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Click hereमैंने जैसे ही यह सूना तो मेरा तो लण्ड अपनी पतलून में फ़ुफ़कार ने लगा। मैंने मन ही मन में सोचा, “अरे वाह, मेरे शेर! तुम ने तो मैच शुरू होने से पहले ही गोल दागना शुरू कर दिया।“
नीना को ढाढस देते हुए मैंने कहा, "देखो डार्लिंग यह होली का त्योहार है। एक दूसरे की बीबियों को छेड़ना उनपर रंग डालना, उनसे खेल खेला करना, मजाक करना और कभी कभी सेक्सी बातें करना होता है। इस पर बुरा नहीं मानना चाहिए। पर तुम तो काफी नाराज लग रही हो। मुझे पक्का नहीं पता पर आज अनीता शायद अपने मायके गयी है। दो तीन दिन पहले मुझे अनिल ने बताया था की उसकी बीबी होली में शायद मायके जाएगी। उसके घर में अनिल अकेला है। मैं आज शाम को उसे महा मुर्ख सम्मलेन में हमारे साथ जाने के लिए आमंत्रित करने का सोच रहा था। अब तो मैं उसको थोड़ा डाँटूंगा तो वह वैसे भी नहीं आएगा। तुम कहो मैं क्या करूँ?" मैंने नीना से ही उसके मन की बात जाननी चाही।
मेरी भोली भाली पत्नी एकदम सोच में पड़ गयी। वह थोड़ी घबरायी सी भी थी। थोड़ी देर बाद वह धीरे से बोली, "बाप रे, अनिल शाम को भी आएगा? वह भी अकेले? अम्मा, मेरी तो शामत ही आ जायेगी।"
फिर नीना एकदम चुप सी हो गयी। नीना की सूरत कुछ गुस्सेसे, कुछ शर्म से और बाकी रंग से एकदम लाल हो रही थी। वह रोनी सी सूरत बना कर फिर दोबारा बोली, "देखिये, मुझे आप को कहना था सो मैंने कह दिया। अब आगे आप जानो। पर हाँ, आप बात का बतंगड़ मत बनाना। आप अनिल को कुछ मत कहिये । डांटने का तो सोचना भी मत। मैं नहीं चाहती के इस बात पर आप दोनों घने दोस्तों में कुछ अनबन पैदा हो। अगर होली में आम तौर से ऐसा होता है तो फिर ठीक है। अब तो मैं सोच रही हूँ की अगर मैंने आप को यह सब नहीं बताया होता तो अच्छा होता। बल्कि आप यह समझो की मैंने आप को कुछ नहीं बताया। मैं अपनी शिकायत वापस लेती हूँ। आप उसे जरूर बुलाओ। जो मैंने कहा उसे भूल जाओ। आज शायद उसको शराब चढ़ गयी थी। इसी लिए उसने यह हंगामा किया। बात यहीं खत्म करो। जाने दो। उसको डांटना मत, प्लीज?"
मेरी सीधी सादी पत्नी की बात सुनकर मैं मन में हंसने लगा। मैंने मन ही मन हंसकर लेकिन बाहर से गम्भीरता दिखाते हुए बोला, "अगर तुम इतना कहती हो तो चलो मैं अनिल को नहीं डाँटूंगा और उसे बुला लूंगा। पर एक शर्त है। देखो तुम अनिल को तो जानती हो। वह रंगीली तबियत का है। उपरसे आज होली का त्यौहार है। आज तुम अकेली औरत हो। अनीता भी नहीं है। तो और किसको छेड़ेंगे हम? यदि वह तुम्हे और छेड़ता है तो चिल्लाना मत। हो सकता है मैं भी तुम्हारे साथ थोड़ी शरारत कर लूँ। हम थोड़ी शराब भी पी सकते हैं, तो प्लीज बुरा मत मानना और हंगामा मत करना। मैं चाहता हूँ की हम सब मिल कर खूब मौज करें और होली मनाएं। ठीक है ना? तुम गुस्सा तो नहीं करोगी ना?”
