Rang Mahal

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खुंते की तरह टन कर खड़ा था.

सुनीता ने अपनी गर्दन हन मे हिला दी. उसका ब्लाउस चुचि मे आते
ज़्यादा दूध से भीग गया था.

राज उठ कर उसके सामने आ गया और उसके आँखों मे झाँकने
लगा, "में कुछ आपकी मदद करूँ?" उसने पूछा.

सुनीता काफ़ी गरम थी. ख़ास तौर पर शाम के बाद तो उसकी गर्मी
शांत ही नही हुई थी. उसे चारों तरफ देखा और अंधेरे में
सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी. वो सीढ़ियों के बीच रुक गयी और राज
को आवाज़ देने लगी.

राज खामोशी से बैठा था की उसने सुनीता की आवाज़ सुनी.

राज उठकर सीढ़ियों के बीच आया तो देखा की सुनीता दीवार सहारे
खड़ी थी, उसने अपना ब्लाउस खोल दिया था और उसकी चुचियाँ नगञा
थी.

राज उसके पास पहुँचा और किसी भूके बाकछे की तरह उसके निपल
को मुँह चूसने लगा साथ ही वो उसकी चुचियों को भी मसल रहा
था. सुनीता सिसकी और उसने अपने होठों को दंटो मे दबा लिया जिससे
उसकी सिसकारी ना सुनाई दे जाए.

जैसे जैसे राज उसकी चुचि को चूस और मसल रहा था सुनीता की
छूट मचलने लगी और फुदकने लगी.

सुनीता ने महसूस किया की राज उसकी चुचि को चूस्टे हुए अपने बदन
को और उसे चिपका रखा है. उसका खड़ा लंड उसके पेट पर फंफना
रहा है.

सुनीता कामुकता मे सिसक पड़ी. उसका पति चुदाई का कोई भी मौका
हाथ से जाने नही देता था. काश उसका पति इस समय उसके साथ होता
और जब उसे लंड की ज़रूरत होती उसकी छूट की प्यास बुझता.

राज कभी उसकी बाई चुचि को मुँह मे ले चूस्टा तो कभी डाई
चुचि को. राज ने सुनीता को इतना कस कर भींच रखा था की उसका
खड़ा लंड सुनीता के पेट पर ठोकर मार रहा था.

सुनीता की छूट के गर्मी ने उसे पागल कर दिया था और राज को उसकी
गोलियाँ मे उठते उबाल ने. राज को लग रहा था की कहीं कुछ करने
से पहले ही उसका लंड पानी ना छोड़ दे. दोनो के दीमग मे रिश्तों की
अहमियत दूर तक नही थी. इस समय अहमियत और ज़रूरत थी तो सिर्फ़
चुदाई को. दोनो इस वक्त सिर्फ़ चुदाई चाहते थे.

राज ने उसके कपड़े खोलने लगा और सुनीता ने राज का कपड़े उत्तर दिया.
दोनो इतने उत्तेजित थे की उन्हे किसी बात का होश नही था. सुनीता ने
राज के लंड को पकड़ा और अपनी छूट के मुँह पर रख दिया.

राज तोड़ा सा झुका और और उसने सुनीता को संभालने के लिए उसके
चूतड़ पकड़ लिया. सुनीता के अनुभवी हाथों ने उसके लंड को ठीक
से अपनी छूट से लगाया और राज ने एक धक्का लगाकर अपना लंड उसकी
छूट मे घुसा दिया.

सुनीता की छूट की गर्मी और कसावट ने राज को पागल कर दिया. जैसे
ही उसका लंड अंदर घुसा उसने धक्के मरने शुरू कर दिए. राज को
अंदाज़ा नही थी की हक़ीक़त मे लड़की की छूट ऐसी होती है. इतनी
मुलायम, इतनी गरम और इतनी कसी.

राज ने सुनीता के छूतदों को कस कर पकड़ा और अपने से चिपकते हुए
धक्के मरने लगा. दोनो की छातियाँ एक दूसरे से धँसी हुई थी.
दोनो जोरों से सिसक रहे थे और चुदाई का मज़ा ले रहे थे. राज
इतना उत्तेजित था की 8-10 धक्कों मे ही उसके लंड ने पानी छोड़ दिया.

