प्यासी शबाना (भाग - ७)

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Shabana has sex in Bus with a stranger.
3.8k words
22.5k
3

Part 6 of the 7 part series

Updated 10/10/2022
Created 10/01/2014
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प्यासी शबाना
लेखक: अन्जान
*****************************************

भाग - ७

बस लग गयी थी और शबाना अपनी सीट पर बैठ गयी। उसने अशरफ़ को जाने के लिये कह दिया ताकि अशरफ़ वक्त पर घर पहुँच जाये। अशरफ़ निकल गया और तभी अनाउन्समेन्ट हुई कि खराबी की वजह बस तीन घंटे देरी से निकलेगी। शबाना को गुस्सा तो बहुत आया मगर करती भी क्या। बैठे-बैठे उसे फिर उस रात को अपने बलात्कार के दौरान मिले दर्द और अजीब से मज़े का मिलजुला एहसास याद आने लगा। फिर कुछ सोचकर उसने अपना सामान उठाया और उसी पगडंडी वाले रास्ते से छेद्दीलाल के घर पहुँच गयी। उस कच्चे घर में से कुछ आवाज़ें आ रही थी। उसने खिड़की से झाँक कर देखा तो उसकी आँखें फटी रह गयी। अंदर छेद्दीलाल, लखन और उसका भाई अशरफ़ थे। तीनों बिल्कुल नंगे थे और लखन अशरफ़ की गाँड मार रहा था और छेद्दीलाल उसे अपना लण्ड चुसा रहा था।

तभी उसके पीछे से किसी ने जकड़ लिया। शबाना ने घूम कर देखा तो ये शम्भू था। शम्भू के हाथ में सस्ती शराब की बोतल थी। शम्भू ने शराब की एक घूँट भरी और शबाना के होंठों को अपने होंठों में दबा लिया और उसके बुरक़े को उतार फेंका। शबाना की साड़ी भी एक ही झटके में शंभू ने आगे से पकड़ कर खींचते हुए उतार दी और फिर नाड़ा खींचते ही उसका पेटीकोट भी फ़िसल कर नीचे गिर गया। आज भी शबाना ने पैंटी नहीं पहनी थी। अब उसके जिस्म पर सिर्फ छोटा सा बिकिनी-ब्लाउज़ और सदा की तरह पैरों में ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल थे। शंभू ने फिर बोतल मुँह से लगा कर शराब का घूँट पिया और शबाना की तरफ बोतल बढ़ा दी, “ये ले... पियेगी?”

शबाना कुछ नहीं बोली और चुपचाप शम्भू से वो बोतल लेकर शराब के दो-तीन घूँट पी लिये। शम्भू ने उसे बरामदे में पास पड़ी खटिया पर गिरा लिया और नीचे बैठ कर उसकी टाँगों को उठा कर उसकी चूत को चूसना शुरू कर दिया। शबाना भूल गयी कि अंदर उसका भाई गाँड मरवा रहा है। शबाना की सिसकारियाँ छूटने लगीं। शराब की बोतल शबाना के हाथ में ही थी और वो मस्ती में अपनी चूत चुसवाते हुए बीच-बीच में उसमें से शराब पी रही थी। शम्भू ने उसकी चूत में उंगली घुसायी और अंदर बाहर करने लगा। ऐसा करते हुए वो उसकी चूत को चूसे जा रहा था। शबाना की चूत से पानी बहने लगा।