जब नीना ने भांप लिया की मैं सुबह वाली बात को लेकर अनिल से ऐसी कोई लड़ाई झगड़ा नहीं करूँगा तो उसकी जान में जान आयी। तब वह होली के मूड में आ गयी। नीना ने आँख नचाते हुए कहा, "मैंने गुस्सा किया भी तो तुम मेरी सुनोगे थोड़े ही? खैर मैं गुस्सा नहीं करुँगी बस?”
“और हर होली की तरह बादमें देर रात को फिर तुम मौज करवाओगी ना?" मैंने नीना को आँख मारते हुए पूछा।
नीना ने हंसकर आँख मटक कर कहा, "जरूर करवाउंगी। निश्चिंत रहो। अगर नहीं करवाई तो तुम मुझे छोड़ोगे क्या?" मुझे ऐसा लगा की मेरी रूढ़िवादी पत्नी को भी तब होली का थोड़ा रंग चढ़ चूका था।
जैसे की आप में से कई लोगों को पता होगा, जयपुर एक सांस्कृतिक शहर है और उसमे कई अच्छे सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं। होली के समय रामनिवास बाग़ में एक कार्यक्रम होता था जिसका नाम था "महां मुर्ख सम्मेलन" यह कार्यक्रम रात दस बजे शुरू होता था एवं पूरी रात चलता था और उसमे बड़े बड़े हास्य कवी पुरे हिंदुस्तान से आते थे। वह अपनी व्यंग भरी हास्य रस की कविताएं सुनाते थे और लोगों का खूब मनोरंजन करते थे। कार्यक्रम खुले मैदान में होता था और चारों तरफ बड़े बड़े लाउड स्पीकर होते थे। पूरा मैदान लोगों से भर जाता था।
मैं और मेरी पत्नी हर साल इस कार्यक्रम में जाते थे और करीब करीब पूरी रात हास्य कविताओं का आनंद उठाते थे। मेरी पत्नी नीना बड़े चाव से यह कार्यक्रम सुनती और बहुत खुश होती थी। इस कार्यक्रम सुनने के बाद मुझे खास वीआईपी ट्रीटमेंट मिलती और उस रात हम खूब चुदाई करते।
नीना की अनुमति मिलने पर मैंने अनिल को फ़ोन करके पूछा, "क्या तुम और अनीता रात को दस बजे हमारे साथ महा मूर्ख सम्मलेन में चलोगे? पूरी रात का कार्यक्रम है।"
अनिल ने कहा, "मैंने तो तुम्हे बताया था न, की अनीता एक हफ्ते के लिए अपने मायके गयी है? मैं घर में अकेला हूँ। मैं अपनी एम्बेसडर कार लेकर जरूर आऊंगा। हम उसी मैं चलेंगे। पर क्या नीना भाभी को पता है की तुम मुझे बुलाने वाले हो? क्या उन्हें पता है की आज मैं अकेला हूँ?" मैं समझ गया की दुपहर की शरारत का नीना पर कैसा असर हुआ है वह जानने के लिए अनिल लालायित था।
मैंने कहा, "हाँ भाई। मैंने नीना को बताया, और उसकी सम्मति से ही मैं तुमको आमंत्रित कर रहा हूँ।" मैं कल्पना कर रहा था की फ़ोन लाइन की दूसरे छौर पर यह सुनकर अनिल कितनी राहत का अनुभव कर रहा होगा।
मैंने अनिल को एक गहरी साँस लेते हुए सुना। फिर अनिल ने धीमी आवाज में बोला, "यार एक बात बुरा न मानो तो कहूँ। क्या मैं नीना भाभी के साथ थोड़ी छेड़छाड़ कर सकता हूँ? और मुझे तुम दोनों से एक बहुत जरुरी बात भी करनी है, पर वह थोड़ी बोरिंग है।"
तब मैंने अनिल को कहा, "तुम कमाल हो यार। दुपहर को तुमने जब मेरी बीबी को इतना छेड़ा था तो क्या मुझसे पूछा था? आज होली है। आज तो तुम्हारे पास छेड़ने का पूरा लाइसेंस है। तुम नीना को छेड़ो उसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बल्कि मैं भी आज तुम्हारे साथ उसको जरूर छेडूंगा और जीतनी हो सके उतनी तुम्हारी सहायता भी करूँगा। पर तुम्हारी भाभी आज तुम्हारी दोपहर की हरकत से नाराज थी। खैर, मैंने उसे समझाया की होली में सब लोग एक दूसरे की बीबियोँ से थोड़ी सेक्सुअल छेड़छाड़ करते ही हैं। ऐसा करके वह अपने मन की छुपी हुई इच्छाओं का प्रदर्शन करके कुछ संतुष्टि लेते हैं।