मजबूर (एक औरत की दास्तान)

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पर थोड़ी देर में जब सुनील ने जानबूझकर या अंजाने में रुखसाना की गाँड के छेद को अपनी उंगली से छुआ तो वो एक दम से उचक पड़ी। उसके जिस्म में जैसे करंट लग गया हो... जैसे तन-बदन में आग लग गयी हो। रुखसाना ने एक दम से सुनील का हाथ पकड़ कर झटक दिया और उसके मुँह से निकल पड़ा, "हाय आल्लाह ये क्या कर रहा है तू...?" रुखसाना उससे दूर होते हुए उठ कर बैठ गयी। रुखसाना एक दम से घबरा गये थी और सुनील तो उससे भी ज्यादा घबरा गया था। रुखसाना को उसका इरादा ठीक नहीं लगा और घबराहट में वो एक दम से बेड से नीचे उतर कर खड़ी हो गयी। पर उसके खड़े होने का नतीजा ये हुआ कि गजब हो गया... उसकी साड़ी और पेटीकोट कमर से खुले हुए थे... जब वो खड़ी हुई तो साड़ी और पेटीकोट दोनों सरक कर उसके पैरों में जा गिरे। रुखसाना नीचे से एक दम नंगी हो गयी। इस तरह से अपने किरायेदार और बीस साल के जवान लड़के के सामने नंगी होने में उसकी शरम की कोई इंतेहा ना रही। उसे कुछ नहीं सूझा... दिमाग ने काम करना बंद कर दिया... साँस जैसे अटक गयी थी! वो घबराहट में वहीं जमीन पर बैठ गयी। इससे पहले कि रुखसाना को कुछ समझ आता... तब तक सुनील ने उसे गोद में उठा कर बेड पर डाल दिया और अगले ही पल वो हुआ जिसका रुखसाना ने तसव्वुर तक नहीं किया था कि आज उसके साथ ये सब होगा।

रुखसाना को पलंग पर पटकते ही सुनील खुद रुखसाना पर चढ़ गया। अगले ही पल रुखसाना उसके नीचे थी और वो रुखसाना के ऊपर था। उसके बाद अगले ही पल सुनील ने रुखसाना की टाँगों को हवा में उठा दिया। रुखसाना को वो कुछ भी सोचने समझने का मौका नहीं दे रहा था। अगले ही पल वो रुखसाना की टाँगों के बीच में जगह बना चुका था और पाँचवे सेकेंड में ही उसका शॉर्ट्स और अंडरवियर उसके जिस्म से अलग हो गये और उसके अगले ही पल उसने अपने लंड को हाथ में लेकर अपने लुंड का मोटा सुपाड़ा रुखसाना की चूत के छेद पर लगा दिया। एक मोटी सी गरम सी कड़क सी चीज़ रुखसाना को अपनी चूत के अंदर जाती हुई महसूस हुई।

बस फिर क्या था... शाम के वक़्त में रुखसाना के अपने कमरे में एक बीस-इक्कीस साल का किरायेदार और चौंतीस-पैंतीस साल की मकान माल्किन औरत और मर्द बन गये थे! रुखसाना की तो मस्ती में साँसें उखड़ने लगी थीं... जिस्म ऐंठ गया था... आँखें झपकना भूल गयी थी... और ज़ुबान सूखने लगी थी। उसे कुछ होश नहीं था कि क्या हो रहा है. सुनील कर रहा था... और वो चुपचप उसे करने दे रही थी... वो ना तो उसे रोक रही थी और ना ही उसे उक्सा रही थी। वो बिना कुछ बोले अपनी टाँगें उठाये और सुनील की कमर में हाथ डाले लेटी रही और सुनील का मोटा मूसल जैसा लंड उसकी चूत को रौंदता रहा रगड़ता रहा... पता नहीं कब तक रुखसाना को चोदता रहा। ऐसा नहीं था कि रुखसाना को मज़ा नहीं आ रहा था पर वो जैसे कि सक्ते की हालत में थी। जिस्म तो चुदाई के मज़े ले रहा था लेकिन दिमाग सुन्न था। फिर उसकी चूत को सुनील ने अपने गाढ़े वीर्य से भर दिया। रुखसाना अपने गैर-मज़हब वाले इक्कीस साल के किरायेदार के लंड के पानी से तरबर्तर हो चुकी थी।

