Rang Mahal

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दोनो ने पैसे तय किए और अजय ने उसे एक घंटे बाद आने को कहा
क्यों की वो दुकान बंद करने वाला था. वो लड़की एक हल्की सी मुस्कराहट
देते हुए दुकान से चली गयी. एक घंटे बाद अजय ने दुकान बंद की
और उसका इंतेज़ार करने लगा.

एक घंटे बाद वो आते हुए दीखी. अज़ान ने शटर उठा दिया और वो
अंदर आ गयी. अजय ने फिर से शटर गिरा कर बंद कर दिया.

अजय ने उसे पैसे दिए और उसके छोटे और गरम बदन को अपनी बाहों
मे भर लिया. वो उसके पीठ को सहलाते हुए उसके होंठ और गार्डम को
चूमने लगा.

"अक्चा भाई साहिब…." वो हंसते हुए बोली, "समय क्यों बर्बाद कर रहे
हो?"

"भाई साहेब नही………छा…छा बोलो" अजय अपने लंड को उसकी छूट पर
घिसने लगा. उसे तोड़ा झुक कर ऐसा करना पद रहा था कारण उसकी
लंबाई सिर्फ़ 5'2 थी और उसकी 6'2.

अजय ने उसकी कमीज़ उत्तर दी और झुक कर उसकी चुचियों को मसालने
लगा और उसके निपल चूसने लगा. उसने दूसरे हाथ से उसके सलवार का
नडा खोला और नीचे खिसका दिया और और उसकी नंगी गंद को सहलाने
लगा. उसने पनटी नही पहन रखी थी.

उसने उस लड़की को काउंटर सामने रखे हुए बड़े से कार्ड बोर्ड बॉक्स पर
लीता दिया जो उसने वाहा बिस्तर के रूप मे रखा था. वो इतना बेदर्दी
नही था की उसे ठंडे फर्श पर नंगा लीता देता.

अजय ने फिर अपनी सफेद कमीज़ उत्तरी. उसकी छाती भूरे बालों से
भारी हुई थी. उसने उठ कर अपनी पंत भी खोल कर उत्तर दी. अब वो
कार्टून पर लेती उस रॅंड के भरे शरीर को देख रहा था. पता नही
सुबह से कितने लंड वो ले चुकी होगी, शायद टीन या उससे भी ज़्यादा.

उस लड़की ने उसके भारी मूसल लंड को देखा तो देखती रह
गयी, "आराम से छा….छा."

वो सोच रहा था की पता नही ये लड़की इस धांडे मे है, ये भी तो
किसी की बेटी होगी जैसे सुनीता और शीला उसकी बेटियाँ है.

"क्या नाम है तुम्हारा?" अजय अपने लंड को मसालते और अपने होठों
पर ज़ुबान फेरते हुए पूछा.

"क्या नाम चाहिए छा….छा." वो मादक मुस्कान के साथ बोली साथ ही
लेते हुए अपनी एक तंग दूसरे तंग पर घिसने लगी.

"सुनीता," बिना सोचे उसके मुँह से निकाला.

अजय ने काउंटर पर रखे कॉंडम के डिब्बे मे से एक कॉंडम निकाला और
अपने 8' इंची लंड पर लगा लिया.

अजय उसकी टॅंगो के बीच आ गया और देखने लगा की किस तरह वो
अपनी छूट को फैलाए हुए थी. उसकी गुलाबी छूट का आंद्रूणई हिस्सा
सॉफ दिखाई दे रहा था. उसने अपने लंड को पकड़ा और उसकी छूट पर
लगाकर हल्का सा धक्का दिया. फिर उसने उसकी टॅंगो को उठा कर अपने
कंधे पर रख ली और एक ज़ोर का धक्का मार अपना लंड पूरा का पूरा
अंदर घुसा दिया.

"आराम से छा….छा दर्द होता है," वो दर्द से हल्के से चीख पड़ी.

अजय थोड़ी देर तक उसे जोरों से छोड़ता रहा और हर धक्के के साथ
अपने लंड को और अंदर तक पेल देता. उसकी छूट वैसे तो लंड लेने
की आदि थी फिर भी अजय को लगा की उसकी छूट की मांसपेशियाँ उसके
लंड को जकड़े हुए है.