फिर शम्भू ने अपनी लुंगी उठायी और शबाना के सामने खड़ा हो गया। शबाना ने उसके लण्ड को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। इसी लिये तो आयी थी वो यहाँ... फिर से चुदाई करवाने... लण्ड खाने! तीन घंटे थे बस छूटने में और वो इन तीन घंटों में खूब मज़े करना चाहती थी... अपनी चूत को लण्ड खिलाना चाहती थी। अब शराब का नशा भी उस पर चढ़ने लगा था। उसने शम्भू को खटिया पर लिटाया और उसकी गोटियाँ चूमने लगी। शम्भू के लण्ड को ऊपर नीचे करते हुए उसकी चमड़ी से अंदर बाहर होते हुए सुपाड़े को प्यार से चूमने लगी। उसने शम्भू की टाँगों को उठाया और उसकी पसीने से भीगी हुई गाँड चाटने लगी। वो शम्भू की गाँड में अपनी जीभ घुसा-घुसा कर चाट रही थी। शम्भू के पसीने भरी गाँड की तीखी महक उसे और पागल कर रही थी। अब वो शम्भू पर चढ़ बैठी और उसका लण्ड अपनी चूत में घुसा कर उछलने लगी। सस्ती देसी शराब की बोतल अब भी उसके हाथ में थी और शम्भू के लण्ड पर उछलती हुई वो बीच-बीच में बोतल मुँह से लगा कर शराब पी रही थी। शम्भू का लण्ड उसकी चूत में घुसा हुआ था उसके पेट तक जा रहा था। शबाना की सिसकारियाँ तेज़ होने लगी। वो झड़ने वाली थी और उसने पलट कर शम्भू को झटके से अपने ऊपर ले लिया। शम्भू भी उसके ऊपर चढ़ गया और शबाना की दोनों टाँगें उठाकर अपने कंधों पर रख लीं और तेज़ी से झटके देने लगा। शबाना की तो चींखें निकलने लगीं। उसकी गाँड हवा में हिलने लगी और आँखें बंद हो गयी और उसने पानी छोड़ दिया।

तभी उसे अपने मुँह पर लण्ड महसूस हुआ, जिसे उसने अपने मुँह में ले लिया और चूमने लगी। जब उसने अपनी आँख खोली तो, “अशरफ़ तू??? अपनी आपा को लण्ड चुसा रहा है... शरम नहीं आती???”

“क्या आपा! मैंने परसों रात आपको तीन-तीन लण्ड दिलवाये और आप मेरा लण्ड नहीं लोगी?” अशरफ़ मुस्कुराया। शबाना समझ गयी कि उस रात जो हुआ वो अशरफ़ का ही प्लान था।

“तूने ये सब क्यों किया?” शबाना ने पूछा। शबाना की ज़ुबान नशे में बहक रही थी।

“आपा मैं गंडियाल हूँ और मुझे गाँड मरवाने में मज़ा आता है। मुझे लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं है.... ये लोग मेरी गाँड मारने के बदले तुम्हें माँग रहे थे तो मुझे ये सब करना पड़ा!” अशरफ़ की आवाज़ में कोई पछतावा नहीं था।

“तो गाँडू तू शादी क्यों कर रहा है?”

“इनके लिये! अब मैं तुम्हें तो हर रोज़ नहीं बुला सकता ना? यही चोदेंगे मेरी बीवी नफीसा को भी!”

सन्न रह गयी शबाना ये सुनकर। खैर, अगले दो घंटे उसने और शराब पी कर नशे में खूब जी भर कर चुदाई करवायी। अशरफ़ का भी लण्ड चूस कर पानी पी लिया। अशरफ़ इससे ज़्यादा कुछ कर नहीं सकता था। बाकी तीनों के लण्ड भी अपने हर छेद में लेकर मज़े लूटे। सबसे ज़्यादा मज़ा तो उसे तब अया जब एक ही साथ उसकी चूत में शंभू का लण्ड और गाँड में लखन का लण्ड और मूँह में छेद्दीलाल का लण्ड चोद रहा था।

फिर अशरफ़ ने उसे वापस बस-स्टैंड पर छोड़ दिया और वो उसी तरह बस में सवार हो गयी जैसे उतर कर गयी थी। सिर्फ इतना फर्क़ था कि अब वो शराब के नशे में थी। बस में पहुँची तो कंडक्टर ने सीटें बदल दी थीं। शबाना की सीट काफी पीछे थी और उसकी सीट के पीछे सिर्फ़ एक ही कतार और थी। उसके पास एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी हुई थी। उम्र कोई पचास के करीब थी। शबाना ने सीट बदलने के लिये कंडक्टर से काफी मशक्कत की मगर उसे उसी सीट पर बैठना पड़ा। शबाना उसके पास जाकर बैठ गयी। बड़ी कोफ़्त हुई उसे... खिड़की के पास वाली सीट भी नहीं मिली। अच्छा हुआ सिर्फ़ बुरक़ा ही पहन कर आ गयी, उसने सोचा, अगर बुरक़े में कपड़े पहन लेटी तो गर्मी से दम निकाल जाता। जी हाँ! छेद्दीलाल के यहाँ से निकलते वक्त उसने अपनी साड़ी और पेटीकोट पहनने कि बजाय अपनी अटैची में रख लिये थे और इस वक्त वो बुऱके के नीचे सिर्फ छोटा सा बिकिनी-ब्लाउज़ ही पहने हुए थी और कुछ भी नहीं!

