मजबूर (एक औरत की दास्तान)

PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

सुनील बोला, "अपनी टाँगें खोलो ना!" सानिया सिसकते हुए फुसफुसा कर धीरे से बोली, "ऊँम्म... कुछ हो गया तो..!" सुनील फिर उसकी गर्दन पे अपने होंठ रगड़ते हुए बोला, "मैं भला अपनी जान को कुछ होने दुँगा... प्लीज़ सानिया एक बार और कर लेना दो ना... तुम्हें मेरी कसम..!" सानिया सुनील की प्यार भरी चिकनी चुपड़ी बातें सुन कर एक दम से पिघल गयी। उसने लरजते हुए टाँगों में फंसी अपनी कैप्री को अपने पैरों मे गिरा दिया और फिर उसमें से एक पैर निकाल कर खड़े-खड़े अपनी टाँगें फैला दी। सुनील ने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर सानिया की गाँड से नीचे ले जाते हुए उसकी चूत की फ़ाँकों पर रख कर अपने लंड के सुपाड़ा को सानिया के चूत के छेद पर टिकाने की कोशिश करने लगा पर खड़े-खड़े उसे सानिया की चूत के छेद तक अपना लंड पहुँचाने में परेशानी हो रही थी।

"सानिया तुम्हारी फुद्दी के छेद पर लंड लगा क्या?" सुनील ने पूछा। "ऊँम्म्म मुझे नहीं मालूम..!" सानिया बोली। "बताओ ना..!" सुनील ने फिर पूछा तो सानिया ने कसमसाते हुए कहा, "नहीं..!" सानिया की चूत की फ़ाँकों में अपने लंड को रगाड़ कर छेद को तलाशते हुए सुनील ने फिर पूछा, "अब..?" सानिया ने फिर से ना में गर्दन हिला दी और सुनील ने फिर से अपने लंड को एडजस्ट किया और जैसे ही सुनील के लंड का दहकता हुआ सुपाड़ा सानिया की चूत के छेद से टकराया तो सानिया के पूरे जिस्म ने एक तेज झटका खाया। उसके होंठों पर शर्मीली मुस्कान फैल गयी और उसने अपने सिर को झुका लिया। सुनील ने पुछा, "अब?" सानिया ने हाँ में सिर हिलाते हुआ कहा, "हुँम्म्म्म!"

सुनील ने धीरे-धीरे अपने मूसल लंड को ऊपर की ओर चूत के छेद पर दबाना शुरू कर दिया। सुनील का लंड सानिया की तंग चूत में धीरे-धीरे अंदर जाने लगा। लंड के सुपाड़े की रगड़ सानिया को अपनी चूत की दीवारों पर मदहोश करती जा रही थी। उसके पैर खड़े-खड़े काँपने लगे और आँखें मस्ती में बंद होने लगी थी। सुनील ने सानिया को थोड़ा सा धक्का देकर ठीक एक पेड़ के नीचे कर दिया और उसकी पीठ को दबाते हुए उसे झुकाना शुरू कर दिया। सानिया ने अपने हाथों को पेड़ के तने पर टिका दिया और झुक कर खड़ी हो गयी। सानिया की बाहर की तरफ़ निकाली गाँड देख कर सुनील एक दम से पागल हो गया। उसने ताबड़तोड़ धक्के लगाने शुरू कर दिये। सुनील की जाँघें सानिया के चूतड़ों से टकरा कर थप-थप कर रही थी और सानिया बहुत कम आवाज़ में सिसकारियाँ भरते हुए चुदाई का मज़ा ले रही थी। उसके पैर मस्ती के कारण काँपने लगे थे। सुनील ने सानिया की चूत से लंड बाहर निकाला और फिर से एक झटके के साथ सानिया की चूत में पेल दिया। सानिया एक दम से सिसक उठी। सुनील ने फिर से अपने लंड को रफ़्तार से सानिया की चूत के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। पाँच मिनट बाद सानिया और सुनील फिर से झड़ गये। सुनील ने अपना लंड सानिया की चूत से बाहर निकाला और तिरपाल पर पड़ी हुई पैंटी को फिर से उठा कर अपना लंड साफ़ करने लगा।