"छा….चल कितना बड़ा लंड है तुम्हारा," उसने अपनी प्यारी आवाज़ मे
कहा.

"सुनीता," उसने अपनी आँखे बंद कर पूछा, "तुम्हारे साथ वो कार मे
कौन था?" वो उसकी गंद को मसालने लगा. और अपनी उंगली उसकी गंद मे
डालते हुए जोरों से धक्के मरने लगा.

"छा…..छा वो मेरा दोस्त था." उसने जवाब दिया.

"नही …….दोस्त नही……लड़का था." अब वो उसकी गंद मे उंगली अंदर बाहर
करने लगा.

"हन….लड़का था छा….छा." वो भी उसके साथ खेलने लगी.

अजय कल्पना करने लगा की वो एक गाड़ी मे किसी लड़के साथ बैठी है
और अपनी टाँगे फैला रखी है और वो लड़का गाड़ी चलते हुए उसकी
छूट को मसल रहा है, "और उसने तुम्हारे साथ क्या किया?" अजय ने
अपने लंड को अंदर बाहर करते हुए पूछा.

वो कल्पना करने लगा की गाड़ी की पीचली सीट पर वो लेती हुई है
और वो लड़का उसे छूट को छोड़ रहा है.

"ओह…छा…छा उसने मेरे साथ बदतंमजी की." उसने कहा और अपनी टाँगे
अजय के कंधों से निकल उसकी कमर से लपेट ली. अब वो अपनी कमर
हिल्ला उसके धक्कों का साथ देने लगी.

"क्या किया उसने?" अजय ने पूछा, और उसकी एक चुचि को ज़ोर से
भींकने लगा और सुनीता की भारी चुचि की कल्पना करने लगा.

"मेरे मामे दबाए फिर….." जिस तरह से अजय उसे छोड़ रहा था वो
समझ गयी की इस तरह की बातें अजय मे और जोश भर देती है.

"फिर…सुनीता" अजय उसके निपल को भींचते हुए बोला.

"फिर उसने मेरा हाथ अपने लंड पर रख दिया और बोला…..दब्ाओ" कहते
हुए उसने अपनी टाँगे उसकी कमर मे और कस ली.

"फिर क्या हुआ?" अजय ने पूछा.

"फिर उसने अपना हाथ मेरी टॅंगो के बीच रखकर मेरी छूट से खेला
और अपनी उंगली से मेरी छूट को छोड़ा." उसने कहा, "फिर मुझे
पीछले सीट पर लेजकर मेरी सलवार उत्तर दी और अपना लंड मेरी
छूट मे डालकर मुझे छोड़ा." वो गहरी साँसे लेते हुए बोली.

"मज़ा आया तुम्हे?" अजय ने पूछा. अब वो और ज़ोर से उसे छोड़ने लगा.
उसकी गोलियाँ उसकी गंद पर ठोकर मार रही थी. ये कल्पना उसे
बहोट मज़ा दे रही थी और वो क नौजवान की तरह इस लड़की को
छोड़ना चाहता था.

"नही छा….छा मुझे बहोट तकलीफ़ हुई," उसने कहा,

"लेकिन अब तो मज़ा रहा है ना…….सच सच बताओ झूठ मत बोलना……
अपने डॅडी को सच बोलो सुनीता." अजय उसे और जोरों से छोड़ते हुए
बोला.

उस छोटी सी दवाई की दुकान मे उन दोनो की गहरी साँसे और चुदाई की
आवाज़े गूँज रही थी.

"हन…पिताजी….बहोट मज़ाअ आ रहा है….लेकिन आपका लंड उसके लंड से
ज़्यादा लंबा और मोटा है…….आपके लंड से बहोट मज़ा मिल रहा है."
वो अपने अनुभव से समझ गयी की अजय का अब छूटने वाला है.

"क्या उसने अपना पानी तुम्हारी छूट मे छोड़ा था?" अजय का अब छूटने
वाला था.

"हन….अंदर डाला था……आप भी अपना पानी मेरी छूट के अंदर छोड़
दो, अपनी सुनीता की छूट को अपने वीर्या से भर दो." वो कूल्हे
उछलते हुए बोली.