, ऐसा मौक़ा उन्हें कोई और दिन नहीं मिलता। पर अगर तुम्हारी छेड़छाड़ की वजह से उसका हैंडल छटक गया तो फिर उसको मैं कण्ट्रोल नहीं कर पाउँगा। वह फिर तुम सम्हालना। जहाँ तक तुम्हारी बोरिंग बात का सवाल है तो अगर बहुत जरुरी है तो वह तुम आखिर में सुनाना। आज होली है और मस्ती का माहौल है। माहौल बिगड़ना नहीं चाहिए। आगे तुम जानो। माहौल बनाने का काम तुम्हारा है।"
अनिल ने कहा, "वह तुम मेरे पर छोड़ दो। बस तुम मुझे सपोर्ट करते रहना बाकी मैं देख लूंगा।“
मैंने फ़ोन रखा और नीना से कहा, "अनीता अपने मायके गयी है। अनिल अकेला है। उसने चलने के लिए हाँ कही है। वह अपनी गाडी में रात दस बजे आएगा और हम उसकी गाडी में ही चलेंगे। हम फिर सुबह ही वापस आएंगे।"
नीना ने अपने कंधे हिला कर सहमति दे दी। तब मैंने नीना से कहा, "डार्लिंग आज आप मेरे लिए कुछ ऐसे भड़कीले सेक्सी कपडे पहनो की होली का मझा आ जाए। सारे लोग देखते रह जाए की मेरी बीबी लाखों में एक है।"
तब मेरी बीबी ने पूछा, "क्यों, क्या बात है? सब लोगों में मेरी नुमाईश करवाना चाहते हो क्या? या फिर अनिल को मुझे और छेड़ने के लिए प्रोत्साहन देना चाहते हो?"
मैंने तपाक से जवाब देते हुए कहा, "तुम्हारी बात सच है। मैं सब लोगों के बिच में मेरी बीबी की नुमाइश करना चाहता हूँ। मैं सब को दिखाना चाहता हूँ की मेरी बीबी उन सब की बीबीयों से ज्यादा सुन्दर है। अब बात रही अनिल की, तो वह तुम्हारे मम्मों को पहले भी दो तीन बार तो सेहला ही चूका है। वह तुमको और क्या छेड़ेगा? उसने जो देखना था वह देख लिया, जो कुछ करना था वह तो कर लिया। उससे ज्यादा और वह क्या देख सकता है और क्या कर सकता है भला? अब उससे क्या छुपाना? पर मेरी आँखें तो तुम्हे देखते कभी नहीं थकती। मैं तो तुम्हें अपने लिए तैयार होने को कह रहा हूँ।"
इतना कहना ही मेरी पत्नी के लिए काफी था। थोड़ा सोच कर उसने मेरी बात मानी। शायद नीना अनिल को भीअपने सौंदर्य का दर्शन कराना चाहती थी। उस रात वह ऐसे सेक्स की रानी की तरह सज कर तैयार हुई जैसे मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा। कई सालों के बाद पहली बार मेरी बीबी को उस ब्लाउज में देखा जो वह शर्म के मारे कभी न पहनती थी। वह डीप कट ब्लाउज था जिसमें मेरी रूढ़िवादी पत्नी के भरे और तने हुए मम्मों (स्तनों) का उभार काफी ज्यादा नजर आता था। उसने स्लीवलेस ब्लाउज पहना था। उसका ब्लाउज चौड़ाई में छोटा था और जैसे वह उसके उरोज को बस ढके हुए था। नीना के स्तन ब्लाउज में बड़ी कठिनाई से समाये हुए थे।उसने आपनी साड़ी भी अपनी कमर से काफी निचे तक बाँधी थी। ऐसा लगता था की कहीं वह पूरी निचे उतर न जाय और उसे नंगी न करदे।
नीना का ब्लाउज पीछे से एकदम खुला हुआ था। सिर्फ दो पतली डोर उसके ब्लाउज को पकड़ रखे हुए थे। नीना की पीठ एकदम खुली थी और ब्रा की पट्टी उसमें दिख रही थी। ब्रा भी तो उसने जाली वाली पहनी थी। ब्लाउज खुलने पर उसके स्तन आधे तो वैसे ही दिखने लगेंगे यह मैं जानता था। नीना की कमर में उसकी नाभि खूब सुन्दर लग रही थी।