सानिया पेड़ के तने से अपना कंधा टिकाये हुए मदहोशी से भरी आँखों से ये सब देख रही थी। उसकी कैप्री अभी भी उसके एक पैर में फंसी हुई ज़मीन पे पड़ी हुई थी। सुनील ने अपना लंड साफ़ करने के बाद अपना अंडरवियर और पैंट पहनी और सानिया के पास आकर झुक कर बैठ गया और उसकी जाँघों को फैलाते हुए उसकी चूत को पैंटी से साफ़ करने लगा। सानिया बेहाल सी ये सब देख रही थी। फिर सानिया ने अपने कपड़े ठीक किये और दोनों घर वापस चल दिये।

सानिया की ताई अज़रा और उसकी सौतेली अम्मी रुखसाना ने जिस तरह सुनील को लड़के से मर्द बनाया था वैसे ही सुनील ने आज रुखसाना को कली से फूल बना दिया था। सुनील ने उसे घर से थोड़ा पहले ही उतार दिया। सफ़ेद कैप्री के नीचे बगैर पैंटी पहने सानिया धीरे-धीरे चलती हुई घर पहुँची। उसके मन में अजीब सा डर था। जब रुखसाना ने दरवाज़ा खोला तो सानिया को बाहर खड़ा देखा। सानिया की हालत कुछ बदतर सी नज़र आ रही थी। "क्या हुआ सानिया... तुम ठीक तो हो ना?" रुखसाना ने सानिया की ओर देखते हुए पूछा। "हाँ अम्मी... ठीक हूँ बस थोड़ा सिर में दर्द है..!" ये कहकर सानिया सीधे अपने कमरे में जाने लगी। "ठीक है... तुम फ्रेश होकर कपड़े चेंज कर लो.. मैं चाय बना देती हूँ!" रुखसाना ने कहा और उसके बाद सानिया अपने कमरे में चली गयी। वहाँ से अपने कपड़े लेकर वो बाथरूम में घुस गयी और नहाने के बाद सलवार कमीज़ पहन कर बाहर आ गयी।

रुखसाना को बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि उसकी जवान बेटी सानिया आज कली से फूल बन चुकी थी। सुनील घर नहीं आया था तो उन दोनों ने खाना खाया और सानिया अपने कमरे में जाकर सो गयी। वो कहते है ना कि सैक्स का नशा जो भी इंसान एक बार कर ले तो फिर तो जैसे उसे उसकी लत्त सी लग जाती है... सानिया भी जवान लड़की थी... घी में लिपटी हुई उस रुआनी की तरह जिसे आग दिखाओ तो जल उठे... सानिया भी अपनी उम्र के ऐसे ही मकाम पर खड़ी थी। दूसरी तरफ़ सुनील भी उम्र के उसी मोड़ पर था और अपने से दुगुनी उम्र की चार-चार चुदैल औरतों के साथ नाजायज़ संबंध बना के जवानी के नशे में इतनी बुरी तरह बिगड़ चुका था कि उसे कुछ होश नहीं था कि वो किस राह पर चल निकला है।

रुखसाना को खबर नहीं थी कि सानिया और सुनील के बीच इतना कुछ हो चुका है। सानिया ने भी कुछ ज़ाहिर नहीं होने दिया था और रुखसाना को पता चलता भी कैसे... वो तो खुद हर वक़्त सुनील के लंड से अपनी चूत की आग को मिटाने के लिये बेकरार रहती थी और उससे चुदवाने के मौकों की फ़िराक़ में रहती थी। पर सानिया की मौजूदगी और फिर फ़ारूक के भी वापस आ जाने के बाद मौका मिलना दुश्वार हो गया था... दरसल इसकी सबसे बड़ी वजह खुद सुनील था क्योंकि अब नफ़ीसा और रशीदा सुनील से बाकायदा तौर पे चुदवाती थीं। सुनील हफ़्ते में कम से कम तीन रातें नफ़ीसा और रशीदा के घर पे बिताता था। इसके अलावा दिन में स्टेशन पर भी कभी टॉयलेट में तो कभी किसी दूसरी मुनासिब जगहों पर और कभी-कभी तो अपनी कारों की पिछली सीट पे भी दोनों चुदक्कड़ औरतें सुनील से अपनी चूत और गाँड मरवाने से बाज़ नहीं आती थीं। रुखसाना को तो इस बात की बिल्कुल भी खबर नहीं थी और वो समझ रही थी कि सुनील की जॉब में मसरूफ़ियत बढ़ गयी है। अब तो सुनील ने पहले की तरह रुखसाना को चोदने के लिये दोपहर में भी घर आना बंद कर दिया था। अब तो तीन-तीन चार-चार दिन निकल जाते थे और रुखसाना को सुनील के साथ चुदवाना तो दूर उसके साथ लिपटने-चिपटने और चूमने-चाटने तक के लिये तरस जाती थी। रुखसाना का तो बुरा हाल था ही पर सानिया जैसी जवान लड़की जो एक बार लंड का मज़ा चख ले और वो भी सुनील जैसे जवान लड़के के लंड का मज़ा जो किसी भी औरत की चूत का पानी छुड़ा सकता हो... उसकी बुरी हालत थी। सानिया भी अक्सर सुनील को खा जाने वाली नज़रों से घुरती रहती और सुनील के करीब होने का मौका तलाशती रहती पर ना तो सानिया को मौका मिल पा रहा था और ना ही उसकी अम्मी को।