दोनो का शरीर पसीने मे नाहया हुआ था. राज के लंड ने वक़्त से
पहले पानी छोड़ दिया था और उसकी छूट ने पानी छोड़ा नही था. पर
उसे इस बात की फ़िकरा नही थी आयेज और भी मौके आनेवाले थे.
रंग महल च - 02
बाइ राज

"आराम से राज," सुनीता अपने भाई के कान मे फुसफुसा. राज अपनी
बेहन के उपर लेता हुआ था और अपने चूतड़ उछाल उछाल उसे छोड़
रहा था.

"ओह�.. दीदी," राज सिसका "अब मुझसे बर्दसाशट नही होता," इतना
कहकर उसने अपना वीर्या अपनी बेहन की छूट मे छोड़ दिया.

सुनीता राज के वीर्या को अपनी छूट मे अंदर तक गिरता महसूस कर
रही थी. सुनीता खुद झड़ने के कगार पर इस बार भी राज के लंड ने
पानी जल्दी छोड़ दिया. वो फिर प्यासी रह गयी.

राज सुनीता के उपर से हटा और उसके बगल मे लेट गया. सुबह होने को
आ रही थी. पूरा घर नींद मे सोया हुआ था. राज का बड़ा भाई विजय
जिसके साथ वो अपना कमरे शेर करता था, सरकारी काम से सहर के
बाहर गया हुआ था.

चुदाई की इक्चा और उस पर से मौका, इसी वजह से सुनीता रात को
चुपके से राज के कमरे मे आ गयी थी. आज तीसरा दिन था जो वो राज
के कमरे मे आई थी. विजय आज शाम के वक़्त कभी भी आ सकता
था.

सुनीता बिस्तर से उठी और अपने कपड़े पहनने लगी. उसका बाकचा
कभी भी उठ सकता था और उसकी छोटी बेहन शीला उसे ढूँदने
लगे गी. उसने महसूस किया की उसके भाई का वीर्या उसकी छूट से बह
कर उसकी टॅंगो को भीगो रहा है. उसने अपने भाई की और देखा जो
बिस्तर पर नंगा लेता हुआ था, उसका लंड मुरझा गया था. उसका मान
किया की आयेज बढ़ कर वो उसके लंड को मुँह मे लेकर चूज़ पर समय
कम था.

सुनीता जैसे ही कमरे के बाहर निकल अंधेरे मे आयेज बढ़ी किसी के
हाथों ने उसे कमर से पकड़ा और अपना एक हाथ उसके मुँह पर रख
उसकी चीख को दबा दिया.

"डरो मत सुनीता," एक मर्दाना आवाज़ उसके कानो मे पड़ी, "ये में
हूँ विजय."

विजय ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और सुनीता को एक बार फिर अपने
कमरे मे धकेल दिया.

राज हड़बड़ा कर बिस्तर पर उठकर बैठ गया. वो अभी भी नंगा ही
था. उसने देखा की किस तरह विजय ने सुनीता को कमरे के अंदर
धकेला था.

सुनीता कमरे मे आते ही एक कोने मे अपने चेहरे को हाथों मे छुपाए
खड़ी हो गयी. शरम के मारे उसे विजय से आँखे मिलने की हिम्मत
नही हो रही थी. राज ने जल्दी से चादर को अपने नंगे बदन पर दल
ली और अपने मुरझाए लंड को छुपाने की कोशिश करने लगा.

विजय एक शैतानी मुस्कुराहट के साथ बिस्तर के कोने पर बैठ
गया, "माफ़ करना पर ये सब क्या हो रहा है?"

राज और सुनीता के मुँह से एक शब्द भी नही निकाला, दोनो खामोश
जैसे थे वैसे ही रहे.

"खोमोश रहकर मासूम बनने की कोशिश मत करो, मेने अपनी आँखों
से सब कुछ देखा है," विजय ने धीरे से कहा.

जैसे जैसे विजय बोलता जेया रहा था, राज का शरीर दर के मारे
काँप रहा था. उसे दर लग रहा था की पता नही विजय अब क्या
करेगा.

दर तो सुनीता को भी लग रहा था फिर भी उसने हिम्मत करके
पूछा, "क्या देखा तुमने?"