रात दस बजे अनिल अपनी पुरानी अम्बेसडर कार में हमें लेने पहुंचा। जैसे उसने हॉर्न बजाया, नीना सबसे पहले बाहर आयी।
अनिल तो देखते ही रह गया। नीना की साडी का पल्लू उसके उरोजों को नहीं ढक पा रहा था । उसके रसीले होँठ लिपस्टिक से चमक रहे थे। उसके भरे भरे से गाल जैसे शाम के क्षितिज में चमकते गुलाबी रंग की तरह लालिमा बिखेर रहे थे। सबसे सुन्दर नीना की आँखे थीँ। आँखों में नीना ने काजल लगाया था वह एक कटार की तरह कोई भी मर्द के दिल को कई टुकड़ों में काट सकता था। आँखे ऐसी नशीली की देखने वाला लड़खड़ा जाए। उसके बाल उसके कन्धों से टकराकर आगे उन्नत स्तनों पर होकर पीछे की तरफ लहरा रहे थे।
नीना ने जैसे ही अनिल को देखा तो थोड़ी सहमा सी गयी। उसे दोपहर की अनिल की शरारत याद आयी। आजतक किसीने भी ऐसी हिमत नहीं दिखाई थी की नीना की मर्जी के बगैर इसको छू भी सके। पर अनिल ने आज सहज में ही न सिर्फ कोने में दीवार से सटा कर उसे रंग लगाया, बल्कि उसने नीना के ब्लाउज के ऊपर से अंदर हाथ डाल कर उसकी ब्रा के हूको को अपनी ताकत से तोड दिए और स्तनों को रंगों से भर दिए।
नीना को देख कर अनिल तुरंत कार का दरवाजा खोल नीचे उतरा और फुर्ती से नीना के पास आया। उस समय आँगन में सिर्फ वही दोनों थे। अनिल नीना के सामने झुक और अपने गालों को आगे कर के बोला, "नीना भाभी, मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ। आज मैंने बहुत घटिया हरकत की है। आप मुझे मेरे गाल पर एक थप्पड़ मारिये। मैं उसीके लायक हूँ। नीना एकदम सहमा गयी और एक कदम पीछे हटी और बोली, "अनिल ये तुम क्या कर रहे हो?"
अनिल ने झुक कर अपने हाथ अपनी टांगों के अंदर से निकाल कर अपने कान पकडे और नीना से कहा, "नीना आप जबतक मुझे माफ़ नहीं करेंगे मैं यहां खुले आंगन में मुर्गा बना ही रहूँगा। मुझे प्लीज माफ़ कर दीजिये।"
नीना यह सुनकर खुलकर हंस पड़ी और बोली, "अरे भाई, माफ़ कर दिया, पर यह मुरगापन से बाहर निकलो और गाडी में बैठो और ड्राइवर की ड्यूटी निभाओ।“
अनिल ने तब सीधे खड़े होकर नीना को ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, "नीना भाभी, आप तो आज कातिलाना लग रही हैं। पता नहीं किसके ऊपर यह बिजली गिरेगी।"
नीना हंस पड़ी और बोली, "अनिल आज तुम ज्यादा ही रोमांटिक नहीं हो रहे हो क्या? और आज अनिता भी नहीं हैं।"
अनिल तुरंत लपक कर बोला, "तो क्या हुआ? आप तो है न?" यह सुन नीना थोड़ी सकपका गयी और कुछ भी बोले बिना अनिल की कार मैं जा बैठी। मैं मेरे पिता और माताजी को प्रणाम कर और मुन्ना को प्यार करके बाहर आया और आगे की सीट में नीना के पास बैठ गया। अनिल अपनी पुरानी एम्बेसडर में आया था। उस कार में आगे लम्बी सीट थी जिसमें तिन लोग बैठ सकते थे। अनिल कार के बाहर खड़ा मेरा इंतजार कर रहा था। जैसे ही मैं गाडी मैं बैठा, अनिल भी भागता हुआ आया और ड्राइवर सीट पर बैठ गया। नीना की एक तरफ मैं बैठा था और दूसरी तरफ अनिल ड्राइवर सीट में बैठा था और नीना बिच में।
जैसे ही अनिल ने कार स्टार्ट की, उसके फ़ोन की घंटी बजी। अनिल ने गाडी रोड के साइड में रोकी और थोड़े समय बात करता रहा। जब बात ख़त्म हुई तो नीना ने पूछा, "किस से बात कर रहे थे अनिल?"