वो अपनी चुदाई के बारे में सोच-सोच कर मस्तिया रही थी। उसकी चूत और गाँड अब भी लण्ड खाने के लिये बिल्कुल तैयार थी। शबाना अब बिल्कुल रंडी बन चुकी थी, और हर वक्त उसके ज़हन में लण्ड और चुदाई के ही ख्याल आते थे। बस चल चुकी थी। करीब दो घंटे बाद बस रुकी थी चाय नाश्ते के लिये और फिर पंद्रह-बीस मिनट में चल दी।

शबाना को शराब के नशे की वजह से काफी नींद आ रही थी। तभी उसकी बगल में बैठी औरत ने अपना सर शबाना के कंधे पर रख दिया। शबाना ने एक-दो बार तो उसका सिर उठा दिया, लेकिन वो हर बार फिर शबाना के कंधे पर सिर रख देती। आखिर शबाना ने समझौता कर लिया, और उसके सिर पर अपना सिर रख कर सोने की कोशिश करने लगी। लाइट बंद होने की वजह से बस में बिल्कुल अन्धेरा हो गया था। अचानक शबाना ने अपनी आँखें खोली जब उसे अपनी कमर पर किसी का हाथ महसूस हुआ। उसे लगा पास बैठी औरत का हाथ होगा। फिर ध्यान से देखा तो पता चला उस औरत के दोनों हाथ आगे ही थे। वो समझ गयी उसके पीछे बैठे किसी आदमी ने उसकी और उस बाजू वाली औरत की सीट के बीच में जो जगह थी, वहाँ से हाथ अंदर डाला था। अभी तक उस हाथ ने कोई हरकत नहीं कि थी। शबाना के मन में उम्मीद जागी लेकिन वो चुपचाप बैठी रही। उसकी चुदाई की आदत की वजह से वो उसकी लण्ड की भूख जाग गयी थी।

अब वो हाथ उसकी कमर को सहलाने लगा और शबाना की गरमी भी परवान चढ़ने लगी थी। मगर उसके पास वाली औरत ने अब भी अपना सिर उसके कंधों पर रखा हुआ था। शबाना को डर था कि वो उठ जायेगी। वो थोड़ी नीचे सरक गयी और अब उस बाजू वाली औरत को काफी झुकना पड़ रहा था। उस औरत ने अपना सिर उसके कंधों पर से हटा लिया और दूसरी तरफ़ खिड़की पर रख लिया। उस पीछे वाले आदमी का हाथ अब शबाना की कमर की जगह बिल्कुल उसकी बगल में आ गया था। उसने अपने हाथ को और आगे किया और शबाना के उभरे हुए मम्मों को दबाने लगा। शबाना उसकी हिम्मत से हैरान थी लेकिन वो खुद भी मस्तिया रही थी और वो चुपचाप मज़े ले रही थी। तभी उस आदमी ने दूसरी तरफ़ से भी अपना हाथ डाल दिया और शबाना के दोनों मम्मों को दबाने लगा। शबाना का मन अब बुरक़े को उतार फेंकने को हो रहा था। वो इस छुआछुई के खेल को अगली सीढ़ी पर ले जाना चाहती थी।