सुनीता ने अपने कपड़े ठीक किए और इस तरह बनने लगी जैसे उससे
मासूम और नादान कोई है ही नही, पर साथ ही वो राज के वीर्या को
अपनी छूट और जाँघो पर महसूस कर रही थी.

विजय ने उसकी और देखा और मुस्कुरा पड़ा, "तुम्हे और राज को देखा���
क्या इसके आयेज भी बतौन की मेने क्या देखा."

फिर धीरे से हंसते हुए बोला, "या फिर तुम्हारे कपड़े उत्तरुण और
तुम्हे तुम्हारी छूट मे राज का वीर्या दिखौं."

"में और राज��.. तुम्हारा कहने का मतलब क्या है, तुम क्या कह रहे
हो मेरी तो कुछ समझ मे नही आ रहा." सुनीता ने थोड़ी
कंपकँपति आवाज़ मे कहा.

फिर विजय ने बताना शुरू किया की किस तरह वो वक़्त से पहले घर
आ गया था. उसे उस समय अपने कमरे से अजीब सी आवाज़ें सुनाई दे
रही थी, उसने देखा की कमरे का दरवाज़ा बंद नही था. तब उसने
कमरे मे झाँक कर देखा तो पाया की पलंग के साइड मे नाइट लॅंप जल
रहा था, और उसने नंगे राज को किस तरह सुनीता की छूट मरते
देखा. फिर राज किस तरह झाड़ कर सुनीता पर लेट गया था.

विजय की बात सुनकर सुनीता ने राज को कस कर एक थप्पड़ मार
दिया, "कितनी बार तुमसे कहा था की दरवाज़ा आची तरह से बंद कर
लिया करो पर तुम हो की मेरी बात सुनते ही नही हो."

सुनीता की हालत देख विजय को हँसी आ गयी और वो अपनी कोहनी के
बाल बिस्तर पर अपनी टाँगे फैला लेट सा गया.

"अब बस भी करो सुनीता, ना तो मेने शोर मचाया है और ना ही तुम
दोनो को मारा या कुछ कहा है." विजय ने हंसते हुए कहा.

विजय ने अपना हाथ अपनी पंत के उपर से अपने खड़े लंड पर रखा
और लंड को सहलाते हुए बोला, "में तुम्हारी और राज की हालत समझ
सकता हूँ, में ये बात जनता हू की इस उमर मे सभी को सेक्स की
ज़रूरत होती है ! मुझे भी ज़रूरत है."

राज और सुनीता एक दूसरे को हैरत भारी नज़रों से देखने लगे.
विजय इतनी आराम से ये बात कह गया था की उनकी समझ मे नही आया
की क्या कहें और क्या करें.

"तुम कुछ समझी?" राज ने सुनीता से पूछा.

सुनीता ने अपनी गर्दन हन मे हिला दी. अब वो विजय की पंत मे उभरे
उभर को देख रही थी. सुनीता ने मान ही मान विजय से छुड़वाना का
फ़ैसला कर लिया था. एक भाई से तो वो छुड़वा ही चुकी थी फिर दूसरे
से छुड़वाना मे उसे क्या आपाती हो सकती थी. लंड लंड ही होता है
चाहे वो किसी का भी हो.

विजय ने सोचा की उसे ही पहल करनी होगी इसलिए उसने धीरे से
सुनीता से कहा, "बातरूम मे जाकर अपनी छूट को अची तरह धो
कर आओ. राज तुम सुनीता के आने के बाद नहाने चले जाना."

इतना कहने के बाद विजय कमरे के दरवाज़े की और बढ़ा और उसे आक्ची
तरह अंदर से बंद कर लिया. सुनीता बातरूम मे घुस गयी थी अपनी
छूट को सॉफ करने के लिए और विजय ने अपने कपड़े उत्तर दिए.

जब सुनीता बातरूम से बाहर आई तो उसे पता था की अब आयेज क्या
होने वाला है.

राज और विजय करीब करीब दीखने मे एक से थे. वही 5'8 की
लंबाई, गतिला शरीर, चौड़े कंधे. फ़र्क सिर्फ़ इतना था की विजय
के बॉल राज के बलों से ज़्यादा घने और काले थे.

