हमेशा पटा कर रखना पड़ता है। मेरे शौहर की उससे बहुत पटती थी। मुझे उनकी दोस्ती फूटी आँख भी नहीं सुहाती थी। निकाह के बाद मैं जब नयी-नयी आयी थी, वह शौहर के साथ अक्सर आने लगा। उसकी आँखें मेरे जिस्म पर फिरती रहती थी। मेरा जिस्म वैसे भी काफी सैक्सी था। वो पूरे जिस्म पर नजरें फ़ेरता रहता था। ऐसा लगता था मानो वो ख्यालों में मुझे नंगा कर रहा हो। निकाह के बाद मुझे किसी को यह बताने में बहुत शर्म आती थी। फिर भी मैंने नदीम को समझाया कि ऐसे आदमियों से दोस्ती छोड़ दे मगर वो कहता था कि प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने पर थोड़ा बहुत ऐसे लोगों से बना कर रखना पड़ता ही है।

उनकी इस बात के आगे मैं चुप हो जाती थी। मैंने कहा भी कि वह आदमी मुझे बुरी नज़रों से घूरता रहता है। मगर वो मेरी बात पर कोई ध्यान नहीं देते थे। भोगी भाई कोई ४५ साल का भैंसे की तरह काला आदमी था। उसका काम हर वक्त कोई ना कोई खुराफ़ात करना रहता था। उसकी पहुँच ऊपर तक थी। उसका दबदबा आस पास की कईं कंपनियों में चलता था।

बाज़ार के नुक्कड़ पर उसकी कोठी थी जिसमें वो अकेला ही रहता था। कोई परिवार नहीं था मगर लोग बताते थे कि वो बहुत ही रंगीला एय्याश आदमी था और अक्सर उसके घर में लड़कियाँ भेजी जाती थी। हर वक्त कईं चमचों से घिरा रहता था। वो सब देखने में गुंडे से लगते थे। सूरत और इसके आसपास काफी टेक्सटाइल की छोटी मोटी फैक्ट्रियाँ हैं। इन सब में भोगी भाई की आज्ञा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था। उसकी पहुँच यहाँ के मंत्री से भी ज्यादा थी।

नदीम के सामने ही कईं बार मेरे साथ गंदे मजाक भी करता था। मैं गुस्से से लाल हो जाती थी मगर नदीम हंस कर टाल देता था। बाद में मेरे शिकायत करने पर मुझे बांहों में लेकर मेरे होंठों को चूम कर कहता, "ताहिरा तुम हो ही ऐसी कि किसी का भी मन डोल जाये तुम पर। अगर कोई तुम्हें देख कर ही खुश हो जाता हो तो हमें क्या फर्क पड़ता है।"
होली से दो दिन पहले एक दिन किसी काम से भोगी भाई हमारे घर पहुँचा। दिन का वक्त था। मैं उस समय बाथरूम में नहा रही थी। बाहर से काफी आवाज लगाने पर भी मुझे सुनायी नहीं दिया था। शायद उसने घंटी भी बजायी होगी मगर अंदर पानी की आवाज में मुझे कुछ भी सुनायी नहीं दिया।

मैं अपनी धुन में गुनगुनाती हुई नहा रही थी। घर के मुख्य दरवाज़े की चिटकनी में कोई नुक्स था। दरवाजे को जोर से धक्का देने पर चिटकनी अपने आप गिर जाती थी। उसने दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया तो दरवाजे की चिटकनी गिर गयी और दरवाजा खुल गया। भोगी भाई ने बाहर से आवाज लगायी मगर कोई जवाब ना पाकर दरवाजा खोल कर झाँका। कमरा खाली पाकर वो अंदर दाखिल हो गया। उसे शायद बाथरूम से पानी गिरने कि और मेरे गुनगुनाने की आवाज आयी तो पहले तो वो वापस जाने के लिये मुड़ा मगर फ़िर कुछ सोच कर धीरे से दरवाजे को अंदर से बंद कर लिया और मुड़ कर बेड रूम में दाखिल हो गया।