उसने बगल वाली औरत को हिलाकर एक बार तसल्ली कर ली कि वो गहरी नींद में है। फिर वो पहले की तरह ऊपर होकर बैठ गयी और अपने बुऱके को पीछे से उठाकर गाँड के ऊपर ले लिया ताकि मौका मिलने पर उसे ऊपर कर सके। पीछे बैठे आदमी को पता लग गया था कि उसका काम बन गया है। उसने अपना हाथ बुऱके के अंदर घुसा दिया और शबाना की नंगी चिकनी पीठ पर हाथ फिराने लगा। अचानक उसने शबाना के ब्लाउज़ की हुक खोल दी और अपना हाथ आगे लेकर उसके नंग मम्मों को मसलने लगा। शबाना ने अपनी आँखें बंद कर लीं और मज़े लेने लगी। अब वो हाथ नीचे की तरफ जा रहा था। शबाना समझ गयी कि उसकी चूत के नसीब खुलने वाले हैं। लेकिन वो हाथ उसकी नाभि तक तो पहुँच गये लेकिन चूत तक नहीं पहुँच पा रहे थे। सिर्फ़ उसकी नाभि के कुछ ही नीचे पहुँच रहे थे वो भी बड़ी मुश्किल से। अब तक तो शबाना की नंगी चूत पूरी भीग चुकी थी और उसके होंठ भी लण्ड चूमने के लिये मचलने लगे थे। उसके मुँह में पानी आ गया था और उसकी ज़ुबान उसके मुँह के बाहर निकल रही थी।

उसने अपना हाथ पीछे की तरफ़ कर दिया। लेकिन उसके हाथ में उस आदमी का लण्ड फिर भी नहीं आया। वो सिर्फ़ उसके घुटनों तक ही पहुँच पा रही थी। उसने मुड़कर देखा तो उस शख्स ने अपना मुँह ढक रखा था और एक पतली सी चादर कुछ इस तरह से लटकायी हुई थी कि किसी को भी यही लगेगा कि वो शबाना की सीट पर सिर रख कर सो रहा है। उस आदमी का हाथ अब शबाना की गाँड के नीचे से उसकी चूत पर पहुँचने की कोशिश कर रहा था। शबाना ने चारों तरफ़ देखकर एक बार फिर पक्का कर लिया कि सब सो रहे हैं। फिर उसने अपना मुँह पीछे किया और उस आदमी के कान में कहा “बाजू की सीट खाली है क्या?”

“नहीं मेरा छोटा भाई सो रहा है!”

“क्या उम्र है?”

“दस साल!”

“उसे उठाकर मेरी सीट पर बिठा दो!” शराब के नशे में शबाना की हिम्मत कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी थी। वो आदमी भी एक दम सन्न रह गया, लेकिन उसने शबाना की बात मान ली। वो तो अपनी किस्मत पर फूला नहीं समा रहा था। शबाना धीरे से खड़ी हो गयी और उस आदमी ने अपने सोये हुए भाई को शबाना की सीट पर बिठा दिया।

शबाना के बुऱके के अंदर सिर्फ़ ब्लाऊज़ था, वो भी खुला हुआ। फिर शबाना सीट से उतरकर नीचे घुटने मोड़कर बैठ गयी और उस आदमी ने अपने बेटे को उठाया और सीट के ऊपर से ही शबाना की सीट पर बिठा दिया। शबाना नीचे बैठी हुई थी क्योंकि खड़े होकर वो औरों की नज़र में नहीं आना चाहती थी। बैठे-बैठे वो उस आदमी के पैरों के बीच से निकल कर खिड़की वाली सीट की तरफ़ खिसक रही थी। जब वो उस आदमी के पैरों के बीच पहुँची तो उस शख्स ने उसके कंधों को पकड़ कर उसे अपने घुटनों के बीच बिठा लिया। शबाना समझ गयी उसे क्या करना है... वो भी यही चाहती थी।

उस आदमी ने अपनी चादर से शबाना को ढक लिया जिससे किसी को कुछ पता नहीं चले कि अंदर कोई बैठा है। शबाना ने उस शख्स की पैंट के बटन और ज़िप खोलकर अंदर हाथ डाला और उसके लण्ड को बाहर खींच लिया। लण्ड एक दम तना हुआ था और काफी देर से खड़ा होने की वजह से अपने ही पानी से भीगा हुआ था। उसकी महक शबाना को मदहोश कर रही थी। उसने लण्ड को अच्छी तरह से सूँघा... उसे चूमा... अपने गालों पर और नाक पर मसल कर उसका पूरा मज़ा लिया। उसकी चमड़ी को आगे पीछे करके उसके सुपाड़े का पूरा मज़ा लिया। फिर अपने होंठों पर फिराते हुए धीरे-धीरे प्यार से अपने मुँह में ले लिया। अब उसकी जीभ अपना काम करने लगी और लण्ड के रस को निचोड़ने की कोशिश में लग गयी। शबाना तो बस उस लण्ड को खा जाना चाहती थी।