ये सोच कर की आयेज क्या होने वाला है राज का लंड एक बार फिर खड़ा
होने लगा था. शायद उसे देखने मिल जे की उसका बड़ा भाई और बेहन
कैसे चुदाई करते है.

"राज! बड़ा हरामी है तू? तुमने तो अपने हिस्से का मज़ा ले लिया है अब
तू अंदर जेया." विजय अपनी पंत के बटन खोलते हुए बोला.

सुनीता ने देखा की विजय की बात सुनकर राज भागकर बातरूम मे घुस
गया था. सुनीता ने विजय के कहने पर बातरूम की कड़ी बाहर से
लगा दी.

"वो सला बहनचोड़ यहाँ रहा तो हमे देखते रहेगा, अब वो अंदर
मूठ मरेगा," विजय हंसते हुए बोला और अपनी पंत उत्तरने लगा.

सुनीता ने मूड कर अपने भाई विजय की और देखा जो अपने लंड की
गोलियों को सहला रहा था. सुनीता को ये देखकर ताज्जुब हुआ की विजय
के लंड पर लड़कियों की तरह एक भी बॉल नही था. बिना झांतो का
लंड काफ़ी लंबा और मोटा दीखाई दे रहा था.

सुनीता मान ही मान विजय के लंड को राज के लंड से तुलना करने लगी.
विजय का लंड राज के लंड से तकरीबन 3' से 4' इंच लंबा था और
सबसे बड़ी बात तो वो उसके पति के लंड से भी लंबा था.

विजय धीरे से सुनीता के पास आया और उसे बिस्तर के पास झुका कर
घोड़ी बना दिया. फिर उसके गाउन को उपर करते हुए उसके उभरे हुए
चुतताड पर थप्पड़ मरने लगा.

"चुदाई का पहला रौंद तोड़ा जल्दी करना है," कहका उसने अपना खड़ा
लंड उसकी गीली छूट के मुँह पर रख दिया.

सुनीता तोड़ा पीछे को हुई तो विजय का लंड बड़े आराम से उसकी
छूट के अंदर घुस गया. सुनीता को शादी के बाद पहली बार ऐसा
लगा की कोई लंड उसकी छूट के दीवारों को चीरते हुए अंदर घुस
रहा है. उसे हल्का दर्द भी हो रहा था पर उसे मज़ा भी बहोट आ
रहा था.

विजय एक अनुभवी छोड़ू की तरह अपनी बेहन के चुतताड पकड़ धीमे
धीमे धक्को से उसे छोड़ रहा था.

सुनीता के मुँह से सिसकारियाँ फूटने लग रही थी. यही वो पल था
जिसकी उसे चाहत थी. राज तो एक अनाड़ी और जानवर की तरह उसे छोड़
झाड़ कर अलग हो जाता था. उसकी यही इक्चा था की कोई उसे इतने
प्यार से छोड़े, और विजय वही कर रहा था. हर धक्के में विजय
का लंड उसकी छूट की और गहराई तक चला जाता. उसके अंडकोष जब
उसकी छूट की दरारों से टकराते तो सुनीता के मुँह से एक मादक
सिसकारी निकल पड़ती, `ओह आआआहह हाां."

सुनीता सोच रही थी की उसने बेकार ही अपना समय राज के पीछे
बर्बाद किया. जब इसी घर की छत के नीचे इतना प्यारा लंड था तो
उसने विजय को पहले क्यों नही बहकाया. विजय ठीक उसके पति की तरह
था जिसके पास एक बड़ा और लंबा लंड था जिसे इस्टामाल करना उसे
बखूबी आता था.

सुनीता ने अपना एक हाथ अपनी टॅंगो के बीच अपनी छूट के नीचे इस
तरह रखा की जब भी विजय धक्का मरता तो उसके अंडकोष यूस्क
उंगलियों से टकराते. विजय अब गहरी साँसे लेते हुए तेज़ी से धक्के
मार रहा था.

जोरों से छोड़ते हुए विजय अपने लंड को सुनीता की छूट के अंदर
बाहर होते देख रहा था. धक्के मरते हुए उसने सुनीता की चुतताड
को तोड़ा फैलाया और अपनी बेहन की गंद के भूरे छेड़ को देखने
लगा.