अनिल ने नीना की तरफ देखा और थोड़ा सहम कर बोला, " यह महेश का फ़ोन था। बात थोड़ी ऐसी है की आपको शायद पसंद ना आये। थोड़ी सेक्सुअल सम्बन्ध वाली बात है।"
तब मैंने नीना के ऊपर से अनिल के कंधे पर हाथ रखा और बोला, "देखो अनिल, हम सब वयस्क हैं. नीना कोई छोटी बच्ची नहीं। वह एक बच्चे की माँ है। आज होली का दिन है, थोड़ी बहुत सेक्सुअल बातें तो वह भी सुन सकती है। जब नीना ने पूछ ही लिया है तो बता दो। ठीक है ना नीना?" मैंने नीना के सर पर ठीकरा फोड़ते हुए कहा।
नीना ने अनिल की तरफ देखा और सर हिलाते हुए हाँ का इशारा किया।
अनिल ने कहा, "महेश मेरा पुराना दोस्त है। उसकी पोस्टिंग जब जोधपुर में हुई थी तब उसका एक पुराना कॉलेज समय का मित्र भी वहाँ ही रहता था। वह मित्रकी पत्नी भी कॉलेज के समय में महेश की दोस्त थी। उस समय महेश और उसकी होनी वाली पत्नी के बिच में प्रेम संदेशों का आदान प्रदान भी महेश करता था। यूँ कहिये की उनकी शादी ही महेश के कारण हो पायी थी। महेश के दोस्त की पत्नी को महेश के प्रति थोड़ा आकर्षण तो था पर आखिर में उसने महेश के मित्र के साथ ही शादी करनेका फैसला लिया।“
मैंने देखा की अनिल अपनी कार को मुख्य मार्ग से हटाकर शहर के बाहरी वाले रास्ते से ले जा रहा था। रास्ते में पूरा अँधेरा था। वह कार को एकदम धीरे धीरे और घुमा फिरा कर चला रह था। मैंने अनिल से पूछा क्या बात है। अनिल ने कहा उसने रात का खाना नहीं खाया था, और वह कहीं न कहीं खाने के लिए कोई ढ़ाबे पर रुकना चाहता था।
यह तो मैं बता ही चूका हूँ की मेरी सुन्दर पत्नी नीना अनिल और मेरे बिच में सटके बैठी हुयी थी। अनिल की कहानी सुनने के लिए मैं काफी उत्सुक हो गया था। अनिल की धीमी और नरम आवाज को सुननेमें मुझे थोड़ी कठिनाई हो रही थी। मैंने इस कारण नीना को अनिल की तरफ थोड़ा धक्का दे कर खिसकाया। मेरी बीबी बेचारी मेरे और अनिल के बिच में पिचकी हुयी थी। अनिल ने अपना गला साफ़ किया और आगे कहने लगा।
“शादी के करीब पांच साल के बाद महेश का मित्र बिज़नस बगैरह के झंझट में व्यस्त था और पत्नी घरबार और बच्चों में। उनके दो बच्चे थे। महेश और उसकी पत्नी में कुछ मनमुटाव सा आ गया था। महेश अपनी पत्नी को समय नहीं दे पाता था। उसकी पत्नी सेक्स के लिए व्याकुल होती थी तो महेश थका हुआ लेट जाता था। जब महेश गरम होता था तब उसकी पत्नी थकी होने बहाना करके लेट जाती थी। सेक्स में अब उनको वह आनंद नहीं मिल रहा था जो शादी के पहले चार पांच सालों तक था।“
अब अनिल की कहानी सेक्स के गलियारों में प्रवेश कर चुकी थी। मैं थोड़ा उत्तेजित हो गया और नीना का एक हाथ मेरे हाथ में लेकर उसे दबाने लगा। तब मैंने थोड़ा सा ध्यान से देखा की अनिल भी गाडी चलाते चलाते और गियर बदलते अपनी कोहनी नीना के स्तनों पर टकरा रहा था। थोड़ी देर तक तो ऐसा चलता रहा और नीना ने भी शायद इस बात पर शायद ध्यान नहीं दिया, पर फिर उसने अपनी कोहनी को नीना के स्तन के उपर दबा ही दिया। अंदर काफी अँधेरा था और मुझे साफ़ दिखने में भी कठिनाई होती थी। मैंने नीना के मुंह से एक टीस सी सुनी। उसने अनिल की कोहनी को जरूर महसूस किया था। पर वह कुछ बोली नहीं।