यही तो वो सुन्नना चाहता था. वो कल्पना करने लगा की ठीक इसी
तरह सुनीता उसके नीचे लेते उससे छुड़वा रही है और उसके लंड ने
कॉंडम मे अपना वीर्या छोड़ दिया.

18 साल की शीला को बिल्कुल भी अंदाज़ा नही था की उसके भाई विजय
और राज उसकी बड़ी बेहन सुनीता की चुदाई करते है. और रोज़ करते
है. वो तो अपने ही ख़यालों मे खोई रहती थी. उसके घर मे इतनी
पाबंदी थी उसे बड़ी मुश्किल से घर से बाहर निकालने का मौका मिला
करता था.

उसे अपनी पढ़ाई पूरी किए आज 6 महीने हो गये थे. उस दिन से आज
तक वो सिर्फ़ टीन बार घर से बाहर जेया सकी थी वो भी अपने माता
पिता के साथ. उसके पिताजी उसे वो आज़ादी नही देते थे जो उसकी बाकी
सहेलियों को मिलती थी.

कॉलेज के भी क्या दिन था. सहेलियों के साथ गॅप शॅप करना, लड़कों
की बातें करना, सेक्स पर चर्चा करना. उनके घर मे व्क्र या द्वड
प्लेयर नही था इसलिए वो कोई पिक्चर वागरह भी नही देख सकती
थी. उसे पिक्चर्स के बारे मे पूरा गयाँ था.

बरसात का मौसम शुरू हो चुका था. आज सुबह से ही काफ़ी बारिश
हो रही थी. शीला हर नौजवान लड़के लड़की की तरह पहली बारिश
का मज़ा लेने अपने घर के आँगन मे खड़ी बारिश के नीचे भीग
रही थी.

उसके कपड़े पूरी तरह भीग चुके थे. उसका सुडौल बदन, उसका
आकर्षक फिगर 36-26-34 बड़ा ही प्यारा लग रहा था. उसके भीगे
कपड़े उसके बदन से पूरी तरह चिपक गये थे.

शीला को अब ठंड लगने लगी थी. उसने अपने चेहरे से पानी को
पौंचा और एक मीठी मुस्कान के साथ अंदर जाने की तय्यरी करने
लगी. तभी उसने विजय अपने भाई को देखा जो उसे अजीब नज़रों से
घूर रहा था. वो भी पूरी तरह भीग चुका था. उसके भी कपड़े
उसके शरीर से चिपके हुए था और उसका खड़ा लंड एक टेंट सा उसके
पंत मे बनाए हुए था.

शीला की नज़र जैसे ही विजय के खड़े लंड पर पड़ी उसकी छूट मे
एक सर सराहट से दौड़ गयी. उसकी छूट मे जोरों की खुजली मचने
लगी.

शीला को पता था की लंड क्या होता है. उसे ये भी पता था की लंड
किस मे इस्टामाल होता है और वो कहाँ कहाँ घुस सकता है. सुनीता
ने उसे सब बताया था औरत और मर्द का क्या संबंध होता है और
मर्द एक औरत के साथ क्या क्या करता है. कॉलेज मे सहेलियाँ भी
अक्सर चुदाई की बातें करती थी और अपना अपना अनुभव शेर करती
थी.

शीला को भी कई लड़कों ने बाहर चलने को इन्वाइट किया था पर अपने
घर का महॉल और पिताजी के गुस्से की वजह से उसकी हिम्मत नही पड़ी.

करीब एक साल पहेले की बात है, वो विजय के कमरे मे कुछ
ढूँढने के लिए गयी थी. विजय बातरूम मे शवर के नीचे स्नान
कर रहा था. बातरूम का दरवाज़ा खुला था. बातरूम का दरवाज़ा
खुला देख उसे अंदर झाँकने की इक्चा हुई.

शीला ने देखा की विजय उसकी और पीठ किए नहा रहा है. उसके
गोरे चुतताड और लंबी टाँगे देख उसके दिल मे हलचल सी मच गयी.
फिर विजय अपने बलों मे शॅमपू लगते हुए उसकी और घूमा तब
शीला ने जिंदगी मे पहली बार हक़ीक़त मे लंड देखा. विजय का लंड
खुंते की तरह उसके सामने खड़ा था.