ढाई-तीन हफ़्ते बाद की बात है... एक दिन फ़ारूक और सुनील अपनी ड्यूटी पर जा चुके थे लेकिन सानिया की छुट्टी थी। उस दिन सानिया दोपहर में पड़ोस में नज़ीला के घर गयी हुई थी। उस दिन नज़ीला और उसके बीच में एक अजीब सा रिश्ता बनने वाला था। सानिया नज़ीला के कमरे में बैठी उसके साथ चाय पी रही थी और नज़ीला का बेटा सलील बाहर हाल में टीवी देख रहा था। नज़ीला ने चाय की चुसकी लेते हुए सानिया से कहा, "सानिया देख ना... क्या ज़माना आ गया है... आज कल किसी पर कोई ऐतबार नहीं क्या जा सकता..!"

सानिया: "क्यों क्या हुआ आँटी?"

नज़ीला: "अब देखो ना... ये जो हमारी पड़ोसन शहला है ना...?"

सानिया: "हाँ क्या हुआ उन्हें..?"

नज़ीला: "अरे होना क्या है उसे... दो दिन से घर से लापता है..!"

सानिया: "क्या?"

नज़ीला: "हाँ और नहीं तो क्या... मुझे तो पहले से ही मालूम था कि यही होने वाला है एक दिन!"

सानिया: "पर हुआ क्या शहला आँटी को? और आप को क्या मालूम था?"

नज़ीला: "अरे कुछ नहीं अपने आशिक़ के साथ भाग गयी है... अपने शौहर को छोड़ कर..!"

सानिया: "आप को कैसे पता..?"

नज़ीला: "सानिया बताना नहीं किसी को... मैंने एक बार पहले भी उसके शौहर आसिफ़ और उनकी सास ज़ोहरा को ये बात बतायी थी कि शहला का चाल-चलन ठीक नहीं है पर वो दोनों उल्टा मुझ पर ही बरस पड़े... बोले कि मुझे दूसरों के घरों में ताँक-झाँक करने की आदत है और मैं अपने काम से काम रखा करूँ... उनके घर में मुझे दखल देने की जरूरत नहीं है... अगर मेरी बात पहले मान लेते तो आज मोहल्ले वालों के सामने यूँ जलील तो ना होना पड़ता!"

सानिया: "पर आप को पहले कैसे पता चल गया आँटी?"

नज़ीला: "अरे क्या बताऊँ तुझे सानिया... एक दिन मैं दोपहर को अपनी छत पर सुखे कपड़े उतारने के लिये गयी थी... तब मैंने पहली बार उस लड़के को छत पर देखा था... जब मैंने शहला की सास से पूछा तो उसने कहा कि ऊपर के रूम में किराये पर रह रहा है... मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर फिर एक दिन मैंने शहला को छुपते हुए उसके रूम में जाते हुए देखा तो मेरा दिमाग ठनक गया... मैंने उन दोनों पर नज़र रखनी शुरू कर दी... एक दिन मुझे याद है तब शायद आसिफ़ टूर पर गया हुआ था... और शहला की सास बाहर गयी हुई थी किसी काम से... तो मैंने उन दोनों को उस लड़के के कमरे के बाहर छत पे पानी की टंकी की पीछे रंग-रलियाँ मनाते हुए देख लिया था... अब तुझे क्या बताऊँ सानिया मैंने जो देखा... मुझे तो देखते ही शरम आ गयी...!"

सानिया के दिल के धड़कनें भी नज़ीला की बातें सुन कर बढ़ने लगी थी। उसने पूछा, "क्या... क्या देखा आप ने...?"