अनिल ने अपनी कहानी को चालु रखते हुए कहा, “जब महेश उनसे मिला तो भांप गया की उन पति पत्नी के बिच में कुछ ठीक नहीं है। जब महेश ने ज्यादा पूछताछ की तो दोनों ही उससे शिकायत करने लगे। दोनों ने अपनी फीकी सी सेक्स लाइफ के लिए एक दूसरे पर दोष का टोकरा डालना चाहा। महेश ने तब दोनों को एकसाथ बिठाया और बताया की उनके वैवाहिक जीवन का वह दौर आया है जहां जातीय नवीनता ख़त्म हो गयी है और नीरसता आ गयी है। उसने उनको कहा की उनको चाहिए की सेक्सुअल लाइफ में कुछ नवीनीकरण लाये।“
अनिल ने तब कार को एक जगह रोका जहाँ थोडा सा प्रकाश था। उसने अपनी कहानी का क्या असर हो रहा है यह देखने के लिए हमारी और देखा। उसने देखा की मैंने नीना का हाथ अपनी गोद में ले रखा था। अनिल की कहानी मुझे गरम कर रही थी। नीना मेरे और अनिल के बीचमें दबी हुई बैठी थी। वह कुछ बोल नहीं रही थी। अनिल मुस्कराया और उसने कार को आगे बढ़ाते हुए कहानी चालु रखी।
“जब उन पति पत्नी ने महेश से पूछा की वह सेक्सुअल लाइफ में नवीनीकरण कैसे लाएं, तब महेश ने कहा की कई पति पत्नी सामूहिक सेक्स, थ्रीसम अथवा पत्नियों की अदलाबदली द्वारा अपने वैवाहिक जीवन में नवीनता और उत्तेजना लाते हैं। जैसा समय अथवा संजोग वैसे ही इसको व्यावहारिक रूप में अपनाया जा सकता है। परंतु इसमें पति पत्नी की सहमति और एकदूसरे में पूरा विश्वास आवश्यक है।“
तब मुझे अहसास हुआ की नीना ने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और उसे जोर से दबाने लगी थी। मैं असमंजस में था। नीना ऐसा क्यों कर रही थी? क्या अनिल साथ कोई और शरारत तो नहीं कर रहा था? या फिर नीना भी अनिल की बात सुनकर गरम हो ग उसके यी थी? मैंने अनायास ही मेरा हाथ थोड़ा ऊपर किया और मेरी पत्नी के कन्धों के उपरसे हो कर उस के स्तनों पर रखा और उसके स्तनों को मेरी हथेली में दबाने और सहलाने लगा। वास्तव में मैंने महसूस किया की नीना के दिल की धड़कन तेज हो रही थी। अचानक मेरा हाथ शायद अनिल के हाथसे टकराया। क्या वह भी नीना के स्तनों को छूने की कोशिश कर रहा था? मैं इस बात से पूरा आश्वस्त नहीं था। मैं चुप रहा और आगे क्या होता है उसका इंतजार करने लगा।