जैसे ही सुनील रुखसाना के ऊपर से उठा तो वो भी काँपती हुई बिस्तर से उठी और सिर्फ़ ब्लाउज़ और सैंडल पहने नंगी हालत में ही बाथरूम में चली गयी। उसके दिल में उलझने बढ़ने लगीं कि हाय ये मैंने क्या कर दिया... शादीशुदा होकर दूसरे मर्द से चुदवा लाया... वो भी सानिया की उम्र के लड़के से... खुद से पंद्रह साल छोटे लड़के से गैर मज़हब वाले लड़के से... नहीं ये गलत है... सरासर गलत है... जो हुआ नहीं होना चाहिये था... मैं कैसे बहक गयी... अब क्या होगा...! रुखसाना बाथरूम में कमोड पे बैठ कर मूतने लगी। उसे बहोत तेज पेशाब लगी थी। उसने झुक कर देखा तो उसकी रानें और चूत उसकी चूत के पानी और सुनील के वीर्य से चिपचिपा रही थी। मूतने के बाद रुखसाना खड़ी हुई और टाँगें थोड़ी चौड़ी करके उसने अपनी चूत की फ़ाँकों को फैलाते हुए चूत की माँसपेशियों पर जोर लगाया तो सुनील का वीर्य उसकी चूत से बाहर टपकने लगा। एक के बाद एक वीर्य की कईं बड़ी-बड़ी बूँदें उसकी चूत से बाहर नीचे गिरती रही। फिर उसने अपनी चूत और रानों को पानी से साफ़ किया। उसने सोचा कि कल सुबह -सुबह केमिस्ट की दुकान से बच्चा ना ठहरने की दवाई ले आयेगी। फिर वो अपना ब्लाऊज़ और सैंडल निकाल कर नहाने लगी। फिर तौलिया लपेट कर वो बाथरूम से निकल कर बाहर आयी। सुनील ऊपर जा चुका था। रुखसाना ने अलमारी में से सलवार सूट निकाल कर पहन लिया और बाल संवार कर आदतन थोड़ा मेक-अप किया और अपने बेड पर जाकर गिर पड़ी। शाम के छः बज रहे थे। खुमारी में उसे नींद आ गयी। वो आज कईं सालों बाद चुदी थी... चुदाई अंजाने में अचानक हुई थी पर चुदाई तो चुदाई है! रुखसाना मुतमाईन होकर ऐसे मीठी नींद सोयी कि रात के नौ बजे बाहर डोर-बेल बजने की आवाज़ से ही उठी। उसने घड़ी में वक़्त देखा तो नौ बज रहे थे। उसके मुँह से निकला, "हाय अल्लाह ये क्या नौ बज गये...!" वो जल्दी से उठी और बाहर जाकर दरवाजा खोला तो बाहर नज़ीला खड़ी थी और उसके साथ में उसका छोटा बेटा सलील था जो महज आठ साल का था।

"नज़ीला भाभी आप इस वक़्त... खैरियत तो है ना?" रुखसाना ने पूछा तो नज़ीला बोली, "रुखसाना मेरे अब्बू की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गयी है... अभी फ़ोन आया है... मैं और अकरम साहब अभी वहाँ के लिये रवाना हो रहे है... तुम सलील को दो दिन के लिये अपने पास रख लो प्लीज़ हम दो दिन बाद वापस आ जायेंगे!"

रुखसाना ने कहा कि, "कोई बात नहीं भाभी जान ये भी तो आपका अपना ही घर है... आप इसे छोड़ कर बेफ़िक्र होकर जायें!"

उसके बाद नज़ीला सलील को रुखसाना के पास छोड़ कर चली गयी। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और सलील के साथ अंदर आ गयी। उसने एक बार फिर से घड़ी की तरफ़ नज़र डाली तो नौ बज के पाँच मिनट हो रहे थे। उसने टीवी चालू किया और सलील से पूछा कि उसने खाना खाया है कि नहीं तो वो बोला, "नहीं आँटी अभी नहीं खाया!" रुखसाना ने उसे कहा कि, "तुम टीवी देखो... मैं खाना गरम कर के लाती हूँ..!" वो किचन में गयी और खाना गरम करने लगी। खाना काफ़ी था इसलिये किसी बात की परेशानी नहीं थी। उसने खाना गरम किया और फिर डायनिंग टेबल पर लगा दिया और सलील को खाना परोस कर उसके साथ कुर्सी पर बैठ गयी।

