किरन की कहानी

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अशफाक के घर वाले शहर के आऊटर में रहते हैं और अशफाक एक बिज़नेसमैन है। उसका रेडीमेड गार्मेंट्स का बिज़नेस है जो काफी अच्छा चलता है। वो अपने बिज़नेस के लिये डेली आऊटर से शहर में नहीं आ सकता था और इसी लिये उसने एक शानदार फ्लैट शहर में ले रखा था जिस में हम दोनों ही रहते हैं। घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी। कभी-कभी उसके मम्मी और डैडी आ जाते या कभी उसकी बहन रुखसाना आ जाती तो एक या दो दिन रह के चले जाते। घर में मैं अकेली ही रहती हूँ।

वक्त ऐसे ही गुजरता रहा। वो मेरी चूत में सारी रात आग लगाता रहता और खुद सुबह सुबह उठ के चला जाता और मैं जलती हुई चूत के साथ सारा दिन गुजारती रहती। करती भी तो क्या करती। इसी तरह से तीन महीने गुज़र गये। बहुत बोर होती रहती थी घर में बैठे-बैठे। सब नये -ये लोग थे। किसी से भी कोई जान पहचान नहीं थी। हमारे घर के करीब ही एक लेडी रहती थी। उनका नाम था सलमा। वो होंगी कोई छत्तीस या सैंतीस साल की। काफी खुश अखलाक़ और तहज़ीब याफ्ता औरत थीं। वो अक्सर हमारे घर आ जाया करती हैं और इधर उधर की बातें करती रहती हैं। मैं उन्हें आँटी कहने लगी। वो जब आती तो दो-तीन घंटे गुज़ार के ही जाती। कभी खाना पकाने में भी मदद कर देती और कभी-कभी तो हम दोनों मिल के खाना भी खा लेते। वो अपने अपियरेंस का बेहद ख़याल रखती थीं और हमेशा सलीके से कपड़े, गहने वगैरह पहने होती थीं और हल्के से मेक अप में बेहद खूबसूरत दिखती थीं। मैंने भी उनसे काफी कुछ सीखा।

अशफाक तो बिज़नेस के सिल सिले में शहर से बाहर जाते ही रहते हैं और जब कभी किसी दूर के शहर जाना होता तो वो तीन-चार दिन के लिये जाते और मैं घर मैं अकेली ही रहती हूँ। कई बार आँटी ने कहा कि “किरन तुम अकेली रहती हो, अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे पास आ के सो जाया करूँ!”

मैंने हमेशा हँसते हुए उनके इस इरादे को टाल दिया और अब वो मेरे साथ सोने की बात नहीं करती। कभी-कभी अगर बातें करते-करते रात को देर भी हो जाती तो वो अपने घर चली जाती थी। उनके शौहर मर्चेंट नेवी में इंजीनियर थे और साल में दो-तीन दफ़ा कुछ हफ़्तों की छुट्टियों में आते थे। उनकी बारह साल की एक बेटी थी जो बोर्डिंग स्कूल में पढ़ती थी। उनके पास एक बड़ा सा कुत्ता था जिसे वो दिल-ओ-जान से चाहती थीं। सलमा आँटी अपने कुत्ते के साथ अकेली रहती थीं।

एक दिन आँटी दोपहर के वक्त आ गयीं। मैं उसी वक्त बाहर से कुछ शॉपिंग करके वापस लौटी थी और चाय पी कर थोड़ा सुस्ताने का दिल कर रहा था क्योंकि आज बादल छाये हुए थे और कभी भी बारिश हो सकती थी और ठंडी हवा चल रही थी। हकीकत में मौसम सुहाना हो रहा था पर मुझे रात के गैर तसल्ली बक्श सैक्स से सारा जिस्म टूटा जा रहा था । मैंने घर में कदम रखा ही था और अभी सैंडल भी नहीं उतारे थे कि ठीक उसी टाईम पे आँटी आ गयी। आँटी ने पूछा कि मैं कहीं जा रही हूँ क्या तो मैने कहा. “नहीं आँटी! बल्कि अभी-अभी आयी हूँ” तो आँटी ने पूछा के “थक गयी होगी... कहो तो मैं तुम्हारा जिस्म दबा दूँ” तो मैंने हँस के कहा कि “नहीं आँटी, ऐसी कोई बात नहीं।“ इतनी देर में एक दम से बहुत ज़ोरों की बारिश शुरू हो गयी। मेरे इस घर में आने के बाद ये पहली बारिश थी तो मेरा जी चाह रहा था कि मैं ऊपर जा के बालकोनी से बारिश देखूँ। इसी लिये मैंने आँटी से कहा कि “चलिये ऊपर चल के बैठते हैं और बारिश का मज़ा लेते हैं।“