मैंने घर में अकेले होने के कारण कपड़े बाहर बेड पर ही रख रखे थे। उन पर उसकी नजर पड़ते ही आँखों में चमक आ गयी। उसने सारे कपड़े समेट कर अपने पास रख लिये। मैं इन सब से अन्जान गुनगुनाती हुई नहा रही थी। नहाना खत्म कर के जिस्म तौलिये से पोंछ कर पूरी तरह नंगी बाहर निकली। वो दरवाजे के पीछे छुपा हुआ था इसलिए उस पर नजर नहीं पड़ी। मैंने पहले ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर अपने हुस्न को निहारा। फिर जिस्म पर पाऊडर छिड़क कर कपड़ों की तरफ हाथ बढ़ाये। मगर कपड़ों को बिस्तर पर ना पाकर चौंक गयी। तभी दरवाजे के पीछे से भोगी भाई लपक कर मेरे पीछे आया और मेरे नंगे जिस्म को अपनी बांहों की गिरफ़्त में ले लिया।

मैं एक दम घबरा गयी। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। उसके हाथ मेरे जिस्म पर फ़िर रहे थे। मेरे एक निप्पल को अपने मुँह में ले लिया और दूसरे को हाथों से मसल रहा था। एक हाथ मेरी चूत पर फ़िर रहा था। अचानक उसकी दो अँगुलियाँ मेरी चूत में घुस गयी। मैं एक दम से चिहुँक उठी और उसे एक जोर से झटका दिया और उसकी बांहों से निकल गयी। मैं चींखते हुए दरवाजे की तरफ़ दौड़ी मगर कुंडी खोलने से पहले फ़िर उसकी गिरफ़्त में आ गयी। वो मेरे मम्मों को बुरी तरह मसल रहा था।

"छोड़ कमीने नहीं तो मैं शोर मचाउँगी" मैंने चींखते हुए कहा। तभी हाथ चिटकनी तक पहुँच गये और दरवाजा खोल दिया। मेरी इस हर्कत की उसे शायद उम्मीद नहीं थी। मैंने एक जोरदार झापड़ उसके गाल पर लगाया और अपनी नंगी हालत की परवाह ना करते हुए मैंने दरवाजे को खोल दिया। मैं शेरनी कि तरह चींखी, "निकल जा मेरे घर से" और उसे धक्के मार कर घर से निकाल दिया। उसकी हालत चोट खाये शेर की तरह हो रही थी। चेहरा गुस्से से लाल सुर्ख हो रहा था। उसने फुफकारते हुए कहा, "साली बड़ी सती सावित्री बन रही है... अगर तुझे अपने नीचे ना लिटाया तो मेरा नाम भी भोगी भाई नहीं। देखना एक दिन तू आयेगी मेरे पास मेरे लंड को लेने। उस समय अगर तुझे अपने इस लंड पर ना कुदवाया तो देखना।“ मैंने भड़ाक से उसके मुँह पर दरवाजा बंद कर दिया। मैं वहीं दरवाजे से लग कर रोने लगी।

शाम को जब नदीम आया तो उस पर भी फ़ट पड़ी। मैंने उसे सारी बात बतायी और ऐसे दोस्त रखने के लिये उसे भी खूब खरी खोटी सुनायी। पहले तो नदीम ने मुझे मनाने की काफी कोशिश की। कहा कि ऐसे बुरे आदमी से क्या मुँह लगना। मगर मैं तो आज उसकी बातों में आने वाली नहीं थी। आखिर वो उस से भिड़ने निकला। भोगी भाई से झगड़ा करने पर भोगी भाई ने भी खूब गालियाँ दी। उसने कहा, "तेरी बीवी नंगी होकर दरवाजा खोल कर नहाये तो इसमें सामने वाले की क्या गलती है। अगर इतनी ही सती सावित्री है तो बोला कर कि बुर्के में रहे।" उसके आदमियों ने धक्के देकर नदीम को बाहर निकाल दिया। पुलिस में कंपलेंट लिखाने गये मगर पुलिस ने कंपलेंट लिखने से मना कर दिया। सब उससे घबड़ाते थे। खैर खून का घूँट पीकर चुप हो जाना पड़ा। बदनामी का भी डर था और नदीम की नौकरी का भी सवाल था।