सुनील अभी तक खाना खाने नहीं आया था। रुखसाना उसे ऊपर जाकर भी नहीं बुलाना चाहती थी क्योंकि उसकी तो सुनील से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जो कुछ भी हुआ उसके पीछे कसूर किसका है... उसका खुद का या सुनील का। वो अभी यही सोच रही थी कि सुनील के कदमों की आहट सुन कर सुनकर उसका ध्यान टूटा। रुखसाना उसकी तरफ़ देखे बिना बोली, "खाना खा ले सुनील... गरम कर दिया है!" सुनील उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ कर खाना खाने लगा। रुखसाना भी खाना खा रही थी। वो अपनी नज़रें भी नहीं उठा पा रही थी। बार-बार उसके जहन में यही ख्याल आ रहा था कि शादीशुदा होते हुए भी उसने ये कैसा गुनाह कर डाला। खाना खाते हुए सुनील ने पूछा, "ये साहब कौन हैं भाभी?"

रुखसाना ने नज़रें झुकाये हुए ही जवाब दिया, "ये पड़ोस की नज़ीला भाभी का बेटा है... उनके वालिद की तबियत खराब हो गयी अचानक तो वो उनके यहाँ गये हैं!" फिर ना वो कुछ बोला और ना ही रुखसाना। सुनील ने खाना खाया और उसे गुड नाइट बोल कर ऊपर चला गया। उसने बर्तन उठा कर किचन में रखे और अपने रूम में आकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। रुखसाना सलील के साथ जाकर बेड पर लेट गयी। सलील तो बेचारा मासूम सा बच्चा था... जल्द ही सो गया। रुखसाना अभी तक जाग रही थी। शाम को तीन घंटे तक सोने की वजह से नींद भी नहीं आ रही थी और आज तो उसकी ज़िंदगी ही बदल गयी थी। वो दो हिस्सों में बट गयी थी... दिल और दिमाग! दिल कह रहा था कि जो हुआ ठीक हुआ और दिमाग गलत करार दे रहा था। दिल कह रहा था कि शादीशुदा होते हुए भी अपने शौहर के होते हुए भी वो एक बेवा जैसी ज़िंदगी जी रही थी... और अगर अल्लाह तआला ने उसकी सुन कर उसके लिये एक लंड का इंतज़ाम कर दिया है तो क्या बुराई है। रुखसाना यही सब सोच रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई। घर में उसके और सलील और सुनील के अलावा कोई नहीं था तो ज़ाहिर है सुनील ही होगा। रुखसाना ने सोचा कि अब वो क्यों आया है। उसका दिल फिर जोर से धड़कने लगा। वो चुपचाप लेटी रही पर फिर से दस्तक हुई।

सलील कहीं उठ ना जाये... भले ही वो मासूम था पर कहीं उसे किसी तरह का शक हो गया तो यही सोचकर रुखसाना उठी और धीरे से जाकर दरवाजा खोला। सामने सुनील ही था। उसे देख कर रुखसाना झेंप गयी, "अब क्या है क्यों आये हो यहाँ पर...?"

"भाभी जी मैं अंदर आ जाऊँ?" सुनील ने पूछा तो रुखसाना ने उसे मना करते हुए कहा कि, "नहीं तू जा अभी यहाँ से..!" ये कह कर रुखसाना ने दरवाजा बंद कर दिया। उसकी साँसें तेज हो गयी थी। वो सोचने लगी कि "ये तो अंदर आने को कह रहा है... क्या करेगा अंदर आकर... मुझे फिर से चोदेग...? हाय अल्लाह सलील भी तो कमरे में है... दोबारा चुदाई... तौबा मेरी तौबा एक दफ़ा गल्ती कर दी अब नहीं..!" तभी उसके दिल के कोने से आवाज़ आयी, "तो क्या हो गया इसमें सब करते हैं... अब एक बार तो तू कर चुकी है... एक बार और कर लिया तो क्या है? अगर दोबारा भी करवा लिया तो क्या बिगड़ जायेगा... अल्लाहा तआला ने मौका दिया है इसे ज़ाया ना जाने दे... बार-बार ऐसे मौके नहीं आने वाले ज़िंदगी में... पिछले दस सालों से तरसी है इसके लिये..!" रुखसाना बेड पर बैठी सोचती रही, "मौका मिला है तो रुखसाना इसका फ़ायदा उठा... आधी से ज्यादा जवानी तो यूँ ही निकल गयी... बाकी भी ऐसे ही निकल जायेगी... अच्छा भला आया था बेचारा... उसे तो कोई और मिल जायेंगी... वो तो अभी-अभी जवान हुआ है... शादी भी होगी... तेरा कौन है... वो फ़ारूक जिसने तुझे कभी प्यार से छुआ तक नहीं... ये सब गुनाह ये गलत है... वो गलत है... इन ही सब में ज़िंदगी निकल गयी... उधर अज़रा को देख ज़िंदगी के मज़े ले रही है... तू तो उससे कहीं ज्यादा हसीन है तुझे हक नहीं है क्या ज़िंदगी के लुत्फ़ उठाने का!" यही सब सोचते-सोचते थोड़ी देर गुज़रने के बाद रुखसाना के दिल और दिमाग की जंग में आखिरकार दिमाग की शिकस्त हुई।

