मजबूर (एक औरत की दास्तान)

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"आप भी कुछ कहो ना भाभी प्लीज़ एक बार... आपको भी ज्यादा मज़ा आयेगा!" सुनील ने ज़ोर दिया तो रुखसाना फुसफुसा कर बोली, "हाय अल्लाहा मुझे शरम आती है..!"

"ये शरम छोड़ कर करो ना चुदाई की बातें... भाभी आपको मेरी कसम!" सुनील की बात ने तो जैसे रुखसाना के दिल पर ही छुरी चला दी हो। "मुझसे नहीं होगा सुनील... अपनी कसम तो ना दे... प्लीज़ अब ऐसे तड़पा नहीं और जल्दी अंदर कर... मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा!"

रुखसाना की चूत की फ़ाँकों पर अपने लंड को रगड़ते सुनील फिर बोला, "लेकिन ये तो बताओ कि क्या अंदर करूँ?" रुखसाना अपनी नशे और चुदास में बोझल आँखों से सुनील के लंड के सुपाड़ा को देखते हुए बेकरार होके बड़ी मुश्किल से बोली, "ये... अपना ल...लंड... कर ना प्लीज़!" सुनील अभी भी उसकी चूत के बाहर अपने लंड का सुपाड़ा रगड़ रहा था। सुनील ने फिर रुखसाना को तड़पाते हुए पूछा, "कहाँ डालूँ अपना लंड भाभी... और क्या करूँ खुल के बताओ ना।" अब रुकसाना का सब्र जवाब दे गया और वो तमाम शर्म और हया छोड़ कर नशे में लरजती आवाज़ में गुस्से से कड़ाक्ते बोली, "अरे मादरचोद क्यों तड़पा रहा है मुझे... ले अब तो डाल अपना लंड... मेरी चूत में और चोद मुझे..!"

"ये हुई ना बात भाभी... अब आपको रंडी बना के चोदने में मज़ा आयेगा!" कहते हुए सुनील ने अपने लंड को हाथ से पकड़ कर रुखसाना की आँखों में झाँका और फिर लंड को उसकी चूत के छेद पर टिकाते हुए ज़ोरदार झटका मारा। "हाआआआय अल्लाआहहह!" रुखसाना की फुद्दी की दीवारें जैसे मस्ती में झूम उठी हों.., मर्द क्या होता है... ये आज उसे एहसास हो रहा था। रुखसाना ने सुनील को कसकर अपने आगोश में लेते हुए अपने ऊपर खींचा और उसके आँखों में आँखें डाल कर बोली, "सुनील मेरी जान! चोद मुझे... इतना चोद मुझे कि मेरा जिस्म पिघल जाये... बना ले मुझे अपनी रंडी...!" ये कहते हुए उसके होंठ थरथराये और चूत ऐंठी... जैसे कि आज उसकी चूत ने अपने अंदर समाये लंड को अपना दिलबर मान लिया हो..!

रुखसाना की आरज़ू थी कि सुनील उसके होंठों को फिर बुरी तरह से चूमे... उसकी ज़ुबान को अपने मुँह में लेकर चूसे... और ये सोच कर ही रुखसाना के होंठ काँप रहे थे...! शायद सुनील भी उसके दिल के बात समझ गया था। वो रुखसाना के होंठों पर टूट पड़ा और अपने दाँतों से चबाने लगा... हल्के-हल्के धीरे से कभी उसके होंठ चूसता तो कभी होंठों को काटता... मीठा सा दर्द होंठों पर होता और मज़े के लहर उसकी चूत में दौड़ जाती। रुखसाना उससे चिपकी हुई उसके जिस्म में घुसती जा रही थी। रुखसाना का दिल कर रहा था कि दोनों जिस्म एक हो जायें... एक होकर फिर कभी दो ना हों....! सुनील का लंड फिर उसकी चूत की गहराइयों को नापने लगा था और अनकटे मोटे लंड के घस्से चूत में कितने मज़ेदार होते हैं... ये रुखसाना ने पहले कभी महसूस नहीं किया था। उसकी मस्ती भरी सिस्कारियाँ और बढ़ने लगीं और पूरे कमरे में गूँजने लगीं।