वो आदमी भी शबाना के गालों पर हाथ फिरा रहा था और लण्ड को उसके मुँह में ढकेल रहा था। उसने अपने पैर के अंगूठे को शबाना की चूत तक पहुँचा दिया और उसकी चूत में अपने अंगूठे को ऊपर नीचे फिरा कर शबाना की चूत की मालिश करने लगा। शबाना की चूत से पानी रिस रहा था - बूँद-बूँद... धीरे-धीरे! फिर उसने शबाना को उठाकर अपनी बाँयी जाँघ पर बिठा लिया। शबाना का बुरक़ा पहले ही गाँड के ऊपर तक उठा हुआ था, इसलिये उसकी नंगी गाँड उस शख्स की जाँघ पर टिकी थी। शबाना ने अब पहली बार उसका उस आदमी का चेहरा देखा तो अंदाज़ा लगाया कि उसकी उम्र मुश्किल से बीस-बाईस ही साल होगी। किसी कॉलेज का स्टूडेंट जैसा लग रहा था वो।

उस शख्स ने अब शबाना की जाँघ के बीच में अपना हाथ घुसा दिया और उसकी चूत में अपनी उंगली घुसा दी। वो अपनी उंगली से शबाना की चूत की अंदर तक मालिश कर रहा था। उसकी उंगली एक लय में शबाना की चूत में घुसती और थिरकते हुए बाहर आ जाती। शबाना की चूत में जैसे मछलियाँ तैर रही थीं। शबाना ने अपना सिर उस आदमी के कंधे पर रख दिया और अपनी जाँघें और फैला दी। उसकी प्यासी चूत को मज़ा आ रहा था और उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी। उसे पता था इस चूत की प्यास अब लण्ड से छूटा हुआ पानी ही बुझा सकता है, लेकिन इस प्यास को जितना लम्बा खींचो उतना ही मज़ा देती है ये... और मज़ा तो तब और भी दुगुना हो जाता है, जब लण्ड पास ही हो और लण्ड वाला मर्द चूत से खिलवाड़ कर रहा हो।

तभी वो शख्स झटके से उठा और नीचे बैठ गया। अब शबाना सीट पर बैठी थी और वो शख्स नीचे बैठा था। अब चादर संभालने की बारी शबाना की थी। उसे पता था उसकी चूत का रस पीया जाने वाला है। उसने अपनी गाँड आगे की तरफ़ सरका कर सीट के कोने पर पहुँचा दी ताकि उसकी नरम मुलायम गुलाबी चूत तक पहुँचने में उस शख्स की जीभ को आसानी हो और उसकी चूत के अंदर तक घुसकर उसे पूरी तरह से मस्त कर दे वो लपलपाती हुई जीभ। उस आदमी ने शबाना की जाँघों को फैला कर उसकी चूत की दोनों फ़ाँखों को अपने अंगूठे से फैला दिया। शबाना भी अपना एक पैर उस आदमी की टाँगों के बीच में ले जाकर उसके लण्ड को अपने ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल के तलवे से सहलाती तो कभी सैंडल के पंजे से दबाती। शबाना को अपनी चूत के अंदर गहरायी तक जीभ के जाने का एहसास हो रहा था। उसकी गाँड अपने आप हिलने लगी। उस शख्स ने अपनी एक उंगली उसकी चूत में ढकेल दी और उस उंगली के ऊपर से ही उसकी चूत को अपने दोनों होंठों के बीच दबा लिया और शबाना को तो जैसे जन्नत नसीब हो गयी। उसकी चूत में उंगली और जीभ में जैसे होड़ लगी हुई थी और वो दोनों एक दूसरे से आगे निकलने की कोशिश कर रहे थीं। अचानक शबाना की कमर ऐंठने लगी और वो बिल्कुल अकड़ गयी। उसकी गाँड सीट से एक-दो सेकेंड के लिये हवा में उछली और उस शख्स के मुँह पर रस की बौछार कर दी।