हम दोनों बालकोनी में आ गये। हमारा फ्लैट आठवीं मंज़िल पर बिल्डिंग का सबसे ऊपर वाला फ्लैट है और हमारी बिल्डिंग के सामने सड़क थी और दूसरी तरफ छोटी सी मार्केट थी जहाँ सब्ज़ी, दूध और तकरीबन डेली इस्तेमल की सभी चीज़ें मिल जाया करती थी। इतनी बारिश की वजह से सारा मार्केट सुना पड़ा हुआ था। कभी-कभी कोई इक्का दुक्का सायकल वाला या कोई आदमी बरसाती ओढ़े गुज़र जाता था। हम दोनों बालकोनी में रखी कुर्सियों पे बैठ गये और बाहर का सीन देखने लगे। कभी-कभी बारिश का थोड़ा सा पानी हमारे ऊपर भी गिर जाता था। मौसम ठंडा हो गया था और ऐसा अंधेरा था कि शाम के पाँच बजे ही ऐसा लग रहा था जैसे रात के आठ-नौ बज रहे हों। मैं चाय़ बनाने उठी तो आँटी ने कहा कि, “ऐसे मौसम में जिन या रम पीने में बहुत मज़ा आता है!” मैं उनकी बात सुनकर चौंक पड़ी। हालांकि मैं खुद अशफाक के कहने पर उसके साथ कभी-कभी बियर पी लेती थी पर आँटी पीने का शौक रखती होंगी, इस बात की मुझे उम्मीद नहीं थी। मैंने आँटी से कहा कि “जिन या रम तो नहीं है क्योंकि अशफाक व्हिस्की पीना पसंद करते हैं...” तो आँटी ने कहा कि “वही ले आओ।“

मैं जा के दो ग्लास और अशफाक की अलमारी से व्हिस्की की बोतल ले आयी। व्हिस्की पीने का ये मेरा पहला मौका था। हम दोनों पैग पीते-पीते बाहर का सीन देखते रहे और इधर उधर की बातें करते-करते बारिश के मज़े लेने लगे। एक छोटा सा पैग पीने से ही जिस्म में थोड़ी सी गर्मी आ गयी। आँटी तो इतनी देर में एक बड़ा पैग पी चुकी थीं और दूसरा पैग खतम होने को था। उन्होंने जोर देकर मेरे लिये अपने जैसा ही बड़ा सा पैग बना दिया। वो मेरे लेफ़्ट साईड में बैठी थीं और ईधर-उधर की बात करते-करते पता नहीं आँटी को क्या सूझा कि मुझसे मेरी सैक्स लाईफ के बारे में पूछने लगी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बताऊँ और व्हिस्की का हल्का सा सुरूर भी छाने लगा था। आँटी एक्सपीरियंस्ड थीं। शायद मेरी खामोशी को ताड़ गयीं और धीरे से पूछा, “रात को मज़ा नहीं आता ना??”

मैंने ना में सर हिलाया लेकिन कुछ ज़ुबान से बोली नहीं। उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और धीरे से दबाया और कहा कि “मुझे भी नहीं आता, मैं भी ऐसे ही तड़पती रहती हूँ।“ और मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर उसका मसाज करने लगी। उन्होंने अपनी सुहाग रात के बारे में बताया जो मेरी सुहाग रात की ही तरह हुई थी और फिर बताया कि कैसे वो अपनी सैक्स की प्यास को बुझाती हैं। मैं हक्की बक्की उनकी कहानी सुन रही थी। उन्होंने बताया कि उनका एक दूर का भाँजा है जो शहर में ही कॉलेज में पढ़ता है और हॉस्टल में रहता है। वो कभी-कभी आँटी की चुदाई करके उनकी प्यासी चूत की प्यास को बुझा देता है। मैं आँटी की कहानी सुन के हैरत में पड़ गयी और सोचने लगी कि मैं अपनी प्यासी चूत की प्यास बुझाने के लिये क्या करूँ।