उसका बिना बलों का लंड पानी के नीचे चमक रहा था. उसके मुँहे
से कोई आवाज़ ना निकाला इसलिए उसने अपने मुँह पर हाथ रख लिया. जब
तक उसमे हिम्मत थी वो खड़ी विजय को नहाते देखती रही. फिर दौड़
कर अपने कमरे मे जाकर बिस्तर पर लेट गयी. उसकी छूट मे आग लगी
हुई थी. वो जोरों से अपनी छूट को मसालने लगी थी.

उसने लंड को देखा था और उसने अपनी छूट को मसाला था. उस दिन से
तो उसकी अडॅप्ट सी हो गयी थी जब भी उसकी छूट गर्माती वो हाथों से
रग़ाद और मसल कर अपनी छूट की गर्मी को शांत करती.

और आज वो दोनो बारिश मे भीगते हुए एक दूसरे को घूर रहे थे,
जैसे अक्सर हिन्दी पिकतुरों मे होता है.

विजय की आँखों मे कुछ था जिसे देख कर उसका दिल धड़क रहा था.
उसके दिल की धड़कने तेज हो गयी थी. और उत्तेजना मे उसके निपल टन
कर खड़े हो गये थे. उसकी छूट मे अजीब सी खुजली मचने लगी
थी.

वो उसकी और देख कर मुस्कुरई और उसके बगल से निकली तो विजय के
मुँह से `फॅंटॅस्टिक' निकल गया.

शीला उसके बगल से निकली तो विजय उसे देख रहा था, उसकी लंबाई
5'4 थी और फिगर भी काफ़ी मद मस्त था. गोल चेहरा और सिल्क जैसे
लंबे बाल. उसकी आँखे ठीक उनकी मा पर गयी थी, गहरी नीले रंग
की उसके गुलाबी होंठ काफ़ी भरे भरे थे.

विजय काम पर से घर आ गया था. उसका भाई राज कॉलेज गया हुआ
था और सुनीता मा के साथ बाकछे को लेकर डॉक्टर के पास गयी थी
बाकछे को तिक्का लगवाने. पिताजी हमेशा की तरह दवाई की दुकान पर
थे. विजय और शीला आज आकेयलए थे घर मे.

विजय आज काफ़ी उततजन मे था. सुनीता की माहवारी चल रही थी और
उसने तो लंड चूसने से भी इनकार कर दिया था. आज सुनीता को
तीसरा दिन था. राज और वो छोड़ने के लिए मारे जेया रहे थे. अगर
और कोई दिन होता तो डॉन वन बातरूम मे मूठ मार ली होती पर जब एक
दो दिन मे छूट मिलने वाली हो तो मूठ क्यों मारी जाए.

राज ने तो एक बार सुनीता से भीक भी माँगी, गिड़गिडया भी को वो
उसके लंड को चूस कर शांत कर दे.

"जेया हरामी," सुनीता ने हंसते हुए कहा था, "जाकर मूठ मार लो
में तो नही चूसने वाली."

विजय राज की हालत देख कर हँसने लगा था, जिस तरह राज गिड़गिदा
रहा था, पर वो राज की तरह सुनीता के आयेज नही गिड गिडाएगा.

"राज रेने दे जब इसके छूट मे आग लगती है तो साली पूरे मोहल्ले
से छुड़वा लेगी," विजय ने राज से कहा, "आज हम कह रहे है तो
साली नखरे दीखा रही है, इसकी छूट मे आग लगने दे तब इसे
बताएँगे."

विजय शीला के पीछे पीछे घर मे आ गया देखा की शीला अपने
कमरे मे जेया रही थी.

गीले कपड़े विजय के बदन से पूरी तरह चिपक हुए थे, विजय
शीला को देखे जेया रहा था और अपने लंड को पंत के उपर से मसल
रहा था.

शीले ने विजय की और देखा और मुसकुरूते हुए अपने कमरे मे चली
गयी, विजय ये सोच कर ही पागल हुए जेया रहा था की शीला अब अपने
गीले कपड़े उत्तरेगी. उसे ये विश्वास था की शीला ने अभी तक किसी
से चुडवाया नही है, वो पूरी तरह कुँवारी है और इस सोच ने उसके
बदन मे और आग लगा दी.