रुखसाना को अब सुनील के साथ अपने रवैय्ये के लिये बुरा महसूस होने लगा। फिर वो कुछ सोचकर मुस्कुराते हुए उठी और अलमारी में से एक बेहद दिलकश सुर्ख रंग का जोड़ा निकाल कर बाथरूम में जा कर कपड़े बदले। फिर कमरे में आकर अच्छा सा मेक-अप किया और लाल रंग के ही ऊँची पेन्सिल हील वाले कातिलाना सैंडल पहने। ये सोच कर रुखसाना के होंठों पे मुस्कुराहट आ गयी कि अगर सुनील उससे खफ़ा भी होगा तो और कुछ नहीं तो उसे ये कातिलाना सैंडल पहने देख कर तो जरूर घायल होकर उसके कदमों में गिर पड़ेगा। फिर उसने पर्फ्यूम लगाया और एक दफ़ा तसल्ली करी कि सलील गहरी नींद सो रहा है और फिर लाइट बंद करके बेडरूम से बाहर निकल कर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। रुखसाना आहिस्ता-आहिस्ता सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर जाने लगी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। जब वो ऊपर पहुँची तो सुनील के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और कमरे में नाईट लैम्प की हल्की सी रोशनी थी। जब वो उसके दरवाजे तक पहुँची तो उसे हैरानी हुई कि सुनील तो अंदर था ही नहीं। तभी उसे अपने पीछे सुनील के कदमों आहट आयी तो वो पलटी। उसने देखा सुनील के हाथ में शराब का गिलास था। शायद वो इतनी देर से छत पर शराब पी रहा था। सुनील उसके करीब आया तो रुखसाना झिझकते हुए बोली, "तू सोया नहीं अब तक...?"

सुनील ने आगे बढ़ कर रुखसाना के एक हाथ को अपने हाथ में थाम लिया। उसके मर्दाना हाथ का एहसास पाते ही रुखसाना पे नशा सा होने लगा। "मुझे यकीन था आप जरूर आओगी..!" ये कह कर सुनील ने उसे अपनी तरफ़ खींचा और वो उसकी तरफ़ खिंचती चली गयी... बिना किसी मुज़ाहिमत किये। सुनील ने उसे अपनी बाहों में भर लिया। उसके चौड़े सीने से लग कर रुखसाना को जवानी का अनोखा सुकून मिलने लगा। रुखसाना ने उसके चौड़े सीने में अपना चेहरा छुपा लिया और बोल पड़ी, "सुनील मुझे डर लगता है..!" सुनील ने उसकी कमर को अपनी बाहों में और जकड़ लिया। "डर... कैसा डर भाभी?"

रुखसाना उसकी बाहों में कसमसायी। अपने जवान जिस्म को सुनील की जवान बाहों की गिरफ़्त में उसे बहुत अच्छा लग रहा था। रुखसाना फुसफुसाते हुए बोली, "कोई देख लेगा!"

सुनील बोला, "यहाँ और कौन है जो देख लेगा..!"

रुखसाना: "नीचे सलील है वो..."

सुनील: "अरे वो तो अभी छोटा है... उसे क्या समझ..!"

रुखसाना: "और अगर कुछ ठहर गया तो..?"