सुनीता की छूट मे बढ़ती गर्मी को उसने महसूस किया और उसे अक्चा
लग रहा था. शायद उसका छोटा भाई रह सुनीता को वो नही दे पाया
था जिसकी इसे ज़रूरत थी वो खुश था की राज की जगह वो सुनीता
की छूट को वो सब कुछ दे रहा था.

विजय अपने साथी अफ्फ्सरों के साथ सहर के बाहर एक सेमिनार अटेंड
करने गया हुआ था, जहाँ उसने मौका निकल कर अपनी मा की पुरानी
दोस्त और पड़ोसी से मिलने का समय निकाला. ये पपोसी जिसे वो आंटी
बुलाता था, इसी आंटी ने कई साल पहले उसका परिचय सेक्स से करवाया
था. इसी आंटी ने उसे सिखाया था की चुदाई मे किस तरह औरतों को
खुश किया जाता है और सही मैने मे चुदाई क्या होती है.

एक दिन वो जब उसके घर गया था तो उसने खुशी खुशी बातरूम के
दीवार से सत्कार उसके 8'इंची लंड को अपनी छूट मे ले लिया था, और
उसके पति और बाकछे हॉल मे बैठे टीवी देखते रहे. ठीक उसी तरह
आज भी दोपहर को उसने होटेल के बातरूम मे आंटी को इसी तरह
छोड़ा था.

टीन दिन के इस सेमिनार मे उसने आंटी के परिवार के साथ होटेल मे
खाना भी खाया और यहाँ तक उसी के बेडरूम के बिस्तर पर उसकी
चुदाई भी की. फिर ठीक पुराने दीनो की तरह उसे बातरूम मे घोड़ी
बनाकर छोड़ा. एक दिन तो शाम की छाई के वक़्त उसके घर चला गया
हॉल के सोफे पर बैठ उससे अपना लंड चुस्वाया.

टीन दीनो के उस चुदाई मेले ने उसे काफ़ी तका दिया था. पर जब उसने
राज को सुनीता को छोड़ते देखा तो उसे लगा की उसके लंड को गोलियाँ
मे फिर से उबाल आ गया है और उसकी भी इक्चा हुई की वो अपनी बेहन
की छूट को अपने वीर्या से भर दे.

अब वो सुनीता की छूट को कस कस कर छोड़ रहा था. थोड़ी ही देर मे
उसने एक गहरी साँस ली और उसके चुततादों को जोरोन्स से भींचते हुए
अपना लंड उसकी छूट मे गहराई तक पेल दिया और अपना पानी उसकी छूट
मे छोड़ दिया.

सुनीता ने अपना चेहरा बिस्तर मे दबा लिया और था विजय के लंड का
मज़्ज़ा ले रही थी. जब विजय ने अपना लंड उसकी छूट से बाहर निकाला
तो वो बिस्तर पर लुढ़क गयी.

सुनीता की टाँगे हर बार की तरह कांप रही थी. जब भी उसकी छूट
पानी छोड़ती थी तो उसका शरीर जोरोर्न कांपता था. आज वो विजय के
लंड से दो बार झंडी थी. उसका दिल खुशी के मारे जोरों से धड़क
रहा था. आज वो दो बार झड़ी थी. कई दीनो बाद उसकी छूट की
प्यास बुझी थी.

विजय ने बातरूम की कुण्डी खोल दी और राज को बाहर कमरे मे आने को
कहा जहाँ उसकी बेहन बिस्तर पर छुड़वा कर निढाल पड़ी हुई थी. अब
भी उसकी छूट से विजय का वीर्या तपाक रहा था.

विजय ने राज के पयज़ामे मे उसके खड़े लंड को देखा और कहा, "अपने
कपड़े उत्तरो और सुनीता के बगल मे लेट जाओ."

सुनीता अपने दोनो भाई विजय और राज को देखने लगी. राज नंगा
होकर उसके बगल मे आकर पीठ के बाल लेट गया था.

विजय ने सुनीता को राज के उपर लेट जाने को कहा. सुनीता ने वैसे
ही किया. जैसे ही सुनीता उपर आई राज ने उसके झूलते मम्मो को
पकड़ लिया और अपनी बेहन के दूध से भारी निपल को चूसने लगा.