विजय शीला को अपने कमरे मे जाते हुए देखता रहा. उसके गीले
कपड़े बदन पर इस तरह चिपके हुए थे की उसके बदन का हर कटाव
सॉफ दिखाई दे रहा था. विजय अपने बदन की गर्मी से अपने आपको रोक
ना सका और अपने खड़े लंड को पंत के उपर से ही मसालने लगा.

विजय जल्दी से शीला के कमरे पर आया तो देखा की दरवाज़ा खुला
हुआ है, वो कमरे के अंदर आ गया.

शीला अपने गीले बल्लों को सूखा रही थी, उसके गीले कपड़े अब भी
उसके बदन से चिपके हुए थे. शीला को इस तरह खड़े देख विजय का
लंड पंत के अंदर फूंकर मरने लगा.

शीला तो खुद विजय का इंतेज़ार कर रही थी, इसलिए वो उसे देख
चौंकी नही बल्कि सोच मे पद गयी की उसका भाई अब क्या करेगा.

विजय अपने होठों पर अपनी ज़ुबान फेरते हुए कमरे का दरवाज़ा बंद
कर दिया और शीला से कहा, "खाने मी क्या है?"

शीला को उमीद थी विजय उसके पीछे पीछे आएगा. उसका मान कर
रहा था की आज फिर विजय शवर के नीचे नहाने जाए तो उसे एक
बार फिर उसके लंड की झलक देखने को मिल जाए. कितने महीनो से वो
इस पल का इंतेज़ार कर रही थी. इस सोच ने ही उसकी छूट मे खुजली
मचा दी और गीली हो गयी.

शीला के बदन मे हलचल मची हुई थी. वो विजय को देख रही थी,
उसकी साँसे तेज हो गयी थी और सोच रही थी की उसे क्या करना
चाहिए. उसका दिल तो कर रहा था की वो आयेज बढ़ कर विजय की बाहों
मे समा जाए. उसे चूमे और अपने से चिपका ले. उसके दीमग मे वो
सीन आ रहा था जब दो प्रेमी मिलते है तो क्या क्या करते है.

पर विजय उसका सागा भाई था. अपने भाई के बारे मे ऐसा सोचना पाप
था पर वो अपने दिल के हाथों मजबूर थी. विजय की आँखे भी यही
कह रही थी की वो भी उसे चाहता है और उसे पाना चाहता है, खाने
के लिए पूछना तो एक बहाना था.

विजय को उकसाने के लिए वो क्या करे. वैसे तो वो भी पहला कदम
बढ़ा सकती थी, पर उसे शरम आ रही थी. उसने हिम्मत करके अपनी
कमीज़ उठाई और अपनी शलवार का नडा ढीला कर दिया. शलवार उसके
टॅंगो पर फिसल का नीचे खिसक गयी.

वो सोच रही थी उसकी इस हरकत पर विजय क्या करेगा, उसे थप्पड़
मरेगा, उसपर चिल्लाए गा या उसे बाहों मे भर कर प्यार करेगा.

विजय शीला की हरकत देख रहा था, उसकी आँखों मे भी वही कुछ
था जो उसने हमेशा अपनी प्रेमिकाओं की आँखों मे देखा था. शीला
भी उसे पाना चाहती है. विजय आयेज बढ़ा और शीला को अपनी बाहों
मे भर लिया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख उन्हे चूमने लगा.

शीला को आछा लगा की उसकी सोच सही थी. विजय ने ना तो उसे
थप्पड़ मारा था और ना ही उस पर गुस्सा हुआ था बल्कि उसे बाहों मे
भर चूम रहा था. वो आज जिंदगी मे पहली बार किसी मर्द की बाहों
मे थी.

विजय थोड़ी देर तो उसे चूमता रहा फिर उसे अलग कर जल्दी से अपने
गीले कपड़े उत्तर नंगा हो गया. उसका तन्ना हुआ लंड खूँटे की
जैसे खड़ा था.

"आओ मेरी जान" कहकर विजय ने उसका हाथ पकड़ा और बिस्तर पे ले
आया.

