मजबूर (एक औरत की दास्तान)

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अज़रा की गाँड का छेद रुखसाना की आँखों के सामने नुमाया हो गया जो अज़रा की चूत से निकले पानी से एक दम गीला हुआ था। सुनील ने रुखसाना की तरफ़ देखते हुए अपनी कमर को ऊपर की तरफ़ उछालना शुरू कर दिया। सुनील का आठ इंच का लंड अज़रा की गीली चूत के अंदर बाहर होना शुरू हो गया। सुनील बार-बार अज़रा की गाँड के छेद को फैला कर रुखसाना को दिखा रहा था। रुखसाना के पैर तो जैसे वहीं जम गये थे। वो कभी अज़रा की चूत में सुनील के लंड को अंदर-बाहर होता देखती तो कभी सुनील की आँखों में!

सुनील: "बोल साली... मज़ा आ रहा है ना?"

अज़रा: "हाँ सुनील मेरी जान! बहोत मज़ा आ रहा है.... आहहह दिल कर रहा है कि मैं सारा दिन तुझसे अपनी चूत ऐसे ही पिलवाती रहूँ... आहहहह सच में बहोत मज़ा आ रहा है...!"

सुनील अभी भी रुखसाना की आँखों में देख रहा था। फिर रुखसाना को अचानक से एहसास हुआ कि ये वो क्या कर रही है और वहाँ से हट कर नीचे आ गयी। उसकी सलवार में उसकी पैंटी अंदर से एक दम गीली हो चुकी थी। उसे ऐसा लग रहा था कि जिस्म का सारा खून और गरमी चूत की तरफ़ सिमटते जा रहे हों! वो बेड पर निढाल सी होकर गिर पड़ी और अपनी टाँगों के बीच तकिया दबा लिया और अपनी चूत को तकिये पर रगड़ने लगी पर चूत में सरसराहट और बढ़ती जा रहा थी। रुखसाना की खुली हुई आँखों के सामने अज़रा की चूत में अंदर-बाहर होता सुनील का आठ इंच लंबा और बेहद मोटा लंड अभी भी था। अपनी सलवार का नाड़ा ढीला करके उसका हाथ अंदर पैंटी में घुस गया। वो तब तक अपनी चूत को उंगलियों से चोदती रही जब तक कि उसकी चूत के अंदर से लावा नहीं उगल पढ़ा। रुखसाना का पूरा जिस्म थरथरा गया और उसकी कमर झटके खाने लगी। झड़ने के बाद रुखसाना एक दम निढाल सी हो गयी और करीब पंद्रह मिनट तक बेसुध लेटी रही। फिर वो उठ कर बाथरूम में गयी और अपने कपड़े उतारने शुरू किये। उसने अपनी सलवार कमीज़ उतार कर टाँग दी और फिर ब्रा भी उतार कर कपड़े धोने की बाल्टी में डाल दी और फिर जैसे ही उसने अपनी पैंटी को नीचे सरकाने की कोशिश की पर उसकी पैंटी नीचे से बेहद गीली थी और गीलेपन के वजह से वो चूत की फ़ाँकों पर चिपक सी गयी थी। रुखसाना ने फिर से अपनी पैंटी को नीचे सरकाया और फिर किसी तरह उसे उतार कर देखा। उसकी पैंटी उसकी चूत के लेसदार पानी से एक दम सनी हुई थी। उसने पैंटी को भी बाल्टी में डाल दिया और फिर नहाने लगी। नहाने से उसे बहुत सुकून मिला। नहाने के बाद उसने दूसरे कपड़े पहने और बाथरूम का दरवाज़ा खोला तो उसने देखा कि अज़रा बेड पर लेटी हुई थी और धीरे-धीरे अपनी चूत को सहला रही थी।

रुखसाना को बाथरूम से निकलते देख कर अज़रा ने अपनी चूत से हाथ हटा लिया। रुखसाना आइने के सामने अपने बाल संवारने लगी तो अज़रा ने उससे कहा, "रुखसाना मैं कल घर वापस जाने की सोच रही थी लेकिन अब सोच रही हूँ कि तुम्हारी कमर का दर्द ठीक होने तक कुछ दिन और रुक जाऊँ!" रुखसाना के दिल में तो आया कि अज़रा का मुँह नोच डाले। बदकार कुत्तिया साली पहले तो उसके शौहर को अपने बस में करके उसकी शादीशुदा ज़िंदगी नरक बना दी और ज़िंदगी में अब जो उसे थोड़ी सी इज़्ज़त और खुशी उसे सुनील से मिल रही थी तो अज़ारा सुनील को भी अपने चंगुल में फंसा रही थी। रुखसाना ने कुछ नहीं कहा। कमर में दर्द का नाटक जो उसने अज़रा को जल्दी वापस भेजने के लिये किया था अब अज़रा उसे ही यहाँ रुकने का सबब बना रही थी। अब उसे यहाँ पर तगड़ा जवान लंड जो मिल रहा था।