रुखसाना अब खुद अपनी टाँगों को उठाये हुए सुनील से चुदवा रही थी। मस्ती के पल एक के बाद एक आते जा रहे थे। सुनील के धक्कों से उसका पूरा जिस्म हिल रहा था और फिर से वही मुक़ाम... चूत ने लंड को चारों ओर से कस लिया... और अपना प्यार भरा रस सुनील के लंड की नज़र करने लगी। सुनील के वीर्य ने भी मानो उसकी प्यासी बियाबान चूत की जमीन पर बारिश कर दी हो । रुखसाणा का पूरा जिस्म झटके खाने लगा। उसे सुनील की मनी अपनी चूत की गहराइयों में बहती हुई महसूस होने लगी। बेइंतेहा लुत्फ़-अंदोज़ तजुर्बा था... रुखसाना सोचने लगी कि क्यों उसने अब तक अपनी जवानी ज़ाया की।

रुखसाना कमज़ कम तीन बार झड़ चुकी थी। सुनील अब उसकी बगल में लेटा हुआ रुखसाना के जिस्म को सहला रहा था। रुखसाना अचानक बिस्तर से उठने लगी तो सुनील ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। "कहाँ जा रही हो भाभी... एक बार और करने दो ना?" उसने रुखसाना को अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा।

"उफ़्फ़्फ़ मुझे पेशाब लगी है... पेशाब तो करके आने दे ना... फिर कर लेना... वैसे खुल कर बोल कि क्या करना है!" रुखसाना हंसते हुए बोली तो सुनील भी उसके साथ हंस पड़ा। रुखसाना पे अभी भी शराब का नशा हावी था। जब वो झूमती हुई बिस्तर से उठ के नंगी ही टॉयलेट जाने लगी तो हाई हील के सैंडल में चलते हुए उसके कदम नशे में लड़खड़ा रहे थे। नशे में लड़खड़ाती हुई मादरजात नंगी रुखसाना के बलखाते हुस्न को सुनील ने पीछे से देखा तो उसके लंड में सनसनी लहर दौड़ गयी लेकिन फिर वो रुखसाना को सहारा देने के लिये उठा कि कहीं वो गिर ना पड़े... क्योंकि बाथरूम और टॉयलेट कमरे से थोड़ा हट के छत के दूसरी तरफ़ थे। जब सुनील लड़खड़ाती रुखसाना को सहारा दे कर कमरे से बाहर निकल कर छत पर आया तो पास ही छत की परनाली देख कर रुख्सना से बोला, "भाभी इस नाली पे ही मूत लो ना!"

"हाय अल्लाह... यहाँ तेरे सामने मैं... कैसे?" रुखसाना लरजती आवाज़ में नखरा करते हुए बोली तो सुनील मुस्कुराते हुए बोला, "अब मुझसे शर्माने के लिये बचा ही क्या है... यहीं कर लो ना?" रुखसाना को बहुत तेज पेशाब आया था और नशे की हालत में उसने और ना-नुक्कर नहीं की। सुनील ने सहारा दे कर रुखसाना को परनाली के पास मूतने के लिये बिठा दिया। जैसे ही उसकी चूत से मूत की धार निकली तो बहुत तेज आवाज़ हुई। नशे में भी रुखसाना के चेहरे पे शर्म की लाली आ गयी। सुनील बड़े गौर से रुखसाणा को मूतते देख रहा था। चाँदनी रात में रुखसाना का नंगा जिस्म दमक रहा था। उसके बाल थोड़े बिखर गये थे लेकिन बालों में झुमर अभी भी मौजूद था। सोने के झूमर... गले का हार... कंगन और सुनहरी सैंडल भी चाँदनी में चमक रहे थे। करीब एक मिनट तक रुखसाना की चूत से मूत की धार बाहती रही और वो होंठों पे शर्मीली सी मुस्कान लिये सुनील की नज़रों के सामने मूतती रही। ये नज़ारा देख कर सुनील का लंड फिर टनटनाने लगा। रुखसाना का मूतना बंद होने के बाद सुनील उसका हाथ पकड़ के उसे खड़ा करते हुए बोला, "भाभी मुझे भी मूतना है... अब आप मेरी भी तो मदद कर दो ना!"