"क्या तुमने पहले कभी लंड नही देखा? ज़रा तुम्हारा हाथ देना……"
कहकर विजय ने शीला का हाथ अपने लंड पर रख दिया. शीला की
ठंडी उंगलिया और हथेली विजय के गरम लंड को सहलाने लगी.

"ऑश भैया ये कितना गरम है! इतना मोटा और लंबा भी है……मेने
तो सोचा भी नही था की आपका लंड ऐसा होगा." शीला ये कहकर अपनी
जिंदगी के पहले लंड को मसालने लगी और भींचने लगी.

विजय फिर धीरे धीरे शीला के कपड़े उत्तरने लगा. जब वो पूरी
तरह नंगी हो गयी तो उसने उसके चुचियों को अपनी हाथों बे भर
मसालने लगा. फिर उसेन उसके निपल को मुँह मे लिया और जोरों से
चूसने लगा.

"ऑश भैया……कितना मज़ाअ एयेए रहा है….ऑश हाआँ चूवसो भैया…"
शीला भी मस्त मे सिसकने लगी.

शीला ने विजय को सिर को पकड़ कर अपनी चुचियों पर दबा दिया,
उत्तेजना मे उसकी टाँगे काँप रही थी. उसने अपनी टॅंगो को और विजय
की टॅंगो से चिपका दिया और अपनी छूट को उसके खड़े लंड पर
रगड़ने लगी.

विजय ने उसकी चुचि को चूस्टे हुए अपना हाथ नीचे को किया और
शीला की गीली छूट पर रख दिया. अब वो बड़े प्यार से उसकी छूट
को सहला रहा था, और वो साथ ही उसकी गर्दन चूमने लगा फिर वो
सुके कानो की लाउ पर अपनी ज़ुबान फिरने लगा.

जैसे जैसे विजय की उंगलियाँ उसकी छूट के सहला रही थी, शीला
की साँसे और तेज होने लगी. उसके बदन मे एक अजीब से मस्ती चने
लगी थी.

विजय ने शीला को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके उपर आ गया. वो
उसकी पूरे बदन को चूमने लगा. शीला उसके नीचे उसका लंड लेने
को तैया थी. वो जनता था की अगर आज उसने इसे नही छोड़ा तो एक दिन
राज ज़रूर उसकी छूट फाड़ देगा.

विजय का लंड ये सोच कर और टन गया की वो राज से पहले शीला की
छूट मरेगा. किस तरह राज ने सुनीता की छूट मारी थी. आज वॉक
हश था की उसने राज को शीला के मामले मे हरा दिया था. शीला की
छूट मरके वो राज से सुनीता का बदला ले लेगा.

विजय उसकी टॅंगो के बीच आ गया और धीरे से उसके कान ने
फुसफुसाया, "अपनी टाँगे खोलो मेरी प्यारी बहना आज में तुम्हे
लड़की से औरत बना दूँगा."

"हन हन……..भैया आज मुझे छोड़ दो." शीला भी उत्तेजित स्वर मे
बोली.

जिस तरह से शीला ने छोड़ो शब्द कहा था, विजय के चेहरे पर
मुस्कान आ गयी. उसके बेहन को कॉलेज मे आक्ची शिक्षा मिली है.

उसने अपने खड़े लंड को हाथ मे पकड़ा और शीला की छूट को तोड़ा
फैलते हुए उसके मुँह पर रख दिया.

"तोड़ा दर्द सहन करना मेरी जान, शुरू में थोड़ी तकलीफ़ होगी पर
जब लंड अंदर चला जाएगा तो तुम्हे बहोट मज़ा आएगा," कहकर
विजय उसके होठों को चूसने लगा और अपना लंड उसकी छूट मे
घुसने की कोशिश करने लगा.

विजय को अपना लंड शीला की खूनवारी छूट मे घूसने मे बड़ी
तकलीफ़ हो रही थी, और शीला भी दर्द के मारे रोने लगी थी.

शीला को दर्द को सहन करने की कोशिश करने लगी, सुनीता ने उसे
बताया था की पहली बार तोड़ा दर्द होगा पर बाद मे बहोट मज़ा
आएगा.

दो टीन कोशिश के बाद विजय अपने लंड के सूपदे को उसकी छूट मे
घूसने मे कामयाब हो गया.