सुनील: "क्या...?" सुनील को शायद समझ में नहीं आया था। रुखसाना एक दम से शरमा गयी। वो थोड़ी देर रुक कर बोली, "अगर मैं पेट से हो गयी तो?" सुनील के ज़रिये प्रेग्नेन्ट होने की बात से रुखसाना के जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गयी। सुनील उसकी पीठ को सहलाते हुए बोला, "ऐसा कुछ नहीं होगा..!" रुखसाना ने उसकी आँखों में सवालिया नज़रों से देखा तो वो मुस्कुराते हुए बोला, "मैं कल बज़ार से आपके लिये बच्चा ना ठहरने वाली दवाई ला दुँगा... वैसे मुझे लगता है कि अब आपको रोज़ाना ये गोलियाँ लेने की जरूरत पड़ने वाली है..!" रुखसाना उसकी बात सुन कर सिर झुका कर मुस्कुराने लगी। सुनील ने उसे अपनी बाहों में और जोर से भींच लिया। रुखसाना की चूचियाँ उसके सीने में दब गयीं। सुनील ने उसके चूतड़ों को जैसे ही हाथ लगाया तो रुखसाना एक दम से मचल उठी और बोली, "सुनील यहाँ नहीं..!"

सुनील उसका इशारा समझ गया और उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए अपने कमरे में ले गया। जैसे ही रुखसाना उसके कमरे में दाखिल हुई तो उसकी धड़कनें बढ़ गयी। शाम को तो सब इतनी जल्दी हुआ था कि उसे कुछ समझ में ही नहीं आया था।

कमरे में आते ही सुनील ने लाइट जला दी और रुखसाना को पीछे से बाहों में भर लिया। रुखसाना ने धीरे से अपनी पीठ उसके सीने से सटा ली। सुनील के हाथ में शराब का आधा भरा गिलास अभी भी मौजूद था। उसने अपने होंठों को रुखसाना की गर्दन पर रखा तो रुखसाना का तो रोम-रोम काँप गया। "रुखसाना भाभी आज तो आपका हुस्न कुछ ज्यादा ही कहर ढा रहा है..!" सुनील बुदबुदाते हुए बोला। सुनील ने आज दूसरी बार उसे नाम से पुकारा था। सुनील के होंठ रुखसाना की गर्दन पे और उसका एक हाथ रुखसाना के स्लिम पेट और नाभि के आसपास थिरक रहा था। सुनील के हाथ के सहलाने और अपनी गर्दन पे सुनील के होंठों और गर्म साँसों का एहसास रुखसाना को बहुत अच्छा लग रहा था... वो मदहोश हुई जा रही थी। दो दफ़ा शादीशुदा होने के बावजूद पहली बार उसे ऐसा मज़ा और इशरत नसीब हो रही थी।

"घायल करके रख दिया भाभी आपके हुस्न ने मुझे!" रुख्साना की गर्दन को चूमते हुए सुनील बोला और फिर अपना शराब का गिलास रुखसाना के होंठों से लगा दिया। रुख्सना उसकी गिरफ़्त में कसमसाते हुए शराब का गिलास अपने होंठों से ज़रा दूर करते हुए बोली, "नहीं सुनील... मैं नहीं... पी नहीं कभी!"

"थोड़ी सी तो पी कर देखो भाभी आपके इन सुर्ख होंठों में जब ये शराब थिरकेगी तो शराब और आपके हुस्न का नशा मिलने से ऐसा नशा तैयार होगा कि कयामत आ जायेगी..!" सुनील रुखसाना की गर्दन पे अपने होंठ फिराते हुए बोला। रुखसाना तो पहले ही सुनील के आगोश में मदहोश हुई जा रही थी और सुनील की शायराना बातों से वो बिल्कुल बहक गयी और उसकी तमाम ज़हनी हिचकिचाहट काफ़ूर हो गयी। सुनील ने जैसे ही गिलास फिर से उसके होंठों से लगाया तो रुखसाना फ़ौरन अपने सुर्ख होंठ खोलकर शराब पीने लगी। शुरू-शुरू में तो रुखसाना को ज़ायका ज़रा सा कड़वा जरूर लगा लेकिन फिर दो-तीन घूँट पीने के बाद उसे ज़ायका भाने लगा। इसी तरह एक हाथ से रुखसाना के जिस्म को सहलाते हुए और उसकी गर्दन पे अपनी नाक रगड़ते और उसे चूमते हुए सुनील ने गिलास में मौजूद सारी शराब रुखसाना को पिलाने के बाद ही उसके होंठों से गिलास हटाया।

