मजबूर (एक औरत की दास्तान)

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लेकिन सुनील तो जैसे रुखसाना की बात सुनने को तैयार ही नहीं था। उसने दो तीन बार अपने लंड का सुपाड़ा रुखसाना की गाँड के छेद पर रगड़ा और फिर धीरे-धीरे उसकी गाँड के छेद पर दबाता चला गया। जैसे ही उसके सुपाड़े का अगला हिस्सा उसकी गाँड के छेद में उतरा तो रुखसाना बिदक कर आगे हो गयी... दर्द बहद तेज था।" नहीं सुनील नहीं... मेरे जानू मुझसे नहीं होगा... प्लीज़ तुझे हो क्या गया है...?" रुख्साना अपने चूतड़ों को एक हाथ से सहलाते हुए रिरिया कर बोली। रुखसाना ने अज़रा को कईं दफ़ा फ़ारूक से अपनी गाँड मरवाते हुए देखा था लेकिन रुखसाना को इस बात का डर था कि एक तो उसकी गाँड बिल्कुल कुंवारी थी और फिर फ़ारूक और सुनील के लंड का कोई मुकाबला नहीं था। सुनील का तगड़ा-मोटा आठ इंच लंबा मूसल जैसा लंड वो कैसे बर्दाश्त करेगी अपनी कोरी गाँड में!

"भाभी जान कुछ भी हो... मुझे आज आपकी गाँड मारनी ही है...!" ये कह कर उसने रुखसाना को सोफ़े से खड़ा किया और उसकी रानों में फंसी सलवार खींच कर उतार दी। फिर उसने रुखसाना को खींचते हुए सामने बेडरूम में ले जाकर बेड पर पटक दिया। फिर रुखसाना की टाँगों को पकड़ कर उसने उठाया और अपने कंधों पर रख लिया और एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर उसकी गाँड के छेद पर टिका दिया। रुखसाना समझ चुकी थी कि अब सुनील उसकी एक नहीं सुनने वाला। "आहिस्ता से करना जानू!" रुखसाना ने अपने हाथों में बिस्तर की चादर को दबोचते हुए कहा और अगले ही पल गच्च की एक तेज आवाज़ के साथ सुनील का लौड़ा रुखसाना की गाँड के छेद को चीरता हुआ आधे से ज्यादा अंदर घुस गया। दर्द के मारे रुखसाना का पूरा जिस्म ऐंठ गया... आँखें जैसे पत्थरा गयीं... मुँह खुल गया... और वो साँस लेने के लिये तड़पने लगी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सुनील उसके साथ इतनी वहशियत से पेश आयेगा।

"बस भाभी हो गया.. बसऽऽऽ हो गया..!" और सुनील ने उतने ही आधे लंड को रुखसाना की गाँड के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। उसके हर धक्के के साथ रुखसाना को अपनी गाँड के छेद का छल्ला भी अंदर-बाहर खिंचता हुआ महसूस हो रहा था पर सुनील का लंड के-वॉय जैली और रुखसाना की चूत के पानी से एक दम भीगा हुआ था। इसलिये गाँड का छेद थोड़ा नरम हो गया था और फिर एक मिनट बीता... दो मिनट बीते... फिर तीन मिनट किसी तरह बीते और रुखसाना की गाँड में उठा दर्द अब ना के बराबर रह गया था। अब सुनील के लंड के सुपाड़े की रगड़ से रुखसाना को अपनी गाँड के अंदर की दीवारों पर मज़ेदार एहसास होने लगा था। रुखसाना ज़ोर-ज़ोर से "आआहह ओहह" करती हुई दर्द और मस्ती में सिसकने लगी।