"ऑश….भैया….बहोट दर्द हो रहा है…… प्लीज़ इसे बाहर निकल लो
में बर्दाश नही कर पवँगी." शीला दर्द के मारे चीख पड़ी,
उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे.

विजय ने उसकी चीख पर कोई ध्यान नही दिया और दो टीन ज़ोर से
धक्के मार्कर उसकी छूट की झिल्ली फाड़ दी और अपना लंड उसकी छूट
मे पूरा का पूरा घुसा दिया.

शीला ने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया और अपने दर्द को सहन
करने की कोशिश करने लगी. उसकी आँखों से तार तार आँसू बह रहे
थे. छूट मे दर्द इतना हो रहा था की वो अपनी टाँगे पटक रही थी.

पर धीरे धीरे उसका दर्द कम होता गया और उसकी छूट विजय के
लंड को सहन करनी लगी. उसे विजय का लंड बहोट ही मोटा लग रहा
था, उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई मूसल उसकी छूट मे घुस
गया है.

शीला सोचने लगी की क्या विजय का लंड सबसे बड़ा लंड है या इससे
भी बड़े लंड दुनिया मे होते है. जब उसकी शादी हो जाएगी तो क्या
उसके पति का लंड भी ऐसा होगा या इससे बड़ा? या इससे पतला और
छोटा. वो इन्ही ख़यालों मे खोई हुई थी. तभी उसने विजय के होठों
को अपने होठों पर महसूस किया जो उसके होठों को चूसने लगा था.

शीला ने आज पहली बार लंड का स्वाद चखा था. उसने सुना तो बहोट
था चुदाई के बारे मे पर आज वास्तव मे हक़ीक़त मे वो छुड़वा रही
थी. वो भी किसी और नही से बल्कि अपने सगे चुड़क्कड़ भाई से.

विजय ने अब उसकी दोनो चुचियों को अपने हहतों मे लेकर मसालने लगा
था, कभी अपनी जीब उसके निपल पर फिरता तो कभी उसके निपल को
अपने दाँतों के बीच लेकर हौले से काट लेता.

विजय चाहता था की शीला की छूट उसके लंड के ढके सहने के
काबिल हो जाए, वो शीला को इतना गरमा देना चाहता था की वो उसके
धक्को को सहन कर सके. विजय को अपने आप पर काबू रखना बहोट
मुश्किल हो रहा था कारण शीला की छूट इतनी ज़्यादा कसी और गरम
थी की बड़ी मुश्किल से वो अपने आप को रोक रहा था.

विजय ने जब देखा की शीला तोड़ा शांत पद गयी तो उसने धीरे
धीरे अपने लंड को अंदर बाहर करना शुरू किया. वो बड़े प्यार से
उसे चूमते हुए और उसकी चुचियों को सहलाते हुए ढके मार रहा
था. शीला उसकी बेहन थी और उसकी इक्चा थी शीला अपनी पहली
चुदाई का पूरा लुफ्ट उठाए.

विजय इतने प्यार से उसे छोड़ रहा था की वो चाहता था की शीला इस
चुदाई को हमेशा याद रखे और वो बार बार उससी से चुडवाए.

शीला को दर्द तो तोड़ा तोड़ा अभी हो रहा था पर अब उसे मज़ा भी
आने लगा था. वो भी अब अपने कूल्हे उठा कर विजय के धक्कों का
साथ देने लगी.

विजय ने अब अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी. शीला भी अब उसका पूरा
साथ देने लगी और सिसकने लगी, "ऑश भैया हन चूऊओदो मुझे
ऑश अयाया बड़ा मज़ाअ रहा है."

विजय का लंड अब उसकी छूट की गहराइयों तक जेया रहा था, विजय को
भी बड़ा मज़ा आ रहा था, "ऑश मेरी प्यारी बहाना तेरी चूओत तो
मुझे इतनाअ मज़्ज़ा दे रही है हाआँ ले ले अपने भाई का लंड अपनी
छूट मे ऑश."

दोनो ने एक दूसरे को कस कर अपनी बाहों मे भींच रखा था और ताल
से ताल मिला कर चुदाई कर रहे थे.