उसके बाद सुनील ने रुखसाना को अपनी तरफ़ घुमाया और उसे ऊपर से नीचे तक निहारते हुए बोला, "रुखसाना भाभी इतनी हॉट लग रही हो आज कि बस ज्या कहूँ... और इन हाई हील सैंडलों में आपके ये खूबसूरत पैर तो मुझे पागल कर रहे हैं... दिल कर रहा है कि चूम लूँ इन्हें!" रुखसाना पे शराब की हल्की-हल्की खुमारी छाने लगी थी। अपनी तारीफें सुनकर पहले तो वो थोड़ी शर्मा गयी लेकिन फिर शरारत भरी नज़रों से उसे देखते हुए बोली, "तो कर ले ना अपनी हसरत पूरी... रोका किस ने है!"

इतना सुनते ही सुनील फ़ौरन रुखसाना के कदमों पे झुक गया और उसके गोरे-गोरे नर्म पैरों और सैंडलों कि तनियों को कुत्ते की तरह चूमने-चाटने लगा। रुखसाना को यकीन ही नहीं हो रहा थी कि कोई उसे इस कदर भी चाहता है कि इस तरह उसके पैरों को उसके सैंडलों को चूम रहा है। उसके जिस्म में मस्ती भरी सनसनी सी दौड़ गयी। उसके दोनों पैर चूमने के बाद सुनील ने उठ कर फिर रुखसाना को अपने आगोश में ले कर उसके जिस्म पे हाथ फिराता हुआ उसकी गर्दन पे चूमने लगा।

रुखसाना भी सुनील के मर्दाना आगोश में मस्ती में कसमसा रही थी। शराब की खुमारी उसकी मस्ती को और ज्यादा बढ़ा रही थी। उसने भी अपनी बाँहें सुनील की कमर में डाल राखी थी। जब उसे लगा कि सुनील शायद अब उसके कपड़े उतारने शुरू करेगा तो रुखसाना ने धीरे से सुनील को कमरे का दरावाजा बंद करने को कहा तो सुनिल बोला, "यहाँ कौन आ जायेगा इस वक़्त?"

लेकिन रुखसाना इसरार करते हुए बोली, "हुम्म्म तू दरवाजा लॉक कर दे ना प्लीज़?"

सुनील ने उसे छोड़ा और दरवाजा लॉक कर दिया और फिर से रुखसाना को पीछे से जकड़ लिया तो वो उसकी बाहों में कसमसाते हुए फिर फुसफुसाते हुए बोली, "सुनील लाइट भी..!"

सुनील बोला, "रहने दो ना भाभी.. मैं आज आपके हुस्न का दीदार करना चाहता हूँ..!" और रुखसाना के पेट से होते हुए उसके हाथ रुखसाना की चूचियों के तरफ़ बढ़ने लगे।

"मुझे शरम आती है सुनील... लाईट ऑफ कर दे ना... नाईट लैम्प की रोशनी काफ़ी होगी!" अपनी चूचियों पे सुनील के हाथों का दबाव महसूस होने से रुखसाना सिसकते हुए बोली। सुनील ने एक बार फिर से उसे छोड़ा और थोड़े बेमन से लाइट ऑफ़ कर दी। लेकिन सुनील ने देखा कि वाकय में नाईट लैम्प की काफी रोशनी थी और खुली खिड़कियों से कमरे में चाँद की भी काफी रोशनी आ रही थी। इतनी रोशनी रुखसाना के हुस्न का दीदार करने के लिये काफ़ी थी। अब उससे और सब्र नहीं हो रहा था और वो रुखसाना को लेकर बेड पर आ गया।

एक बार फिर से रुखसाना की चुदने की घड़ी आ गयी थी। बेड पर आते ही सुनील उसके साथ गुथमगुथा हो गया। उसके हाथ कभी रुखस्ना की पीठ पर तो कभी उसके चूतड़ों पर घूम रहे थे। रुखसाना उससे और वो रुखसाना से चिपकने लगा। रुखसाना की चूचियाँ बार-बार सुनील के सीने से दबी जा रही थी। रुखसाना का इतने सालों में और सुनील के साथ भी चुदाई का दूसरा ही मौका था इसलिये रुखसाना ज़रा शरम रही थी... शराब की खुमारी के बावजूद वो बहोत ज्यादा खुल कर साथ नहीं दे रही थी।

