मजबूर (एक औरत की दास्तान)

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"नज़ीला भाभी जो हुआ उसे भूल जायें... आप समझ लें कि मैंने कुछ देखा ही नहीं है... मैं ये बात किसी को नहीं बताऊँगी... आप बेफ़िक्र रहें!" रुखसाना की बात सुनते ही नज़ीला की आँखें नम हो गयीं। रुखसाना समझ नहीं पा रही थी कि ये आँसू सच में पछतावे के थे या नज़ीला मगमच्छी आँसू बहा कर उसे जज़बाती करके ये मनवा लेना चाहती थी कि रुखसाना उसकी फ़ासिक़ हर्कत के बारे में किसी को ना बताये। "रुखसाना मैं जानती हूँ कि तू ये बात किसी को नहीं बतायेगी... पर फिर भी मेरे दिल में कहीं ना कहीं डर है... इसलिये मुझे घबराहट हो रही है...!" नज़ीला बोली।

रुखसाना ने उसे फिर तसल्ली देते हुए कहा, "नज़िला भाभी आप घबरायें नहीं... मैं नहीं बताती किसी को... पर ये सब है क्या... और वो लड़का तो आप को खाला बुला रहा था ना..? क्या वो सच में आपका भांजा है..?" थोड़ी देर चुप रहने के बाद नज़ीला बोली, "हाँ वो मेरी बड़ी बेहन का बेटा है...!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना एक दम से हैरान हो गयी, "क्या... क्या सच कह रही हैं आप... पर ये सब आप ने.... ये सब कैसे... क्यों किया..?"

नज़ीला ने अपनी दास्तान बतानी शुरू की, "अब मैं तुझे क्या बताऊँ रुखसाना... तू इसे मेरी मजबूरी समझ ले या फिर मेरी जरूरत... हालात ही कुछ ऐसे हो गये थे कि मैं खुद को रोक ना सकी... शादी के बाद से ही हमारी सैक्स लाइफ़ बस सो-सो थी और फिर धीरे-धीरे हमारी सैक्स लाइफ़ कमतर होती गयी... इसीलिये सलील भी हमारी शादी के कईं सालों बाद पैदा हुआ... ऊपर से इन्हें ब्लडप्रेशर और डॉयबिटीस भी हो गयी... और सैक्स में इनकी दिलचस्पी बिल्कुल खतम हो गयी... हमारी सैक्स लाइफ़ बिल्कुल खतम हो चुकी थी... तुझे तो अच्छे से मालूम होगा कि बिना मर्द के प्यार के रहना कितना मुश्किल होता है... पर मैं अपनी सारी ख्वाहिशें मार के जीती रही। सलील की देखभाल और ब्यूटी पार्लर में दिन का वक़्त तो कट जाता था पर रातों को बिस्तर पे करवटें बदलती रहती थी... इन्हें तो जैसे मेरी कोई परवाह ही नहीं थी... फिर मुझे अपनी एक फ्रेंड से ब्लू-फ़िल्में मिल गयी तो उन्हें देख कर मेरे अंदर की आग और भड़कने लगी... मुझे खुद-लज़्ज़ती की लत्त लग गयी और अकेले में ब्लू-फिल्में देखते हुए मैं अपनी चूत को मसल कर और केले और दूसरी चीज़ों के ज़रिये अपनी चूत के आग को बुझाने की कोशिश करने लगी। पर खुद-लज़्ज़ती में असली सैक्स वाली तसल्ली कहाँ हो पाती है! फिर एक दिन मेरी ज़िंदगी तब बदल गयी जब आफ़्ताब हमारे यहाँ गर्मी की छुट्टियों में रहने आया... वो उस वक़्त नौवीं क्लास में था। अब्बास भी सुबह ही काम पर चले जाते थे या फिर वही उनके हफ़्ते-हफ़्ते के टूर पे.... सब कुछ नॉर्मल चल रहा था... सलील और आफ़्ताब के घर में होने से मेरा भी दिल लगा हुआ था... फर एक दिन सब कुछ बदल गया!"