धीरे-धीरे समय गुजरने लगा। चौराहे पर अक्सर भोगी भाई अपने चेले चपाटों के साथ बैठा रहता था। मैं कभी वहाँ से गुजरती तो मुझे देख कर अपने साथियों से कहता, "नदीम की बीवी बड़ी कंटीली चीज है... उसकी चूचियों को मसल-मसल कर मैंने लाल कर दिया था। चूत में भी अँगुली डाली थी। नहीं मानते हो तो पूछ लो।"

"क्यों ताहिरा जान याद है ना मेरे हाथों का स्पर्श"

"कब आ रही है मेरे बिस्तर पर"

मैं ये सब सुन कर चुपचाप सिर झुकाये वहाँ से गुजर जाती थी।

दो महीने बाद की बात है। नदीम के साथ शाम को बाहर घुमने जाने का प्रोग्राम था और मैं उसका ऑफिस से वापिस आने का इंतज़ार कर रही थी। मैंने एक कीमती साड़ी पहनी और अच्छे से बन-सँवर के अपने गोरे पैरों में नयी सैंडल पहनी। अचानक नदीम की फैक्ट्री से फोने आया, "मैडम, आप मिसेज सिद्दिकी बोल रही हैं?"
"हाँ बोलिये" मैंने कहा।

"मैडम पुलिस फैक्ट्री आयी थी और सिद्दिकी साहब को गिरफतार कर ले गयी।"

"क्या? क्यों?" मेरी समझ में ही नहीं आया कि सामने वाला क्या बोल रहा है।

"मैडम कुछ ठीक से समझ में नहीं आ रहा है। आप तुरंत यहाँ आ जाइये।" मैं जैसी थी वैसी ही दौड़ी गयी नदीम के ऑफिस।

वहाँ के मालिक कामदार साहब से मिली तो उन्होंने बताया कि दो दिन पहले उनकी फैक्ट्री में कोई एक्सीडेंट हुआ था जिसे पुलिस ने मर्डर का केस बना कर नदीम के खिलाफ़ चार्जशीट दायर कर दी थी। मैं एकदम हैरान रह गयी। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था।
"लेकिन आप तो जानते हैं कि नदीम ऐसा आदमी नहीं है। वो आपके के पास पिछले कईं सालों से काम कर रहा है। कभी आपको उनके खिलाफ़ कोई भी शिकायत मिली है क्या?" मैंने मिस्टर कामदार से पूछा।

"देखिये मिसेज सिद्दिकी! मैं भी जानता हूँ कि इसमें नदीम का कोई भी हाथ नहीं है मगर मैं कुछ भी कहने में अस्मर्थ हूँ।"

"आखिर क्यों?"

"क्योंकि उसका एक चश्मदीद गवाह है... भोगी भाई" मेरे सिर पर जैसे बम फ़ट पड़ा। मेरी आँखों के सामने सारी बातें साफ़ होती चली गयी।

"वो कहता है कि उसने नदीम को जान बूझ कर उस आदमी को मशीन में धक्का देते देखा था।"

"ये सब सरासर झूठ है... वो कमीना जान बूझ कर नदीम को फँसा रहा है" मैंने लगभग रोते हुए कहा।

"देखिये मुझे आपसे हमदर्दी है मगर मैं आपकी कोई भी मदद नहीं कर पा रहा हूँ... इंसपेक्टर गावलेकर की भी भोगी भाई से अच्छी दोस्ती है। सारे वर्कर नदीम के खिलाफ़ हो रहे हैं... मेरी मानो तो आप भोगी भाई से मिल लो... वो अगर अपना बयान बदल ले तो ही नदीम बच सकता है।"

"थूकती हूँ मैं उस कमीने पर" कहकर मैं वहाँ से पैर पटकती हुई निकल गयी। मगर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। मैं पुलिस स्टेशन पहुँची। वहाँ काफ़ी देर बाद नदीम से मिलने दिया गया। उसकी हालत देख कर तो मुझे रोना आ गया। बाल बिखरे हुए थे। आँखों के नीचे कुछ सूजन थी। शायद पुलिस वालों ने मारपीट भी की होगी। मैंने उससे बात करने की कोशिश की मगर वो कुछ ज्यादा नहीं बोल पाया। उसने बस इतना ही कहा, "अब कुछ नहीं हो सकता। अब तो भोगी भाई ही कुछ कर सकता है।"