रात को फ़ारूक घर वापस आया तो वो बहुत खुश लग रहा था... शायद उसे छुट्टी मिल गयी थी। रात को फ़ारूक ही सुनील का खाना उसे ऊपर दे आया। जब फ़ारूक ने अज़रा को बताया कि उसे एक हफ़्ते की छुट्टी मिल गयी है तो अज़रा ने उसे यह कहकर अगले दिन जाने से मना कर दिया कि रुखसाना की तबियत अभी ठीक नहीं है। लेकिन शायद किस्मत अज़रा के साथ नहीं थी। दिल्ली से उसके शौहर का फ़ोन आ गया कि उनके बेटे की बोर्डिंग स्कूल में तबियत खराब हो गयी है और वो जल्दी से जल्दी घर पहुँचे। अज़रा को बेदिल से अगले दिन फ़ारूक के साथ अपने घर जाना ही पड़ा लेकिन उस रात फिर अज़रा और फ़ारूक ने शराब के नशे में चूर होकर खूब चुदाई की। हसद की आग में जलती हुई रुखसाना कुछ देर तक चोर नज़रों से उनकी ऐयाशी देखते-देखते ही सो गयी।

अगली सुबह सुनील भी फ़ारूक और अज़रा के साथ ही स्टेशन पर चला गया था। रुखसाना को सुनील पे भी गुस्सा आ रहा था। उसने कभी सोचा नहीं था कि वो मासूम सा दिखाने वाला सुनील इस हद तक गिर सकता है कि अपने से दुगुनी उम्र से भी ज्यादा उम्र की औरत के साथ ऐसी गिरी हुई हर्कत कर सकता है। उसका सुनील से कोई ज़ाती या जिस्मानी रिश्ता भी नहीं था लेकिन रुखसाना को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि अज़रा और सुनील ने मिल कर उसके साथ धोखा किया है। हालांकि सुनील से कोई जिस्मानी रिश्ता कायम करने का रुखासाना का कोई इरादा बिल्कुल था भी नहीं लेकिन उसे ऐसा क्यों लग रहा था जैसे अज़रा ने सुनील को उससे छीन लिया था। अज़रा तो थी ही बदकार-बेहया औरत लेकिन सुनील ने उसके साथ धोखा क्यों किया। रुखसाना को बिल्कुल वैसा महसूस हो रहा था जैसा पहली दफ़ा अपने शौहर फ़ारूक के अज़रा के साथ जिस्मानी रिश्तों के मालूम होने के वक़्त हुआ था बल्कि उससे भी ज्यादा बदहाली महसूस हो रही थी उसे।

शाम को जब सुनील के आने का वक़्त हुआ तो रुखसाना ने पहले से ही मेन-डोर को खुला छोड़ दिया था ताकि उसे सुनील की शक़्ल ना देखनी पड़े। वो अपने कमरे में आकर लेट गयी। थोड़ी देर बाद उसे बाहर के गेट के खुलने की आवाज़ आयी और फिर अंदर मेन-डोर बंद होने की। रुखसाना को अपने कमरे में लेटे हुए अंदाज़ा हो गया कि सुनील घर पर आ चुका है और थोड़ी देर बाद सुनील ने उसके कमरे के खुले दरवाजे पे दस्तक दी। जैसे ही दरवाजे पे दस्तक हुई तो रुखसाना उठ कर बैठ गयी और उसे अंदर आने को कहा। सुनील पास आकर कुर्सी पर बैठ गया और बोला, "आपका दर्द अब कैसा है..?"

रुखसाना ने थोड़ा रूखेपन से जवाब दिया, "अब पहले से बेहतर है!"

सुनील: "आप दवाई तो समय से ले रही हैं ना?"

रुखसाना: "हाँ ले रही हूँ!"