नज़ीला: "जाने दे तेरी उम्र नहीं है इन सब बातों को जानने की... कहीं गल्ती से तूने कहीं मुँह खोल दिया तो सारा मोहल्ला मेरा ही कसूर निकालने लग जायेगा...!"

सानिया: "नहीं आँटी मैं नहीं बताती किसी को.... मैं कोई बच्ची थोड़े ही हूँ... आप बताओ ना क्या देखा आप ने..!"

नज़ीला: "पक्का ना... नहीं बतायेगी ना...?"

सानिया: "हाँ नहीं बताऊँगी प्रॉमिस!"

नज़ीला: "तो उस दिन जब मैं ऊपर छत पर गयी तो मैंने देखा कि दोनों उस लड़के के रूम के बाहर पानी की टंकी के पीछे खड़े हुए थे... दोनों ने एक दूसरे को बाहों में कस रखा था... शहला ने उस वक़्त सिर्फ़ कमीज़ पहनी हुई थी और उसने अपनी सलवार उतार कर एक तर्फ फेंक रखी थी... उस लड़के ने शहला को अपनी बाहों में उठा रखा था.... और वो भी किसी रंडी की तरह उसकी कमर में अपनी दोनों नंगी टाँगें लपेटे हुए थी... हाय-हाय सानिया... मैंने आज तक किसी को ऐसे करते नहीं देखा... वो तो उसकी खड़े-खड़े ही ले रहा था... और वो कमीनी भी उसकी गोद में चढ़ी हुई अपनी कमर हिला-हिला कर उसे दे रही थी!

नज़ीला की बातें सुन कर सानिया का दिल जोरों से धड़कने लगा... चूत कुलबुलाने लगी और ऐसे धुनकने लगी जैसे उसकी चूत में ही उसका दिल धड़क रहा हो। "हाय आँटी क्या खड़े-खड़े ही... वो भी गोद में उठा कर..?" सानिया ने धड़कते हुए दिल के साथ कहा। "हाँ और नहीं तो क्या... आज कल ये सब नये पैशन हैं..." नज़ीला उठ कर सानिया के करीब आकर बेड पर बैठ गयी।

सानिया: "पर आँटी ऐसे खड़े होकर कैसे कर सकते हैं...?"

नज़ीला: "अरे तूने अभी तो कुछ देखा ही नहीं है... आज कल के लोग तो पता नहीं क्या-क्या करते हैं.. तुम देख लोगी तो तौबा कर उठोगी!"

सानिया: "क्या... पर आप ने ये सब कहाँ देखा... क्या अंकल भी आपके साथ..?"

नज़ीला: "चुप कर बदमाश एक मारुँगी हाँ...!"

सानिया: "फिर बताओ ना... अगर अंकल ऐसे नहीं करते तो आपको कैसे पता कि क्या-क्या करते हैं?"

नज़ीला: "हमारे नसीब में कहाँ ये सब... ये तो आज कल के लड़के-लड़कियाँ करते हैं... तेरे अंकल की तो कईं सालों से दिलचस्पी ही नहीं रही इन सब में... वैसे भी उनको देखा है ना कितने सुस्त से रहते हैं... जब से उन्हें ब्लड-प्रेशर और डॉयबटीज़ हुई है... थोड़ा सा काम करते ही थक जाते हैं... वो चाहें तो भी उनसे कुछ होने वाला नहीं!"

सानिया: "तो फिर आप ने किया नहीं तो कहाँ देखा...!"

नज़ीला: "अरे वो आती है ना ब्लू फ़िल्में... उनमें देखा है...!"

सानिया ने अंजान बनते हुए पूछा, "ब्लू फ़िल्म! वो क्या होता है..?"

नज़ीला: "अरे वही जिसमें औरतों और मर्दों को सैक्स करते दिखाते हैं... कमाल है तुझे नहीं मालूम... वर्ना आज कल के लड़के-लड़कियाँ तो तौबा... पैदा बाद में होते हैं और ये सब उनको पहले से ही मालूम होता है..!"

सानिया: "आपका मतलब पोर्न मूवीज़ आँटी?"

नज़ीला: "हाँ वही... तूने देखी है..?"

सानिया: "नहीं बस सुना है... कॉलेज में मेरी कईं फ्रेंड्स के घर पर कंप्यूटर और इंटरनेट लगा हुआ है... उनसे सुना है...!"

