मजबूर (एक औरत की दास्तान)

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शाम को किसी ने गेट के सामने हॉर्न बजाया तो रुखसाना ने सोचा कि ये कौन है जो उनके घर गाड़ी ले कर आया। जब उसने बाहर जाकर गेट खोला तो देखा कि बाहर सुनील बाइक पर बैठा था। वो रुखसाना की तरफ़ देख कर मुस्कुराया और उसने बाइक गेट के अंदर ला कर स्टैंड पर लगा दी। फिर दोनों घर के अंदर दाखिल हुए और रुखसाना अभी कुंडी लगा ही रही थी कि सुनील ने उसे पीछे से बाहों में दबोच लिया। "आहहह हाय अल्लाह क्या करते हो कोई देख लेगा....!" रुखसाना कसमसाते हुए बोली।

"कौन देखेगा भाभी हमें यहाँ..?" सुनील ने उससे अलग होते हुए कहा।

"सलील है ना घर पर...!" रुखसाना ने कहा तो सुनील बोला, "उसे क्या समझ वो तो बच्चा है...!"

"नहीं मुझे डर लगता है... कुछ गड़बड़ ना हो जाये!" रुखसाना बोली।

"अच्छा रात को तो आओगी ना... ऊपर मेरे कमरे में..!" सुनील ने पूछा तो रुखसाना ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिला कर आँखों के इशारे से रज़ामंदी बता दी। फिर उसने सुनील से पूछा कि "ये बाइक किसकी है?" तो सुनील ने कहा, "मेरी है... आज ही खरीदी है... नयी है!"

"हाँ वो तो देख ही रही हूँ!" रुखसाना बोली। उसने देखा कि सुनील ने हाथ में खाने का पैकेट पकड़ा हुआ था जो वो ढाब्बे से लेकर आया था। "अब मैं ठीक हूँ सुनील... घर पर बना लेती... इसकी क्या जरूरत थी!" रुखसाना ने सुनील के हाथों से खाने के पैकेट लेते हुए कहा तो सुनील शरारत भरे अंदाज़ में बोला, "आप बना तो लेती... पर मैं आपको काम करके थकाना नहीं चाहता था... रात को आपको काफ़ी मेहनत करनी पड़ेगी..!" ये सुनते ही रुखसाना के गाल शरम से लाल होकर दहकने लगे। सुनील ने दूसरे हाथ में एक और बैग पकड़ा हुआ था। उसने रुखसाना को दिखाया कि उसमें एक पैकेट में खूब सारी गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ और चमेली के फूल थे। उसी बैग में रॉयल स्टैग व्हिस्की की एक बोतल भी थी। रुखसाना ने सवालिया नज़रों से देखते हुए पूछा तो सुनील बड़े प्यारे अंदाज़ में बोला, "भाभी ये सब तो आज की रात आपके लिये खास बनाने के लिये है... आओगी ना आप?" अब तो रुखसाना ऐसे शर्मा गयी जैसे नयी नवेली दुल्हन हो। वो अपने होंठ दाँतों मे दबा कर दौड़ती हुई किचन में चली गयी। सलील टीवी पर कॉर्टून देख रहा था। सुनील सीधा ऊपर अपने कमरे में चला गया। वो तीन-चार घंटे ऊपर ही रहा और रात के करीब नौ बजे वो नीचे आया तो रुखसाना ने खाना गरम करके टेबल पर लगाया। सुनील सलील के साथ वाली कुर्सी पर बैठा था। "आज बड़ी देर कर दी नीचे आने में...!" रुखसाना सुनील की ओर देखते हुए मुस्कुरायी तो सुनील आँख मारते हुए बोला, "वो रात को जागना है तो सोचा कि कुछ देर सो लेता हूँ!"