"तो मूत ले ना... मैं क्या मदद करूँगी इसमें!" रुखसाना बोली तो सुनील उसे छत की मुंडेर के सहारे खड़ा करके उसकी आँखों में झाँकते हुए शरारत से बोला, "मेरा लंड पकड़ कर करवा दो ना भाभी!" फिर सुनील के लंड को अपनी काँपती उंगलियों में पकड़ कर रुखसाना ने उसे मोरी की तरफ़ करते हुए झटका दिया और मुस्कुराते हुए बोली, "हाय अल्लाह बड़ा बेशर्म और शरारती है तू... ले कर अब....!" सुनील के लंड से पेशाब की धार निकली तो रुखसाना का पूरा जिस्म काँप गया और उसकी नज़रें सुनील के लंड और उसमें से निकलती पेशाब की धार पे जम गयीं और साँसें भी फिर से तेज हो गयी।

मूतने के बाद दोनों वापस कमरे में आये और बिस्तर पे लेटते ही सुनील ने रुखसाना का हाथ पकड़ कर उसे अपने ऊपर खींच लिया। उस रात उसने रुखसाना को फिर से चोदा। इस बार रुखसाना के कहने पे सुनील ने उसे घोड़ी बना कर पीछे से चोदा क्योंकि रुखसाना भी वैसे ही चुदना चाहती थी जैसे उसने अज़रा को सुनील से चुदते देखा था। करीब एक बजे दोनों थक कर एक दूसरे के आगोश में नंगे ही सो गये। सुबह सढ़े चार बजे रुखसाना की आँख खुली तो उसने सुनील को जगा कर कहा कि वो उसे नीचे उसके बेडरूम तक छोड़ आये। सुनील नंगी रुखसाना को ही सहारा दे कर नीचे ले गया क्योंकि इस वक़्त इस हालत में शरारा पहनने की तो रुखसाना की सलाहियत थी नहीं। अपने बेडरूम में आकर उसने एक नाइटी पहनी और सलील की बगल में लेट कर सो गयी। सुबह वो देर से उठी। उसके जिस्म में मीठा-मीठा सा दर्द हो रहा था। गनिमत थी कि सलील अभी भी सोया हुआ था।

सुनील हर रोज़ आठ बजे तक नाश्ता करके स्टेशन चला जाता था। वो भी आज नौ बजे नीचे आया और तीनों नाश्ता करने लगे। आज रुखसाना बिल्कुल नहीं शर्मा रही थी बल्कि सलील की मौजूदगी में नाश्ता करते हुए उसने सुनील के साथ आँखों-आँखों में इशारों से ही काफ़ी बातें की। नाश्ते के बाद किचन में बर्तन रखते वक़्त जब दोनों अकेले थे तो सुनील ने रुखसाना को अपने आगोश में भर कर उसके होंठों को चूम लिया। रुक़साना भी उससे लिपटते हुए बोली, "सुनील... आज छुट्टी ले ले ना प्लीज़... नज़ीला भाभी तो बारह बजे तक आकर सलील को ले जायेंगी... उसके बाद तू और मैं...!"

"हाय भाभी... चाहता तो मैं भी हूँ लेकिन आज छुट्टी नहीं ले सकुँगा... लेकिन इतना वादा करता हूँ कि शाम को जल्दी आ जाऊँगा और फिर तो पूरी शाम और पूरी रात जब तक आप कहोगी आपकी सेवा करुँगा!" सुनील उसका गाल सहलाते हुए बोला। "ठीक है... मुझे अपने दिलबर का इंतज़ार रहेगा... इसका ख्याल रखना!" रुखसाना पैंट के ऊपर से ही सुनील का लंड दबाते हुए बोली। एक रात में वो बेशर्म होकर बिल्कुल खुल गयी थी। उसके बाद सुनील ये कह कर चला गया कि वो आज शाम का खाना ना बनाये। उसके बाद नज़ीला भी आकर सलील को ले गयी। रुखसाना ने घर का काम निपटाया और ऊपर जा कर सुनील का कमरा भी ठीकठाक किया और फिर बेसब्री से शाम का इंतज़ार करने लगी। रुखसाना को एक-एक पल बरसों जैसा लग रहा था। फ़ारूक पाँच दिन बाद आने वाला था और सानिया भी अपने मामा के घर से जल्दी ही वापिस आने वाली थी।