मुझे किसी ओर से उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखायी दे रही थी। आखिरकार मैंने भोगी भाई से मिलने का फैसला किया। शायद उसे मुझ पर रहम आ जाये। शाम के लगभग आठ बज गये थे। मैं भोगी भाई के घर पहुँची। गेट पर दर्बान ने रोका तो मैंने कहा, "साहब को कहना मिसेज सिद्दिकी आयी हैं।"
गार्ड अंदर चला गया। कुछ देर बाद बाहर अकर कहा, "अभी साहब बिज़ी हैं, कुछ देर इंतज़ार कीजिये।" पंद्रह मिनट बाद मुझे अंदर जाने दिया। मकान काफी बड़ा था। अंदर ड्राईंग रूम में भोगी भाई दिवान पर आधा लेटा हुआ था। उसके तीन चमचे कुर्सियों पर बैठे हुए थे। सबके हाथों में शराब के ग्लास थे। सामने टेबल पर एक बोतल खुली हुई थी। मैं कमरे की हालत देखते हुए झिझकते हुए अंदर घुसी।

"आ बैठ" भोगी भाई ने अपने सामने एक खाली कुर्सी की तरफ़ इशारा किया।

"वो... वो मैं आपसे नदीम के बारे में बात करना चाहती थी।" मैं जल्दी वहाँ से भागना चाहती थी।

"ये अपने सुदर्षन कपड़ा मिल के इंजीनियर की बीवी है... बड़ी सैक्सी चीज है।" उसने अपने ग्लास से एक घूँट लेते हुए कहा। सारे मुझे वासना भरी नज़रों से देखने लगे। उनकी आँखों में लाल डोरे तैर रहे थे।

"हाँ बोल क्या चाहिये?"

"नदीम ने कुछ भी नहीं किया" मैंने उससे मिन्नत की।

"मुझे मालूम है"

"पुलिस कहती है कि आप अपना बयान बदल लेंगे तो वो छूट जायेंगे"

"क्यों? क्यों बदलूँ मैं अपना बयान?"

"प्लीज़, हम पर...?"

"सड़ने दो साले को बीस साल जेल में... आया था मुझसे लड़ने।"

"प्लीज़ आप ही एक आखिरी उम्मीद हो।"

"लेकिन क्यों? क्यों बदलूँ मैं अपना बयान? मुझे क्या मिलेगा" भोगी भाई ने अपने होंठों पर मोटी जीभ फ़ेरते हुए कहा।

"आप कहिये आपको क्या चाहिए... अगर बस में हुआ तो हम जरूर देंगे" कहते हुए मैंने अपनी आँखें झुका ली। मुझे पता था कि अब क्या होने वाला है। भोगी भाई अपनी जगह से उठा। अपना ग्लास टेबल पर रख कर चलता हुआ मेरे पीछे आ गया। मैं सख्ती से आँखें बंद कर उसके पैरों की पदचाप सुन रही थी। मेरी हालत उस खरगोश की तरह हो गयी थी जो अपना सिर झाड़ियों में डाल कर सोचता है कि भेड़िये से वो बच जायेगा। उसने मेरे पीछे आकर साड़ी के आँचल को पकड़ा और उसे छातियों पर से हटा दिया। फिर उसके हाथ आगे आये और सख्ती से मेरी चूचियों को मसलने लगे।

"मुझे तुम्हारा जिस्म चाहिए पूरे एक दिन के लिये" उसने मेरे कानों के पास धीरे से कहा। मैंने रज़ामंदी में अपना सिर झुका लिया।

"ऐसे नहीं अपने मुँह से बोल" वो मेरे ब्लाऊज़ के अंदर अपने हाथ डाल कर सख्ती से चूचियों को निचोड़ने लगा। इतने लोगों के सामने मैं शरम से गड़ी जा रही थी। मैंने सिर हिलाया।

"मुँह से बोल"