रुखसाना बड़े गौर से नज़ीला की दास्तान सुन रही थी जो हूबहू उसकी खुद की ज़िंदगी की कहानी थी। नज़ीला ने आगे बताया, "वो दिन मुझे आज भी अच्छे से याद है... अब्बास ऑफिस जा चुके थे... सलील को नाश्ता देने के बाद मैं आफ़्ताब को उठने के लिये गयी... वो तब तक सो रहा था... मैं जैसे ही कमरे में गयी तो मैंने देखा कि आफ़्ताब बेड पर बेसुध सोया हुआ था और वो सिर्फ़ अंडरवियर में था। उसका अंडरवियर सामने से उठा हुआ था और उसका लंड उसके अंडरवियर में बुरी तरह तना हुआ था... मेरी तो साँसें ही अटक गयीं... उस दिन से पहले मैं आफ़्ताब को अपने बेटे जैसा ही समझती थी पर उसके अंडरवियर के ऊपर से उसका तना हुआ लंड देख कर मेरे जिस्म में झुरझुरी से दौड़ गयी... उसका लंड पूरी तरह तना हुआ अंडरवियर को ऊपर उठाये हुए था... मैं एक टक जवान हो रहे अपने भाँजे के लंड को देख कर गरम होने लगी... पता नहीं कब मेरा हाथ मेरी सलवार के ऊपर से मेरी चूत पर आ गया और मैं उसके अंडरवियर में बने हुए टेंट को देखते हुए अपनी चूत मसलने लगी... मेरी चूत बुरी तरह से पनिया गयी... मेरा बुरा हाल हो चुका था... तभी बाहर से सलील के पुकारने की आवाज़ आयी तो मैं होश में आयी और बाहर चली गयी। आफ़्ताब गर्मियों की वजह से शॉर्ट्स पहने रहते था।"

"मेरे जहन में बार-बार आफ़्ताब का वो अंडरवियर का उभरा हुआ हिस्सा आ रहा था... उसी दिन दोपहर की बात है... आफ़्ताब, मैं और सलील उस वक़्त मेरे ही बेडरूम में टिवी देख रहे थे क्योंकि हमारे बेडरूम में ही एयर कंडिशनर लगा हुआ है। टिवी देखते हुए हम तीनों बेड पर लेटे हुए थे। बाहर बहोत तेज धूप और गरमी थी और एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था। बेडरूम में खिड़कियों पर पर्दे लगे हुए थे और डोर बंद था... बस सिर्फ़ टीवी की हल्की रोशनी आ रही थी जिस पर आफ़्ताब लो-वॉल्युम में कोई मूवी देख रहा था। मैं सबसे आखिर में दीवार वाली साइड पे लेटी हुई थी। इतने में टीवी पे एक रोमांटिक उत्तेजक गाना आने लगा जिसमें हीरो-हिरोइन बारिश में भीग कर गाना गाते हुए एक दूसरे से चिपक रहे थे। हिरोइन का व्लाऊज़ बेहद लो-कट था जिस्में से उसकी चूचियाँ बाहर झाँक रही थीं।"

"मैंने नोटिस किया कि आफ़्ताब चोर नज़रों से मेरी छाती की तरफ़ देख रहा था। मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गयी और मेरी चूत में फिर से कुलबुलाहट होने लगी। जब उसने फिर तिरछी नज़र से मेरी तरफ़ देखा तो मैंने मस्ती वाले अंदाज़ में आफ़्ताब को पूछा जो कि वो क्या देख रहा था तो शरमा गया और एक दम से टिवी की तरफ़ देखते हुए बोला कि कुछ नहीं! इस दौरान मैं जानबूझ कर अपनी लो-कट गले वाली कमीज़ के ऊपर से अपनी चूची सहलाने लगी। आफ़्ताब चोर नज़रों से फिर मेरी तरफ़ देखने लगा। मैं जानती थी कि उसकी नज़र मेरे चूचियों पर थी और वो कभी टीवी की ओर देखता तो कभी मेरी ओर! फिर मैंने बैठ कर सलील को दीवार वाली साइड पे खिसका दिया और खुद आफ़्ताब की तरफ़ करवट करके लेट गयी। लेकिन इस दौरान मैंने अपनी कमीज़ थोड़ी और खिसका दी जिससे मेरी ब्रा और एक चूची काफ़ी हद तक नुमाया होने लगी। आफ़्ताब की आँखें फटी रह गयीं। मैंने आफ़्ताब से पूछा कि मैं क्या उसे उस हिरोइन से ज्यादा हसीन लग रही हूँ जो वो टिवी छोड़ कर बार-बार मुझे ताक रहा है। आफ़्ताब मेरी बात सुन कर शरमा कर मुस्कुराने लगा तो मैंने फिर अपने मम्मे को मसलते हुए उससे पूछा कि मैं उसे हसीन लग रही हूँ कि नहीं। आफ़्ताब हसरत भरी नज़रों से मेरी जानिब देखने लगा तो मैंने इस बार कातिलाना अंदाज़ में मुस्कुराते हुए उसे अपने करीब आने का इशारा किया।