"अभी भी दर्द हो रहा है क्या भाभी!" सुनील ने अपने लंड को और अंदर की ओर ढकेलते हुए पूछा। "आँआँहहह हाँ थोड़ा सा हो रहा है... ऊँऊँहहह लेकिन अब मज़ाआआ भी आआआँ रहा है आआआहहह...!" रुखसाना सिसकते हुए बोली। धीरे-धीरे अब सुनील का पूरा का पूरा लंड रुखसाना की गाँड के अंदर-बाहर होने लगा और दर्द और मस्ती की तेज़-तेज़ लहरें अब रुखसाना के जिस्म में दौड़ रही थी। काले रंग के ऊँची हील वाले सैंडल में रुखसाना के गोरे-गोरे पैर जो सुनील के कंधों पर थे उन्हें रूकसाना ने मस्ती में सुनील की गर्दन के पीछे कैंची बना कर कस लिया। रुखसाना का एक हाथ उसकी खुद की चूत के अंगूर को रगड़ रहा था। धीरे-धीरे सुनील के धक्कों की रफ़्तार बढ़ने लगी और फिर वो रुखसाना की गाँड के अंदर झड़ने लगा। उसके साथ ही रुखसाना की चूत ने भी धड़धड़ाते हुए पानी छोड़ दिया। सुनील ने अपना लंड बाहर निकाला और रुखसाना की कमीज़ के पल्ले से उसे पोंछ कर उसने आगे झुक कर रुखसाना के होंठों पे चूमा और फिर ये बोल कर कमरे से बाहर चला गया कि उसे जल्दी से वापस स्टेशन पहुँचना है। रुखसाना थोड़ी देर लेटी रही और सुनील भी वापस चला गया। थोड़ी देर बाद रुखसाना उठी और बाथरूम में जाकर अपनी चूत और गाँड को अच्छे से साफ़ किया और बाहर आकर अपनी सलवार पहन कर फिर लेट गयी। उसकी गाँड में मीठी-मीठी सी कसक अभी भी उठ रही थी।

शाम को सुनील घर वापस आया तो सानिया भी कॉलेज से वापस आ चुकी थी। सुनील ऊपर चला गया। शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे और लाइट एक बार फिर से गुल थी। सानिया पढ़ने के बहाने ऊपर छत पर आकर कुर्सी पर बैठ गयी। रुखसाना नीचे काम में मसरूफ़ थी। जब सुनील ने सानिया को बाहर छत पर देखा तो वो भी रूम से निकल कर बाहर आ गया और हवा खाने के लिये इधर उधर टहलने लगा। सानिया चोर नज़रों से बार-बार सुनील की ओर देख रही थी।

"कैसा रहा आज कॉलेज में?" सुनील ने सानिया के पास से गुज़रते हुए पूछा तो सानिया उसकी के आवाज़ सुन कर एक दम चौंकी और फिर मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा रहा...!"

सुनील फिर से सानिया के पास से गुज़रते हुए बोला, "एक बात पूछूँ?" सानिया ने अपनी नज़रें किताब में गड़ाये हुए कहा, "पूछो!"

"क्या कॉलेज में ऐसे टाइट कपड़े पहन कर जाना जरूरी है... सलवार कमीज़ पहन कर नहीं जा सकते?" सानिया को सुनील के ये सवाल अजीब सा लगा तो वो बोली, "क्यों... सभी लड़कियाँ ऐसे ही कपड़े पहनती हैं इसमें क्या गलत है?"

"नहीं गलत तो नहीं है पर वो बस जब तुम कॉलेज के अंदर जा रही थी तो सामने से दो लड़के आ रहे थे बाहर की तरफ़ और तुम्हारे बारे में कुछ गलत कह रहे थे!" सुनील बोला।

"क्या बोल रहे थे वो?" सानिया ने पूछा तो सुनील बोला, "छोड़ो तुम... मैं तुम्हे नहीं बता सकता कि कैसे-कैसे गंदे कमेंट कर रहे थे तुम्हारे बारे में!" ये सुनकर सानिया बीच में ही बोली, "वो लड़के हैं ही ऐसे आवारा... उनके तो कोई मुँह भी नहीं लगता!"

सुनील ने आगे कहा, "वैसे वो जो भी बोल रहे थे तुम्हारे बारे में... है तो वो सच!" सुनील की बात सुन कर सानिया हैरान-परेशान रह गयी और उसके मुँह से निकला, "क्या?"

"हाँ सच कह रहा हूँ अगर समय आया तो तुम्हें जरूर बताऊँगा कभी!" ये कह कर सुनील अपने कमरे में चला गया। सानिया ऐसी बातों से अंजान नहीं थी। बीस साल की कॉलेज में पढ़ने वाली आज़ाद ख्यालों वाली काफ़ी तेज तर्रार लड़की थी। पंद्रह-सोलह साल की उम्र में ही उसने खुद-लज़्ज़ती करनी शुरू कर दी थी। कॉलेज में अपनी सहेलियों से उनके बॉय-फ्रेंड्स के साथ चुडाई के किस्से भी सुनती थी तो दिल तो उसका भी बेहद मचलता था लेकिन खुद को अभी तक उसने किसी लड़के को छूने नहीं दिया था। उसे रोमांटिक और सैक्सी कहानियाँ-किस्से पढ़ने का बेहद शौक था और हर रोज़ रात को केले ये मोमबत्ती से खुद-लज़्ज़ती करके अपनी चूत का पानी निकालने के बाद ही सोती थी। भले ही उसकी चूत में आज तक कोई लंड नहीं घुसा था लेकिन वो मोमबत्ती या बैंगन जैसी बेज़ान चीज़ों से अपनी सील पता नहीं कब की तोड़ चुकी थी॥