"हाँ" मैं धीरे से बुदबुदायी।

"जोर से बोल... कुछ सुनायी नहीं दिया! तुझे सुनायी दिया रे चपलू?" उसने एक से पूछा।

"नहीं" जवाब आया।

"मुझे मंजूर है!" मैंने इस बार कुछ जोर से कहा।
"क्यों फूलनदेवी जी, मैंने कहा था ना कि तू खुद आयेगी मेरे घर और कहेगी कि प्लीज़ मुझे चोदो। कहाँ गयी तेरी अकड़? तू पूरे २४ घंटों के लिये मेरे कब्जे में रहेगी। मैं जैसा चाहुँगा तुझे वैसा ही करना होगा। तुझे अगले २४ घंटे बस अपनी चूत खोल कर रंडियों की तरह चुदवाना है। उसके बाद तू और तेरा मर्द दोनो आज़ाद हो जाओगे" उसने कहा, "और नहीं तो तेरा मर्द तो २० साल के लिये अंदर होगा ही तुझे भी रंडीबाज़ी के लिये अंदर करवा दूँगा। फिर तो तू वैसे ही वहाँ से पूरी रंडी बन कर ही बाहर निकलेगी।"

"मुझे मंजूर है" मैंने अपने आँसुओं पर काबू पाते हुए कहा। वो जाकर वापस अपनी जगह बैठ गया।

"चल शुरू हो जा... आपने सारे कपड़े उतार... मुझे औरतों के जिस्म पर कपड़े अच्छे नहीं लगते" उसने ग्लास अपने होंठों से लगाया, “अब ये कपड़े कल शाम के दस बजे के बाद ही मिलेंगे। चल इनको भी दिखा तो सही कि तुझे अपने किस हुस्न पर इतना गरूर है। वैसे आयी तो तू काफी सज-धर कर है!”

मैंने कांपते हाथों से ब्लाऊज़ के बटन खोलना शुरू कर दिया। सारे बटन खोलकर ब्लाऊज़ के दोनों हिस्सों को अपनी चूचियों के ऊपर से हटाया तो ब्रा में कसे हुए मेरे दोनों मम्मे उन भुखी आँखों के सामने आ गये। मैंने ब्लाऊज़ को अपने जिस्म से अलग कर दिया। चारों की आँखें चमक उठी। मैंने जिस्म से साड़ी हटा दी। फिर मैंने झिझकते हुए पेटीकोट की डोरी खींच दी। पेटीकोट सरसराता हुआ पैरों पर ढेर हो गया। चारों की आँखों में वासना के सुर्ख डोरे तैर रहे थे। मैं उनके सामने ब्रा, पैंटी और हाई हील के सैंडल में खड़ी हो गयी।

"मैंने कहा था सारे कपड़े उतारने को" भोगी भाई ने गुर्राते हुए कहा।

"प्लीज़ मुझे और जलील मत करो" मैंने उससे मिन्नतें की।

"अबे राजे फोन लगा गोवलेकर को। बोल साले नदीम को रात भर हवाई जहाज बना कर डंडे मारे और इस रंडी को भी अंदर कर दे"

"नहीं नहीं, ऐसा मत करना। आप जैसा कहोगे मैं वैसा ही करूँगी।" कहते हुए मैंने अपने हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा को आहिस्ता से जिस्म से अलग कर दिया। अब मैंने पूरी तरह से तसलीम का फ़ैसला कर लिया। ब्रा के हटते ही मेरी दूधिया चूचियाँ रोशनी में चमक उठी। चारों अपनी-अपनी जगह पर कसमसाने लगे। वो लोग गरम हो चुके थे और बाकी तीनों की पैंट पर उभार साफ़ नजर आ रहा था। भोगी भाई लूँगी के ऊपर से ही अपने लंड पर हाथ फ़ेर रहा था। लूँगी के ऊपर से ही उसके उभार को देख कर लग रहा था कि अब मेरी खैर नहीं।

मैंने अपनी अंगुलियाँ पैंटी की इलास्टिक में फंसायीं तो भोगी भाई बोल उठा, "ठहर जा... यहाँ आ मेरे पास।" मैं उसके पास आकर खड़ी हो गयी। उसने अपने हाथों से मेरी चूत को कुछ देर तक मसला और फ़िर पैंटी को नीचे करता चला गया। अब मैं पूरी तरह नंगी हो कर सिर्फ सैंडल पहने उसके सामने खड़ी थी।

"राजे! जा और मेरा कैमरा उठा ला"

मैं घबड़ा गयी, "आपने जो चाहा, मैं दे रही हूँ फ़िर ये सब क्यों"

"तुझे मुँह खोलने के लिये मना किया था ना"