आफ़्ताब खिसक कर मेरे करीब आ गया तो मैं अपने चूंची अपनी कमीज़ और ब्रा में से बाहर निकाल कर दिखाते हुए बोली कि देखेगा मेरा हुस्न तो उसने अपने गले में थूक गटकते हुए हाँ में सिर हिला दिया। मैं अपना एक हाथ उसके सिर के पीछे ले गयी और उसके सिर को पकड़ कर अपनी चूंची के तरफ़ उसके चेहरे को खींचते हुए अपने दूसरे हाथ से अपनी चूंची को पकड़ कर अपना निप्पल उसके मुँह के पास कर दिया। उसने भी बिना कोई देर किये मेरी चूंची के निप्पल को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। मैंने अपनी एक बाँह उसकी गर्दन के पीछे से निकाल कर अपना हाथ उसके सिर पर रखा और उसे अपने चूचियों पे दबा दिया। आफ़्ताब अब और खिसक कर मेरे साथ चिपक कर मेरी चूंची को चूसने लगा तो मेरी चूत फड़फड़ाने लगी और मेरी चूत से पानी बह कर बाहर आने लगा। मैं एक दम मस्त हो चुकी थी और मैंने अपने दूसरे हाथ से अपनी सलवार का नड़ा खोल दिया। मैं अपनी सलवार और पैंटी में नीचे हाथ डाल कर अपनी चूत को मसलने लगी और मेरे मुँह से से हल्की-हल्की सिसकारियों की आवाज़ आने लगी। मुझे एहसास भी नहीं हुआ कि कब आफ़्ताब ने मेरी उस चूंची को हाथ से पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया जिसे वो साथ में चूस रहा था। जैसे ही मेरा ध्यान इस जानिब गया कि आफ़्ताब मेरी चूंची को किसी मर्द की तरह अपने हाथ से मसल रहा है तो मेरी चूत में तेज सरसराहट दौड़ गयी। मैंने उसके सिर को अपनी बाँह में और कस के जकड़ लाया और अपनी दो उंगलियाँ अपनी चूत के अंदर डाल दीं। मैं अपनी सिसकरी को रोक नहीं सकी.... आँआँहहहह आआआफ़्ताआआब ऊँऊँहहह.!"

"आफ़्ताब मेरे सिसकने की आवाज़ सुन कर एक दम चौंक गया। उसने मेरे निप्पल को मुँह से बाहर निकला जो उसके चूसने से एक दम तन कर फूला हुआ था... और मेरी हवस से भरी आँखों में देखते हुए बोला कि खाला क्या हुआ। मैं उसकी बात सुन कर एक पल के लिये होश में आयी कि मैं ये क्या कर रही हूँ अपने जिस्म की आग को ठंडा करने के लिये मैं अपनी ही कच्ची उम्र के भांजे के साथ ये काम कर रही हूँ... लेकिन मैं हवस की आग में अंधी हो चुकी थी कि मैंने उसका चेहरा अपने चूँची पे दबाते हुए उसे चूसते रहने को कहा। उसने फिर से मेरे निप्पल को मुँह में भर लिया और इस बार उसने मेरी चूंची के काफ़ी हिस्से को मुँह में भर लिया और मेरी चूंची को चूसते हुए बाहर की तरफ़ खींचने लगा। मेरा पूरा जिस्म थरथरा गया और मुँह से एक बार फिर से आआआहहह निकल गयी। इस बार उसने फिर से चूंची को मुँह से बाहर निकला और बोला कि बोलो ना खाला क्या हुआ तो मैंने काँपती हुई आवाज़ में सिसकते हुए उसे जवाब दिया कि कुछ नहीं आफ़्ताब... जल्दी कर मेरा बहुत बुरा हाल है! अचानक से मुझे उसका लंड शॉर्ट्स के ऊपर से अपनी नाफ़ में चुभता हुआ महसूस हुआ। तब तक वो फिर से मेरी चूंची को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर चुका था। मैं इस क़दर मदहोश हो गये कि मुझे कुछ होश ना था। मैंने अपनी टाँगों को फैलाते हुए अपनी सलवार और पैंटी रानों पे खिसका कर आफ़्ताब का एक हाथ पकड़ के नीचे लेजाकर अपनी चूत पर रख दिया जो एक दम भीगी हुई थी। आफ़्ताब मेरी समझ से कहीं ज्यादा तेज था... जैसे ही मैंने उसका हाथ अपनी चूत के ऊपर रखा तो उसने मेरी चूत के फ़ाँकों के बीच अपनी उंगलियों को घुमाते हुए रगड़ना शुरू कर दिया। मेरा पूरा जिस्म एक दम से ऐंठ गया। फिर उसने धीरे-धीरे से अपनी एक उंगली मेरी चूत में घुसा दी और अंदर-बाहर करने लगा। मैं एक दम से मदहोश होती चली गयी। वो मेरी चूत में उंगली अंदर-बाहर करते हुए मेरे चूंची को चूस रहा था और वो धीरे-धीरे मेरे ऊपर आ चुका था।"