अब ठंड थोड़ी सी बढ़ गयी पर व्हिस्की के सुरूर और गर्मी से बहुत अच्छा लग रहा था और हम बैठे व्हिस्की पीते हुए बारिश के मज़े ले रहे थे और अपनी अपनी चुदाई कि कहानियाँ एक दूसरे को सुना रहे थे। आँटी अपनी कुर्सी घुमा के मेरी तरफ मुँह करके बैठ गयीं और बीच-बीच में मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर मसल रही थीं और अपनी टाँग बढ़ा कर मेरी सलवार ऊपर खिसकाते हुए अपने सैंडल को मेरी मेरी टाँगों पर हल्के-हल्के फिरा रही थीं और मेरे जिस्म में गर्मी आ रही थी। फ्लैट आठवीं मंज़िल पर होने की वजह से कोई हमें सड़क से देख नहीं सकता था और वैसे भी सड़क इतनी बारिश की वजह से सुनसान ही थी। वैसे मैं इस वक्त थोड़े नशे में थी और इतनी मस्त हो चुकी थी कि मुझे किसी बात का खयाल भी नहीं था। ऊपर से अपनी टाँगों पर उनके सैंडल का प्यारा सा लम्स और बाहर का ठंडा मौसम। फिर आँटी ने सुहाग रात की और अपनी चुदाई की दास्तान शुरू करके मेरे जिस्म में फिर से आग लगा दी थी।

मुझे सुहैल से चुदवाई हुई वो रातें याद आ रही थी जब मेरी चूत में सुहैल का लंबा मोटा लंड घुस के धूम मचा देता था और चूत-फाड़ झटके मार-मार के मेरी चूत को निचोड़ के अपने लंड का सारा रस मेरी चूत के अंदर छोड़ के कैसे मज़ा देता था। मेरा पूरा दिल और दिमाग सुहैल की चुदाई में था। मुझे पता ही नहीं चला के कब आँटी का पैर मेरी सलवार के ऊपर से जाँघों पे फिसलने लगा और मेरे सारे जिस्म में एक मस्ती का एहसास छाने लगा और बे-साख्ता मेरी टाँगें खुल गयीं और मैंने महसूस किया के आँटी का हाई-हील वाला सैंडल मेरी जाँघ से फिसल के टाँगों के बीच सलवार के ऊफर से चूत पे टिक गया और वो चूत का धीरे-धीरे मसाज करने लगी और मुझे मज़ा आने लगा।

मेरी प्यासी चूत पे आँटी के सैंडल के लम्स और मसाज से मुझे अपने स्कूल का एक किस्सा याद आ गया। हम उन दिनो ग्यारहवीं क्लास में थे। सुहैल से चुदाई से पहले की बात है। हुआ ये था कि मेरी क्लासमेट, ताहिरा, मेरे पड़ोस में ही रहती थी और कभी वो मेरे घर आ जाती और हम दोनों मिल कर रात में पढ़ाई करते और एक ही बेड में सो जाते। कभी मैं उसके घर चली जाती और साथ पढ़ाई करते और मैं वहीं उसके साथ उसके बेड में ही सो जाती। एक रात वो मेरे घर आयी हुई थी और हम रात को पढ़ाई कर के मेरे बेड पे लेट गये। मेरा रूम घर में ऊपर के फ़्लोर पे था और मम्मी और डैडी का नीचे। मैं ऊपर अकेली ही रहती थी तो हमें अच्छी खासी प्राईवेसी मिल जाती थी। दोनों पढ़ाई खतम कर के सोने के लिये लेट गये। ताहिरा बहुत ही शरारती थी। उसने अपने मम्मी डैडी को चोदते हुए भी कई बार देखा था। कभी सोने का बहाना कर के कभी विंडो में से झाँक कर और फिर मुझे बताती थी कि कैसे उसके डैडी नंगे हो कर उसकी मम्मी को नंगा कर के चोदते हैं, कभी लाईट खुली रख के तो कभी लाईट बंद कर के। वो चुदाई देखती रहती थी और मुझे बता देती थी कि उसके डैडी ने आज उसकी मम्मी को कैसे चोदा और ये भी बताती कि उसकी मम्मी ने कैसे उसके डैडी के लंड को चूसा और सारी मलाई खा गयी।