सुनील: "अच्छा मैं अभी फ्रेश होकर बाहर से खाना ले आता हूँ... आप प्लीज़ खाना बनाने का तकल्लुफ़ मत कीजियेगा... क्या खायेंगी आप...?"

सुनील के दिल में अपने लिये परवाह और फ़िक्र देख कर रुखसाना का गुस्सा कम हो गया और उसने थोड़ा नरमी से जवाब दिया, "कुछ भी ले आ सुनील!"

सुनील उठ कर बाहर जाने लगा तो न जाने रुखसाना के दिमाग में क्या आया और वो सुनील से पूछ बैठी, "तूने ऐसी हर्कत क्यों की सुनील?"

उसकी बात सुन कर सुनील फिर से कुर्सी पर बैठ गया और सिर को झुकाते हुए शर्मसार लहज़े में बोला, "मुझे माफ़ कर दीजिये भाभी... मुझसे बहुत बड़ी गल्ती हो गयी... ये सब अंजाने में हो गया!" उसने एक बार रुखसाना की आँखों में देखा और फिर से नज़रें झुका ली।

"अंजाने में गल्ती हो गयी...? तू तो पढ़ा लिखा है... समझदार है अच्छे घराने से है... तू उस बेहया-बदज़ात अज़रा की बातों में कैसे आ गया...?" सुनील ने एक बार फिर से रुखसाना की आँखों में देखा। इस दफ़ा रुखसाना की आँखों में शिकायत नहीं बल्कि सुनील के लिये फ़िक्रमंदी थी।

सुनील नज़रें नीचे करके बोला, "भाभी सच कहूँ तो आप नहीं मानेंगी... पर सच ये है कि इसमें मेरी कोई गल्ती नहीं है... दर असल कल अज़रा भाभी बार-बार ऊपर आकर मुझे उक्सा रही थी... मैं इन सब बातों से अपना दिमाग हटाने के लिये बाहर बज़ार चला गया... बज़ार में अपने काम निपटा कर मैं लौटते हुए व्हिस्की की बोतल भी साथ लाया था। दोपहर में मैंने सोचा आप दोनों खाने के बाद शायद सो गयी होंगी तो मैं अपने कमरे में ड्रिंक करने लगा। इतने में अचानक अज़रा भाभी ऊपर मेरे कमरे में आ गयीं और बैठते हुए बोली कि अकेले-अकेले शौक फ़र्मा रहे हो सुनील मियाँ हमें नहीं पूछोगे... पीने का मज़ा तो किसी के साथ पीने में आता है... उनकी बात सुनकर मैं सकपका गया और इससे पहले कि मैं कुछ कहता वो खुद ही एक गिलास में अपने लिये ड्रिंक बनाने लगी। फिर ड्रिंक करते -करते वो फिर मुझे अपनी हर्कतों से उक्साने लगीं। मुझे ये सब अटपटा लग रहा था लेकिन अज़रा भाभी तेजी से ड्रिंक कर रही थीं और उन्हें नशा चढ़ने लगा तो उनकी हर्कतें और भी बोल्ड होने लगीं। उन्होंने अपनी कमीज़ के हुक खोल दिये और मेरी टाँगों के बीच में अपना हाथ रख कर दबाते हुए गंदी-गंदी बातें बोलने लगीं। मैंने उन्हें वहाँ से जाने को कहा और आपका वास्ता भी दिया कि रुखसाना भाभी आ जायेंगी लेकिन अज़रा भाभी ने एक नहीं मानी और मुझे नामर्द बोली... मैं फिर भी चुप रहा तो उन्होंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिये और मेरे सामने नंगी होते हुए मुझे गंदी-गंदी गालियाँ देकर उक्साने लगी कि तू हिजड़ा है क्या जो एक खूबसूरत हसीन औरत तेरे सामने नंगी होके खड़ी है और तू मना कर रहा है... भाभी मैंने भी ड्रिंक की हुई थी और आप यकीन करें कि अज़रा भाभी की उकसाने वाली गंदी-गंदी बातों से और उन्हें अपने सामने इस तरह बिल्कुल नंगी खड़ी देख कर खासतौर पे सिर्फ़ हाई हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी... मैं कमज़ोर पड़ गया और मैं इतना उत्तेजित हो गया था कि मुझसे और रुका नहीं गया....!" ये कहते हुए सुनील चुप हो गया।