खैर उस रात कुछ खास नहीं हुआ। सानिया की मौजूदगी में सुनील और रुखसाना दूर-दूर ही रहे। रुखसाना की गाँड में वैसे अभी तक दर्द की मीठी-मीठी लहरें रह-रह कर उठ जाती थीं और वो अपनी गाँड सहलाते हुए उस रात खूब सोयी। अगले दिन फ़ारूक भी वापस आ गया। फ़ारूक के आने से वैसे ज्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ा क्योंकि वो तो अपनी बीवी पे ज़रा भी ध्यान देता नहीं था और रात को शराब के नशे में इतनी गहरी नींद सोता था कि अगर रुकसाना उसकी बगल में भी सुनील से चुदवा लेती तो फ़रूक को पता नहीं चलता। सबसे बड़ा खतरा सानिया से था क्योंकि वो शाम को कॉलेज से घर आने के बाद ज्यादातर घर पे ही रहती थी और उसकी खुद की भी नज़र सुनील पे थी। अब तो सुनील और रुखसाना को कभी चार-पाँच मिनट के लिये भी मौका मिलता तो दोनों आपस में लिपट कर चूमते हुए एक दूसरे के जिस्म सहला लेते या कभी रुखसाना खाना देने के बहाने ऊपर जाकर सुनील के कमरे में कभी उससे लिपट कर उसके साथ खूब चूमा-चाटी करती और कभी उसका लंड चूस लेती या कभी मुमकिन होता तो दोनों जल्दबाजी में चुदाई भी कर लेते लेकिन पहले की तरह इससे ज्यादा मौका उन्हें नहीं मिल रहा था। रुखसाना तो सुनील के लंड की बेहद दीवानी हो चुकी थी। अगले दो-तीन हफ़्तों में एक-दो बार तो फ़ारूक को बेडरूम में गहरी नींद सोता छोड़कर रात के दो बजे रुखसाना ने सुनील के कमरे में जाकर उससे चुदवाया लेकिन खौफ़ की वजह से रुखसाना बार-बार ऐसी हिम्मत नहीं कर सकती थी। चुदाई का सबसे अच्छा मौका दोनों को तब मिलता जब हफ़्ते में एक-दो बार सुनील मौका देखकर दोपहर को स्टेशन पे कोई बहाना बना कर थोड़ी के लिये घर आ जाता और फिर दोनों अकेले में मज़े से चुदाई कर लेते। सुनील का मन होता तो रुखसाना खुशी-खुशी उससे अपनी गाँड भी मरवा लेती। अब तो रुखसाना के जिस्म में हवस ऐसे जाग गयी थी की सुनील का तसव्वुर करते हुए उसे रोज़ाना कमज़ कम एक-दो दफ़ा किसी बेजान चीज़ के ज़रिये खुद-लज़्ज़ती करनी पड़ती थी।

एक दिन ऐसे ही रुखसाना को दोपहर में चोदने के बाद सुनील वापस स्टेशान पहुँचा और अपनी टेबल पे जा कर काम में मसरूफ़ हो गया। जिस कमरे में सुनील का टेबल था उस कमरे में तीन बड़े कैबिन भी बने हुए थे जो ऊपर से खुले थे। एक तरफ़ स्टेशन मास्टर अज़मल का कैबिन था और सुनील के पीछे की तरफ़ दो और कैबिन थे जिनमें रशीदा और नफ़ीसा नाम की औरतें बैठती थीं। सुनील का अपना कैबिन नहीं था और उस कमरे में एक खिड़की के पास थोड़ी सी जगह में सुनील की टेबल थी। जब भी कोई उन तीन कैबिन में आता-जाता तो सुनील के पीछे से गुज़र कर जाता था।