फिर कुछ खास बात नहीं हुई। सुनील खाना खा कर ऊपर चला गया। रुखसाना सलील के साथ अपने बेडरूम में आकर सलील के साथ लेट गयी। सलील थोड़ी देर मैं ही सो गहरी नींद सो गया। उसके बाद रुखसाना उठ कर बाथरूम में गयी और उस दिन वो ये तीसरी बार नहा रही थी। सुनील ने रात के लिये काफ़ी तैयारी की थी तो रुखसाना भी अपनी तरफ़ से कोई कमी नहीं रखना चाहती थी। वो भी आज रात को होने वाली चुदाई को लेकर काफ़ी इक्साइटिड थी। नहाने के बाद उसने पूरे जिस्म पे पर्फ्यूम छिड़का। उसकी चूत और जिस्म तो पहले ही बिल्कुल मुलायम और चिकने थे... एक रोंआँ तक भी मौजूद नहीं था। उसके बाद उसने अलमारी में सालों से रखा शरारा सूट निकाला जो उसने फ़ारूख़ के साथ निकाह के वक़्त पहना था। रुखसाना को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे आज उसकी सुनील के साथ सुहाग रात थी। ज़री वाला हरे रंग का शरारा-सूट पहनने के बाद उसने अच्छे से मेक-अप किया। फिर अलमारी की सेफ़ में से ज़ेवर निकाल कर पहने जैसे कि गले का हार... कंगन कानों के बूंदे और बालों में झुमर भी पहना। फिर आखिर में उसने सुनहरी गोल्डन रंग के बेहद ऊँची पेंसिल हील के सैंडल पहने। उसने खड़े होकर सिर पे दुपट्टा ओढ़ कर जब आइने में देखा तो खुद का हुस्नो-शबाब देख कर शर्मा गयी... बिल्कुल नयी नवेली दुल्हन की तरह बेहद खूबसूरत लग रही थी वो।

रुखसाना ने एक बार तस्ल्ली की कि सलील गहरी नींद सो रहा है और फिर लाइट बंद करके आहिस्ता से कमरे से निकली और दरवाजा बंद करके धड़कते दिल के साथ आहिस्ता-आहिस्ता सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। जब वो ऊपर पहुँची तो सुनील के कमरे में लाईट जल रही थी। तभी उसे एहसास हुआ की सीढ़ियों से सुनील के कमरे तक रास्ते में फूलों की पंखुड़ियाँ बिछी हुई थीं। सुनील का ये अमल रुखसाना के दिल को छू गया। उसने कभी तसाव्वुर भी नहीं किया था कि कोई उसके कदमों में फूल तक बिछा सकता है। रुखसाना उन फूलों पे बड़ी नफ़ासत से ऊँची पेंसिल हील वाले सैडल पहने पैरों से आहिस्ता-आहिस्ता कदम रखती हुई सुनील के कमरे में दाखिल हुई तो अचानक उसके ऊपर ढेर सारे फूलों की बारिश हो गयी। इतने में अचानक सुनील ने रुखसाना को बाहों में भर लिया। रुखसाना की तनी हुई चूचियाँ सुनील के सीने में दबने लगीं।

"हाय भाभी आप तो मेरी जान निकाल कर ही रहोगी... कल तो इतनी बुरी तरह घायल किया था और आज तो लगता है मेरा कत्ल ही करोगी आप... वाओ!" रुखसाना को दुल्हन के लिबास में देख कर सुनील उत्तेजित होते हुए बोला। रुखसाना ने देखा कि बिस्तर पे भी गुलाब और चमेली के फूलों की चादर मौजूद थी।

"वेलकम भाभी... मेरे कमरे में और मेरी ज़िंदगी में... मैं कितना खुशनसीब हूँ बता नहीं सकता!" सुनील चहकते हुए बोला और उसने टेबल पे पहले से रखे हुए शराब के दो गिलास उठाये और एक गिलास रूकसाना को पक्ड़ाते हुए बोला, "ये लीजिये भाभी... आज का पहला जाम आपके बेमिसाल हुस्न के नाम!" रुखसाना के दिल में थोड़ी हिचकिचाहट तो हुई लेकिन उसने ज़ाहिर नहीं होने दी। जैसे ही वो अपना गिलास होंठों से लगाने लगी तो सुनील ने उसके गिलास से अपन गिलास टकराते हुए 'चियर्स' कहा और फिर रुख्साना की बाँह में अपनी बाँह लपेट कर बोला, "अब पियो भाभी एक ही घूँट में!"