रुखसाना अब उसकी हालत समझ सकती थी। आखिर एक जवान लड़के के सामने अगर एक औरत नंगी होकर उक्साये तो उसका नतीजा वही होना था जो उसने अपनी आँखों से देखा था। "भाभी मैं सच कह रहा हूँ... मेरा ये पहला मौका था... इससे पहले मैंने कभी ऐसा नहीं किया था... हो सके तो आप मुझे माफ़ कर दें भाभी..!" ये कह कर सुनील ऊपर चला गया। सुनील ने बिल्कुल सच बयान किया था और वाकय में ये उसका चुदाई करने का पहला मौका था। फिर वो थोड़ी देर में फ्रेश होकर नीचे आया तो अभी भी शर्मसार नज़र आ रहा था। रुखसाना ने उसे ढाढस बंधाते हुए कहा कि उसे शर्मिंदा होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है क्योंकि उसकी कोई गल्ती नहीं है। फिर सुनील खुश होकर ढाबे से खाना लेने चला गया। रुखसाना भी उठी और तैयार होकर थोड़ा मेक अप किया और फिर टेबल पर प्लेट और पानी वगैरह रखने लगी। थोड़ी देर में सुनील भी खाना लेकर आ गया। हालांकि सुबह का नाश्ता तो सुनील ने कईं दफ़ा फ़ारूक के साथ नीचे किया था लेकिन आज पहली बार सुनील रात का खाना रुखसाना के साथ नीचे खाना खा रहा था। रुखसाना ने नोटिस किया कि हमेशा खुशमिजाज़ रहने वाला सुनील इस वक़्त काफ़ी संजीदा था और कुछ बोल नहीं रहा था। इसी बीच रुखसाना ने बड़े प्यार और नरमी से पूछा, "सुनील एक और बात बता... वो अज़रा भाभी उस दिन रात को दोबारा भी आयी थी क्या तेरे कमरे में... तेरे साथ.... हमबिस्तर...?"

"जी भाभी वो आयी थीं रात को करीब तीन-साढ़े तीन बजे... मैं गहरी नींद सोया हुआ था... गरमी की वजह से कमरा खुला रखा हुआ था मैंने... जब मेरी आँख खुली तो वो पहले से ही मेरे ऊपर सवार थीं... मैंने फिर एक बार उन्हें संतुष्ट किया और फिर वो नीचे चली गयीं... काफी नशे में लग रही थीं वो!" सुनील ने काफ़ी संजीदगी से जवाब दिया।

खाना खतम करने के बाद जब रुखसाना बर्तन उठाने के लिये उठी तो सुनील ने उसे रोक दिया और बोला, "रहने दें भाभी! मैं कर देता हूँ...!" रुखसाना ने कहा कि नहीं वो कर लेगी पर सुनील ने उसकी एक ना सुनी और उसे बेड पर आराम करने को कह कर खुद बर्तन लेकर किचन में चला गया और बर्तन साफ़ करके सारा काम खतम कर दिया। सुनील फिर से रुखसाना के बेडरूम में आया तो वो बेड पर पीछे कमर टिकाये हुई थी। सुनील ने एक गिलास पानी रुखसाना को दिया और बोला "भाभी जी... बताइये कौन सी दवाई लेनी है आपको!" रुखसाना ने उसे बताया कि उसका दर्द अब काफ़ी ठीक है और अब किसी दवाई की जरूरत नहीं है। तभी सुनील के नज़र साइड-टेबल पे रखी हुई बाम पर गयी तो वो बोला, "चलिये आप लेट जाइये... मैं आपकी कमर पर बाम लगा कर मालिश कर देता हूँ... आपका जो थोड़ा बहुत दर्द है वो भी ठीक हो जायेगा!"

वो सुनील को मना करते हुए बोली, "नहीं रहने दे सुनील... मैं खुद कर लुँगी...!"