"तभी मेरा ध्यान सलील की तरफ़ गया कि वो भी मेरी बगल में सो रहा है। मैंने आफ़्ताब के सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर पीछे की तरफ़ ढकेला तो मेरी चूंची उसके मुँह से बाहर आ गयी। मैंने आफ़्ताब को सलील की मौजूदगी की याद दिलायी तो आफ़्ताब ने सलील की तरफ़ देखा जो गहरी नींद में था और फिर मेरी तरफ़ देखने लगा। उसकी उंगली अभी भी मेरी चूत में थी। मैं नहीं चाहती थी कि सलील उठ जाये और हमें इस हालत में देख ले। इसलिये मैंने आफ़्ताब को धीरे से कहा कि वो दूसरे बेडरूम में जाये जहाँ वो रोज़ रात को सोता है और वहाँ कूलर ऑन कर ले... मैं अभी थोड़ी देर में आती हूँ...!

मेरी बात सुन कर आफ़्ताब खड़ा हुआ और अपने बेडरूम की तरफ़ चला गया। मैं धीरे से बेड से नीचे उतरी और अपनी सलवार का नाड़ा बाँधा और अपनी कमीज़ उतार दी । सिर्फ़ सलवार और खुली हुई ब्रा पहने मैं हाइ हील वाली चप्पल में गाँड मटकाती हुई अपने बेडरूम से निकल कर आफ़्ताब के बेडरूम की तरफ़ चली गयी। जैसे ही मैं दूसरे बेडरूम में पहुँची तो देखा के आफ़्ताब ने कूलर चालू कर दिया था और बेड पर पैर लटकाये मेरा इंतज़ार कर रहा था। मैंने अंदर आकर दरवाजा बंद किया तो इतने में आफ़्ताब खड़ा होकर मुझसे लिपट गया और पीछे दीवार के साथ सटा दिया। उसने मेरी ब्रा के बाहर झाँक रही चूचियों को हाथों में पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया और फिर मेरी एक चूंची को मुँह में भर कर चूसने लगा। मैं मस्ती में सिसकने लगी कि ओहहहह आफ़्ताब हाँआआआ चूऊऊस ले अपनी खाला के मम्मों को... चूस ले मेरे बच्चे.... मैंने अपनी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार मेरे पैरों में गिर पड़ी। मैं आफ़्ताब का हाथ पकड़ कर फिर से अपनी चूत पर रखते हुए बोली कि... ओहहह आफ़्ताब देख ना मेरा कितना बुरा हाल है! आफ़्ताब ने मेरी चूत को मसलते हुए अपने मुँह से चूंची को बाहर निकाला और अपना निक्कर नीचे घुटनों तक सरका दिया और फिर मेरा हाथ पकड़ कर अपने तने हुए छ इंच के लंड पर रखते हुए बोला कि... खाला देखो ना मेरा भी बुरा हाल है...!"

"जैसे ही मेरे हाथ में जवान तना हुआ लंड आया तो मैं सब कुछ भूल गयी और फिर मैं नीचे झुकते हुए घुटनों के बल बैठी और आफ़्ताब के लंड को हाथ से पकड़ कर हिलाने लगी। उसके लंड का टोपा लाल होकर दहक रहा था। फिर मैंने आफ़्ताब का हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए पीछे बिस्तर पर लेटना शुरू कर दिया और आफ़्ताब को अपने ऊपर गिरा लिया। मैंने अपनी टाँगों को नीचे से पूरा फैला लिया और आफ़्ताब अब मेरी टाँगों के बीच में था। मैंने उसका लंड पकड़ कर अपनी दहकती हुई चूत के छेद पर लगा दिया और मस्ती में सिसकते हुए बोली कि ओहहहह आफ़्ताब अपनी खाला की फुद्दी मार कर इसकी आग को ठंडा कर दे मेरे बच्चे... और फिर उसका लंड अपनी चूत पर सटाये हुए ही अपनी टाँगों को उसकी कमर पर लपेट लिया। आफ़्ताब ने मेरे कहने पर धीरे-धीरे अपना लंड मेरी चूत के छेद पर दबाना शुरू कर दिया। बरसों की प्यासी चूत जो एक जवान और तने हुए लंड के लिये तरस रही थी... आफ़्ताब के तने हुए लंड की गरमी को महसूस करके कुलबुलाने लगी। मैंने अपनी गाँड को पूरी ताकत से ऊपर की ओर उछाला तो आफ़्ताब का लंड मेरी चूत की गहराइयों में उतरता चला गया। फिर तो आफ़्ताब ने भी बेकरारी में पुरजोश अपनी गाँड उठा-उठा कर मेरी चूत के अंदर अपने लंड को पेलना शुरू कर दिया। वो किसी जवान मर्द की तरह मेरे मम्मों को मसलते हुए अपने लंड को मेरे चूत के अंदर बाहर कर रहा था और फिर उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। चूत की दीवारों पर उसके लंड की रगड़ मदहोश कर देने वाली थी और मस्ती में मुझे कच्ची उम्र के अपने भांजे से अपने होंठ चुसवाने में ज़रा भी शरम नहीं आयी। बिल्कुल बेहयाई से मैंने उसका साथ देना शुरू कर दिया और अपनी गाँड ऊपर उछाल-उछाल कर उसके लंड को अपनी चूत की गहराइयों में लेने लगी। उसके पाँच मिनट के धक्कों ने ही मेरी चूत को पानी-पानी कर दिया... मैं झड़ कर एक दम बेहाल हो गयी थी... थोड़ी देर बाद उसने भी अपना सारा पानी मेरी चूत के अंदर उड़ेल दिया... रुखसाना अब मैंने तुझे सारी बात तफ़सील से बता दी है... प्लीज़ ये सब किसी से नहीं कहना और हाँ तुझे ज़िंदगी में कभी मेरी जरूरत पड़े तो मैं तेरे साथ हूँ... मुझसे एक बार कह कर देखना... मैं तेरे लिये कुछ भी कर सकती हूँ...!"