नज़ीला: "सिर्फ़ सहेलियाँ ही हैं... या अभी तक कोई बॉय फ्रेंड भी बनाया है...?"

सानिया शर्मते हुए बोली, "नहीं आँटी...!"

नज़ीला: "अरे तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे सच में तेरा कोई बॉय फ्रेंड हो... सच- सच बता ना... है क्या कोई..? देख मुझसे क्या छुपाना मैं भी तेरी सहेली जैसी हूँ...!"

सानिया: "नहीं आँटी सच में कोई नहीं है!"

नज़ीला: "अच्छा चल ठीक है... मैं तेरी बात मान लेटी हूँ... पर अगर कभी तेरा कोई बॉय फ्रेंड बने तो मुझे बताना... देख ज़माना बहोत खराब है... बाहर कुछ गलत मत कर देना... मुझे बताना... मैं तेरी मदद करुँगी..!"

सानिया: "रियली आँटी?"

नज़ीला को खटक गया कि सानिया उससे झूठ बोल रही है क्योंकि सानिया मुँह से कुछ और बोल रही थी पर उसका चेहरा कुछ और बोल रहा था। नज़ीला ने कहा, "हाँ और नहीं तो क्या... देख हम दोनों हमेशा सहेलियों की तरह रहे हैं और आगे भी ऐसे ही रहेंगे..!"

सानिया: "ठीक है आँटी... अगर मेरी लाइफ में कोई आया तो मैं आपको जरूर बताउँगी!"

नज़ीला: "वैसे सानिया जो तुम्हारे घर में किरायेदार आया है... क्या नाम है उसका?"

सानिया: "सुनील...!"

नज़ीला: "हाँ सुनील.... बहुत हैंडसम है तेरा क्या ख्याल है?"

.

सानिया: "होगा मुझे उससे क्या...?"

नज़ीला: "नहीं मैं तो वैसे ही पूछ रही थी... वैसे तू तो इतनी खूबसूरत है... तेरा जिस्म तो क़यामत है... उसने तेरे साथ कभी ट्राई नहीं किया फ्रेंडशिप करने को?"

सानिया: "नहीं आँटी... मैंने उसकी तरफ़ कभी तवज्जो नहीं दी...!"

नज़ीला: "फिर तो तू बड़ी बेवकूफ़ है... घर में इतना जवान और हैंडसम लड़का है... और तू कह रही है कि तुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है... काश तेरे जगह मैं होती...!" नज़ीला ने एक ठंडी साँस लेते हुए कहा।

सानिया: "अच्छा आँटी एक बात पूछूँ...?"

नज़ीला: "हाँ पूछ ना...!"

सानिया: "अगर वो लड़का आपसे सैटिंग करना चाहता हो तो क्या आप कर लेंगी...?"

सानिया की बात सुन कर नज़ीला थोड़ा हैरान होकर बोली, "चुप कर... मैं तो वैसे ही बोल रही थी!"

सानिया: "नहीं आँटी प्लीज़ सच बताओ!"

नज़ीला: "पहली बात तो ये कि मेरी ऐसी किस्मत कहाँ कि वो मुझे लाइन मारे... और दूसरी बात ये कि जब वो तेरी जैसी लड़की पर नहीं लाइन मार रहा तो मुझे क्या खाक मरेगा...!"

सानिया: "ओहहो आँटी... क्यों आप में क्या कमी है.. आप तो हमारे मोहल्ले में सबसे खूबसूरत औरत हो!"

नज़ीला: "अरे खूबसूरती के मामले में तो तेरी अम्मी का इस मोहल्ले में तो क्या पूरे शहर में कोई मुकाबला नहीं कर सकती... मुझ पर क्यों लाइन मरने लगा वो लड़का... और अगर ऐसे हुआ तो सच कहती हूँ कि मैं तेरी जैसी बेवकूफ़ नहीं हूँ... मौका हाथ से नहीं जाने दुँगी हाहाहाहा!"

सानिया: "पर अभी तो आप कह रही थी कि मुझे उसके साथ फ्रेंडशिप कर लेनी चाहिये... बहोत चलाक हो आप आँटी... अब खुद की सैटिंग करने की जानिब सोचने लगी..!"