रशीदा और नफ़ीसा दोनों ही रेलवे में काफ़ी सीनियर ऑफ़िसर थीं और दोनों सीधे डिविज़नल ऑफिस में रिपोर्ट करती थीं। रशीदा की उम्र चवालीस-पैंतालीस के करीब थी और उसके बच्चे अमरीका में पढ़ाई कर रहे थे और उसके शौहर कोलकाता में एक बड़ी मल्टीनेश्नल कंपनी में काफ़ी ऊँची पोस्ट पे काम करते थे। रशीदा अपनी बुजुर्ग सास के साथ तीन बेडरूम के बड़े फ्लैट में रहती थी उसके शौहर महीने में एक-दो बार आते थे। रशीदा ने कोलकाता के लिये अपने ट्राँसफ़र की अर्ज़ी भी रेलवे में लगा रखी थी। रशीदा अपने शौहर के साथ कईं दूसरे मुल्कों की सैर भी कर चुकी थी। रशीदा काफ़ी पढ़ी लिखी और आज़ाद खयालों वाली औरत थी... और बेहद रंगीन मिजाज़ थी। शादीशुदा ज़िंदगी के बीस-इक्कीस सालों में वो करीब डेढ़-दो दर्जन लंड तो ले ही चुकी थी पर वो हर किसी ऐरे-गैरे के साथ ऐसे ही रिश्ता नहीं बना लेती थी।

नफ़ीसा भी रशीदा की हम-उम्र थी और उसी की तरह काफ़ी पढ़ी लिखी और आज़ाद खयालों वाली रंगीन औरत थी। नफ़ीसा का एक ही बेटा था जो अलीगढ़ युनीवर्सिटी में पढ़ रहा था। उसके शौहर का तीन साल पहले बहुत बुरा हादसा हो गया था जिसकी वजह से उसके शौहर को लक़वा मार गया था और वो बिस्तर पर ही पड़े रहते थे। उनकी देखभाल के लिये उन्होंने एक कामवाली को रखा हुआ था जो उनके सरे काम करती थी। नफ़ीसा के शौहर हादसे से पहले इंकम टैक्स कमीश्नर थे और अब उन्हें अच्छी पेंशन मिलती थी और पहले भी नम्बर-दो का खूब पैसा कमाया हुआ था। उनकी माली हालत बेहद अच्छी थी। नफ़ीसा शहर से थोड़ा सा बाहर अपने खुद के बड़े बंगले में रहती थी जो उसके शौहर का पुश्तैनी घर था। घर काफ़ी बड़ा था जिसमें छः बेडरूम थे... तीन नीचे और तीन पहली मंजिल पर और इसके अलवा बड़ा लॉन और स्विमिंग पूल भी था। नफ़ीसा कद-काठी और शक़्ल-सूरत में बिल्कुल बॉलीवुड की हिरोइन ज़रीन खान की तरह दिखती थी। जहाँ तक उसकी रंगीन मिजाज़ी का सवाल है तो नफ़ीसा अपनी सहेली रशीदा से भी बहुत आगे थी। शादी से पहले भी और शादी के बाद अब तक नफ़ीसा अनगिनत लंड ले चुकी थी और वो अमीर-गरीब... जान-अंजान... कमिस्न लड़कों से बूढ़ों तक हर तरह के लोगों से चुदवा चुकी थी। चुदाई के मामले में नफ़ीसा किसी तरह का कोई गुरेज़ नहीं करती थी। हकीकत में चाहे कभी अमल न किया हो लेकिन तसव्वुर में तो अक्सर जानवरों से भी चुदवा लेती थी।

तो दोनों औरतें में काफ़ी बातें एक जैसी थीं। दोनों ही खूभ पढ़ी-लीखी और अच्छे पैसे वाले घरों से होने के साथ-साथ खुद भी ऊँची पोस्ट पे काम करती थीं। दोनों ही काफी खूबसूरत और सैक्सी फिगर वाली चुदैल औरतें थीं और दोनों खूब बन-ठन कर अपनी-अपनी कारों से काम पे आती थीं। इसके अलावा दोनों सिर्फ़ गहरी सहेलियाँ ही नहीं थी बल्कि उनका आपस में जिस्मानी लेस्बियन रिश्ता भी था।

शाम के वक़्त अपना काम निपता कर सुनील अपनी कुर्सी पर आँखें मूँद कर बैठ गया और स्टेशन मास्टर अज़मल भी बाहर निकल गया था। अज़मल बाहर गया तो उधर दोनों औरतें शुरू हो गयी। नफ़ीसा अपने कैबिन में से निकल कर सुनील के सामने रशीदा के कैबिन में जा कर बैठ गयी। "और रशीदा कल तो तेरे हस्बैंड आये हुए थे... खूब चुदाई की होगी तुम लोगों ने...!" नफ़ीसा चहकते हुए बोली तो रशीदा ने उसे खबरदार करते हुए कहा, "शशशऽऽऽ अरे धीरे बोल... वो नया लड़का सुनील भी है... अगर उसने सुन लिया तो..!"