उसके बाद नज़ीला रुखसाना को अपनी चुदाई की दस्तान सुना कर चली तो गयी लेकिन जितनी तफ़सील और खुल्लेपन से उसने अपनी दास्तान सुनायी थी उससे नज़ीला रुखसाना की चूत में आग और ज्यादा भड़का गयी थी। पिछले कुछ महीनों में जिस रफ़्तार से उसकी ज़िंदगी में फ़ेरबदल हो रहे थे वो रुखसाना ने अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी नहीं देखे थे। सुनील का उसके घर किरायेदार के तौर पे आना और फिर उसे अज़रा के साथ सैक्स करते देखना... और फिर खुद उससे नाजायज़ रिश्ता बनाना और उसके लंड की लत्त लगा कर उसकी गुलाम बन कर रह जाना और फिर नज़ीला का ये किस्सा। रुखसाना की ज़िंदगी में इतना सब कुछ चंद महीनों के अंदर हो चुका था और यही सब सोचती हुई वो ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी कि आगे आने वाले दिनों में पता नहीं और क्या-क्या होगा...!

उस दिन के दो दिन बाद की बात है। सानिया सुबह कॉलेज चली गयी थी और फ़ारूक भी उस दिन घर से थोड़ा जल्दी निकल चुका था और सुनील भी काम पर जाने के लिये तैयार था। जैसे ही वो नीचे आया तो उसने रुकसाना से फ़ारूक के बारे में पूछा तो रुखसाना ने उसे बताया कि वो थोड़ी देर पहले ही निकल गया है। जैसे ही सुनील को पता चला कि फ़ारूक और सानिया घर पर नहीं है तो उसने हाल में ही उसे बाहों में भर लिया और उसके होंठों को चूसने लगा और साथ-साथ उसके चूतड़ों को सलवार के ऊपर से मसलने लगा। रुख्साना तो सुनील की बाहों में जाते ही पिघलने लगी और मस्ती में सिसकते हुए बोली, "ओहहह सुनील... मुझे कहीं भगा कर ले चल.... मुझे अब तुझसे एक पल भी दूर नहीं रहा जाता..!" सुनील ने उसकी आँखों में देखा और मुस्कुराते हुए बोला, "मेरी भाभी जान... चाहता तो मैं भी यही हूँ... पर मैं नहीं चाहता कि मेरे वजह से आपका घर बर्बाद हो... थोड़ा सब्र रखो... हमें जल्द ही मौका मिलेगा...!" ये कहते हुए उसने एक बार फिर से रुखसाना के होंठों को चूसते हुए उसकी चूत को सलवार के ऊपर से मसलने लगा। रुखसाना भी सुनील की पैंट के ऊपर से अपने दिलबर यानि सुनील के लंड को मसल रही थी। पाँच-छः मिनट दोनों सब भूल कर एक दूसरे के होंठ चूसते हुए ये सब करते रहे और फिर सुनील काम पे चला गया। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और घर के काम निपटाने लगी।