सुनीता तोड़ा उपर को हुई और राज के लंड को पकड़ कर अपनी छूट से
लगा लिया, फिर नीचे होते हुए उसके पूरे लंड को अपनी छूट मे ले
लिया.

विजय सुनीता को थोड़ी देर तक देखता रहा जो राज के लंड पर उपर
नीचे होते हुए छोड़ रही थी��कितना अक्चा नज़ारा था उसके भाई
बेहन आपस मे चुदाई कर रहे थे��.कितना मज़ाअ आ रहा था.

विजय बिस्तर पर सामने की तरफ आया और अपने फिर से खड़े लंड को
सुनीता के होठों पर रगड़ने लगा.

सुनीता ने नज़रें उठा कर विजय की और देखा, "अपना मुँह खोलो
जानू�..और मेरे लंड को बड़े प्यार से चूसो." विजय ने कहा.

ये सब देख राज ने नीचे से धक्के लगाने बंद कर दिया. उसने देखा
की किस तरह सुनीता ने अपना मुँह खोला और विजय के लंड को अंदर
ले किसी लोल्ल्यपोप की तरह चूसने लगी.

राज हैरत भारी नज़रों से सुनीता को देख रहा था जो अपना पूरा
मुँह खोले विजय के पूरे लंड को अपने गले तक लेकर चूस रही थी.

सुनीता बड़े प्यार से विजय के लंड को चूस रही थी साथ ही उसकी
गोलियाँ को भी मसल रही थी, पर उसने राज के लंड को भी
नज़रअंदाज़ नही किया था, वो उसके लंड को पूरा अपने छूट मे लेकर
अपनी छूट घिस रही थी.

ये सब राज की नज़रों से कुछ इंच की दूरी पर हो रहा था. वो देख
रहा था की किस तरह उनकी बेहन अपने भाई के लंड को बड़ी मस्ती से
चूस रही थी, किस तरह उसके लंड को मसालते हुए अपना मुँह आयेज
पीछे कर चूस रही थी.

राज ने अपनी बेहन के दोनो चुततादों को पकड़ा और एक बार फिर तेज़ी
से अपने कूल्हे उछाल अपने लंड को उसकी छूट के अंदर बाहर करने
लगा.

विजय सुनीता को बड़े प्यार भारी नज़रों से देख रहा था जो प्यार
से उसके लंड को चूस रही थी, पर उसके दीमग मे तो कुछ और था.

उसने थूक से भर अपने लंड को सुनीता के मुँह से बाहर निकाला और
राज और सुनीता के पीछे की और आ गया. राज का लंड बड़ी तेज़ी से
उसकी छूट के अंदर बाहर हो रहा था, सुनीता भी उछाल उछाल कर
धक्के लगा रही थी.

सुनीता ने देखा की विजय उसके बिस्तर पर उसके पीछे आ गया था
और उसकी गंद पर झुक गया��.वो समझ गयी की विजय क्या चाहता
है, एक अजीब नशा उसके बदन मे दौड़ गया. ये सोच कर ही उसकी
छूट ने पानी छोड़ दिया और वहाँ विजय ने अपनी एक उंगली उसकी गंद
के छेड़ मे डाल दी.

विजय ने सुनीता की मदभरी आँखों की और देखा जैसे उससे कुछ
पूछ रहा हो. अपनी उंगली उसकी गंद मे दल कर वो समझ गया था की
सुनीता का पति इस छेड़ का भी मज़ा ले चुका है पर वो सुनीता की
सहमति चाहता था की क्या वो तय्यार है दो लंड को एक साथ लेने के
लिए.

उसकी आंटी ने उसे समझाया था की हमेशा गंद मरने से पहले वो
सामने वेल की रज़ामंदी ले ले कारण उसके मूसल लंड उस जैसी चूड़ी
चुदाई औरत को भी तकलीफ़ दी थी.

सुनीता ने कभी दो मर्दों से एक साथ नही चुडवाया था. उसने सुना
ज़रूर था की दो लंड से छुड़वाने मे काफ़ी मज़ा आता है, उसकी
सहेलिया बताया करती थी पर क्या आज वो दो लंड लेने के लिए तय्यार
है.