सुनील की तरह रुखसाना ने भी एक ही घूँट में गिलास खाली कर दिया। आज उसे शराब पिछली रात से थोड़ी ज्यादा स्ट्रॉंग और तीखी लगी क्योंकि आज सुनील ने दोनों गिलासों में नीट व्हिस्की डाल राखी थी। फिर सुनील ने कामरे की लाइट ऑफ करके नाइट लैम्प ऑन कर दिया और अपने फोन पे कम वल्यूम पे पुराना गाना चला दिया, "आओ मानायें जश्न-ए-मोहब्बत... जाम उठायें जाम के बाद...!" और रुखसाना को बाहों में भर कर धीरे-धीरे थिरकने लगा। नाइट लैम्प की मद्दिम सी नीली रोशनी के साथ-साथ कमरे में खुली खिड़कियों से चाँद की चाँदनी भी बिखरी हुई थी । गर्मी का मौसम था लेकिन बाहर से हल्की-हल्की ठंडी पूर्वा हवा बह रही थी। रुखसाना को सुनील का तैयार किया हुआ ये रंगीन और रुमानी समाँ बेहद दिलकश लग रहा था और वो भी सुनील के सीने में चेहरा छुपाये और उसकी कमर में बांहें डाल कर उससे चिपक कर गाने की धुन पे धीरे-धीरे थिरकने लगी। सुनील के हाथ में व्हिस्की की बोतल थी और दोनों एक दूसरे के आगोश में थिरकते-थिरकते बीच-बीच में उस बोतल से व्हिस्की के छोटे-छोटे घूँट पी रहे थे। वही गाना बार-बार लूप में चल रहा था।

थिरकते हुए सुनील के हाथ रुखसाना की कमर से चूतड़ों तक हर हिस्से को सहला रहे थे। एक पराये मर्द... वो भी उम्र में उससे पंद्रह साल छोटा... उससे इतनी तवज्जो... इतनी मोहब्बत.... इतना सुकून उसे मिलेगा... रुखसाना ने ज़िंदगी में कभी सोचा नहीं था। जल्दी ही रुखसाना पे शराब का नशा भी सवार होने लगा था और इतने रोमांटिक माहौल में वो सुरूर में मस्त हो चुकी थी और उसे इस वक़्त दीन-दुनिया की कोई खबर नहीं थी। वो आज इस सुरूर-ओ-मस्ती के समंदर में डूब जाना चाहती थी। इसी बीच कब व्हिस्की की बोतल उसने सुनील के हाथ से अपने हाथ में ले ली उसे पता हा नहीं चला। नशे की खुमारी में सुनील के कंधे पे सिर टिकाये उससे लिपट कर थिरकती हुई वो बीच-बीच में व्हिस्की के छोटे-छोटे सिप ले रही थी।

सुनील ने अब रुखसाना के कपड़े उतारने शुरू कर दिये... वहीं थिरकते-थिरकते खड़े-खड़े ही। मदहोशी में रुखसाना ने ज़रा भी मुखालिफ़त नहीं की बल्कि वो तो नंगी होने में सुनील का साथ दे रही थी जब वो धीरे-धीरे उसके कपड़े खोल रहा था। थोड़ी ही देर में उसका शरारा सूट उसके जिस्म से अलग हो चुका था! नाइट लैंप और चाँदनी रात की मद्दिम सी रोशनी में अब वो बिल्कुल नंगी आँखें बंद किये सुनील के कंधे पे सिर रख कर उससे लिपटी हुई नाच रही थी। फिर सुनील उससे थोड़ा अलग हुआ और रुखसाना को कुछ सरसराहट सुनायी दी। उसका दिल ये सोच कर धोंकनी की तरह बजने लगा कि सुनील भी अपने कपड़े उतर रहा है। फिर एक सख्त सी गरम चीज़ रुखसाना को अपनी रानों पर चुभती हुई महसूस हुई तो उसका जिस्म एक दम से थरथरा गया ये सोच कर कि सुनील का तना हुआ लंड उसकी रानों से रगड़ खा रहा था।