सुनील ने जल्दी आने का वादा किया था लेकिन फिर भी उसे आते-आते पाँच बज गये। रुखसाना तब तक सज-संवर कर तैयार हो चुकी थी और थोड़ी-थोड़ी देर में बाहर गेट तक जा-जा कर देख रही थी। सुनील के घर में दाखिल होते ही दोनों एक दूसरे से लिपट गये। फिर सुनील फ्रेश होने के लिये ऊपर जाने लगा तो खाने के पैकेट टेबल से उठाते हुए रुखसाना ने ज़रा मायूस से लहज़े में पूछा, "सुनील आज तू वो बोतल... मतलब व्हिस्की नहीं लाया?" रुखसाना की बात सुनकर सुनील को यकीन नहीं हुआ। आज रुखसाना का खुलापन और ये बदला हुआ अंदाज़ देख कर सुनील को बेहद खुशी हुई। "क्या बात है भाभी जान.... कल तो आप नखरे कर रही थीं और आज खुद ही?" सुनील उसे छेडते हुए बोला। "कल से पहले कभी पी नहीं थी ना... मुझे अंदाज़ा नहीं था कि शराब के नशे की खुमारी इतनी मस्ती और सुकून अमेज़ होती है!" रुकसाना ने कहा तो सुनील ने अपने बैग में से रॉयल- स्टैग व्हिस्की की बोतल निकाल कर रुखसाना के सामने टेबल पे रख दी।

फिर अगले तीन दिनों तक हर रोज़ शाम को सुनील के घर आते ही दोनों शराब के नशे में चूर नंगे होकर रंगरलियों में डुब जाते। देर रात तक रुखसाना के बेडरूम में खूब चुदाई और ऐश करते। रुखसाना तो जैसे इतने सालों का चुदाई की कमी पूरा कर लेना चाहती थी और पुरजोश खुल-कर उसने सुनील के जवान लंड से चुदाई का खूब मज़ा लिया।

फिर चार दिन बाद सुनील के स्टेशान जाने के बाद डोर-बेल बजी। रुखसाना ने जाकर दरवाजा खोला तो बाहर सानिया और उसके मामा खड़े थे। रुखसाणा ने सलाम किया और उनको अंदर आने को कहा। सानिया के मामा और उनके घर का हालचाल पूछने के बाद रुखसाना ने उनके लिये चाय नाश्ते के इंतज़ाम किया। चाय नाश्ते के बाद सानिया के मामा ने वापस जाने का कहा तो रुखसाना ने फ़ॉर्मैलिटी के तौर पे उन्हें थोड़ा और रुकने को कहा पर वो नहीं माने। उन्होंने कहा कि वो सिर्फ़ सानिया को छोड़ने की खातिर ही आये थे क्योंकि सानिया के कॉलेज की छुट्टीयाँ खतम हो रही थीं और कल से उसकी क्लासें भी शुरू होने वाली थी।

सानिया के आने से घर में रौनक जरूर आ गयी थी पर रुकसाना को एक गम ये था कि अब उसे और सुनील को मौका आसानी से नहीं मिलेगा। पिछले पाँच दिनों में हर रोज़ शाम से देर रातों तक बार-बार चुदने के बाद रुखसाना को तो जैसे सुनील के लंड की आदत सी लग गयी थी। उस दिन शाम को जब बाहर डोर-बेल बजी तो सानिया ने जाकर दरवाजा खोला। सानिया ने सुनील को सलाम कहा और सुनील अंदर आकर चुपचाप ऊपर चला गया। उस दिन कुछ खास नहीं हुआ।

सानिया का कॉलेज घर से काफ़ी दूर था और उसे बस से जाना पड़ता था। कईं बार उसे देर भी हो जाती थी। अगले दिन सुनील सुबह जब नाश्ता करने नीचे आया तो रुखसाना ने गौर किया कि सानिया बार-बार चोर नज़रों से सुनील को देख रही थी। सानिया उस वक़्त कॉलेज जाने के लिये तैयार हो चुकी थी। उसने सफ़ेद रंग की कुर्ती के साथ नीले रंग की बेहद टाइट स्किनी-जींस पहनी हुई थी जिसमें उसका सैक्सी फिगर साफ़ नुमाया हो रहा था। उसने सफ़ेद रंग के करीब तीन इंच ऊँची हील वाले सैंडल भी पहने हुए थे जिससे टाइट जींस में उसके चूतड़ और ज्यादा बाहर उभड़ रहे थे।

उस दिन सानिया कुछ ज्यादा ही सुनील की तरफ़ देख रही थी। इस दौरान कभी जब सुनील सानिया की तरफ़ देखता तो वो नज़रें झुका कर मुस्कुराने लग जाती। सुनील ने पहले अज़रा की चुदी चुदाई फुद्दी मारी थी और फिर बाद में रुखसाना की बरसों से बिना चुदी चूत। सुनील ने उससे पहले कभी चुदाई नहीं करी थी लेकिन उसे जानकारी तो पूरी थी। इस बात का तो उसे पता चल गया था कि औरत जिसके बच्चे ना हो और जो कम चुदी हो उसकी चूत ज्यादा टाइट होती है। और फिर जब एक जवान लड़के को चुदाई की लत्त लग जाती है तो वो कहीं नहीं रुकती... खासतौर पर उन लड़कों के लिये जिन्होंने ऐसी औरतों से जिस्मानी रिश्ते बनाये हों... जो उम्र में उनसे बड़ी हों और जो उन्हें किसी तरह के बंधन में ना बाँध सकती हों... जैसे की रुखसाना। वो जानता था कि रुखसाना उसे किसी तरह अपने साथ बाँध कर नहीं रख सकती। अब वो उस आवारा साँड कि तरह हो गया था जिसे सिफ़ चूत चाहिये थी... हर बार नयी और बिना किसी बंधन की!