दो दिन से नज़ीला से उसकी बात नहीं हुई थी और उस दिन आई-ब्राऊ और फेशियल करवाना भी रह गया था... इसलिये रुखसाना अपने काम निपटा कर नज़ीला के घर जाने के लिये निकली। आज भी नज़ीला गेट खोल कर अंदर गयी तो मेन-डोर तो बंद था लेकिन ब्यूटी पार्लर का दरवाजा खुला हुआ था। वो पार्लर के अंदर गयी तो पार्लर के पीछे से घर के अंदर जाने का दरवाजा आज भी खुला हुआ था। रुखसाना ने इस दफ़ा वो दरवाजा खटखटाना ही ठीक समझा। रुख्साना ने दरवाजा नॉक किया तो नज़ीला ने आकर जब रुखसाना को पार्लर में खड़े देखा तो वो बोली, "अरे रुखसाना... तू वहाँ क्यों खड़ी है... अंदर आ जा ना!" नज़ीला घर के अंदर आ गयी तो नज़ीला ने उसे हाल में सोफ़े पर बिठाते हुआ पूछा, "रुखसाना आज क्या बात है... आज नॉक क्यों कर रही थी... सीधी अंदर आ जाती... तेरा ही घर है!" रुखसाना ने मुस्कुराते हुए नज़ीला की ओर देखते हुए कहा, "भाभी वो मैंने इस लिये दरवाजे पे नॉक किया था कि क्या मलूम आप किसी और ही काम में मसरूफ़ ना हों!"

नज़ीला भी उसकी बात सुन कर मुस्कुराने लगी और उसके पास आकर बैठते हुए बोली, "रुखसाना... आफ़्ताब तो उसी दिन चला गया था... मैं आज घर पर अकेली हूँ... वैसे तूने सही किया कि दरवाजे पे नॉक कर दिया... हमें दूसरों के घर में जाने से पहले डोर पे नॉक कर ही लेना चाहिये... पता नहीं अंदर क्या देखने को मिल जाये... और हमें भी ऐसे काम डोर बंद करके ही करने चाहिये... पर शायद तू आज हाल का दरवाजा बंद करना भूल गयी थी..!" रुखसाना थोड़ा सा हैरान होते हुए बोली, "क्यों क्या हुआ नजिला भाभी...?"

नज़ीला बोली, "अब इसमें मेरी कोई गल्ती नहीं है... देख मैं तेरे घर आयी थी सुबह... तब तू उस लड़के के आगोश में लिपटी हुई उससे अपनी गाँड मसलवा रही थी... तू तो बड़ी तेज निकाली रुखसाना... घर में ही इंतज़ाम कर लिया है!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना का केलजा मुँह को आ गया। वो फटी आँखों से नज़ीला के चेहरे को देखने लगी जिसपे एक अजीब सी मुस्कान छायी हुई थी। "अरे रुखसाना घबराने की कोई बात नहीं है... अगर मुझे तेरे राज़ का पता चल गया तो क्या.. तुझे भी तो मेरे बारे में सब मालूम है... देख रुखसाना मैं सब जानती हूँ कि तूने ज़िंदगी में कभी खुशी नहीं देखी... तुझे अपने शौहर के साथ सैक्स लाइफ़ का लुत्फ़ शायद कभी नसीब नहीं हुआ और तुझे अपनी ज़िंदगी जीने का पूरा हक़ है... तू घबरा नहीं... हम दोनों एक दूसरे को कितने सालों से जानती हैं... हम दोनों ने एक दूसरे का अच्छे-बुरे वक़्त में साथ दिया है... और मैं यकीन से कहती हूँ कि हम दोनों के ये राज हम दोनों के बीच में ही रहेंगे... पर ये बाता कि तूने उस हैंडसम लड़के को पटाया कैसे..!"

रुखसाना: "अब मैं आपको कैसे बताऊँ भाभी... बस ऐसे ही एक दिन अचानक से सब कुछ हो गया!"

नज़ीला: "अरे बता ना कैसे हुआ... जैसे मैंने तुझे अपने और आफ़्ताब के बारे में बताया था... देख मैंने अपनी कोई बात नहीं छुपायी तुझसे... अब तू भी मुझे सब बता दे...!" फिर नज़ीला ने तब तक रुखसाना की जान नहीं छोड़ी जब तक रुखसाना ने उसे सब कुछ तफ़सील में नहीं बता दिया। रुखसाना ने भी काफ़ी तफ़सील से अपनी रंग रलियों की हर एक बात नज़िला को बतायी। रुखसाना की दास्तान सुनकर नज़ीला की हवस भी भड़क गयी। उसे रुखसाना की किस्मत पे रश्क़ होने लगा। "वाह रुखसाना... तू तो बड़ी किस्मत वाली है... वो लड़का अपनी ज़ुबान से तेरे पैर और सैंडल तक चाटता है... माशाल्लाह... और तू शराब भी पीती है उसके साथ...!" नज़ीला ने ताज्जुब जताते हुए कहा।

"पर नज़ीला भाभी... फ़ारूक से ज्यादा सानिया खासतौर पे हमेशा उस वक़्त घर पे होती है जब सुनील घर पर होता है... भाभी दो-दो तीन-तीन दिन निकल जाते हैं और मैं तड़पती रह जाती हूँ... समझ में नहीं आ रहा क्या करूँ!"