हाँ तो वो मेरे साथ बेड मैं थी। हम ऐसे ही बातें कर रहे थे। वो अपने मम्मी और डैडी के चुदाई के किस्से सुना रही थी और अचानक उसने पूछा, “किरन तेरा साईज़ क्या है?” मैंने पूछा, “कौन सा साईज़?”, तो उसने मेरी चूचियों को हाथ में पकड़ लिया और पूछा “अरे पागल इसका!” और हँसने लगी। उसका हाथ मेरे बूब्स पे अच्छा लग रहा था और उसने भी अपना हाथ नहीं हटाया और मैंने भी उससे हाथ निकालने को नहीं कहा और वो ऐसे ही मेरी चूचियों को दबाने लगी। रात तो थी ही और हम ब्लैंकेट ओढ़े हुए थे और लाईट बंद थी। ऐसे में मुझे उसका मेरी चूचियों को दबाना अच्छा लग रहा था। मैंने उसका हाथ नहीं हटाया। मैंने बोला कि “मुझे क्या मालूम!”, तो उसने कहा “ठहर मैं बताती हूँ तेरा क्या साईज़ है!” मैंने बोला, “तुझे कैसे मालूम?” तो वो हँसने लगी और बोली “मुझे सब पता है”, और वो मेरे ऊपर उछल के बैठ गयी। मैं सीधे ही लेटी थी और वो मेरे ऊपर बैठ कर मेरे बूब्स को मसल रही थी। अब उसने मेरी शर्ट के अंदर हाथ डाल के मसलना शुरू कर दिया तो मुझे और मज़ा आने लगा। मैंने बोला, “हाय ताहिरा, ये क्या कर रही है?” तो वो बोली कि “मेरे अब्बू भी तो ऐसे ही करते हैं मेरी अम्मी के साथ.... मैंने देखा है जब अब्बू ऐसे करते हैं तो अम्मी को बहुत मज़ा आता है..... बोल तुझे भी आ रहा है या नहीं?” मैंने कहा, “हाँ मज़ा तो आ रहा है...!” तो उसने कहा कि “बस तो ठीक है, ऐसे ही लेटी रह ना, मज़ा ले बस”, और वो ज़ोर ज़ोर से मेरी चूचियों को मसलाने लगी।

मेरे ऊपर बैठे-बैठे ही उसने अपनी शर्ट भी उतार दी और मुझसे बोली कि मैं भी उसके बूब्स को दबाऊँ तो मैं भी हाथ बढ़ा के उसके बूब्स को अपने हाथ में लेकर मसलने लगी। ताहिरा की चूचियाँ मेरी चूचियों से थोड़ी सी बड़ी थीं। लाईट बंद होने से कुछ दिखायी नहीं दे रहा था, बस दोनों एक दूसरे की चूचियों को दबा रहे थे। ऐसे ही दबाते-दबाते वो मेरी टाँगों पे आगे पीछे होने लगी। हमारी चूतें एक दूसरे से मिल रही थीं और एक अजीब सा मज़ा चूत में आने लगा। अब वो मेरे ऊपर लेट गयी और मेरी चूँची को चूसने लगी। मेरे मुँह से “आआआआआहहहहह” निकल गयी और मैं उसके सर को पकड़ के अपनी चूचियों में घुसाने लगी। थोड़ी देर ऐसे ही चूसने के बाद वो थोड़ा आगे हटी और अपनी चूँची मेरे मुँह में घुसेड़ डाली और मैं चूसने लगी। वो भी “आआआआहहहह” की आवाज़ें निकाल-निकाल के मज़े लेने लगी।

अब हम दोनों मस्त हो चुके थे। वो थोड़ा सा पीछे खिसक गयी और मेरी चूत पे हाथ रख दिया तो मेरी गाँड अपने आप ही ऊपर उठ गयी। हम अब कोई बात नहीं कर रहे थे बस एक दूसरे से मज़े ले रहे थे। उसने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया और साथ में अपना भी और खुद अपने घुटनों पे खड़ी हो के अपनी सलवार निकाल दी और नंगी हो गयी और मेरी सलवार को भी पकड़ के नीचे खिसका दिया। मैंने भी अपनी गाँड उठा के उसको निकालने में मदद की। अब हम दोनों नंगे थे। अभी हमारी चूतों पे ठीक से बाल आने भी नहीं शुरू हुए थे। एक दम से चिकनी चूतें थीं हम दोनों की। अब फिर से वो ऐसे बैठ गयी जिससे हम दोनों की चूतें टच हो रही थी। वो आगे पीछे होने लगी और बताया कि “मेरी अम्मी जब अब्बू के ऊपर बैठती है तो ऐसे ही हिलती रहती है।“