रुखसाना ने उस दिन सानिया के बर्ताव पे ज्यादा तवज्जो नहीं दी क्योंकि वो तो खुद सानिया की नज़र बचा कर सुनील के साथ नज़रें मिला रही थी। सुनील ने नाश्ता किया और बाइक बाहर निकालने लगा तो सानिया दौड़ी हुई किचन में आयी और रुखसाना से बोली, "अम्मी सुनील से कहो ना कि वो मुझे कॉलेज छोड़ आये!" रुखसाना ने बाहर आकर सुनील से पूछा कि क्या वो सानिया को कॉलेज छोड़ सकता है तो सुनील ने भी हाँ कर दी। सुनील ने बाइक स्टार्ट की और सानिया उसके पीछे बैठ गयी। सुनील के पीछे बैठी सानिया बेहद खुश थी। भले ही दोनों में अभी कुछ नहीं था पर सानिया सुनील की पर्सनैलिटी से उसकी तरफ़ बेहद आकर्षित थी। दोनों में कोई भी बातचीत नहीं हो रही थी। सानिया का कॉलेज घर से काफ़ी दूर था और कॉलेज से घर तक के रास्ते में बहुत सी ऐसी जगह भी आती थी जहाँ पर एक दम विराना सा होता था। थोड़ी देर बाद कॉलेज पहुँचे तो सानिया बाइक से नीचे उतरी और अपने बैक-पैक को अपने कपड़े पर लटकाते हुए सुनील को थैंक्स कहा। सुनील ने सानिया की तरफ़ नज़र डाली। उसकी सुडौल लम्बी टाँगें और माँसल जाँघें स्कीनी जींस में कसी हुई नज़र आ रही थी... उसके मम्मे उसकी कुर्ती के अंदर ब्रा में एक दम कसे हुए पहाड़ की चोटियों की तरह तने हुए थे। सुनील की हम-उम्र सानिया अपनी ज़िंदगी के बेहद नज़ुक मोड़ पर थी।

जब उसने सुनील को अपनी तरफ़ यूँ घूरते देखा तो वो सिर झुका कर मुस्कुराने लगी और फिर पलट कर कॉलेज की तरफ़ जाने लगी। सुनील वहाँ खड़ा सानिया को अंदर जाते हुए देख रहा था... दर असल वो पीछे सानिया के चूतड़ों को घूर रहा था। सानिया ने अंदर जाते हुए तीन-चार बार पलट कर सुनील को देखा और हर बार वो शर्मा कर मुस्कुरा देती। तभी सानिया के सामने से दो लड़के गुजरे और कॉलेज से बाहर आये। दोनों आपस में बात कर रहे थे। उन्हें नहीं पता था कि सुनील सानिया के साथ आया है। वो दोनों सुनील के करीब ही खड़े थे जब उनमें से एक लड़का बोला, "यार ये सानिया तो एक दम पटाखा होती जा रही है... साली के मम्मे देख कैसे गोल-गोल और बड़े हो गये हैं..!" तो दूसरा लड़का बोला, "हाँ यार साली की गाँड पर भी अब बहुत चर्बी चढ़ने लगी है... देखा नहीं साली जब हाई हील वाली सैंडल पहन के चलती है तो कैसे इसकी गाँड मटकती है... बस एक बार बात बन जाये तो इसकी गाँड ही सबसे पहले मारुँगा!"