नफ़ीसा बोली, "अरे सुन लेगा तो क्या होगा... उसके पास भी तो लंड है... और सारी दुनिया करती है ये काम हम क्यों किसी से डरें..!"

"अरे नहीं यार अच्छा नहीं लगता... अगर सुन लेगा तो क्या सोचेगा बेचारा..!" रशीदा ने कहा तो नफ़ीसा उसे टालते हुए बोली, "तू वो छोड़.. बता ना... कल तो जरूर तेरी गाँड का बैंड बजाया होगा खुर्शीद साहब ने..!"

रशीदा मायूस से लहज़े में बोली, "अब उनमें वो बात नहीं रही यार... ऊपर से इतनी तोंद बाहर निकल लायी है.. दो तीन धक्कों में ही उनकी साँस फूलने लगती है..!"

"तो मतल्ब कुछ नहीं हुआ हाऽऽ...?" नफ़ीसा ने पूछा तो रशीदा बोली, "अरे नहीं वो बात नहीं है... पर अब वो मज़ा नहीं रहा... एक तो उनका मोटापा और अब उम्र का असर भी होने लगा है... कितनी बार कह चुकी हूँ कि जिम जाया करें... कसरत वसरत करने... पर मेरी सुनते ही कहाँ है वो..!"

"मतलब तेरी गाँड का बैंड नहीं बजा इस बार हेहेहे!" नफ़ीसा हंसते हुए बोली। "अरे कहाँ यार... चूत और गाँड दोनों मारी... पर बड़ी मुश्किल से चार पाँच धक्के में उनका पानी निकल जाता है... अब तो काफ़ी वक़्त से लंड भी ढीला पड़ने लगा है... तुझे तो मालूम ही है... जब तक लौड़ा इंजन के पिस्टन की तरह चूत को चोद-चोद कर पानी नहीं निकाले और गाँड मराते हुए से पुर्रर्र- पुर्रर्र की आवाज़ ना आये तो मज़ा कहाँ आता है और उसके लिये मोटा सख्त लंड चाहिये.... तू सुना तेरी कैसी चल रही है... तेरा भतीजा तो तेरी गाँड की बैंड तो बजा ही रहा होगा..!"

नफ़ीसा मायूस होकर बोली, "हम्म्म क्या यार... क्यों दुखती रग़ पर हाथ रखती हो यार... उसकी अम्मी ने एक दिन देख लिया था तब से वो घर नहीं आया...!"

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"चल पहले तो काफी ऐश कर ली तूने उसके साथ... देख कितनी मोटी गाँड हो गयी है तेरी..." रशिदा बोली।

"यार चूत तक तो ठीक था लड़का पर साले का पाँच इंच का लंड क्या खाक मेरी गाँड की बैंड बजाता... सिर्फ़ दो इंच ही अंदर जाता था... बाकी दो-तीन इंच तो चूतड़ों में ही फँस कर रह जाता था...!" नफ़ीसा की ये बात सुनकर रशीदा खिलखिला कर जोर से हंसने लगी। "रशीदा तुझे वो आदमी याद है... जो उस दिन इस स्टेशन पर गल्ती से उतर गया था..." नफ़ीसा की बात सुनते ही रशीदा की चूत से पानी बाहर बह कर उसकी पैंटी को भिगोने लगा और वो आह भरते हुए बोली, "यार मत याद दिला उसकी... साले का क्या लंड था... एक दम मूसल था मूसल..!"