हमारी चूतें एक दूसरे से रगड़ खा रही थी और हमें बहुत ही मज़ा आ रहा था। दोनों की चिकनी-चिकनी बिना बालों वाली मसके जैसी चूतें आपस में रगड़ रही थी। फिर वो थोड़ा सा नीचे को हो गयी और मेरी चूत पे किस कर दिया तो मैं पागल जैसी हो गयी और मैंने उसका सर पकड़ के अपनी चूत में घुसा दिया और वो किस करते-करते अब मेरी चूत के अंदर जीभ डाल कर चूसने लगी तो मेरे जिस्म में लहू तेज़ी से सर्क्यूलेट होने लगा और दिमाग में साँय-साँय होने लगा। मुझे लगा जैसे कोई चीज़ मेरी चूत के अंदर से बाहर आने को बेताब है पर नहीं आ रही है और मुझे लगा जैसे सारा कमरा गोल-गोल घूम रहा हो। इतना सारा मज़ा आ गया और मैं अपनी चूत उसके मुँह में रगड़ती रही। थोड़ी देर में ये कंडीशन खतम हो गयी तो वो बगल में आकर लेट गयी और मुझे अपनी टाँगों के बीच में लिटा लिया और मेरा सर पकड़ के अपनी चूत में घुसा दिया। उसकी मक्खन जैसी चिकनी चूत को किस करना बहुत अच्छा लग रहा था और अब उसने मेरे सर को पकड़ के अपनी चूत में घुसाना शुरू कर दिया और मेरे मुँह में अपनी चूत को रगड़ने लगी। उसकी चूत का टेस्ट मुझे कुछ नमकीन लगा पर वो टाईम ऐसा था के हम दोनों मज़े ले रहे थे और फिर उसने मेरे मुँह में अपनी चूत को और भी तेज़ी से रगड़ना शुरू कर दिया और मुँह से अजीब आवाज़ें निकालने लगी और फिर वो शाँत हो गयी। मेरा खयाल है कि स्कूल के दिनो में ऐसी फ्रैंड्स जो एक दूसरे के घर रात बिताती हैं, ये चूचियों को दबाना या चूत को मसाज करना या किस करना सब नॉर्मल सी बात होगी क्योंकि ताहिरा ने मुझे अपनी और दो फ्रैंड्स के बारे में बताया कि वो भी ऐसे ही करती हैं। शायद ये उम्र ही ऐसी होती है।

खैर तो मैं कह रही थी कि आँटी का सैंडल वाला पैर मेरी चूत पे लगने से मेरे जिस्म में एक आग जैसी लग रही थी। मेरा दिल और दिमाग अब ताहिरा और मेरी गुजरी हुई पुरानी हर्कतों से हट कर आँटी की तरफ़ आ गया था। पता नहीं आँटी ने अब तक क्या बोला..... मैं तो अपनी और ताहिरा की गुजरी हुई बातें ही याद कर रही थी। तब के बाद आज किसी फिमेल का लम्स मेरी चूत में महसूस हो रहा था। असल में मुझे ये फीमेल और फीमेल का सैक्स यानी लेस्बियनिज़्म पसंद नहीं है पर वो वक्त ऐसा ही था कि मैं फिर से बहक गयी और आँटी को अपनी चूत दे बैठी।