एक आदमी एक मूवी कैमरा ले आया। उन्होंने बीच की टेबल से सारा सामान हटा दिया। भोगी भाई मेरी चिकनी चूत पर हाथ फ़िरा रहा था।

"चल बैठ यहाँ" उसने बीच की टेबल कि ओर इशारा किया। मैं उस टेबल पर बैठ गयी। उसने मेरी टाँगों को जमीन से उठा कर टेबल पर रखने को कहा। मैं अपने सैंडल खोलने लगी तो उसने मना कर दिया, "इन ऊँची ऐड़ी की सैंडलों में अच्छी लग रही है तू।"

मैंने वैसा ही पैर टेबल पर रख लिये।

"अब टाँगें चौड़ी कर"

मैं शर्म से दोहरी हो गयी मगर मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था। मैंने अपनी टाँगों को थोड़ा फ़ैलाया।

"और फ़ैला"

मैंने टाँगों को उनके सामने पूरी तरह फ़ैला दिया। मेरी चूत उनकी आँखों के सामने बेपर्दा थी। चूत के दोनों लब खुल गये थे। मैं चारों के सामने चूत फ़ैला कर बैठी हुई थी। उनमें से एक मेरी चूत कि तसवीरें ले रहा था।

"अपनी चूत में अँगुली डाल कर उसको चौड़ा कर," भोगी भाई ने कहा। वो अब अपनी तहमद खोल कर अपने काले मूसल जैसे लंड पर हाथ फ़ेर रहा था। मैं तो उसके लंड को देख कर ही सिहर गयी। गधे जैसा इतना मोटा और लंबा लंड मैंने पहली बार देखा था। लंड भी पूरा काला था। मैंने अपनी चूत में अँगुली डाल कर उसे सबके सामने फ़ैल दिया। चारों हंसने लगे।

"देखा मुझसे पंगा लेने का अंजाम। बड़ा गरूर था इसको अपने रूप पर। देख आज मेरे सामने कैसे नंगी अपनी चूत फ़ैला कर बैठी हुई है।" भोगी भाई ने अपनी दो मोटी-मोटी अंगुलियाँ मेरी चूत में घुसा दी। मैं एक दम से सिहर उठी। मैं भी अब गरम होने लगी थी। मेरा दिल तो नहीं चाह रहा था मगर जिस्म उसकी बात नहीं सुन रहा था। उसकी अंगुलियाँ कुछ देर तक अंदर खलबली मचाने के बाद बाहर निकली तो चूत रस से चुपड़ी हुई थी। उसने अपनी अंगुलियों को अपनी नाक तक ले जाकर सूंघा और फ़िर सब को दिखा कर कहा, "अब ये भी गरम होने लगी है।" फिर मेरे होंठों पर अपनी अंगुलियाँ छुआ कर कहा, "ले चाट इसे।"

मैंने अपनी जीभ निकाल कर अपने चूत-रस को पहली बार चखा। सब एक दम से मेरे जिस्म पर टूट पड़े। कोई मेरी चूचियों को मसल रहा था तो कोई मेरी चूत में अँगुली डाल रहा था। मैं उनके बीच में छटपटा रही थी। भोगी भाई ने सबको रुकने का इशारा किया। मैंने देखा उसकी कमर से तहमद हटी हुई है और काला भुजंग सा लंड तना हुआ खड़ा है। उसने मेरे सिर को पकड़ा और अपने लंड पर दाब दिया।

"इसे ले अपने मुँह में" उसने कहा "मुँह खोल।"

मैंने झिझकते हुए अपना मुँह खोला तो उसका लंड अंदर घुसता चला गया। बड़ी मुश्किल से ही उसके लंड के ऊपर के हिस्से को मुँह में ले पा रही थी। वो मेरे सिर को अपने लंड पर दाब रहा था। उसका लंड गले के दर पर जाकर फ़ंस गया। मेरा दम घुटने लगा और मैं छटपटा रही थी। उसने अपने हाथों का जोर मेरे सिर से हटाया। कुछ पलों के लिये कुछ राहत मिली तो मैंने अपना सिर ऊपर खींचा। लंड के कुछ इंच बाहर निकलते ही उसने वापस मेरा सिर दबा दिया। इस तरह वो मेरे मुँह में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा। मैंने कभी लंड-चुसाई नहीं की थी इसलिए मुझे शुरू-शुरू में काफी दिक्कत हुई। उबकाइ सी आ रही थी। धीरे-धीरे मैं उसके लंड की आदी हो गयी। अब मेरा जिस्म भी गर्म हो गया था। मेरी चूत गीली होने लगी।