सुनील: "आप लगा तो खुद लेंगी पर मालिश नहीं कर पायेंगी... मैं आपकी मालिश कर देता हूँ... आप का रहा सहा दर्द भी ठीक हो जायेगा!" ये कह कर सुनील कुर्सी से उठ कर बेड पर आकर रुखसाना के करीब बैठ गया और उसे लेटने को बोला, "चलिये भाभी जी बताइये कहाँ लगाना है...!" अपने लिये सुनील की इतनी हमदर्दी और फ़िक्र देख कर रुखसाना उसे और मना नहीं कर सकी और ये हकीकत भी बता नहीं पायी कि उसे दर्द तो कभी हुआ ही नहीं था और ये दर्द का तो सिर्फ़ बहाना था अज़रा को परेशान करने का। रुखसाना शर्माते हुए पेट के बल लेट गयी और अपनी कमीज़ को कमर से ज़रा ऊपर उठा लिया और बोली यहाँ कमर पर! सुनील ने थोड़ा सा बाम अपनी उंगलियों पर लगाया और फिर रुखसाना की कमर पर मलने लगा। जैसे ही उसके हाथ का लम्स रुखसाना ने अपनी नंगी कमर पर महसूस किया तो उसका पूरा जिस्म काँप गया। उसकी सिस्करी निकलते-निकलते रह गयी। सुनील ने धीरे-धीरे दोनों हाथों से उसकी कमर की मालिश करनी शुरू कर दी। उसके हाथों का लम्स उसे बेहद अच्छा लग रहा था। कईं दफ़ा उसके हाथों की उंगलियाँ रुखसाना की सलवार के जबर से टकरा जाती तो उसका दिल जोरों से धड़कने लगता। वो मदहोश सी हो गयी थी।

"भाभी ज्यादा दर्द कहाँ पर है?" सुनील ने पूछा तो बिना सोचे ही रुखसाना के मुँह से मदहोशी में खुद बखुद निकल गया कि थोड़ा सा नीचे है!

सुनील ने फिर थोड़ा और नीचे बाम लगाना शुरू कर दिया। भले ही उस मालिश से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला था क्योंकि चोट तो कहीं लगी ही नहीं थी पर फिर भी रुखसाना को उसके हाथों के लम्स से जो सुकून मिल रहा था उसे वो बयान नहीं कर सकती थी। "भाभी जी थोड़ी सलवार नीचे सरका दो ताकि अच्छे से बाम लग सके...!" सुनील की बात सुन कर रुखसाना के ज़हन में उसका वजूद काँप उठा पर उसे सुनील के हाथों का लम्स अच्छा लग रहा था और उसे सुकून भी मिल रहा था। रुखसाना ने तुनकते हुए अपनी सलवार को थोड़ा नीचे के तरफ़ सरकाया। उसने नाड़ा बाँधा हुआ था इसलिये सलवार पूरी नीचे नहीं हो सकती थी पर फिर भी काफ़ी हद तक नीचे हो गयी। "भाभी जी आप तो बहुत गोरी हो... मैंने इतना गोरा जिस्म आज तक नहीं देखा..!" सुनील की बात सुनकर रुखसाना के गाल शर्म के मारे लाल हो गये। वो तो अच्छा था कि रुखसाना उल्टी लेटी हुई थी। रुखसाना को यकीन था कि अकेले कमरे में वो उसे इस तरह अपने पास पाकर पागल हो गया होगा। सुनील ने थोड़ी देर और मालिश की और रुखसाना ने जब उसे कहा कि अब बस करे तो वो चुपचप उठ कर ऊपर चला गया। रुखसाना को आज बहुत सुकून मिल रहा था। आज कईं सालो बाद उसके जिस्म को ऐसे हाथों ने छुआ था जिसके लम्स में हमदर्दी और प्यार मिला हुआ था। सुनील के बारे में सोचते हुए रुखसाना को कब नींद आ गयी उसे पता ही नहीं चला। अगली सुबह जब वो उठी तो बेहद तरो तज़ा महसूस कर रही थी।

नहाने के बाद रुखसाना बहुत अच्छे से तैयार हुई... आसमानी रंग का सफ़ेद कढ़ाई वाला जोड़ा पहना और सफ़ेद रंग के ऊँची हील के सैंडल भी पहने। फिर हल्का सा मेक-अप करने के बाद वो किचन में गयी और नाश्ता तैयार करने लगी। नाश्ता तैयार करते हुए वो बार-बार किचन के दरवाजे पर आकर सीढ़ियों की तरफ़ देख रही थी। सुनील के काम पर जाने का वक़्त भी हो गया था। जैसे ही वो नाश्ता तैयार करके बाहर आयी तो सुनील सीढ़ियों से नीचे उतरा। "आज तो आपकी तबियत काफ़ी बेहतर लग रही है भाभी जी... लगता है कल की मालिश ने काफ़ी असर किया!" उसने रुखसाना के लिबास और फिर उसके पैरों में हाई पेंसिल हील के सैंडलों की तरफ़ देखते हुए अपने होंठों पर दिलकश मुस्कान लाते हुए कहा। बदले में रुखसाना ने भी मुस्कुराते हुए कहा, "असर तो जरूर हुआ पर तुझे कैसे पता?" तो सुनील थोड़ा झेंपते हुए बोला कि "भाभी जी वो आज आपने फिर हमेशा की तरह हाई हील के सैंडल जो पहने हैं... तो मुझे लगा कि कमर का दर्द अब बेहतर है!"