हम दोनों बालकोनी में ही लगभग आमने-सामने बैठे थे। अब आँटी के सैंडल की हील सलवार के ऊपर से ही मेरी चूत के लिप्स को खोल के ऊपर नीचे हो रही थी। आँटी कभी चूत के सुराख में सैंडल की हील डाल देती तो कभी क्लीटोरिस को मसल देती तो मेरा मस्ती के मरे बुरा हाल हो जाता। चूत में से लगातार जूस निकल रहा था और चूत पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। हालांकि मैंने दूसरा पैग पीने के बाद और नहीं लिया था पर अब मेरा नशा और बढ़ने लगा था और मुझसे कुर्सी पर ठीक से बैठा नहीं जा रहा था। आँटी ने तो मुझसे भी ज्यादा व्हिस्की पी रखी थी पर उन्हें आदत थी। इसलिये नशा होने के बावजूद वो मुझसे बेहतर हालत में थीं। मुझे झूमते हुए देख कर उन्होंने मुझे सहारा देकर पहले ज़मीन पर बिठा दिया और मेरी सलवार और पैंटी उतार कर मुझे तकरीबन नंगा कर दिया और फिर मेरी चूत में उंगली करने लगीं। मैं तो नशे में मस्त थीं और बालकोनी में अपनी इस नंगी हालत की मुझे कोई फिक्र नहीं थी। मुझे पता भी नहीं चला कि कब आँटी ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिये और मेरा हाथ लेकर अपनी चूत पे रख दिया। जब मेरा हाथ उनकी चूत में लगा तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा हाथ किसी जलती हुई भट्टी या गरम चुल्हे में लगा दिया हो..... इतनी गरम थी आँटी की चूत। मैंने भी आँटी की चूत का मसाज शुरू कर दिया और कभी अपनी उंगली अंदर डाल के सुराख में घुसेड़ देती तो कभी क्लीटोरिस को मसल देती तो आँटी के मुँह से “आआआहहहह ऊऊऊऊईईईई” जैसी आवाज़ें निकल जाती। दोनों ज़ोर-ज़ोर से एक दूसरे की चूतों का मसाज कर रहे थे और मज़े से दोनों की आँखें बंद हो चुकी थी।

सलमा आँटी ने मुझे लिटा दिया और मेरे पैरों के बीच में बैठ गयीं और झुक कर मेरी टाँगें और पैर चूमने-चाटने लगीं। मैंने गर्दन उठा कर देखा तो दंग रह गयी कि वो मेरे पैरों में बंधे सैंडलों को भी बड़ी शिद्दत से चाट रही थीं। फिर वो मेरी सैंडल की लंबी हील को मुँह में लेकर इस तरह चूसने लगीं जैसे लंड चूस रही हों। ये नज़ारा देख कर मेरी चूत और भी फड़कने लगी। फिर उन्होंने आगे झुककर चूत पे किस किया और अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर डाल कर चाटना शुरू किया तो मेरी मुँह से “आआआआआआ आआआहहहहह” की सिसकरी निकल गयी और मैंने आँटी का सर पकड़ के अपनी चूत में दबा दिया और उसी वक्त मेरी अंगारे जैसी गरम चूत झड़ने लगी। मेरी आँखें बंद हो चुकी थी और मस्ती में मैं गहरी-गहरी साँसें ले रही थी। फिर आँटी मेरे ऊपर सिक्स्टी-नाईन की पोज़िशन में आ गयी और मेरे मुँह पे अपनी चूत को रगड़ने लगी तो मेरा मुँह खुल गया और सलमा आँटी की चूत का इस्तक़बाल किया। उनकी गरम चूत में से नमकीन गाढ़ा जूस निकलने लगा। मैंने आँटी की पूरी चूत को अपने मुँह में लेकर दाँतों से काट डाला तो उनके मुँह से चींख निकल गयी, “आआआआहहहाह्ह ओंहओंहओंहओंहओंह आआआआआ ईईईईईईई ऊऊऊऊहहहहह”, और उनकी चूत में से जूस निकलने लगा और वो झड़ने लगी। बहुत देर तक हम बिना कोई बात किये ऐसे ही सिक्स्टी-नाईन की पोज़िशन में लेटे रहे। फिर थोड़ी देर के बाद आँटी ने कहा कि “आज मैं बहुत दिनों बाद इतना झड़ी हूँ और बहुत मज़ा आया!” मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल था। अशफाक तो मेरी चूत में आग लगा के खुद झड़ के सो जाते थे और मैं रातों में तड़पती रहती थी। ऐसे में आँटी की चूत को चूसने से बहुत सकून मिला। उस दिन के बाद जब कभी आँटी को झड़ना होता तो वो अपनी चूत को अच्छी तरह से शेव करके मेरे पास आती और फिर हम दोनों व्हिस्की पी कर घंटों तक एक दूसरे की चूत चाटते और आपस में अपनी चूतें रगड़ कर मज़ा करते। सलमा आँटी के पास दो तरह के डिल्डो भी थे। एक तो करीब दो फुट लंबा डबल डिल्डो था जिसके दोनों तरफ लंड थे और दूसरा बेटरी से चलने वाला नौ इंच लंबा डिल्डो था। सलमा आँटी किसिंग में तो बेहद माहिर थीं और उनके रसीले होंठों को चूमना और आपस में एक दूसरे के मुँह में ज़ुबाने डाल कर चूसना मुझे बेहद अच्छा लगता था। इसके अलावा सलमा आँटी को ऊँची हील के सैंडलों का बेहद जुनून था और मेरे साथ लेस्बियन चुदाई के वक़्त खुद भी हाई हील के सैंडल पहने रहती और मुझे भी सैंडल पहने रखने को कहतीं। उन्हें मेरे पैर और सैंडल चाटने में बेहद मज़ा आता था और फिर मुझे भी इसमें मज़ा आने लगा।