उसने ये मज़ा भी ले लेने की तन ली और विजय को अपनी सहमति दे दी
पर फुसफुसते हुए कहा की वो आराम से करे.

राज ने अपनी साँसे रोक ली और विजय को सुनीता की गंद के पीछे
देखने लगा.

विजय तोड़ा हिचकिचा रहा था, थोड़ी ही देर मे क्या कुछ हो गया
था, उसने पहले सुनीता की चुदाई की थी, फिर लंड चूस्वाया था
और अब वो उसकी गंद मरने जेया रहा था. जैसे ही उसने अपना लंड
सुनीता की गंद के छेड़ पर रखा उसे अपनी दूसरी बेहन शीला का
ख़याल आया.

क्या वो शीला को पा सकेगा, जिस तरह वो सुनीता को छोड़ रहा है
उस तरह शीला को भी छोड़ पाएगा. क्या राज भी���.

विजय ने धीरे और आराम से अपना लंड उसकी गंद मे घुसने लगा.
उसने उसके चुतताड कस कर पकड़ रखे थे. उसकी आंटी ने उसे
सिखाया था जब भी वो किसी की गंद मारे तो बड़े अर्रम से और प्यार
से मारे.

विजय ने अपने लंड को तोड़ा बाहर खींचा और ढेर सारा थूक सुनीता
की गंद पर थूक दिया फिर अपने लंड को अंदर घुसने लगा. आख़िर
उसका लंड उसकी गंद मे घुस गया.

सुनीता तो मज़े के नशे मे चूर था. उसने तो कभी सोचा भी नही
था की वो इस तरह का मज़ा कभी ले पाएगी. उसके एक भाई का लंड
उसकी गंद मे घुसा हुआ था और दूसरा भाई नीचे से धक्के मार उसकी
छूट को छोड़ रहा था.

उसने महसूस किया की अब दोनो भाई अपने अपने छेड़ मे धक्के मार रहे
है. थोड़ी देर मे दोनो धक्के से धक्के मिला उसे छोड़ रहे थे.
विजय लंड बाहर खींचता तो राज का लंड उसकी छूट के गहराई तक
चला जाता और राज लंड बाहर की और खींचता तो विजय का लंड उसकी
गंद मे.

वो भी उछाल उछाल कर दोनो लंड का मज़ा ले रही थी. उसके मुँह से
सिसकारिया फूट रही थी, "ओह हन चूड़ो मुझे ऑश ऊवू ज़ोर
से और जूऊर से."

सुनीता की सिसकारियाँ सुन तो जैसे दोनो भाई पागल हो गये और ज़ोर
ज़ोर से उसकी छूट और गंद मरने लाए. पूरा कमरा चुदाई की आवाज़े
और तीनो की सिसकारियों से गूँज रहा था.

तभी सुनीता के मान एक ख़याल आया. उसके दोनो छेड़ तो दो लंड से
भरे हुए थे, पर उसका मुँह खाली था, काश इस वक़्त उसका पति
यहाँ होता और अपना लंड मेरे मुँह मे देता तो कितना मज़ा आता.

और अगर उसके पति की जगह ऊए लंड उसके पिताजी का होता तो
���..ओह क्या नज़ारा होता परिवारिक चुदाई का. दो भाई और बाप
मिलकर मुझे छोड़ते. सुनीता तो ख़याल से ही पागल सी हो गयी.

थोड़ी देर मे दोनो भाइयों ने अपनी जगह बदल ली. दोनो भाई उसकी
छूट और गंद को वीर्या से भरने लगे और उसकी छूट पानी पर पानी
छोड़ रही थी.

सुनीता चुदाई के नशे मे इतना खो गयी थी उसकी चुदाई इक्चा और
बढ़ गयी. पिईताजी के लंड की वो कल्पना करने लगी.

राज ने सबसे पहले पहल की. अब वो अपने आप को रोक नही पा रहा
था, उसने सुनीता की चुचियों को ज़ोर से पकड़ते हुए मसाला और टीन
धक्के उपर की और मरते हुए अपना वीर्या उसकी छूट मे छोड़ दिया.