तभी विजय ने देखा की शीला ने अपनी टाँगे उठा कर उसकी कमर से
लपेट ली है और अपने कूल्हे ऑरा आगे को कर उसका लंड अपनी छूट मे
और अंदर तक ले रही है. उसके मुँह से सिसकारियाँ फुट रही थी वो
समझ गया की शीला की छूट ने पानी छोड़ने वाली है.

"ऑश भाइया ये मेरी छूट को क्या हो रहा है ऐसा लग रहा है की
जैसे कुछ निकल रहा है ऑश माआ."

विजय समझ गया की शीला की छूट ने पानी छोड़ दिया है. उसके
भी लंड मे तनाव आने लगा था. विजय ने अपना लंड बाहर निकाला
और उसे रगड़ते हुए अपना वीर्या शीला के पेट पर छोड़ दिया.

विजय लुढ़क कर शीला के बगल मे बिस्तर पर लेट गया. दोनो की तेज
सांसो की आवाज़ कमरे मे गूँज रही थी. विजय शीला के पसीने से
भरे बदन को सहलाते हुए अपनी उखड़ी सांसो को काबू मे करने की
कोशिश कर रहा था.

व्जे बिस्तर पर लेता शीला को देख रहा था. उसकी छोटी और प्यारी
बेहन चुदाई के बाद और सनडर दीख रही थी. उसे बड़ा प्यार आ
रहा था अपनी इस बेहन पर. सुनीता की छूट से भी बड़ी प्यारी
छूट थी शीला की.

उसने राज से बदला ले लिया था. राज ने पहले सुनीता की छूट मारी
और उसने पहले शीला की. पर वो राज से ज़्यादा खुशनसीब था की उसे
कुँवारी छूट छोड़ने को मिली. कुँवारी छूट छोड़ने का ये उसका पहला
अनुभव था.

थोड़ी देर सुसताने के बाद विजय बिस्तर से उठा और बातरूम की और
बढ़ गया. शीला उसे बातरूम जाते देखती रही. उसका मुरझाया हुआ
लंड भी उसे लंबा लग रहा था. उसकी छूट मे अभी भी हल्का सा
दर्द था पर जो आनंद उसे छूट मरवा कर मिला था इस समय उठ रहे
दर्द से कहीं अक्चा था. वो मान ही मान खुश थी की आज वो एक लड़की
से औरत बन गयी थी.

विजय ने बातरूम मे जाकर अपने लंड को देखा. उसका लंड उसके और
शीला के वीर्या के साथ साथ शीला की छूट से निकले खून से भी
भरा हुआ था. उसने रग़ाद रग़ाद कर अपने लंड को साबुन से अची
तरह धोया और बाहर आ गया. उसने देखा की शीला बिस्तर पर पेट
के बाल लेती हुई ही.

विजय तो शीला की उभरी और फूली हुई गंद देखता ही रह गया. उसकी
गंद को देखते ही उसका लंड एक बार फिर तंन गया और फूंकर मरने
लगा.

विजय सोचने लगा की जब वो एक बार शीला की कुँवारी छूट तो छोड़
चुका है तो क्यों ना आज उसकी खूनवारी गंद भी मार दी जाए. उसने
ड्रेसिंग टेबल पर देखा और पॉंड्स क्रीम की शीशी उठी ली.

क्रीम की शीशी खोलने के बाद वो उसमे से क्रीम निकल अपने लंड पर
मलने लगा. वो क्रीम इस तरह लगा रहा था की उसका लंड पूरी तरह
से चिकना हो जाए.

फिर विजय अपनी बेहन शीला के पास बिस्तर पर आया जो खून के
धब्बों से भारी चादर पर लेती थी.

"शीला मेरी जान मज़ा आया ना तुम्हे?" विजय ने उसकी गंद पर हाथ
फिरते हुए कहा.

शीला ने करवट बदली और विजय को देखने लगी, "हन भैया, बहोट
मज़ा आया, मुझे नही मालूम था की चुदाई मे इतना मज़ा मिलता
है."

विजय झुका और उसकी गर्दन और कंधों को चूमने लगा साथ ही वो
उसकी गंद की दरार मे हाथ फिरा रहा था और उसकी गंद के छेड़ को
कुरेड भी रहा था.

"जानू आज तुम्हे एक और चीज़ सीखनी है," विजय उसकी गंद मे अपनी