अनिल बोल रहा था, “महेश उस समय उन्हीं के घर में रुका हुआ था। उस रात को महेश के दोस्त ने उसे अपने बैडरूम में बुलाया। जब महेश उनके बैडरूम में दाखिल हुआ तो उसने देखा की उसका दोस्त अपनी पत्नी को अपनी गोंद में बिठाकर उसके स्तनों से खेल रहा था। उसकी पत्नी के स्तन खुले थे और उसने अपनी ब्लाउज और ब्रा निकाल फेंकी थी। महेश स्तब्ध सा रह गया और क्षमा मांगते हुए वापस जाने लगा। तब महेश के दोस्तने उसे अपने पास बुलाया और अपनी पत्नीके स्तनों को दबाकर उन्हें चूसने को कहा। उसकी पत्नी भी महेश को उकसाने लगी और महेश को सेक्स के लिए आमंत्रित करने लगी। ऐसा लग रहा था की महेश की बात उन लोगों को जँच गयी थी और उन्होंने महेश को ही थ्रीसम के लिए चुना था। महेश को भी दोस्त की पत्नी के प्रति आकर्षण तो था ही। वह उससे सेक्स करनें तैयार हो गया। उस रात महेश और उसके दोस्त दोनों ने मिलकर दोस्त की पत्नी के साथ जमकर सेक्स किया।“
अनिल की कहानी उसकी पराकाष्ठा पर पहुँच रही थी। मैं तो काफी गरम हो ही रहा था, पर नीना भी काफी उत्तेजित लग रही थी। उस पर अनिल की कहानी का गहरा असर मैं अनुभव कर रहा था, क्यूंकि वह अपनी सिट पर अपने कूल्हों को इधर उधर सरका रही थी। अँधेरे में यह कहना मुश्किल था की क्या वही कारण था या फिर अनिल की कोई और शरारत? जरूर अनिल स्वयं भी काफी गरम लग रहा था। उसकी आवाज में मैं कम्पन सा महसूस कर रहा था।
तब हम शहर के प्रकाशित क्षेत्र में प्रवेश कर चुके थे। नीना का एक हाथ मेरे हाथ में था और तब अनिल ने भी नीना का एक हाथ पकड़ा और अपने हाथ के नीचे अपनी एक जांघ पर रखा। दूसरे हाथ से वह ड्राइविंग कर रहा था। नीना ने मेरी तरफ देखा, मैं मुस्काया और आँखे मटका कर उसे शांत रहने के लिए इशारा किया। वह बेचारी चुप होकर अनिल से आगेकी कहानी सुनने लगी।
अनिल ने कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा, “महेश की पत्नी अपने पति के प्रति बड़ी आभारी थी क्यूंकि उसने अपनी पत्नीको उसके मित्रके साथ सेक्स करनेको कहा। तब से उन पति पत्नी में खूब जमती है और वह कई बार महेश के साथ थ्रीसम का आनंद ले चुके हैं। वैसे भी अब उन पति पत्नी को एक दूसरे के साथ सेक्स करने में भी बड़ा आनंद मिलता है, क्यूंकि उस समय वह अपने थ्रीसम के आनंद के बारेमें खुल कर बात करते हैं।“ अनिल ने अपनी कहानी का समापन करते हुए एक जगह गाडी रोकी।
अनिल की कहानी सुनते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं खासा उत्तेजित हो रहा था। मैंने नीना के हाथ में हाथ डाला तो उसने भी मेरा हाथ जोरों से दबाया। मुझे लगा की वह भी काफी उत्तेजित होगयी है। कार में भी अँधेरा था। मैंने उसका हाथ मेरी टांगों के बिच रख दिया। नीना धीरे धीरे मेरे टांगों के बिच से मेरी पतलून की ज़िप पर हाथ फ़ैलाने लगी। मैंने भी नीना की टांगो के बिच अपना हाथ डाल दिया। नीना ने अपनी टाँगे कसके दबायी और मेरे हाथ को टांगो के बिच दबा दिया।
मैंने देखा की मेरी रूढ़िवादी पत्नी भी अनिल की सेक्स से भरी कहानी सुनकर उत्तेजित हो गयी थी। तब अनिल ने पूछा, "राज, बताओ, क्या महेश और उसके मित्र पति पत्नी ने जो किया वह सही था?"