नज़ीला: "देख सानिया यार... ये ज़िंदगी है ना... बार-बार नहीं मिलती तो क्यों ना इसका ज्यादा से ज्यादा मज़ा लिया जाये... और वैसे भी क्या फ़र्क़ पड़ता है... अगर वो मेरे साथ भी कर लेगा...!"

सानिया ने काँपती हुई आवाज़ में पूछा, "क्या कर लेगा?"

नज़ीला: "सैक्स और क्या... उसका क्या बिगड़ जायेगा और तेरा भी क्या बिगड़ जायेगा... अरे मैंने ऐसी-ऐसी ब्लू फ़िल्में देखी हैं... जिसमें एक औरत अपनी सहेलियों के साथ अपने बॉय फ़्रेंड या शौहर को शेयर करती हैं... और अपनी आशिक़ से ही अपनी सहेलियों को चुदवाती हैं... फिर मैं भी तो तेरी सहेली ही हूँ और वैसे भी वो कौन सा तेरा शौहर है..!"

सानिया: "क्या सच में होता है ऐसे!"

नज़ीला: "चल तुझे मैं एक मूवी दिखाती हूँ!" ये कह कर नज़ीला ने अपनी अलमारी खोली और उसमें से एक डी-वी-डी निकाल कर सानिया की तरफ़ बढ़ायी।

सानिया: "ये... ये क्या है आँटी?"

नज़ीला: "वही जिसे तू पोर्न कहती है... देखनी है तो देख ले... मैं बाहर सलील का होमवर्क करवा कर आती हूँ..!" ये कह कर नज़ीला सानिया के हाथ में डी-वी-डी थमा कर बाहर चली गयी और हाल में सलील को उसके स्कूल का होमवर्क कराने लगी। सानिया ने काँपते हुए हाथों से उस डिस्क को डी-वी-डी प्लेयर में डाल कर ऑन कर दिया। सानिया ने पोर्न कहानियाँ-किस्से तो खूब पढ़े थे लेकिन पोर्न मूवी कभी नहीं देखी थी। उस डीवीडी में बहुत सारे थ्रीसम और फ़ोरसम सीन थे जिनमें दर्मियानी उम्र की दो या तीन औरतें मिलकर किसी जवान लड़के के साथ चुदाई के मज़े ले रही थीं। एक सीन में तो माँ और बेटी मिलकर एक लड़के से चुदवा रही थीं। सानिया की हालत ये सब देख कर खराब हो गयी। सानिया का अब सैक्स के जानिब नज़रिया बदल गया था। ना जाने क्यों उसके दिमाग में अजीब -अजीब तरह के ख्याल आने लगे... वो वहाँ से उठ कर अपने घर आ गयी और आते ही अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद करके नंगी हो गयी और बहोत देर तक मोमबत्ती अपनी चूत में डाल कर काफ़ी देर तक अपनी हवस की आग बुझाने की कोशिश करती रही।

उसके बाद ऐसे ही करीब एक महीना और गुज़र गया। सुनील तो अपना मन रशीदा और नफ़ीसा के साथ बाहर बहला रहा था लेकिन रुखसाना और सानिया का बुरा हाल था। दोनों के ज़हन में अब हर वक़्त चुदाई का नशा सवार रहता था। सुनील से चुदवाने के बाद अब सानिया को हर वक़्त अपनी चूत में खालीपन महसूस होता था और रुखसाना को तो पहले से ही सुनील के लंड का ऐसा चस्का लग चुका था कि उसके दिन और रात बड़ी मुश्किल से कट रहे थे। रुखसाना तो फिर भी कभी-कभार सुनील के साथ जल्दबज़ी वाली थोड़ी-बहुत चुदाई में कामयाब हो जाती थी लेकिन सानिया को तो सुनील के साथ थोडी छेड़छाड़ या चूमने-चाटने से ज्यादा मौका नहीं मिल पाता था। रुखसाना भले ही सानिया की हालत से अंजान थी पर अब उसे सानिया के चेहरे पर किसी चीज़ की कमी होने का एहसास होने लगा था।