फिर अचानक से पता नहीं क्या हुआ... सुनील उससे बिल्कुल अलग हो गया। रुखसाना को नशे की खुमारी में समझ में नहीं आया कि आखिर हुआ क्या... लेकिन तभी अचानक कमरे की ट्यूब- लाइट ऑन हो गयी और कमरा पुरी तरह रोशन हो गया। अचानक तेज़ रोशनी से रुखसाना की आँखें चौंधिया गयीं। रुखसाना कमरे के ठीक बीचोबीच शराब की बोतल हाथ में पकड़े और सिर्फ़ ज़ेवर और सुनहरे रंग के हाई पेन्सिल हील के सैंडल पहने एक दम मादरजात नंगी खड़ी थी। सुनील लाइट के स्विच के पास खड़ा रुखसाना के तराशे हुए संगमरमर जैसे गोरे नंगे जिस्म को निहारते हुए अपने मूसल जैसे लंड को हाथ में लेकर सहला रहा था। नशे की हालत में भी रुखसाना शरमा गयी लेकिन उसने अपना नंगापन छुपाने की कोशिश नहीं की। "सुनील! ये क्या... प्लीज़ बंद कर दे ना मुझे शर्म आती है... कितना शैतान है तू!" रुखसाना कुनमुनाते हुए नशे में लरज़ती आवाज़ में बोली। वो हाई हील के सैंडल पहने नशे में ठीक से एक जगह खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। "ऑफ़ कर दे और मेरे करीब आ ना... जानू!" वो कुनमुनाते हुए सुनील के लौड़े की तरफ़ देखते हुए बोली और नशे में झूमती हुई अचानक धम्म से फ़र्श पे टाँगें फ़ैला कर बैठ गयी। उसने अपनी पीठ पीछे बेड से टिका रखी थी। सुनील लाइट बंद किये बगैर रुखसाना की तरफ़ बढ़ा। सुनील का तना हुआ लौड़ा हवा में लहरा रहा था जिसे देख कर रुखसाना की चूत फड़फड़ाने लगी। सुनील उसके पास आया और उसके चेहरे के बिल्कुल सामने अपना लौड़ा लहराते हुए खड़ा हो गया।

"वॉव भाभी इस वक़्त आप जन्नत की हूरों से भी ज्यादा हसीन लग रही हो... आपको इस तरह देख कर तो मुर्दों के लंड भी खड़े हो जायें!" सुनील अपना लौड़ा उसके चेहरे को छुआते हुए बोला तो रुखसाना ने मुस्कुराते हुए नज़रें झुका लीं। रुखसाना की तारीफ़ सुनील ज़रा भी बढ़ा चढ़ा कर नहीं कर रहा था बल्कि हकीकत बयान कर रहा था। ट्यूब-लाइट की रोशनी में घुटने मोड़ कर टाँगें फैलाये बैठी रूखसाना का दमकता हुआ चिकना नंगा जिस्म... बालों में झूमर... गले में सोने का नेकलेस... कानों में लटकते हुए सोने के बूँदे... दोनों हाथों में एक-एक चौड़ा कंगन और पैरों में बेहद ऊँची और पतली हील वाले कातिलाना सुनहरी सैंडल... होंठों पे लाल लिपस्टिक.... गालों पे लाली... बेशक रुखसाना क़यामत ढा रही थी। उसकी नशीली आँखों में शरम भी थी और शरारत भी थी... थोड़ी घबराहट के साथ-साथ बेकरारी और प्यास भी मौजूद थी। सुनील का लंड तो बिल्कुल लोहे के रॉड जैसा सख्त हो गया था। फिर अपने लौड़े का सुपाड़ा रुखसाना के लरज़ते लबों पे लगाते हुए सुनील बोला, "लो भाभी इसे अपने नर्म होंठों से प्यार कर दो ना!" इससे पहले सुनील को लंड चुसवाने का एक ही बार तजुर्बा था... जब अज़रा ने उसका लंड चूस-चूस कर उसका पानी निकाल कर पिया था। सुनील को बेहद मज़ा आया था। रुखसाना को भी खास तजुर्बा नहीं था लंड चूसने का। दास साल पहले शादी के बाद शुरू-शुरू में फ़ारूक़ उससे लंड चुसवाता था। उसके बाद तो उसने सिर्फ़ अज़रा को ही फ़ारूक लंड चूसते और उसकी मनी पीते हुए देखा था।