मैंने कहा, "मैं क्या बताऊँ? नीना से पूछो।"
तब नीना ने जो कहा वह तो मैंने सोचा भी नहीं था। नीना ने कहा, "उन्होंने सही किया या गलत, ये कहने वाले हम कौन होते हैं? अरे वह पति पत्नी ने अपने बारें में सब तरह सोच कर यदि ये फैसला लिया तो सही किया। और बात तो गलत नहीं है। शादी के कुछ सालों बाद हम सब पति पत्नी एक दूसरे से सेक्स करने से थोड़े से ऊब जाते हैं। इसका कारण यह है की सेक्स में जो नवीनता पहले थी वह नहीं रहती। उत्सुकता चली जाती है। शादी के पहले मन सोचता है सेक्स कैसा होगा? और शादी के बाद मन कहता है. सेक्स कैसा होगा मुझे पता है। इन हालात में उन्होंने जो किया वह सही किया। और फिर उसका फायदा भी तो मिला उनको। उनका विवाहक जीवन सुधर जो गया। क्यों राज, मैंने गलत तो नहीं कहा?"
मैं क्या बोलता। मैंने अपनी मुंडी हिला कर नीना का समर्थन किया। मैं मेरी पत्नी का एक नया रूप देख रहा था। अबतक जो पत्नी मुझ से आगे सोचती नहीं थी वह आज थ्रीसम का समर्थन कर रही थी। तब मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मंशा सफल हो सकती है।
अनिल ने दोनों हाथों से तालियां बजायी और बोला, "माय गॉड नीना, तुमने कितना सटीक और सही जवाब दिया। मैं तुम्हें इस जवाब के लिए सलूट मारता हूँ। "
तब हम कार्यक्रम वाले स्थान के करीब पहुँच चुके थे। अनिल ने एक ऐसी जगह कार रोकी जहां प्रकाश था। उसने पीछे मुड़कर कार की सीट पर चढ़कर पीछे की सीट पर रखा एक बक्शा खोला। मैंने देखा की उसमें उसने तीन बोतलें और कुछ गिलास रखे हुए थे। उसने तीन गिलास निकाले और उसमें एक बोतल में से व्हिस्की और सोडा डालना शुरू किया। नीना ने एकदम विरोध करते हुए कहा की वह नहीं पीयेगी। मैं भी जानता था की नीना शराब नहीं पीती थी। सबके साथ वह कभी कभी जीन का एकाध घूंट जरूर ले लेती थी। शायद अनिल को भी यह पता था। उसने नीना से कहा, "नीना भाभी, आप निश्चिन्त रहो। मैं आपको व्हिस्की नहीं दूंगा। प्लीज आज हमें साथ देने के लिए थोडीसी जीन तो जरूर पीजिए। मैं बहुत थोड़ी ही डालूंगा। देखिये होली है। नीना ने घबड़ाते हुए मेरी और देखा।
मैंने उसे हिम्मत देते हुए कहा, "अरे इसमें इतना घबड़ाने की क्या बात है? भई जीन तो वैसे ही हल्की है और तुम जीन तो कभी कभी पी लेती हो। अब शर्म मत करो, थोड़ी सी पी लो यार। अनिल इतने प्यार से जो कह रहा है।" मैंने फिर अनिल कीऔर देखते हुए कहा, "देखो अनिल, बस एकदम थोड़ी ही डालना। "
अनिल ने मुस्काते हुए सीट पर पीछे मुड़कर सीट पर चढ़कर लंबा होकर नीना के लिए जीन से गिलास को खासा भरा और फिर दिखावे के लिए उसमें थोड़ा सोडा डाल कर नीना के हाथ में पकड़ा दिया। जीन वैसे ही पानी की तरह पारदर्शक होती है। देखने से यह पता नहीं लग पाता की गिलास में जीन ज्यादा है या पानी। मेरी भोली बीबी ने समझा की उसमें बस पानी ही है, जीन तो नाम मात्र ही है। नीना उसे पीने लग गयी। जीन का टेस्ट मीठा होता है। नीना को अच्छा लगा। वह उसे देखते ही देखते पी गयी। जब हम सबने अपने ड्रिंक्स ख़तम किये तब अनिल कार को कार्यक्रम के स्थान पर ले आया। मैं जानता था की जीन भी तगड़ी किक मारती है।