इसी दौरान एक वाक़िया हुआ जिससे रुखसाना की ज़िंदगी में वापस बहारें लौटने लगीं। रशीदा की ट्राँसफ़र की अर्ज़ी रेलवे में मंज़ूर हो गयी और उसकी पोस्टिंग कोलकत्ता में हो गयी। रशीदा के जाने के बाद भी सुनील का नफ़ीसा के साथ रिश्ता पहले जैसा ही बना रहा। रुखसाना ने इन दिनों नोटिस किया कि सुनील अब पहले की तरह उसमें फिर से काफी दिलचस्पी लेने लगा था... अब वो खुद से कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ता था। जब रुखसाना उसे दो-तीन मिनट के लिये भी अकेली दिख जाती तो वो मौका देख कर कभी उसे बाहों में जकड़ के चूम लेता तो कभी उसकी सलवार के ऊपर से उसकी फुद्दी को मसल देता।

तभी एक और वाक़िया हुआ जिसने रुखसाना के सोचने का नज़रिया ही बदल दिया। एक दिन रुखसाना नज़ीला के घर गयी। सुबह के ग्यारह बजे का वक़्त था। फ़ारूक और सुनील दोनों जॉब के लिये जा चुके थे और सानिया भी कॉलेज गयी हुई थी। रुखसाना को आइब्राउ बनवानी थी तो उसने सोचा कि नज़ीला भाभी से थ्रेडिंग के साथ-साथ फ़ेशियल भी करवा लेती हूँ। वैसे तो वो खुद ये सब करने में माहिर थी लेकिन आइब्राउ क्योंकि खासतौर पे खुद बनाना आसान नहीं होता इसलिये वो अक्सर नज़ीला से थ्रेडिंग करवाती थी। नज़ीला तो वैसे भी अपने घर में ही ब्यूटी पार्लर चलाती थी। रुखसाना ने घर का काम निपटाया और अपने घर को बाहर से लॉक करके नज़ीला के घर की तरफ़ गयी। जैसे ही वो नज़ीला के घर का गेट खोल कर अंदर गयी तो सामने गैराज का दरवाजा खुला हुआ था जिसमें नज़ीला का ब्यूटी-पार्लर था। रुखसाना ब्यूटी-पार्लर में घुसी तो वहाँ कोई नहीं था। रुखसाना ने देखा कि पार्लर में से घर के अंदर जाने वाला दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। रुखसाना और नज़ीला अच्छी सहेलियाँ थीं और वैसे भी नज़ीला इस वक़्त घर में अकेली होती थी तो रुखसाना बिना कुछ बोले अंदर चली गयी। अंदर एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था लेकिन नज़ीला के बेडरूम से कुछ आवाज़ आ रही थी। नज़ीला की खुशनुमा आवाज़ सुन कर रुखसाना उसके बेडरूम के ओर बढ़ी... और जैसे ही वो बेडरूम के डोर के पास पहुँची तो रुखसाना की आँखें फटी की फटी रह गयीं।

नज़ीला ड्रेसिंग टेबल पर झुकी हुई थी और उसने ने अपनी कमीज़ को अपनी कमर तक उठा रखा था... उसकी सलवार उसकी टाँगों से निकली हुई उसके पैरों में ज़मीन पर थी और सफ़ेद रंग की पैंटी उसकी रानों तक उतारी हुई थी और एक लड़का जो मुश्किल से पंद्रह-सोलह साल का था... उसके पीछे खड़ा हुआ था। उस लड़के का लंड नज़ीला की गोरी फुद्दी के लबों के दर्मियान फुद्दी में अंदर-बाहर हो रहा था और उस लड़के ने नज़ीला के चूतड़ों को दोनों तरफ़ से पकड़ा हुआ था जिन्हें वो बुरी तरह से मसल रहा था। तभी नज़ीला की मस्ती से भरी आवाज़ पूरे कमरे में गूँज उठी।

नज़ीला: "आआहहहह आफ़्ताब ओहहह आहहह बाहर ब्यूटी-पार्लर खुला हुआ है... मेरी कस्टमर्स आकर लौट जायेंगी... एक बजे पार्लर बंद करने के बाद दोपहर में फिर आराम से कर लेना जो करना है!"

आफ़्ताब: "आआहह खाला... मुझे सब्र नहीं होता... मैं क्या करूँ... जब भी हाई हील वाली सैंडलों में आपकी मटकती गाँड देखता हूँ तो मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है और सलील भी दो बजे स्कूल से आ जायेगा.... मुझे आपकी फुद्दी मारने दो ना... आप ने तो कल खालू से चुदवा लिया होगा ना...!

.

नज़ीला: "वो क्या खाक चोदता है मुझे.... तेरे खालू का लंड तो ठीक से खड़ा भी नहीं होता... मुझे तो तेरे जवान लंड की लत्त लग गयी है... बस मैं एक घंटे में पार्लर बंद कर दुँगी... फिर जितनी देर करना हो कर लेना!"