सुनील का जवान बिला-कटा लंबा-मोटा लंड रुखसाना को अपने चेहरे के सामने सख्त हो कर लहराता हुआ बेहद हसीन लग रहा था और उसने धीरे से अपने होंठ सुनील के लंड के चिकने सुपाड़े पे रख दिये और चूमने लगी और फिर एक हाथ से उसे पकड़ कर एक बार उसे आगे से पीछे तक सहलाने के बाद अपने होंठ खोल कर सुपाड़ा अपने मुँह में ले लिया और अपनी ज़ुबान उसके इर्द-गिर्द फिराने लगी। सुनील की मस्ती में आँखें मूँद गयी और होठों से सिसकरी निकल पड़ी, "ऊउहहह भाआआआभी...! रुखसाना को भी अपनी मुट्ठी और होंठों और ज़ुबान पे सुनील के सख्त गरम लौड़े का एहसास दीवाना बना रहा था। सुनील के लंड की गर्मी रुखसाना की मुट्ठी और होंठों से उसके जिस्म में समाती हुई सीधी उसकी चूत तक जा रही थी। फिर रुखसाना ने मज़े से चुप्पे लगाने शुरू कर दिये। जल्दी ही रुखसाना उसका आधे से ज्यादा लंड मूँह में अंदर-बाहर लेते हुए चूस रही थी। सुनील इतना उत्तेजित हो गया कि उसने रुखसाना का सिर पकड़ के अचानक जोर से धक्का मारते हुए अपना पूरा लौड़ा रुखसाना के हलक तक ठेल दिया। रुखसाना की तो साँस ही घुट गयी और वो तड़प उठी। सुनील ने अपना लौड़ा फ़ौरन बाहर खींच लिया तो रुखसाना खाँसते हुए जोर-जोर से साँसें लेने लगीं। "सॉरी भाभी... मैं रोक नहीं पाया खुद को!" सुनील बोला। रुखसाना की साँसें बहाल हुई तो उसने मुस्कुराते हुए सुनील को तसल्ली दी कि कोई बात नहीं। रुखसाना ने फिर अपने थूक से सना हुआ लौड़ा मुट्ठी में ले लिया और सहलाते हुए दूसरे हाथ में अपनी बगल में फर्श पे ही रखी व्हिस्की की बोतल लेकर एक छोटा सा घूँट पी लिया। उसके बाद उसने फिर सुनील के लंड के सुपाड़े को मुँह में ले कर चुप्पा लगाया तो सुनील को अलग ही मज़ा आया।

सुनील के दिमाग में कुछ विचार आया और उसने रुखसाना को ज़रा सा रुकने को कहा और फिर टेबल से काँच का एक छोटा सा गिलास ले कर उसे आधे तक व्हिस्की से भर दिया। फिर रुखसाना के चेहरे के सामने खड़े होकर अपना लौड़ा उस गिलास में डाल कर व्हिस्की में डुबो कर रुखसाना के होंठों पे रख दिया। रुखसाना फ़ौरन अपने लब खोल कर शराब में भीगा सुपाड़ा मुँह में ले कर फिर चुप्पे लगाने लगी। ऐसे ही सुनील बार-बार अपना लौड़ा शराब में भिगो-भिगो कर रुखसाना से चुसवा रहा था और रुखसाना को भी इस तरह शराब में भीगा लंड चूसने में बेहद मज़ा आ रहा था। इतने में सुनील का सब्र जवाब दे गया और उसकी टाँगें काँपने लगीं वो जोर से सिसकते हुए रुखसाना के मुँह में ही झड़ने लगा। रुखसाना बेझिझक उसकी मनी का ज़ायका ले रही थी। इतने मोटा लंड मुँह में भरे होने की वजह से सुनील का वीर्य रुखसाना के होंठों के किनारों से बाहर बहाने लगा तो सुनील ने अपना झड़ता हुआ लंड उसके मुँह से बाहर निकाल लिया और वीर्य की बाकी पिचकारियाँ शराब के गिलास में निकाल दीं। रूकसाना तो मस्ती में अपने होंठों के किनारों से बाहर निकली हुई मनी भी उंगलियों से पोंछ कर चाट गयी और होंठों पे ज़ुबान फिराने लगी।

जैसे ही सुनील ने शराब का गिलास जिसमें उसका वीर्य मलाई की तरह व्हिस्की में तैर रहा था... उसे टेबल पे रखने के इरादे से हाथ आगे बढ़ाया तो रुखसाना ने उसका हाथ पकड़ के रोक दिया और गिलास अपने हाथ में लेकर और उसे हिलाते हुए हिर्सना नज़रों से शराब में तैरती मनी देखने लगी। सुनील तो झड़ने के बाद के लम्हों की मस्ती में था और इससे पहले वो कुछ समझ पाता रुखसाना ने अपने थरथराते होंठ गिलास पे लगा दिये और गिलास को बिना होंठों से हटाये हुए धीरे-धीरे व्हिस्की और उसमें तैरती हुई मनी बड़े मज़े से पी गयी। सुनील आँखें फाड़े देखता रहा गया। वो सपने में भी सोच नहीं सकता था किरुखसाना जैसी शर्मिली औरत ऐसी अश्लील हर्कत भी कर सकती। लेकिन हवस का तुफ़ान सारी शर्म और हया खतम कर देता है।