हकीकत में, उसके कुछ ही दिनों बाद मेरी चुदाई अपने बॉस के साथ होने लगी थी लेकिन मैं आँटी को इस बात का पता नहीं चलने देना चाहती थी। मैं अपना हर सीक्रेट उन्हें नहीं बताना चाहती थी, इसी लिये आँटी से नहीं कहा और उनके सामने ऐसी बनी रहती जैसे मेरी चूत बरसों कि प्यासी हो और उनके साथ मुझे बहुत ही मज़ा आता था।

हुआ यूँ कि मैं घर में अकेले रहते-रहते बोर होने लगी थी। सिवाय खाना पकाने के और कोई काम ही नहीं था। हर दूसरे दिन एक धोबन आ के हमारे कपड़े धो जाया करती थी। बोर होने की वजह से मैंने अशफाक से कहा कि अगर वो बुरा ना माने तो मैं कोई जोब कर लूँ ताकि मैं बिज़ी रह सकूँ। अशफाक को भी अपने बिज़नेस से फ़ुर्सत नहीं मिलती थी और अब तक तो उसको पता चल ही गया था कि मेरी चूत उसके लंड से और उसकी चुदाई से मुतमाईन नहीं है तो उसने कहा, “ठीक है मेरा एक फ्रैंड है, वो अपनी खुद की कंपनी चलाता है, मैं उससे बात कर लूँगा, तुम घर बैठे ही उसका काम कर देना ताकि तुम बिज़ी भी रहो और तुम्हारा दिल भी लगा रहे।“ फिर एक दिन अशफाक ने बताया कि उसने अपने दोस्त को डिनर पे बुलाया है और साथ में काम की भी बात कर लेते हैं, तो मैं खुश हो गयी और अच्छे से अच्छा खाना बना के अपने होने वाले बॉस को खिलाना चाहती थी इसलिये मैं किचन में डिनर की तैयारी में बिज़ी हो गयी।

रात के खाने के टाईम से पहले ही अशफाक का दोस्त आ गया। कॉलबेल बजी तो अशफाक ने दरवाजा खोला और “हेलो, हाऊ आर यू”, कह कर अंदर बुला लिया। मैं देख के दंग रह गयी। वो तो एक अच्छा खासा स्मार्ट आदमी था। तकरीबन छः फ़ुट के करीब उसकी हाईट होगी, गोरा रंग, चौड़े कंधे। हट्टा कट्टा मज़बूत जवान लग रहा था। उसे देखते ही मेरी चूत में एक अजीब एक्साइटमेंट सी होने लगी और मुझे लगा के मेरी चूत गीली हो रही है। मुझे खुशी हुई कि मैंने उस दिन ठीक से मेक-अप करके चूड़ीदार सलवार और स्लीवलेस कमीज़ पहनी थी जिसका गला भी लो-कट था। खुशकिस्मती से मैंने चार इंच उँची हील के सैंडल पहने हुए थे जिससे मेरी हाईट बढ़ कर पाँच फुट सात इंच के करीब हो गयी थी उसकी ऊँचाई के मुनासिब लग रही थी। अशफाक ने इंट्रोड्यूस करवाया और कहा कि ये मेरे बचपन का दोस्त और क्लासमेट सुशांत कुमार श्रीवास्तव है जो अपनी फायनेंस कंपनी चलाता है। दोनों स्कूल से कॉलेज खतम होने तक क्लास-मेट रहे हैं और एक दूसरे से बहुत ही फ्री हैं। ऑफिस में वो ‘एस-के’ के नाम से फेमस है। और फिर अशफाक ने कहा, “एस-के! ये मेरी वाइफ है किरन!” हम दोनों ने एक दूसरे को सलाम किया और हम सब अंदर ड्राईंग रूम में आ के सोफ़े पे बैठ गये। अशफाक और एस-के बैठ के व्हिस्की पीते हुए बातें करने लगे। अशफाक के कहने पर मैंने भी एक पैग पिया और फिर मैं खाना टेबल पे रखने के लिये चली गयी।