सुनीता राज की छाती पर लुढ़क गयी, और सिसकने लगी. उसकी छूट
ने एक बार फिर पानी छोड़ दिया था वहीं विजय अपने धक्कों की रफ़्तार
को तेज करते हुए अपना लंड उसकी गंद के अंदर बाहर कर रहट था
और आख़िर मे उसने भी अपना वीर्या उसकी गंद मे उंड़ेल दिया.

तीनो बिस्तर पर पसीने से लथपथ लुढ़क गये. तीनो की खुशी का
ठिकाना नही था इस सामूहिक चुदाई के बाद

रंग महल च – 03
बाइ राज


सुनीता के पिताजी, मिस्टर. अजय कौल एक शानदार व्यक्तित्वा के मालिक
थे. उनकी लंबाई करीब 6'2 थी, गतिला शरीर, चौड़े कंधे नीली
आँखे. 53 साल की उमर मे भी वो काफ़ी जवान दीखाई देते थे. उनकी
एक डॉवा की दुकान थी जो उनके घर के पास ही थी. उनके जिट्नी भी
जान पहचान वेल थे सभी उनकी काफ़ी इज़्ज़त किया करते थे.

आज वो अपनी दुकान के काउंटर के पीछे खड़े हो एक पर्ची देख रहे
थे जिसे एक लड़कीं ने उन्हे अभी अभी पकड़ाई थी. वो इस लड़की को
पहचानते थे. ये मार्केट मे अक्सर दीखाई दिया करती थी और अक्सर
उसकी दुकान से दवाई या मेकप का समान खरीदने आया करती थी.

जब वो दुकान मे दाखिल हुई थी तो उसने उसे देखा था, उसने एक हल्के
नीले रंग का सलवार सूट पहन रखा था और एक कला दुपाता उसने
कंधे पर दल रखा था. उसने काफ़ी भारी मेकप किया हुआ था और
होठों पर लाल रंग की लिपस्टिक लगाई हुई थी.

उस लड़की ने अजय को पर्ची पकड़ाई और मेक उप के समान वेल काउंटर
पर देखने लगी.

अजय ने अक्सर इस लड़की को इत्तरते हुए मार्केट मे देखा था. वो अपने
कूल्हे मटका मटका मार्केट मे घूमती थी. उसने कई बार उसे अलग अलग
गाड़ियों मे बैठ कर जाते देखा था. उसे पूरा विश्वास था की ये
लड़की धनदा करती है और पेशे से एक वैश्या है.

उस लड़की के बदन से उठती पर्फ्यूम की सुगंध वो महसूस कर रहा था
साथ ही उसकी लो कट के कमीज़ से उसकी चुचियों की दरार सॉफ
दीखाई दे रही थी और उसके निपल भी झीने कपड़े से बाहर को
निकलते दीख रहे थे. उसके पेशे मे ब्रा की क्या ज़रूरत है.

"बेटा," अजय ने कहा, "ये तुम्हारी पर्ची है."

उस लड़की को बेटा बुलाने पर एक बार तो गुस्सा आया फिर उसेन हन मे
अपनी गर्दन हिला दी.

अजय उसके चेहरे को देख उसकी उमर का अंदाज़ा लगाने लगा. शायद 28-
29 साल की होगी, और देखने मे काफ़ी अची लग रही थी.

अजय ने उसकी पर्ची मे लिखी दवाइयाँ निकाली और उसके हाथ मे पकड़ा
दी. जैसे ही वो पर्स से पैसे निकालने लगी अजय उसकी भारी भारी
छातियों को घूर्ने लगा. उसे पता था की अजय क्या देख रहा है
इसलिए वो इस अंदाज़ मे खड़ी हो गयी की अजय और आक्ची तरह उसकी
चुचियों को देख सके.

उस औरत ने पैसे पकड़ते हुए उसके हाथ को छू लिया. अजय दुकान के
बाहर देखने लगा और अपने सूखे होठों पर ज़ुबान फिरने लगा.

"क्या चाहिए? शॉर्ट टाइम या फुल नाइट," उस लड़की ने उसका हाथ
पकड़ते हुए कहा.

एक हाथ से अपने लंड को सहलाते हुए अजय ने कहा, "शॉर्ट टाइम."