बाकी तीनों मेरे जिस्म को मसल रहे थे। मुख मैथुन करते-कर मुँह दर्द करने लगा था मगर वो था कि छोड़ ही नहीं रहा था। कोई बीस मिनट तक मेरे मुँह को चोदने के बाद उसका लंड झटके खाने लगा। उसने अपना लंड बाहर निकाला।

"मुँह खोल कर रख," उसने कहा। मैंने मुँह खोल दिया। ढेर सारा वीर्य उसके लंड से तेज धार सा निकल कर मेरे मुँह में जा रहा था। एक आदमी मूवी कैमरे में सब कुछ कैद कर रहा था। जब मुँह में और आ नहीं पाया तो काफी सारा वीर्य मुँह से चूचियों पर टपकने लगा। उसने कुछ वीर्य मेरे चेहरे पर भी टपका दिया।

"बॉस का एक बूंद वीर्य भी बेकार नहीं जाये" एक चमचे ने कहा। उसने अपनी अंगुलियों से मेरी चूचियों और मेरे चेहरे पर लगे वीर्य को समेट कर मेरे मुँह में डाल दिया। मुझे मन मार कर भी सारा गटकना पड़ा।

“इस रंडी को बेडरूम में ले चल,” भोगी भाई ने कहा। दो आदमी मुझे उठाकर लगभग खींचते हुए बेडरूम में ले गये। बेडरूम में एक बड़ा सा पलंग बिछा था। मुझे पलंग पर पटक दिया गया। भोगी भाई अपने हाथों में ग्लास लेकर बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठ गया।

"चलो शुरू हो जाओ" उसने अपने चमचों से कहा। तीनों मुझ पर टूट पड़े। मेरी टाँगें फ़ैला कर एक ने अपना मुँह मेरी चूत पर चिपका दिया। अपनी जीभ निकाल कर मेरी चूत को चूसने लगा। उसकी जीभ मेरे अंदर गर्मी फ़ैला रही थी। मैंने उसके सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर जोर से दबा रख था। मैं छटपटाने लगी। मुँह से "आहहहह ऊऊऊऊहहहह ओफफ आहहह उईईईई" जैसी आवाजें निकल रही थी। अपने ऊपर काबू रखने के लिये मैं अपना सिर झटक रही थी मगर मेरा जिस्म था कि बेकाबू होता जा रहा था।

बाकी दोनो में से एक मेरे निप्पलों पर दाँत गड़ा रहा था तो एक ने मेरे मुँह में अपना लंड डाल दिया। ग्रुप में चुदाई का नज़ारा था और भोगी भाई पास बैठ मुझे नुचते हुए देख रहा था। भोगी भाई का लंड लेने के बाद इस आदमी का लंड तो बच्चे जैसा लग रहा था। वो बहुत जल्दी झड़ गया। अब जो आदमी मेरी चूत चूस रहा था वो मेरी चूत से अलग हो गया। मैंने अपनी चूत को जितना हो सकता था ऊँचा किया कि वो वापस अपनी जीभ अंदर डाल दे। मगर उसका इरादा कुछ और ही था।

उसने मेरी टाँगों को मोड़ कर अपने कंधे पर रख दिया और एक झटके में अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया। इस अचानक हुए हमले से मैं छटपटा गयी। अब वो मेरी चूत में तेज-तेज झटके मारने लगा। दूसरा जो मेरी चूचियों को मसल रहा था, मेरी छाती पर सवार हो गया और मेरे मुँह में अपना लंड डाल दिया। फिर मेरे मुँह को चूत कि तरह चोदने लगा। उसके टट्टे मेरी ठुड्डी से रगड़ खा रहे थे।