टेबल रेडी हो गयी तो मैंने दोनों से कहा कि “चलिये डिनर रेडी है!” वाश बेसिन पे हाथ धो के वो दोनों आ गये। सब मिलकर खाना खाने लगे। एस-के मेरे बनाये हुए खाने की बहुत तारीफ कर रहे थे। खाने में परांठे, दम का चिकन, आलू गोश्त का कोरमा, कबाब, टमाटर की चटनी, पुलाव बना के उस पे उबले अंडों को आधा काट कर सजा के रखा था और कस्टर्ड और आईसक्रीम थी। खाना सच में बहुत लज़ीज़ था। अशफाक कभी मुझे कुछ देता तो कभी एस-के कि प्लेट में कुछ डाल देता। खाना खाने के बाद फिर से वो दोनों ड्राईंग रूम में जा के सोफ़े पे बैठ गये और मैं टेबल साफ़ कर के वहीं आ गयी और हम सब साथ बैठ के व्हिस्की पीने लगे और बातें करने लगे।

अशफाक ने कहा, “यार एस-के! देखो तो किरन घर में अकेली रहती है और अकेले रहते-रहते बोर हो गयी है..... वो अपने आप को मसरूफ रखने के लिये कोई काम करना चाहती है...... तुम्हारे पास अगर कोई ऐसा काम हो तो बताना।“

एस-के ने कहा, “ये तो बहुत अच्छी बात है, मेरे पास डेटा एंट्री करने का काम पड़ा हुआ है। मेरे पास डेटा एंट्री का जो क्लर्क था वो चला गया। किरन ऑफिस से इनवोयस और वाऊचर घर ला सकती है और घर बैठे-बैठे ही मेरा काम कर सकती है। ऑफिस तो तुम्हारे घर के करीब ही है। किरन ऑफिस आके, डेली या वीकली, काम लेकर आ सकती है और घर बैठे ही काम कर सकती है। मैं शुरू में डेली आके चेक करता रहुँगा और उसको गाईड करता रहुँगा। मेरे पास ऑफिस में एक एक्स्ट्रा कंप्यूटर भी है, मैं वो भी किरन के पास भेज दुँगा..... यहीं किसी रूम में रख लेना और वो आराम से घर बैठे ही काम कर लेगी।“

अशफाक ने कहा कि ये तो बहुत अच्छी बात है, “किरन कल ही तुम्हारे ऑफिस अआ जायेगी और काम भी देख लेगी!”

दूसरे दिन मैं बेहद अच्छे से तैयार हो के एस-के के ऑफिस गयी। मैं साड़ी कुछ खास मौकों पर बहुत कम पहनती हूँ लेकिन उस दिन मैंने फिरोज़ी रंग की साड़ी इस तरह बांधी थी की मेरी पतली कमर और नाभी दिखायी दे और मेरा स्लीवलेस ब्लाऊज़ भी काफी लो-कट और लगभाग बैकलेस था। मैंने ब्रा नहीं पहनी थी क्योंकि मेरा ब्लाऊज़ किसी ब्रा से ज्यादा बड़ा नहीं था। साथ ही मैं चार इंच ऊँची हील के काले रंग के स्ट्रैपी सैंडल पहनना नहीं भूली क्योंकि एक तो इससे मेरी हाईट पौने छ: फुट के करीब हो गयी थी और दूसरा ये कि उँची हील के सैंडलों से मेरा फिगर और कयामत-खेज़ हो गया था क्योंकि मेरी छातियाँ बाहर को उघड़ रही थीं और चूतड़ भी और ज्यादा उभर आये थे और चाल में भी नज़ाकत आ गयी थी। मैंने अपने लंबे बाल खुले ही रखे थे।