"हाँ यार... मर्द हो तो वैसा... साले ने हम दोनों की गाँड रात भर बजायी थी... गाँड और चूत दोनों का ढोल बजा दिया था... कैसे गाँड से पुर्रर्र-पुर्रर्र की आवाज़ें निकल रही थी तेरी..." नफ़ीसा बोली तो रशीदा ने भी पलट कर हंसते हुए कहा, "और तेरी गाँड ने क्या कम पाद मारे थे... साले के धक्के थे ही इतने जबरदस्त कि साली गाँड हवा छोड़ ही देती थी पर हम दोनों ने भी मिलकर सुबह तक उसे गन्ने की तरह चूस डाला था।"

"हाँ रशीदा यार! मेरी तो अभी से गाँड और चूत में खुजली होने लगी है... कुछ कर ना यार... कहीं से लंड का इंतज़ाम कर!" नफ़ीसा ने आह भरते हुए कहा तो रशीदा बोली, "यार वैसे लौंडे तो बहोत पीछे है पर साला काम का कौन सा है... पता नहीं चलता!"

ये सुनकर नफ़ीसा भी बोली, "यार मेरा भी यही हाल है... कितनों के साथ कोशिश करके देख चुकी हूँ लेकिन वो मज़ा नहीं आया! पर मैं नज़रें जमाये हुए हूँ... तू भी देख शायद कोई काम का लौंडा मिल जाये... वैसे हम दोनों तो हैं ही एक-दूसरे के लिये..... आजा मेरे घर आज रात को...!"

उधर कैबिन के बाहर अपनी कुर्सी पे बैठा सुनील उनकी बातों को सुन कर एक दम हैरान था। उनकी बातें सुन कर उसका लंड एक दम तन चुका था और अब दर्द भी करने लगा था। सुनील इतना तो जान ही गया था कि ये साली दोनों हाई-क्लॉस और शरीफ़ दिखाने वाली औरतें कितनी चुदैल हैं और उसे अब उनकी दुखती रग का भी पता था। नफ़ीसा और रशीदा दोनों बेहद सैक्सी जिस्म वाली खूबसूरत औरतें थीं। दोनों करीब साढ़े पाँच फुट लंबी थीं। दोनों ज्यादातर सलवार-कमीज़ ही पहनती थीं और ऊँची पेन्सिल हील वाली सेन्डल पहनने से उनकी बड़ी-बड़ी गाँड बाहर की ओर निकली हुई होती थी। सुनील पहले भी अक्सर चोर नज़रों से इन दोनों औरतों को देखा करता था... खासतौर पर इसलिये कि उसे ऊँची हील के सैंडल पहनने वाली औरतें खास पसंद आती थीं। लेकिन ये दोनों औरतें काफी रोबदार और सीनियर ऑफ़िसर थीं और वो महज़ नया-नया कलर्क लगा था... इसलिये रोज़ सुबह की औपचारिक सलाम-नमस्ते के अलावा कभी उनसे कोई बात तक करने की हिम्मत नहीं हुई थी। डिपार्टमेंट भी अलग होने की वजह से सुनील का उनसे कोई काम भी नहीं पड़ता था कि कोई काम को लेकर ही बात हो पाती। लेकिन अब वो उन दोनों की असलियत जान गया था।

अगले दिन सुनील सिर्फ़ ट्रैक सूट का लोअर और टी-शर्ट पहन कर ही स्टेशन पर गया। ये सुनील ने पहले से प्लैन कर रखा था। जब सुनील स्टेशन पर पहुँचा तो अज़मल ने सुनील से पूछा, "अरे यार क्या बात है... आज नाइट सूट में ही चले आये हो... खैरियत तो है..?"

"हाँ सर सब ठीक है.. बस थोड़ी सी तबियत खराब थी... इसलिये नहाने और तैयार होने का मन नहीं किया... ऐसे ही चला आया..!" सुनील ने सफ़ाई पेश की तो अज़मल बोला, "यार अगर तबियत खराब थी तो फ़ोन कर देते... और आज घर पर आराम कर लेते..!"

सुनील बोला, "सर घर में पड़ा-पड़ा भी बोर हो जाता.. और वैसे भी यहाँ काम होता ही कितना है..!"

अज़मल ने कहा कि "हाँ वो तो है... वैसे दवाई तो ली है ना?"