सुनील ने पहले उसकी कमीज़ उतारी और फिर सलवार और फिर उसकी पैंटी भी खींच कर निकाल दी। रुखसाना के जिस्म पे अब सिर्फ़ काली ब्रा बची थी और पैरों में ऊँची हील वाले लाल सैन्डल। सुनील उसकी बड़ी-बड़ी गुदाज़ चूचियाँ ब्रा के ऊपर से ही दबाने और मसलने लगा जो रुखसाना को बहुत अच्छा लग रहा था। दस सालों में पहली बार उसकी चूचियों को मर्दाना हाथों का मसलना नसीब हुआ था। रुखसाना की हालत खराब हो गयी थी और उसके होंठों से बे-इख़्तियार सिसकियाँ निकल रही थीं। जब सुनील ने उसकी ब्रा को खोला तो रुखसाना की साँस बहोत तेज चल रही थी और दिल ज़ोर-ज़ोर से धक-धक कर रहा था। जिस्म का सारा खून उसे अपनी चूत की तरफ़ सिमटता हुआ महसूस हो रहा था। अब रुखसाना उस बिस्तर पर सिर्फ़ सैंडल पहने एक दम नंगी पड़ी थी... वो भी अपने किरायेदार के साथ। सोच कर ही रुखसाना की चूत मचलने लगी कि वो अपने से पंद्रह साल छोटे जवान लड़के के साथ उसके ही बिस्तर पे एक दम नंगी लेटी हुई थी।

इतने में सुनील ने भी अपने कपड़े उतार दिये और अगले ही पल वो रुखसाना के ऊपर आ चुका था। उसने रुखसाना की टाँगों को उठा कर उसके पैर अपने कंधों पे रखे और अपना मूसल जैसा सख्त अनकटा लंड रुखसाना की चूत के छेद पर लगा दिया और फिर धीरे-धीरे दबाते हुए लंड को अंदर घुसेड़ने लगा। वो घुसेड़ता गया और रुखसाना उसके लंड को अंदर समेटती गयी। जैसे ही उसका लंड रुखसाना की चूत के गहराइयों में पहुँचा, तो वो एक दम मस्त हो गयी। सुनील एक पल भी ना रुका, और अपने लंड को रुखसाना की चूत के अंदर बाहर करने लगा। रुखसाना को लग जैसे कि वो जन्नत की हसीन वादियों में उड़ रही हो। ऐसा सुकून और लुत्फ़ उसे आज तक नहीं मिला था। जैसे ही वो अगला शॉट लगाने के लिये अपना लौड़ा रुखसान की फुद्दी से बाहर निकालता तो रुखसाना की कमर उसके लौड़े को अपनी फुद्दी मैं लेने के लिये बे-इख़्तियार ऊपर की तरफ़ उठ जाती और सुनील का लंड फिर से चूत की गहराइयों में उतर जाता।

सुनील एक स्पीड से बिना रुके अपने लौड़े को अंदर-बाहर करता रहा। इस तरह चोदते हुए ना ही वो रुखसाना के मम्मों से खेला और ना ही कोई चूमा चाटी की चुदाई का आखिर था तो वो भी नया खिलाड़ी। दो बार अज़रा को चोदा था और आज रुखसाना को दूसरी बार चोद रहा था। करीब दस मिनट बाद रुखसाना को ऐसा लगा जैसे उसकी चूत के नसें ऐंठने लगी हों। रुखसाना को अपनी चूत की दीवारें सुनील के लंड के इर्द गिर्द कसती हुई महसूस होने लगी और फिर उसकी चूत से पानी का दरिया बह निकला। रुखसाना झड़ कर बेहाल हो गयी। "ओहहह सुनीईईल मेरीईईई जाआआआन आँहहहह...!" रुखसाना ने जोर से चींखते हुए सुनील को अपनी बाहों में कस लिया। सुनील ने उसकी चूत में अपना लंड पेलते हुए पूछा, "क्या कहा भाभी आपने?" रुखसाना अभी भी झड़ रही थी और चूत में अभी भी जकड़ाव हो रहा था। रुखसाना मस्ती की बुलंदी पर थी। रुखसाना ने मस्ती में आकर सुनील होंठों को चूम लिया। "मेरी जान... मेरे दिलबर..." कहते हुए रुखसाना सुनील के सीने में सिमटती चली गयी। सुनील ने फिर तेजी से धक्के मारने शुरू कर दिये और रुखसाना की चूत के अंदर अपने वीर्य की बौछार करने लगा। झड़ते हुए उसने झुक कर रुखसाना के एक मम्मे को मुँह में भर लिया। सुनील के मुँह और जीभ का लम्स अपने मम्मे और अंगूर के दाने जितने बड़े निप्पल पर महसूस हुआ तो एक बार फिर से रुखसाना की चूत ने झड़ना शुरू कर दिया। उसकी चूत ने पता नहीं सुनील के लंड पर कितना पानी बहाया।