अब वो आदमी उठा और शबाना के बगल में खिड़की वाली सीट पर बैठ गया। उसने शबाना का हाथ पकड़ा और अपने लण्ड पर रख दिया। शबाना अब भी बाँये हाथ से पतली सी चादर को पकड़े हुए थी। उसकी चूत में लण्ड नहीं जाने की वजह से वो अब भी मदमस्त थी और उसकी प्यास अब भी जवान थी। उसने लण्ड को अपनी हथेली में दबाते हुए थोड़ा संयत होने की नाकाम कोशिश की और फिर वो खुद अपनी उंगली चूत में डाल कर अंदर बाहर करने लगी। वो आदमी समझ गया कि अब चूत में लण्ड घुसाना ज़रूरी है। उसने अपनी पैंट उतार दी और सीट के बीच में बने हत्थे को ऊँचा कर दिया और बीच में बैठ गया। फिर उसने शबाना को कमर से उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया और उसे एक दम आगे झुका दिया। अब उस आदमी की टाँगें शबाना की फैली टाँगों के बीच में थीं, और उसका लण्ड शबाना की गाँड पर लग रहा था। शबाना के लिये और आगे झुकना मुश्किल था। तभी उसने शबाना की गाँड के नीचे हाथ डाला और उसे उठा लिया, और अपना लण्ड उसी हाथ के अंगूठे से शबाना के नीचे सरका दिया। शबाना भी समझ गयी वो क्या करना चाहता है। शबाना ने भी अपना हाथ नीचे डाला और उसके लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत पर टिका लिया और फिर सही पोज़िशन में आकर लण्ड पर बैठ गयी। लण्ड उसकी भीगी हुई चूत में अंदर तक फिसलता चला गया। लेकिन अब मुश्किल ये थी कि धक्के लगायें कैसे। शबाना भी ऊफर-नीचे उछल नहीं सकती थी क्योंकि उस आदमी की गोद में बैठने की वजह से शबाना के पैर भी ज़मीन पर ठीक से नहीं पहुँच रहे थे। उसकी सैंडलों की ऊँची ऐड़ियाँ हवा में उठी थीं, बस पंजे ही बस के फर्श पर टिके थे। एक दम प्यासी चूत में लण्ड तो घुस गया था, लेकिन बिना धक्कों के वो लण्ड सिर्फ़ एक लकड़ी का टुकड़ा था - ऐसा ही जैसे गरम पानी करने के लिये हीटर की रॉड को तो पानी में डाल दिया, मगर बिजली चली गयी।