नज़ीला: "तो मैं किस रोज़ काम आऊँगी... तू ये बता कि वो घर वापस कब आता है...!"

रुखसाना: "भाभी वो शाम को पाँच बजे के करीब घर वापस आता है... लेकिन हफ़्ते में दो या तीन दिन उसकी नाइट ड्यूटी लगती है तो सिर्फ़ फ्रेश होने आता है थोड़ी देर के लिये!" रुखसाना को कहाँ मालूम था कि सुनील की नाइट ड्यूटी तो दर असल नफ़ीसा के बेडरूम में लगती है।

नज़ीला: "और फ़ारूक भाई...?"

रुखसाना: "आपको तो मालूम ही है कि उनका कोई पता नहीं... वैसे तो सात बजे आते हैं और फिर पीने बैठ जाते हैं... और अगर बाहर से अपने नशेड़ी दोस्तों के साथ पी कर आते हैं तो आने में नौ-दस बज जाते हैं... मुझे उनसे उतनी फ़िक्र नहीं जितना कि सानिया की नज़रों से होशियार रहना पड़ता है!"

नज़ीला: "अच्छा ठीक है... मैं आज शाम को तेरे घर आऊँगी... और सानिया को अपने साथ बातों में मसरूफ़ करके बैठी रहुँगी... तू मौका देख कर सुनील से चुदवा लेना!"

रुखसाना: "हाय तौबा नज़ीला भाभी.... आप कैसे बोल रही हैं ये सब..!" हालाँकि रुखसाना खुद सुनील के साथ खुलकर ऐसे अल्फ़ाज़ बोलती थी लेकिन नज़ीला के सामने अभी भी शराफ़त दिखा रही थी।

नज़ीला: "तो क्या हुआ यार... सैक्स में इन सब बातों से और मज़ा आता है..!"

रुखसाना: "पर नज़ीला भाभी... कहीं कोई गड़बड़ हो गयी तो?"

नज़ीला: "मैं हूँ ना.. तू फ़िक्र ना कर... मैं संभाल लुँगी...!"

उसके बाद नज़ीला से अपनी आई-ब्राऊज़ और फेशियल करवा कर रुखसाना घर आ गयी। करीब चार बजे सानिया कॉलेज से घर आ गयी। रुखसाना को आज काफी बेचैनी सी महसूस हो रही थी कि कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाये... कहीं सानिया को शक़ ना हो जाये। जैसे-जैसे पाँच बजने को हो रहे थे रुखसाना का दिल रह-रह कर ज़ोर से धड़क उठता था। करीब साढ़े-चार बजे नज़ीला सलील को साथ लेकर रुखसाना के घर आ गयी और रुखसाना को सजी-धजी देखते ही बोली, "माशाल्लाह रुखसाना... सच में कहर ढा रही हो...!" फिर रुखसाना और नज़ीला सानिया के रूम में ही चली गयीं और तीनों बैठ कर बातें करने लगी।

करीब पाँच बजे सुनील घर आया तो रुखसाना ने जाकर दरवाजा खोला। रुखसाना ने सुनील को इशारे से बताया कि सानिया के साथ-साथ और भी कोई घर में है और ये कि वो थोड़ी देर में खुद ऊपर उसके पास आयेगी। सुनील सीधा ऊपर चला गया। रुखसाना फिर से सानिया और नज़ीला के पास आकर बैठ गयी। तीनों थोड़ी देर इधर-उधर के बातें करती रही। सानिया साथ-साथ सलील को उसका होमवर्क भी करवा रही थी। थोड़ी देर बाद नज़ीला ने रुखसाना को इशारे से जाने के लिये कहा।