सुनील खड़ा उन दोनों की बातें सुन रहा था पर सुनील कुछ बोला नहीं। उसने बाइक स्टार्ट की और काम पर चला गया। सुनील के दिमाग में उन लड़कों की बातें घूम रही थी और उनकी बातें याद करते हुए उसका लंड उसकी पैंट में अकड़ने लगा था। सुनील ने करीब एक बजे तक काम किया और फिर लंच किया। सुबह से उसका लंड बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था। सुनील ने एक बार घड़ी की तरफ़ नज़र डाली और फिर अज़मल से किसी जरूरी काम का बहाना बना कर दो घंटे की छुट्टी लेकर बाहर आ गया। उसने अपनी बाइक स्टार्ट की और घर के तरफ़ चल पढ़ा। उन लड़कों की बातों ने सुनील का दिमाग सुबह से खराब कर रखा था... वो जानता था कि रुखसाना इस समय घर पे अकेली होगी। सुनील की बाइक हवा से बातें कर रही थी और पंद्रह मिनट में वो घर के बाहर था। उसने घर के गेट के बाहर सड़क पे ही बाइक लगायी और अंदर जाकर डोर-बेल बजायी। सुनील ने रुखसाना को निकलने से पहले ही फोन कर दिया था इसलिये वो भी तैयार होकर बेकरारी से सुनील के आने का इंतज़ार कर रही थी। घंटी की आवाज सुनते ही उसने फ़ौरन दरवाजा खोल दिया।

अंदर दाखिल होते ही सुनील ने रुखसाना को पीछे से अपनी बाहों में भर लिया। "आहहह दरवाजा तो बंद कर लेने दे!" रुखसाना मचलते हुए बोली। फिर सुनील ने रुखसाना को अपनी बाहों में उठा लिया और उसे उठा कर ड्राइंग रूम में ले आया। फिर उसे सोफ़े के सामने खड़ी करते हुए रुखसाना को पीछे से बाहों में भर लिया और मेरे उसकी गर्दन पर अपने होंठों को रगड़ने लगा। रुकसाना ने मस्ती में आकर अपनी आँखें बंद कर लीं। "हाय सुनील मेरी जान... अच्छा है तू आ गया... मैं तो कल पूरी रात अपने इस दिलबर की याद में तड़पती रही!" रुखसाना उसके लंड को पैंट के ऊपर से दबाते हुए बोली। सुनील कुछ नहीं बोला। वो शायद किसी और ही धुन में था। उसने रुखसाना की गर्दन पर अपने होंठों को रगड़ना ज़ारी रखा और फिर एक हाथ से रुखसाना की गाँड को पकड़ कर मसलने लगा।

जैसे ही सुनील ने अपने हाथों से रुखसाना के चूतड़ों को दबोच कर मसला तो रुखसाना की तो साँसें ही उखड़ गयी। आज वो बड़ी बेदर्दी से रुखसाना के दोनों चूतड़ों को अलग करके फैला रहा था और मसल रहा था। उसके कड़क मर्दाना हाथों से अपनी गाँड को यूँ मसलवाते हुए रुखसाना एक दम हवस ज़दा हो गयी उसकी आँखें बंद होने लगी... दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। फिर अचानक ही सुनील के दोनों हाथ रुखसाना की सलवार के आगे जबरदन तक पहुँच गये। रुकसाना ने आज इलास्टिक वाली सलवार पहनी हुई थी। जैसे ही सुनील को एहसास हुआ कि रुखसाना ने इलास्टिक वाली सलवार पहनी हुई है तो उसने दोनों तरफ़ सलवार में अपनी उंगलियों को फंसा कर रुखसाना की सलवार नीचे सरका दी। रुखसाना ने नीचे पैंटी भी नहीं पहनी थी और जैसे ही सलवार नीचे हुई तो सुनील ने उसे सोफ़े की ओर ढकेला। रुखसाना ने हमेशा की तरह ऊँची पेंसिल हील की सैंडल पहनी हुई थी तो सुनील के धकेलने से उसका बैलेंस बिगड़ गया और सोफ़े की और लुढ़क गयी। रुखसाना ने सोफ़े की बैक पर अपने दोनों हाथ जमाते हुए दोनों घुटनों को सोफ़े पर रख लिया।