फिर उस आदमी ने पतली सी चादर के एक कोने को आगे वाली सीट के हेड-रेस्ट से बाँध दिया और दूसरे सिरे को अपनी सीट के पीछे हेड-रेस्ट से। अब वो जैसे कोई अलग केबिन बन गया था... जैसे ट्रेन के सेकेंड क्लास कम्पार्ट्मेंट में होता है। फिर उसने शबाना को एक तरफ टेढ़ा कर दिया। अब शबाना का मुँह आगे वाली सीट की तरफ़ नहीं बगल वाली खिड़की की तरफ़ था। चूत में लण्ड घुसा हुआ था और आगे कुछ पकड़ने के लिये नहीं था, तो शबाना के हाथ सीधे नीचे बस के फ़र्श पर छूने लगे। उस आदमी ने अब उठकर अपनी सीट और शबाना की सीट को ऊँचा कर दिया और अब शबाना बिल्कुल कुत्तिया की तरह झुकी हुई थी और उसकी चूत में लण्ड घुसा हुआ था। उस शख्स ने फिर बिना देर किये ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने शुरू कर दिये और शबाना ने अपने होंठों को दाँतों से दबा लिया। बड़ी मुश्किल हो रही थी उसे अपनी सिसकारियाँ रोकने में। फिर उसकी टाँगें फैलने लगीं और उसकी चूत पर पड़ने वाले हर धक्के के साथ उसकी चूत उसका साथ छोड़कर लण्ड के साथ मिलने लगी। उसकी चूत लण्ड को कसकर पकड़ रही थी और जब भी उसकी गाँड पर उस शख्स का जिस्म टकराता तो उसके पेट में हलचल मच जाती। उसकी कमर को पकड़े हुए वो शख्स उसे किसी बच्चे की तरह आगे पीछे झुला रहा था, और अपने लण्ड पर स्लाइड करवा रहा था। उसकी चूत जैसे किसी फिसलपट्टी पर फिसल कर नीचे आती और उसी रफ्तार से फिर ऊपर चढ़ जाती। उसकी बंद आँखों के सामने जैसे तेज़ रोश्नी-सी चमकी और उसकी चूत से रस का परनाला बहने लगा और वो एक दम से निढाल होकर बस के फ़र्श पर झुक गयी। लण्ड उसकी चूत को शाँत कर चुका था। लण्ड और चूत से निकलकर एक हो चुका रस उसकी जाँघों से होते हुए उसके घुटनों तक पहुँच रहा था। लण्ड अब भी उसकी चूत में था। फिर उस शख्स ने उसकी चूत से अपना लण्ड निकाला और सीट पर बैठ गया। शबाना थोड़ी देर ऐसे ही लेटी रही। उसका बुऱका कमर के ऊपर तक उठा हुआ था और कमर के नीचे उसका नंगा जिस्म बुऱके से बाहर थ। फिर वो भी उठकर उस शख्स की बगल में खिड़की वाली सीट पर बैठ गयी। उस आदमी के पैंट के बटन और ज़िप बंद करने से पहले ही उसके अंडरवीयर में शबाना ने अपना हाथ घुसाया और उसका लण्ड बाहर निकाल लिया। फिर झुककर उसे खूब चूमा, चाटा और साफ़ किया। फिर उसने अपना बुऱका ठीक किया और खिड़की पर सर रख कर सो गयी। गहरी और ज़बरदस्त चुदाई के बाद, बहुत ही शानदार नींद आयी थी उसे।

“शबाना! उठो शबाना!” सुनकर चौंक गयी शबाना। उसने आँखें खोली तो परवेज़ उठा रहा था उसे। “चलो स्टॉप आ गया!” अब शबाना को थोड़ा होश आया। उसका स्टॉप आ गया था और परवेज़ उसे ही उठा रहा था। उसने बगल में देखा तो कोई नहीं था। शायद वो आदमी उसे छोड़कर अपने स्टॉप पर पहले ही उतार गया था।

“कुछ भी कहो कमाल का रहा ये सफ़र!” शबाना बुदबुदायी।

“क्या?”

“कुछ नहीं… मैंने कहा… कमाल की नींद आयी रात में!” शबाना ने बात को संभाला। बुऱके के नीचे बिल्कुल ही नंगी थी वो और पैरों तक उसकी टाँगें और जाँघें चिपचिपा रही थीं। उसका खुला हुआ ब्लाउज़ भी नदारद था जो या तो बस में ही कहीं सीट के नीचे गिर गया था या हो सकता है वो शख्स ही यादगार के लिये ले गया हो।

बस से उतरकर दोनों सीधे घर आ गये। परवेज़ को काम पर जाना था इसलिये वो उसे घर छोड़कर तुरंत निकाल गया। शबाना तो रात की बस वाली चुदाई के बारे में ही सोच रही थी। उस शख्स का नाम पता कुछ नहीं मालूम था लेकिन चूत उसे ही याद कर रही थी। अब तो गाँड भी उस लण्ड को खाने के लिये लालयित हो रही थी। तभी शबाना का ध्यान अपने बुऱके में बंधी हुई गाँठ पर गया। उसने उस गाँठ को खोला - उसमें फोन नम्बर लिखा हुआ था और नाम कि जगह ‘बस का साथी...’

शबाना के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी और उसकी आँखों में चमक आ गयी। वो जानती थी उसे क्या करना है। वो जानती थी, अब उसकी गाँड की प्यास भी बुझ जायेगी। शबाना की चूत किसी लण्ड को खाये और गाँड उसे छोड़ दे... ऐसा होना मुश्किल था। वो भी ऐसा लण्ड जिसने उसकी प्यासी चूत को किसी बियाबान रेगिस्तान में पानी पिलाया हो!!

Anjaan
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