रुखसाना: "बिल्कुल ठीक पहचना तूने... अब डायनिंग टेबल पे बैठ... मैं नाश्ता लेकर आती हूँ!" फिर दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करने लगे। इसी बीच में सुनील ने रुखसाना से पूछा कि, "भाभी जी... आप कभी साड़ी नहीं पहनती क्या?"

रुखसाना: "पहनती हूँ लेकिन बहोत कम... साल में एक-आध दफ़ा अगर कोई खास मौका हो तो... क्यों!"

सुनील: "नहीं बस वो इसलिये कि कभी देखा नहीं आपको साड़ी में... मेरा ख्याल है आप पे साड़ी भी काफ़ी सूट करेगी!"

फिर सुनील जाते हुए रुखसाना से बोला, "भाभी जी, रात का खाना मैं बाहर से ही ले आऊँगा... आप बनाना नहीं..!"

रुखसाना ने मुस्कुराते हुए कहा कि ठीक है तो सुनील ने फिर कहा, "अगर किसी और चीज़ के जरूरत हो तो बता दीजिये... मैं आते हुए लेता आऊँगा!"

रुखसाना ने कहा कि किसी और चीज़ के जरूरत नहीं है और फिर सुनील के जाने के बाद वो घर के छोटे-मोटे कामों में लग गयी। फिर ऊपर आकर सुनील के कमरे को भी ठीकठाक करने लगी। इसी दौरान रुखसाना को उसके बेड के नीचे कुछ पड़ा हुआ नज़र आया। उसने नीचे झुक कर उसे बाहर निकाला तो उसकी आँखें एक दम से फैल गयीं। वो एक लाल रंग की रेशमी पैंटी थी। अब इस डिज़ाइन की पैंटी ना तो रुखसाना के पास थी और ना ही सानिया के पास। तभी रुखसाना को दो दिन पहले का शाम वाला वाक़्या याद आ गया जब सुनील ने अज़रा को इसी कमरे में चोदा था। ये जरूर अज़रा की ही पैंटी थी।

उस पैंटी पर जगह- जगह-जगह चूत से निकले पानी और शायद सुनील के लंड से निकली मनी के धब्बे थे। पैंटी का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं था जिस पर उस दिन हुई घमासान चुदाई के निशान ना हों। रुखसाना ने पैंटी को अपने दोनों हाथों में लेकर नाक के पास ले जाकर सूँघा तो मदहोश कर देने वाली खुश्बू उसके जिस्म को झिनझोड़ गयी। वो पैंटी को लेकर बेड पर बैठ गयी और उसे देखते हुए उस दिन के मंज़रों को याद करने लगी। सुनील का मूसल जैसा लंड अज़रा की चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। रुखसाना एक बार फिर से अपना आपा खोने लगी पर तभी बाहर मेन-गेट पर दस्तक हुई तो उसने उस पैंटी को वहीं बेड के नीचे फेंक दिया और बाहर आकर छत से नीचे गेट की तरफ़ झाँका तो देखा कि पड़ोस में रहने वाली नज़ीला खड़ी थी। "अरे नज़ीला भाभी आप..! मैं अभी नीचे आती हूँ.!" रुखसाना ने जल्दी से सुनील का कमरा बंद किया और नीचे आकर दरवाजा खोला। नज़ीला उसके पड़ोस में रहती थी। उसकी उम्र चालीस साल थी और वो अपने घर में ही ब्यूटी पार्लर चलाती थी। वो दोपहर में कईं बार रुखसाना के घर आ जाया करती थी या उसे अपने यहाँ बुला लेती थी और दोनों इधर-उधर की बातें किया करती थी। उस दिन भी रुखसाना और नज़ीला ने गली मोहल्ले की ढेरों बातें की।