ये देखकर सुनील में नया जोश आ गया और उसने रुखसाना को गोद में उठा कर बिस्तर पे लिटा दिया। रुखसाना ने जो मज़ा और खुशी उसे दी थी तो अब सुनील की बारी थी बदला चुकाने की। सुनील रुखसाना के ऊपर छा गया और उसके होंठों को अपने होंठों में ले कर चूसने लगा। फिर धीरे-धीरे रुखसाना के गालों और गर्दन को चूमते और अपनी जीभ फिराते हुए नीचे सरका। रुखसाना के दोनों मम्मों को मसलते हुए उसके निप्पलों को मुँह में ले कर चुभलाया तो रुखसाने की सिसकारियाँ शुरू हो गयीं। इसके बाद सुनील अचानक बेड से उतरा और व्हिस्की की बोतल ले कर वापस आ गया। रुखसाना के पैरों के नज़दीक बैठ कर उसने रुखसाना का एक पैर उठा के सैंडल के स्ट्रैप के बीच में उसके पैर को चूम लिया। फिर रुखसाना को उस पैर पे कुछ ठंडा बहता हुआ महसूस हुआ तो उसने देखा सुनील उसके पैर और सैंडल पे शराब डाल-डाल के चाट रहा था। सुनील ने एक-एक करके दोनों पैरों और सुनहरी सैंडलों के हर हिस्से को शराब में भिगो-भिगो कर चाटा। सैंडलों के तलवे और हील तक उसने शराब में भिगो कर अपनी जीभ से चाट कर साफ़ किये। सुनील की इस हरकत से रुखसाना के जिस्म में हवस की बिजलियाँ कड़कने लगीं। ऐसे ही धीरे-धीरे उसकी दोनों सुडौल चिकनी टाँगों और जाँघों पे थोड़ी-थोड़ी शराब डाल कर चाटते हुए ऊपर बढ़ा। रुखसाना मस्ती में छटपटाने लगी थी और उसकी सिसकारियाँ लगातार निकल रही थीं, "ओहहह मेरी जान ऊँऊँहह सुनीईईल जानू.... आँआआहहह!" उसके सिर के नीचे तकिया था तो वो नशीली आँखों से सुनील को ये सब करते देख भी रही थी। जब सुनील का चेहरा उसकी चूत के करीब आया तो पहले ही मचल उठी लेकिन सुनील उसकी चूत को नज़र-अंदाज़ करता हुआ ऊपर उसके पेट और नाभि की तरफ़ गया और उसके पेट पर शराब उड़ेल कर चाटने लगा। रुखसाना को अपने जिस्म पे जहाँ-जहाँ सुनील के चाटने का एहसास होता उन-उन हिस्सों में उसे हवस की चिंगरियाँ भड़कती महसूस होने लगती। जब उसकी नाफ़ में सुनील ने जाम की तरह शराब भर के उसे अपने होंठों से सुड़का तो रुखसाना सिसकते हुए मस्ती में जोर से किलकारी मार उठी। इसके बाद सुनील ने उसकी चूचियों और चूचियों के बीच की घाटी में भी शराब डाल कर फिर से उन्हें मसलते हुए चूमा-चाटा। फिर सुनील ने शराब का एक घूँट अपने मुँह में भरा और झुक कर रुखसाना के होंठों पे होंठ रख दिये और अपने मुँह में भरी शराब रुखसाना के मुँह में उतार दी।