रुखसाना सोचने लगी कि, "हाय आज क्या सुनील यहाँ ड्राइंग रूम में ही मुझे नंगी करके इस तरह मुझे चोदेगा!" ये सोच कर रुखसाना के चेहरे पर शर्म से सुर्खी छा गयी। "ओहहहह सुनील यहाँ मत करो ना... बेडरूम में चलते हैं...!" रुकसाना ने सिसकते हुए मस्ती में लड़खड़ाती हुई ज़ुबान में सुनील को कहा। पर सुनील नहीं माना और उसने पीछे से रुखसाना की कमीज़ का पल्ला उठा कर उसकी कमर पर चढ़ा दिया। रुखसाना की सलवार पहले से ही उसकी रानों में अटकी हुई थी। फिर रुखसाना को कुछ सरसराहट की आवाज़ आयी तो उसने गर्दन घुमा कर पीछे देखा कि सुनील अपनी पैंट की जेब में से कोई ट्यूब सी निकाल रहा है जिसपे "ड्यूरेक्स के-वॉय जैली" लिखा था। सुनील ने ये अभी घर आते हुए रास्ते में केमिस्ट की दुकान से खरीदी थी। फिर सुनील ने अपनी पैंट और अंडरवियर नीचे किया और धीरे से काफ़ी सारी के-वॉय जैली अपने लंड पर गिरा कर उसे मलने लगा। रुखसाना अपने चेहरे को पीछे घुमा कर अपनी नशीली आँखों से उसे ये सब करता हुआ देख रही थी। फिर सुनील ने जैली की उस ट्यूब को वहीं सोफ़े पर एक तरफ़ उछाल दिया फिर वो रुखसाना के पीछे आकर खड़ा हुआ और अपने घुटनों को थोड़ा सा मोड़ कर झुका और अगले ही पल उसके लंड का मोटा गरम सुपाड़ा रुकसाना की चूत की फ़ाँकों को फ़ैलाता हुआ उसकी चूत के छेद पर आ लगा।

रुखसाना को ऐसा लगा मानो चूत पर किसी ने सुलगती हुई सलाख रख दी हो। उसने सोफ़े की बैक को कसके पकड़ लिया। सुनील ने रुखसाना के दोनों चूतड़ों को पकड़ कर जोर से फैलाते हुए एक जोरदार धक्का मारा और सुनील का लंड उसकी चूत को चीरता हुआ अंदर घुसता चला गया। रुखसाना एक दम से सिसक उठी, "हाआआआय अल्लाआआआहहह .. मैं मरीईईईई!" सुनील ने अपना लंड जड़ तक उसकी चूत में घुसेड़ा हुआ था। सुनील ने वैसे ही झुक कर फिर से सोफ़े पे पड़ी के-वॉय जैली की वो ट्यूब उठायी और रुखसाना की गाँड के ऊपर करते हुए के-वॉय जैली को गिराने लगा। जैसे ही जैली की पिचकारी रुखसाना की गाँड के छेद पर पड़ी तो वो बुरी तरह से मचल उठी। सुनील ने ट्यूब को नीचे रखा और फिर अपना लंड धीरे-धीरे रुखसाना की चूत में अंदर-बाहर करने लगा।

गाँड से बहती हुई जैली नीचे सुनील के लंड और रुखसाना की चूत पर आने लगी। तभी सुनील ने वो किया जिससे रुखसाना एक दम से उचक सी गयी पर सुनील ने उसे उसकी कमर से कसके पकड़ लिया। दर असल सुनील ने अपनी उंगली को रुखसाना की गाँड के छेद पर रगड़ना शुरू कर दिया। रुखसाना की कमर को पकड़ते ही सुनील ने तीन चार जबरदस्त वार उसकी चूत पर किये तो चूत बेहाल हो उठी और मस्ती आलम में रुखसाना में मुज़ाहिमत करने की ताकत नहीं बची थी। सुनील ने फिर से रुखसाना की गाँड को दोनों हाथों से दबोच कर फैलाया और फिर अपने दांये हाथ के अंगूठे से रुखसाना की गाँड के छेद को कुरेदने लगा।