नज़ीला के जाने के बाद वो फिर नहाने चली गयी। सुबह सुनील ने साड़ी का ज़िक्र किया था इसलिये रुखसाना ने नहा कर फिरोज़ा नीले रंग की प्रिंटेड साड़ी पहन ली और साथ में सिल्वर रंग के हाई पेंसिल हील वाले खूबसुरत सैंडल भी पहने। सुनील के आने का समय भी हो चला था। सुनील आज पाँच बजे ही आ गया। जब रुखसाना ने दरवाजा खोला तो वो उसे बड़े गौर से देखने लगा। उसे यूँ अपनी तरफ़ ऐसे घूरता देख कर रुखसाना शरमाते हुए लेकिन अदा से बोली, "ऐसे क्या देख रहा है सुनील!" तो वो मुस्कुराता हुआ बोला, "वॉव भाभी! आज तो आप बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रही हो इस साड़ी में..!" ये कह कर वो अंदर आ गया। वो साथ में रात का खाना भी ले आया था। "भाभी ये खाना लाया हूँ... आप बाद में रात को गरम कर लेना... मैं ऊपर जा रहा हूँ फ्रेश होने के लिये... आप एक गिलास शर्बत बना देंगी प्लीज़?"

रुखसाना उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ क्यों नहीं..!"

फिर सुनील ऊपर चला गया और फ्रेश होकर जब वो नीचे आया तो उसने एक ढीली सी टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहना हुआ था। रुखसाना ने शर्बत बनाया और उसे अपने बेड रूम में ले गयी क्योंकि वहाँ पे कूलर लगा हुआ था। सुनील रूम में आकर बेड के सामने कुर्सी पर बैठ गया और रुखसाना भी बेड पर टाँगें नीचे लटका कर बैठ गयी। दोनों ने इधर उधर की बात की। इस दौरान सुनील ने रुख्सना से पूछा, "भाभी अब आपकी कमर का दर्द कैसा है?"

रुखसाना मुस्कुराते हुए बोली, "अरे अब तो मैं बिल्कुल ठीक हूँ... कल तूने इतनी अच्छी मालिश जो की थी!"

अपना शर्बत का खाली गिलास साइड टेबल पे रखते हुए सुनील उससे बोला, "भाभी आप उल्टी लेट जाओ... मैं एक बार और बाम से आपकी मालिश कर देता हूँ...!"

रुखसाना मना किया कि, "नहीं सुनील! मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ..!" लेकिन सुनील भी फिर इसरार करते हुए बोला, "भाभी आप मेरे लिये इतना कुछ करती है... मैं क्या आपके लिये इतना भी नहीं कर सकता... चलिये लेट जाइये!"

रुखसाना सुनील के बात टाल ना सकी और अपना खाली गिलास टेबल पे रखते हुए बोली, "अच्छा बाबा... तू मानेगा नहीं... लेटती हूँ... पहले सैंडल तो खोल के उतार दूँ!"

"सैंडल खोलने की जरूरत नहीं है भाभी... इतने खूबसूरत सैंडल आपके हसीन गोरे पैरों की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ा रहे हैं... आप ऐसे ही लेट जाइये!" सुनील किसी बच्चे की तरह मचलते हुए बोला तो रुखसान को हंसी आ गयी और वो उसकी बात मान कर बेड पर लेट गयी। क्योंकि आज उसने साड़ी पहनी हुई थी इसलिये उसकी कमर पीछे से सुनील की आँखों के सामने थी। सुनील ने बाम को पहले अपनी उंगलियों पर लगाया और रुखसाना की कमर को दोनों हाथों से मालिश करना शुरू कर दिया। "एक बात बता सुनील! तुझे मेरा ऊँची हील वाले सैंडल काफ़ी पसंद है ना?" रुखसाना ने पूछा तो इस बार सुनील का चेहरा शरम से लाल हो गया। वो झेंपते हुए बोला, "जी... जी भाभी आप सही कह रही हैं... आपको अजीब लगेगा लेकिन मुझे लेडिज़ के पैरों में हाई हील वाले सैडल बेहद अट्रैक्टिव लगते हैं... और संयोग से आप तो हमेशा हाई हील की सैंडल या चप्पल पहने रहती हैं!"