रुखसाना को सुनील की इन हरकतों में बेहद मज़ा आ रहा था और उसकी हवस परवान चढ़ती जा रही थी। आखिर में जब सुनील उसकी चूत को शराब में नहला कर चूत के ऊपर और अंदर अपनी जीभ डाल-डाल कर चाटने लगा तो रुखसाना मस्ती में छटपटाते हुए अपनी टाँगें बिस्तर पे पटकने लगी और जोर-जोर से मस्ती में कराहते हुए अपना सिर दांये-बांये पटकने लगी और कुछ ही देर में उसकी चूत ने सुनील के मुँह में और चेहरे पे पानी छोड़ दिया। ज़िंदगी में अपनी चूत चटवाने का रुखसाना का ये पहला मौका था और उसे बेपनाह मज़ा आया था। दो ही दिन में सुनील ने रुखसाना की बरसों से बियाबान ज़िंदगी को ऐश-ओ-इशरत की बहारों से खिला दिया था। आज तक रुखसाना को इतना मज़ा कभी नहीं आया था। सैक्स सिर्फ़ लंड के चूत में अंदर-बाहर चोदने तक महदूद नहीं होता ये बात रुखसाना को अब पता चल रही थी।

अब तक सुनील का लंड फिर से खड़ा होकर सख्त हो चुका था। वो एक बार फिर रुखसाना के ऊपर छाता चला गया और कुछ ही पलों में वो रुखसाना की टाँगों के बीच में था और रुखसाना की टाँगें सुनील की जाँघों के ऊपर थी। सुनील ने अपनी हथेली रुखसाना की हसास चूत पर रखी तो उसके मुँह से आह निकल गयी। उसकी हथेली का एहसास इतना भड़कीला था कि रुखसाना ने बिस्तर की चादर को दोनों हाथों में थाम लिया। नीचे से उसकी चूत फिर से मचलते हुए पानी-पानी हो रही थी। सुनील का लंड उसकी चूत की फ़ाँकों पर रगड़ खा रहा था। "रुखसाना भाभी आपकी चूत बहुत खूबसूरत है..!" सुनील ने रुखसाना की चूत की फ़ाँकों को हाथों से फैलाया तो रुखसाना की मस्ती सातवें आसमान पर पहुँच गयी। हालाँकि रुखसाना ने 'चूत-चुदाई' जैसे अल्फ़ाज़ अकसर अज़रा और फ़ारुख के मुँह से सुने थे और वो इस तरह के लफ़ज़ों और गालियों से अंजान नहीं थी लेकिन रुखसाना के साथ कभी किसी ने ऐसे अल्फ़ाज़ों में बात नहीं की थी और ना ही कभी रुख्सआना ने ऐसे अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल किया था। रुखसाना को बिल्कुल भी बुरा या अजीब नहीं लगा बल्कि सुनील के मुँह से अपनी चूत की इस तरह तारीफ़ सुनकर वो गुदगुदा गयी थी। "ऊँम्म... खुदा के लिये ऐसी बातें ना कर सुनील!" रुखसाना मस्ती में बंद आँखें किये हुए लड़खड़ाती ज़ुबान में बोली।

"क्यों ना करूँ भाभी... ऐसी बातें सुन कर ही तो चुदाई का मज़ा आता है..!" सुनील ने अपने लंड के सुपाड़ा से रुखसाना की चूत की फ़ाँकों के बीच में रगड़ा तो रुखसाना को ऐसा लगा जैसे उसका दिल अभी धड़कना बंद कर देगा। "उफ़्फ़्फ़...!" सुनील के मुँह से निकला और उसने अपने लंड के सुपाड़े को ठीक रुखसाना की चूत के ऊपर रखा और उसके ऊपर झुकते हुए उसके गालों को चूमा। "सीईईई...." रुखसाना के तो रोम-रोम में मस्ती की लहर दौड़ गयी। फिर सुनील उसके गालों को चूमते हुए रुखसाना के होंठों पर आ गया। सुनील उसके होंठों को एक बार फिर से अपने होंठों में लेकर चूमने वाला था... ये सोचते ही रुखसाना की चूत फुदकने लगी... लंड को जैसे अंदर लेने के लिये मचल रही हो। फिर तो जैसे सुनील उसके होंठों पर टूट पड़ा और उसके होंठों को चूसने लगा। सुनील से अपने होंठ चुसवाने में और उसकी ज़ुबान के अपनी ज़ुबान के साथ गुथमगुथा होने से रुखसाना को इस कदर लुत्फ़ मिल रहा था कि वो बेहाल होकर सुनील से लिपटती चली गयी। इसी दौरान सुनील का लंड भी धीरे-धीरे रुख़साना की चूत की गहराइयों में उतरता चला गया। जैसे ही सुनील का लंड रुखसाना की चूत के गहराइयों में उतरा तो उसने रुखसाना के होंठों को छोड़ दिया और झुक कर उसके दांये मम्मे के निप्पल को मुँह में भर लिया और जोर-जोर से चूसने लगा। रुखसाना एक दम मस्त हो गयी और उसकी बाँहें सुनील की पीठ पर थिरकने लगी। सुनील पिछली रात की तरह जल्दबाज़ी में नहीं था। वो कभी रुखसाना के होंठों को चूसता तो कभी उसके मम्मों को! उसने रुखसाना के निप्पलों को निचोड़-निचोड़ कर लाल कर दिया।