"भाभी आप बैठो... मैं ऊपर से कपड़े उतार लाती हूँ..." ये कहते हुए रुखसाना ने एक बार ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर थोड़ा सा मेक-अप दुरुस्त किया और पाँच इंच ऊँची पेंसिल हील के सैंडल फर्श पे खटखटाती हुई कमरे से बाहर निकल गयी। ऊपर जाते हुए उसका दिल जोरों से धड़क रहा था कि कहीं सानिया ऊपर ना जाये... क्या पता नज़ीला भाभी सानिया को संभाल पायेंगी भी या नहीं। पर चूत में तीन दिनों से आग भी तो दहक रही थी। वो ऊपर सुनील के कमरे में आयी तो देखा कि सुनील वहाँ नहीं था। रुखसाना कमरे से बाहर आयी और बाथरूम की तरफ़ जाने लगी। बाथरूम का दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था। रुखसाना ने करीब पहुँच कर सुनील को आवाज़ लगायी, "सुनील तू अंदर है क्या?" रुखसाना बाथरूम के दरवाजे के बिल्कुल करीब खड़ी थी। अंदर से कोई जवाब नहीं आया। बस पानी गिरने की आवाज़ आ रही थी। फिर अचानक से बाथरूम का दरवाजा खुला और सुनील ने बाहर हाथ निकाल कर रुखसाना को अंदर खींच लिया। रुक्खसाना पहले तो कुछ पलों के लिये एक दम से घबरा गयी। अंदर सुनील एक दम नंगा खड़ा था। उसका लंड हवा में झटके खा रहा था। उसके तने हुए आठ इंच के तगड़े लंड को देख कर रुखसाना की चूत में बिजलियाँ दौड़ने लगीं।

"कब से आपकी वेट कर रहा था... कितना इंतज़ार करवाती हो आप भाभी!" सुनील ने कहा तो रुखसाना बोली, "वो नीचे सानिया है... इस लिये ऐसे नहीं आ सकती थी ना!" सुनील ने उसकी तरफ़ देखते हुए रुखसाना का हाथ अपने फुंफकारते हुए लंड पर रख दिया। रुखसाना का पूरा जिस्म सुनील के गरम लंड को अपनी हथेली में महसूस करते ही काँप उठा। उसकी मुट्ठी अपने आप ही सुनील के लंड पर कसती चली गयी और उसके होंठ सुनील होंठों के करीब आते गये। फिर जैसे ही सुनील ने रुखसाना के होंठों को अपने होंठों में दबोचा तो वो पागलों की तरह रुखसाना के होंठों को चूसने लगा। रुखसाना की चूत उबाल मारने लगी और वो सुनील की बाहों में कसती चली गयी। रुखसाना की कमीज़ उतारने के बाद सुनील उसकी गर्दन और फिर उसकी चूचियों को चूमने लगा। फिर रुखसाना की सलवार का नाड़ा खोल कर उसकी सलवार भी निकाल दी और फिर नीचे उसके पैर और सैंडल चूमने के बाद टाँगों से होते हुए सुनील उसकी जाँघों को को चूमने लगा। फिर सुनील खड़ा हुआ और रुखसाना की एक टाँग के नीचे अपनी हाथ डाल कर ऊपर उठा दिया। रुक्खसाना का पूरा जिस्म जैसे ही थोड़ा सा ऊपर उठा तो उसने दूसरा हाथ भी रुखसाना की दूसरी टाँग के नीचे डालते हुए उसे हवा में उठा लिया और रुखसाना के कान में सरगोशी करते हुए बोला, "भाभी मेरी जान! अपने दिलबर लौड़े को पकड़ कर अपनी फुद्दी में डाल लो!" रुखसाना उससे लिपटी हुई उसकी गोद में हवा में उठी थी। उसे ये पोज़िशन बड़ी दिलचस्प लग रही थी। सुनील ने दोनों हाथों से उसके चूतड़ों को दबोच रखा था। रुखसाना ने एक हाथ नीचे ले जाकर उसके लंड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर लगा दिया। सुनील ने बिना एक पल रुके उसके चूतड़ों को दबोचते हुए एक ज़ोरदार धक्का मारा और सुनील का लंड रुखसाना की फुद्दी की दीवारों को चीरता हुआ एक ही बार में पूरा का पूरा समा गया। "ऊऊऊईईईई सुनील तूने तो मार ही डाला... आअहहहल्लाह!" रुखसाना चिहुँकते हुए सिसक उठी। सुनील ने हंसते हुए उसके होंठों को चूमा और फिर अपने लंड को आधे से ज्यादा बाहर निकाल कर एक ज़ोरदार धक्का मारा। सुनील का लंड फ़च की आवाज़ से रुखसाना की चूत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ फिर से अंदर जा घुसा। "आहह सुनील धीरे कर ना...!" रुखसाना ने अपनी बाहों को सुनील की गर्दन में कसते हुए कहा। उसकी चूचियाँ सुनील के चौड़े सीने में धंसी हुई थी और सुनील का मोटा मूसल जैसा लंड उसकी चूत की गहराइयों में समाया हुआ था। "क्या धीरे करूँ भाभी!" सुनील अब धीरे-धीरे रुखसाना की चूत में अपने लंड को अंदर बाहर करते हुए बोला।