वो दोनों उसी तरह ना जाने कितनी देर लेटे रहे। सुनील रुखसाना के नंगे मुलायम जिस्म को सहलाता रहा और रुखसाना भी इसका लुत्फ़ उठाती रही। रुखसाना को लग रहा था कि ये हसीन पल कभी खत्म ना हों लेकिन फिर वो बिस्तर से उठी और अपने कपड़े ढूँढे और सिर्फ़ कमीज़ पहनने के बाद लाइट ऑन की। सुनील बेड से उठा और रुखसाना का हाथ पकड़ कर बोला, "क्या हुआ?" रुखसाना ने उसकी तरफ़ देखा और फिर शरमा कर नज़रें झुका ली, "सलील अकेला है मुझे जाने दे!"

सुनील बोला, "थोड़ी देर और रुको ना!" तो रुखसाना एक सुनील के नंगे लंड पे एक नज़र डालते हुए बोली, "जाना तो मैं भी नहीं चाहती... लेकिन अभी मुझे जाने दे... अगर वो उठ गया तो मसला हो जायेगा!"

सुनील कुछ नहीं बोला और मुस्कुरा कर उसे जाने दिया। रुखसाना ने अपने बाकी कपड़े उठाये और सिर्फ़ कमीज़ पहने हुए सुनील के कमरे से बहार निकली और सीढ़ियाँ उतर कर नीचे चली गयी। शराब और ज़ोरदार चुदाई के लुत्फ़ की खुमारी से वो खुद को हवा में उड़ता हुआ महसूस कर रही थी। अपने बेडरूम का दरवाजा खोल कर अंदर झाँका तो सलील अभी भी सो रहा था। बेडरूम में आकर उसने दरवाजा बंद किया और रात के कपड़े पहन कर लेट गयी। रात कब नींद आयी उसे पता नहीं चला। सुबह उठ कर नहा-धो कर तैयार होने के बाद उसने नाश्ता तैयार किया । सुनील नाश्ता करने नीचे आया तो रुखसाना के चेहरे पर अभी भी लाली थी... वो अभी भी उसके साथ नज़रें नहीं मिला पा रही थी। सलील की मौजूदगी में दोनों कुछ बोले नहीं। नाश्ता करते हुए सुनील ने टेबल के नीचे रुखसाना का हाथ पकड़ा तो वो अचानक से हड़बड़ा गयी लेकिन सुनील ने उसका हाथ छोड़ा नहीं बल्कि रुखसाना का हाथ अपनी गोद में खींच कर पैंट के ऊपर से लंड पे रख के दबाने लगा। इस सबसे बेखबर सलील सामने बैठा चुपचाप नाश्ता कर रहा था लेकिन रुखसाना की तो धड़कनें तेज़ हो गयीं और चेहरा शर्म से सुर्ख हो गया। फिर नाश्ता करके सुनील तो चला गया लेकिन रुखसाना के जज़बातों को भड़का गया।

सारा दिन रूकसाना का दिल खिला-खिला रहा। सलील की बचकानी बातें सुन कर हंसते-खेलते दिन निकला। आज रुखसाना के खुश होने की वजह और भी थी। उसे नहीं पता था कि उसका ये उठाया हुआ कदम उसे किस मुक़ाम की ओर ले जायेगा या आने वाले वक़्त में उसकी तक़दीर में क्या लिखा हुआ था। पर अभी तो वो सातवें आसमान पे थी और ज़िंदगी में पहली बार इतनी खुशी मीली थी उसे।