रुखसाना के होंठों में भी सरसराहट होने लगी थी और जब सुनील उसके होंठों को चूसना छोड़ता तो खून का दौरा उसके होंठों में तेज हो जाता और तेज सरसराहट होने लगती। रुखसाना का दिल करता कि सुनील उसके होंठों को चूमता ही रहे... उसकी ज़ुबान को अपने मुँह में ले कर सुनील चूसता ही रहे..! रुक़साना की दोनों चूचियों और निप्पलों का भी यही हाल था लेकिन सुनील के लिये उसके होंठों और दोनों चूचियों और निप्पलों को एक वक़्त में एक साथ चूसना तो मुमकिन नहीं था। नीचे रुखसाना की फुद्दी भी फुदफुदा रही थी। रुखसाना इतनी मस्त हो गयी थी कि उसकी फुद्दी सुनील के लंड पे ऐंठने लगी जबकि अभी तक सुनील ने एक भी बार अपने मूसल लंड से उसकी चूत में वार नहीं किया था। वो रुखसाना की चूत में लंड घुसाये हुए उसके मम्मों और होंठों को बारी-बारी चूस रहा था और रुखसाना मस्ती में आँखें बंद किये हुए सिसकती रही और फिर उसकी चूत के सब्र का बाँध टूट गया। रुखसाना काँपते हुए झड़ने लगी पर सुनील तो अभी भी उसके मम्मों और होंठों का स्वाद लेने में ही मगन था। सुनील को भी एहसास हो गया था कि रुखसाना फिर झड़ चुकी है।

फिर सुनील उठा और घुटनों के बल बैठ गया और अपने लंड को सुपाड़े तक रुखसाना की चूत से बाहर निकाल-निकाल कर अंदर बाहर करने लगा। लंड चूत के पानी से चिकना होकर ऐसे अंदर जाने लगा जैसे मक्खन में गरम छुरी। "भाभी देखो ना आपकी चूत मेरे लंड को कैसे चूस रही है..... आहहह देखो ना..!" रुकसाना उसके मुँह से फिर ऐसे अल्फ़ाज़ सुनकर फिर मस्ती में भर गयी। वो पूरी रोशनी में सुनील के सामने अपनी टाँगें फैलाये हुए एक दम नंगी होकर उसका लंड अपनी चूत में ले रही थी और सुनील उसकी चूत में अपने लंड को अंदर-बाहर कर रहा था। "आहहह देखो ना भाभी... आपकी चूत कैसे मेरे लंड को चूम रही है... देखो आहहह सच भाभी आपकी चूत बहुत गरम है!" सुनील झटके मारते हुए बोले जा रहा था।

रुखसाना की पहाड़ की चोटियों की तरह तनी हुई गुदाज़ चूचियाँ सुनील के धक्कों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थी। "ऊँऊँहह सुनील... मेरे दिलबर ऐसी बातें ना कर... मुझे शर्म आती है!" रुखसाना की बात सुनकर सुनील ने दो तीन जोरदार झटके मारे और अपना लंड चूत से बाहर निकाल लिया। "देखो ना भाभी... आपकी चूत की गरमी ने मेरे लंड के टोपे को लाल कर दिया है!" सुनील की ये बात सुनकर रुखसाना मस्ती में और मचल गयी। रुखसाना ने अपनी मस्ती और नशे से भरी हुई आँखों से नीचे सुनील की रानों की तरफ़ नज़र डाली तो उसे सुनील के लंड का सुपाड़ा नज़र आया जो किसी टमाटर की तरह फूला हुआ एक दम लाल हो रखा था। रुखसाना मन ही मन सोचने लगी कि सच में चूत के गरमी से उसके लंड का टोपा लाल हो सकता है..!

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