"अरे इसमें शर्माने वाली क्या बात है... और मुझे बिल्कुल अजीब नहीं लगा... मैं तेरे जज़्बात समझती हूँ... कुछ कूछ होता है... है ना?" रुखसाना हंसते हुए हुए बोली। सुनील के हाथों की मालिश से पिछले दिन की तरह ही बेहद मज़ा आ रहा था। सुनील के हाथ अब धीरे-धीरे नीचे की तरफ़ बढ़ने लगे। रुखसाना को मज़ाक के मूड में देख कर सुनील भी हिम्मत करते हुए बोला, "भाभी... आपकी स्किन कितनी सॉफ्ट है एक दम मुलायम... भाभी आप अपनी साड़ी थोड़ा नीचे सरका दो... पूरी कमर पे नीचे तक अच्छे से मालिश हो जायेगी और साड़ी भी गंदी नहीं होगी।" रुखसाना ने थोड़ा शर्माते हुए अपनी साड़ी में हाथ डाला और पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और पेटीकोट और साड़ी ढीली कर दी। रुखसाना को पिछली रात मालिश से बहुत सुकून मिला था और बहुत अच्छी नींद भी आयी थी इसलिये उसने ना-नुक्कर नहीं की। जैसे ही रुखसाना की साड़ी ढीली हुई तो सुनील ने उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर अपनी उंगलियों को डाल कर उसे नीचे सरका दिया पर रुखसाना को तभी एहसास हुआ कि उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है। रुखसाना ने नीचे पैंटी ही नहीं पहनी हुई थी... पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके आधे से ज्यादा चूतड़ अब सुनील की नज़रों के सामने थे।

सुनील ने कोई रीऐक्शन नहीं दिखाया और धीरे-धीरे कमर से मालिश करते हुए अपने हाथों को रुखसाना के चूतड़ों की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया। उसके हाथों का लम्स रुखसाना के जिस्म के हर हिस्से को ऐसा सुकून पहुँचा रहा था जैसे बरसों के प्यासे को पानी पीने के बाद सुकून मिलता है। वो चाहते हुए भी एतराज नहीं कर पा रही थी। वो बस लेटी हुई उसके छुने के एहसास का मज़ा ले रही थी। रुखसाना की तरफ़ से कोई ऐतराज़ ना देख कर सुनील की हिम्मत बढ़ी और अब उसने रुखसाना के आधे से ज्यादा नंगे हो चुके गुदाज़ चूतड़ों को जोर-जोर से मसलना शुरू कर दिया। रुखसाना की साड़ी और पेटीकोट सुनील के हाथ से टकराते हुए थोड़ा-थोड़ा और नीचे सरक जाते। रुखसाना को एहसास हो रहा था कि अब सुनील को उसके चूतड़ों के बीच की दरार भी दिखायी दे रही होगी। उसने शरम के मारे अपने चेहरे को तकिये में छुपा लिया और अपने होंठों को अपने दाँतों में भींच लिया ताकि कहीं वो मस्ती में आकर सिसक ना पड़े और उसकी बढ़ती हुई शहवत और मस्ती का एहसास सुनील को हो। सुनील उसके दोनों गोरे-गोरे गोल-गोल चूतड़ों को बाम लगाने के बहाने से सहला रहा था। रुखसाना को भी एहसास हो रहा था कि सुनील बाम कम लगा रहा था और सहला ज्यादा रहा था। जब रुखसाना ने फिर भी ऐतराज ना किया तो सुनील और नीचे बढ़ा और चूतड़ों को जोर-जोर से मसलने लगा। थोड़ी देर बाद उसके हाथों की उंगलियाँ रुखसाना की गाँड की दरार में थी। फिर उसने अचानक से रुखसाना के दोनों चूतड़ों को हाथों से चौड़ा करते हुए फैला कर बीच की जगह देखी तो रुखसाना साँस लेना ही भूल गयी। रुखसाना को एहसास हुआ की शायद सुनील ने उसके चूतड़ों के फैला कर उसकी गाँड का छेद और चूत तक देख ली होगी लेकिन रुखसाना अब तक सुनील हाथों के सहलाने और मसलने से बहुत ज्यादा मस्त हो गयी थी और उसकी चूत गीली और गीली होती चली जा रही थी। वो ये सोच कर और शरमा गयी कि सुनील उसकी बिल्कुल मुलायम और चिकनी चूत को देख रहा होगा जिसे उसने आज सुबह ही शेव किया था। उसकी चिकनी चूत को देखने वाला आज तक था ही कौन लेकिन उसके घर में रहने वाला किरायेदार आज उसके चूतड़... उसकी गाँड और उसकी चिकनी चूत को देख रहा था और वो भी पड़े-पड़े नुमाईश कर रही थी। ये सोच कर उसका दिल जोर-जोर से धक-धक करने लगा कि कहीं सुनील को उसकी चूत के गीलेपन का एहसास ना हो जाये।