दोनों जोर-जोर से धक्के लगा रहे थे। मेरी चूत पानी छोड़ने लगी। मैं चींखना चाह रही थी मगर मुँह से सिर्फ़ "उम्म्म्म उम्फ" जैसी आवाज ही निकल रही थी। दोनों एक साथ वीर्य निकाल कर मेरे जिस्म पर लुढ़क गये। मैं जोर जोर से सांसें ले रही थी। बुरी तरह थक गयी थी मगर आज मेरे नसीब में आराम नहीं लिखा था। उनके हटते ही भोगी भाई उठा और मेरे पास अकर मुझे खींच कर उठाया और बिस्तर के कोने पर चौपाया बना दिया। फिर उसने बिस्तर के पास खड़े होकर अपना लंड मेरी टपकती चूत पर लगाया और एक झटके से अंदर डाल दिया। चूत गीली होने की वजह से उसका मूसल जैसा लंड लेते हुए भी कोई दर्द नहीं महसूस हुआ। मगर ऐसा लग रहा था मानो वो मेरे पूरे जिस्म को चीरता हुआ मुँह से निकल जायेगा। फिर वो धक्के देने लगा। मजबूत पलंग भी उसके धक्कों से चरमराने लगा। फिर मेरी क्या हालत हो रही होगी इसका तो सिर्फ अंदज़ा ही लगाया जा सकता है!

मैं चींख रही थी, "आहहह ओओओहहह प्लीज़ज़ज़ज़। प्लीज़ज़ज़ मुझे छोड़ दो। आआआह आआआह नहींईंईंईं प्लीज़ज़ज़ज़ज़।" मैं तड़प रही थी मगर वो था कि अपनी रफ़्तार बढ़ाता ही जा रहा था। पूरे कमरे में ‘फच फच’ की आवाजें गूँज रही थी। बाकी तीनों उठ कर मेरे करीब आ गये थे और मेरी चुदाई का नज़ारा देख रहे थे। मैं बस दुआ कर रही थी कि उसका लंड जल्दी पानी छोड़ दे। मगर पता नहीं वो किस चीज़ का बना हुआ था कि उसकी रफ़्तार में कोई कमी नहीं आ रही थी। कोई आधे घंटे तक मुझे चोदने के बाद उसने अपना वीर्य मेरी चूत में डाल दिया। मैं मुँह के बल बिस्तर पर गिर गयी। मेरा पूरा जिस्म बुरी तरह टूट रहा था और गला सूख रहा था।

"पानी…" मैंने पानी माँगा तो एक ने पानी का ग्लास मेरे होंठों से लगा दिया। मेरे होंठ वीर्य से लिसड़े हुए थे। उन्हें पोंछ कर मैंने गटागट पूरा पानी पी लिया।

पानी पीने के बाद जिस्म में कुछ जान आयी। तीनों वापस मेरे जिस्म से चिपक गये। अब मैं बिस्तर के किनारे पैर लटका के बैठ गयी। एक का लंड मैंने अपनी दोनो चूचियों के बीच ले रखा था और बाकी दोनों के लंड को बारी-बारी से मुँह में लेकर चूस रही थी। वो मेरी चूचियों को चोद रहा था। मैं अपने दोनों हाथों से अपनी चूचियों को उसके लंड पर दोनों तरफ से दबा रखा था। उसने मेरी चूचियों पर वीर्य गिरा दिया। फिर बाकी दोनों ने मुझे बारी-बारी से कुत्तिया बना कर चोदा। उनके वीर्य पट हो जाने के बाद वो चले गये।

मैं बिस्तर पर चित्त पड़ी हुयी थी। दोनों पैर फ़ैले हुए थे और अभी भी मेरे पैरों में ऊँची हील के सैंडल कसे थे। मेरी चूत से वीर्य चूकर बिस्तर पर गिर रहा था। मेरे बाल, चेहरा, चूचियाँ, सब पर वीर्य फ़ैला हुआ था। चूचियों पर दाँतों के लाल-नीले निशान नजर आ रहे थे। भोगी भाई पास खड़ा मेरे जिस्म की तस्वीरें खींच रहा था मगर मैं उसे मना करने की स्थिति में नहीं थी। गला भी दर्द कर रहा था। भोगी भाई ने बिस्तर के पास आकर मेरे निप्पलों को पकड़ कर उन्हें उमेठते हुए अपनी ओर खींचा। मैं दर्द के मारे उठती चली गयी और उसके जिस्म से सट गयी।

Anjaan
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