पूरे कमरे में फ़च-फ़च जैसी आवाज़ गूँज रही थी। रुखसाणा ने देखा कि नज़ीला सिर्फ़ ऊपर से मना कर रही थी... वो पूरी मस्ती में थी और अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ धकेल-धकेल कर आफ़्ताब से चुदवा रही थी। तभी अचानक से रुकसाना हिली तो उसका सैंडल बेड रूम के दरवाजे से टकरा गया। आवाज़ सुनकर दोनों एक दम से चौंक गये। जैसे ही नज़ीला ने रुखसाना को डोर पर खड़े देखा तो उसके चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया। उस लड़के की हालत और भी पत्तली हो गयी और उसने जल्दी से अपने लंड को बाहर निकाला और अटैच बाथरूम में घुस गया। नज़ीला ने जल्दी से अपनी पैंटी ऊपर की और फ़ौरन अपनी सलवार उठा कर पहनी और घबराते हुए काँपती हुई आवाज़ में बोली, "अरे रुखसाना... तुम तुम कब आयीं?" फिर वो रुकसाना के पास आयी और उसका हाथ पकड़ कर उसे ड्राइंग रूम में ले गयी और उसे सोफ़े पर बिठाया। वो कुछ कहना चाह रही थी पर शायद नज़ीला को समझ नहीं आ रहा था कि वो रुखसाना से क्या कहे.... कैसे अपनी सफ़ाई दे! "ये सब क्या है नज़ीला भाभी...?" रुखसाना ने नज़ीला के चेहरे की ओर देखते हुए पूछा।

नज़ीला गिड़गिड़ा कर मिन्नत करते हुए बोली, "रुखसाना यार किसी को बताना नहीं... तुझे अल्लाह का वास्ता... वर्ना मैं कहीं की नहीं रहुँगी... मेरा घर बर्बाद हो जायेगा... प्लीज़ किसी को बताना नहीं... मैं बर्बाद हो जाऊँगी अगर ये बात किसी को पता चल गयी तो!" नज़ीला के हाथ को अपने हाथों में लेकर तसल्ली देते हुए नज़ीला बोली, "भाभी आप घबरायें नहीं... मैं नहीं बताती किसी को... पर ये सब है क्या और वो लड़का कौन है..?"

नज़ीला बोली, "मैं बताती हूँ... तुझे सब बताती हूँ... पर ये बात किसी को बताना नहीं... तू अभी अपने घर जा... मैं थोड़ी देर में तेरे घर आती हूँ!" नज़ीला की बात सुनकर रुखसाना बिना कुछ बोले वहाँ से उठ कर अपने घर आ गयी और आते ही अपने रूम में बेड पर लेट गयी। थोड़ी देर पहले जो नज़ारा उसने देखा था वो बहुत ही गरम और भड़कीला था। एक पंद्रह-सोलह साल का लड़का एक पैंतीस साल की औरत को पीछे से उसके चूतड़ों से पकड़े हुए चोद रहा था... और नज़ीला भी मस्ती में अपनी गाँड उसके लंड पर धकेल रही थी। रुखसाना का बुरा हाल था... उसकी चूत में अंदर तक सनसनाहट हो रही थी और चूत से पानी बह कर उसकी पैंटी को भिगो रहा था। रुखसाना करीब आधे घंटे तक वैसे ही लेटी रही और सोच-सोच कर गरम होती रही और अपनी सलवार के अंदर हाथ डाल कर पैंटी के ऊपर से अपनी फुद्दी को मसलती रही। करीब आधे घंटे बाद बाहर डोर-बेल बजी तो रुखसाना बदहवास सी खड़ी हुई और बाहर जाकर दरवाजा खोला। सामने नज़ीला खड़ी थी और उसके चेहरे का रंग अभी भी उड़ा हुआ था। रुखसाना ने नज़ीला को अंदर आने के लिये कहा और फिर दरवाजा बंद करके उसे अपने कमरे में ले आयी। नज़ीला अंदर आकर रुखसाना के बेड पर नीचे पैर लटका कर बैठ गयी। खौफ़ उसके चेहरे पे साफ़ नज़र आ रहा था। रुखसाना ने उसे चाय पानी के लिये पूछा तो उसने मना कर दिया।