रुखसाना की कमर उसके अंगूठे की हर्कत के साथ एक के बाद एक झटके खाने लगी। सुनील का लंड एक रफ़्तार से रुखसाना की चूत के अंदर बाहर हो रहा था और उसका अंगूठा अब रुखसाना की गाँड के छेद को और जोर से कुरेदने लगा था। रुखसाना इतनी गरम हो चुकी थी कि अब वो सुनील की मुखालिफ़त करने की हालत में नहीं थी। वो जो भी कर रहा था रुखसाना मज़े से सिसकते हुए उसका लंड अपनी चूत में लेते हुए करवा रही थी। सुनील ने उसकी गाँड के छेद को अब उंगली से दबाना शुरू कर दिया। के-वॉय जैली की वजह से और सुनील की उंगली की रगड़ की वजह से रुखसाना की गाँड का कुंवारा छेद नरम होने लगा और उसे अपनी गाँड के छेद पर लज़्ज़त-अमेज़ गुदगुदी होने लगी थी जिसे महसूस करके उसकी चूत और ज्यादा पानी बहा रही थी। बेहद मस्ती के आलम में रुखसाना को इस वक़्त कहीं ना कहीं शराब की तलब हो रही थी क्योंकि चार-पाँच दिन उसने शराब के नशे की खुमारी में ही सुनील के साथ चुदाई का खूब मज़ा लूटा था और चुदाई के लुत्फ़ और मस्ती में शराब के नशे की मस्ती की अमेज़िश से रुखसाना को जन्नत का मज़ा मिलता था। फिर सुनील ने अपनी उंगली को धीरे-धीरे से रुखसाना की गाँड के छेद पर दबाया और उंगली का अगला हिस्सा रुखसाना की गाँड के छेद में उतरता चला गया। पहले तो रुखसाना को कुछ खास महसूस नहीं हुआ पर जैसे ही सुनील की आधे से थोड़ी कम उंगली उसकी गाँड के छेद में घुसी तो रुखसाना को तेज दर्द महसूस हुआ। "आआहहह सुनीईईल मत कर.... दर्द हो रहा है!" रुखसाना चींखी तो सुनील शायद समझ गया कि रुखसाना की गाँड का छेद एक दम कोरा है। वो कुछ पलों के लिये रुका और फिर उतनी ही उंगली रुखसाना की गाँड के छेद के अंदर बाहर करने लगा।

सुनील ने रुखसाना की चूत से अपने लंड को बाहर निकाला और फिर गाँड के छेद से उंगली को निकाल कर चूत में पेल दिया और चूत में अंदर-बाहर करते हुए घुमाने लगा। "हाआआय मेरे जानू ये क्या कर रहे हो तुम ओहहह... अपना लंड... मेरा प्यारा दिलबर... उसे मेरी चूत में वापस डाल ना...!" अपनी चूत में अचानक से मोटे लंड की जगह पतली सी उंगली महसूस हुई तो रुखसाना तड़पते हुए बोली। सुनील ने फिर से उसकी चूत में से उंगली बाहर निकाली और चूत में अपना मूसल लंड घुसेड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दिये। उसकी उंगली रुखसाना की चूत के पानी से एक दम तरबतर हो चुकी थी। उसने फिर उसी उंगली को रुखसाना की गाँड के छेद पर लगाया और रुखसाना की चूत के पानी को गाँड के छेद पर लगाते हुए तर करने लगा। रुखसाना को ये सब थोड़ा अजीब सा तो लग रहा था लेकिन मस्ती में उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सुनील ने फिर से अपनी उंगली रुखसाना की गाँड के छेद में घुसेड़ दी लेकिन इस बार सुनील ने कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी दिखायी और अगले ही पल उसकी पूरी उंगली रुखसाना की गाँड के छेद में थी।

रुखसाना दर्द से एक दम कराह उठी। भले ही दर्द बहोत ज्यादा नहीं था पर रुखसाना को अब तक सुनील के इरादे का अंदाज़ा हो चुका था और वो सुनील के इरादे से घबरा कर वो कराहते हुए बोली, "हाय सुनील... ये... ये क्या कर रहा है जानू... वहाँ से उंगली निकाल ले... बहोत दर्द हो रहा है!" पर सुनील ने उसकी कहाँ सुननी थी। सुनील अब उस उंगली को रुखसाना की गाँड के छेद में अंदर बाहर करने लगा। रुखसाना को थोड़ा दर्द हो रहा था पर कुछ ही पलों में उसकी गाँड का छेद नरम और फिर और ज्यादा नरम पड़ता गया। उसकी चूत के पानी और के-वॉय जैली ने गाँड के छेद के छाले की सख्ती बेहद कम कर दी थी। अब तो सुनील बिना किसी दुश्वारी के रुखसाना की गाँड को अपनी उंगली से चोद रहा था। रुखसाना भी अब फिर से एक दम मस्त हो गयी। हवस और मस्ती के आलम में रुखसाना को ये भी एहसास नहीं हुआ कि कब सुनील की दो उंगलियाँ उसकी गाँड के छेद के अंदर-बाहर होने लगी। कभी दर्द तो कभी मज़ा... कैसा अजीब था ये चुदाई का मज़ा। फिर सुनील ने अपना लंड रुखसाना की चूत से बाहर निकला और उसकी गाँड के छेद पर टिका दिया। उसकी इस हर्कत से रुखसाना एक दम दहल गयी, "नहीं सुनील.... खुदा के लिये... ऐसा ना कर... मैं दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकुँगी..!"

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