"जी सर ले ली है..!" ये कहकर सुनील जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया और फाइल खोलकर अपने काम में लग गया। थोड़ी देर बाद नफ़ीसा और रशीदा भी आ गयीं और सुनील से 'गुड मोर्निंग' के बाद वो भी अपने-अपने कैबिन में जा कर अपने कामों में मसरूफ़ हो गयीं।

थोड़ी देर बाद अज़मल प्लैटफ़ोर्म पर राउँड पे चला गया और उसके थोड़ी देर बाद रशीदा अपने कैबिन से बाहर निकली कर टॉयलेट की तरफ़ गयी तो मार्बल चिप वाले सिमेंट के पर्श पे सैंडल खटखटाती हुई वो सुनील के पीछे से गुजरी। दो छोटे-छोटे टॉयलेट उसी रूम में पीछे की तरफ़ थे जिनमें एक लेडीज़ था और एक जेंट्स का। सुनील की नज़र जैसे ही तंग कमीज़ और चुड़ीदार सलवार में कैद रशीदा की गाँड पर पड़ी तो उसका लंड तुनक उठा और उसका लंड ट्रैक-सूट के पजामे में कुलांचें मारने लगा। सुनील ने जो प्लैन सोचा था अब उसको काम में लाने का समय आ गया था। "आहह कैसी दिखती होगी रशीदा की गाँड... कितनी मोटी गाँड है साली की... एक बार मिल जाये तो आहहह.!" ये सोचते हुए सुनील का लंड पूरी औकात में आ गया। सुनील का लंड उसके ट्रैक-सूट के पजामे में तन कर तम्बू सा बन गया जो बाहर से देखने से साफ़ पता चल रहा था। थोड़ी देर बाद जब रशीदा के ऊँची हील के सैंडलों की फर्श पे खटखटा कर चलने की आवाज़ आयी तो सुनील अपनी पीठ पीछे टिका कर कुर्सी पर लेट सा गया और अपने पायजामे के ऊपर से अपने लंड को जड़ से पकड़ लिया ताकि वो ज्यादा से ज्यादा बड़ा दिख सके। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और वही हुआ जो सुनील चाहता था। जब रशीदा वापस आयी और सुनील के पीछे से गुज़रने लगी तो उसकी नज़र सुनील पर पड़ी जो अपने हाथ से अपने लंड को पायजामे के ऊपर से पकड़े हुए था। रशीदा एक दम धीरे-धीरे चलने लगी और सुनील के लंड का मुआयना करने लगी पर वो रुक नहीं सकती थी और वो वापस अपने कैबिन में गयी और कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगी। थोड़ी देर सोचने के बाद उसने नफ़ीसा को धीरे से बुलाया और अपने कैबिन में आने को कहा। नफ़ीसा अपने कैबिन से निकल कर रशीदा के कैबिन में गयी और एक कुर्सी रशीदा के करीब सरका कर बैठ गयी।

रशीदा धीरे से बोली, "अरे यार नफ़ीसा! लगता है आज सुनील का लंड उसे तंग कर रहा है... देख साला बाहर कैसे अपने लंड को पकड़ कर बैठा है!"

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नफ़ीसा ने पूछा, "तूने देखा क्या उसे अपना पकड़े हुए...?"

रशीदा बोली, "हाँ अभी देखा है... जब मैं टॉयलेट से वापस आ रही थी... यार देख तो सही!"

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नफ़ीसा उठी और रशीदा के कैबिन से निकल कर बाथरूम की तरफ़ जाने लगी। जब वो सुनील के पीछे से गुजरी तो उसने तिरछी नज़रों से सुनील की तरफ़ देखा जो अभी भी अपने आँखें बंद किये हुए कुर्सी पे आधा लेटा हुआ था। सुनील ने अभी भी अपना लंड हाथ में पायजामे के ऊपर से थाम रखा था। नफ़ीसा अच्छे से तो नहीं देख पायी और वो टॉयलेट में चली गयी। नफ़ीसा के जाने के बाद सुनील उठा और टॉयलेट की तरफ़ चला गया। वो जेंट्स टॉयलेट में घुसा और जानबूझ कर कुछ "आहह आहहह" की आवाज़ की और अपने पजामे को नीचे सरका दिया।

सुनील को पता था कि अज़मल जल्दी वापस नहीं आने वाला था। सुनील ने अपने टॉयलेट का दरवाजा थोड़ा सा खोल रखा था और दीवार की तरफ़ देखते हुए अपने लंड को हाथ से सहलाने लगा। नफ़ीसा बगल वाले टॉयलेट में बैठी हुई सुनील की आवाज़ सुन कर चौंक गयी। वो टॉयलेट से बाहर आयी तो उसने देखा कि साथ वाले जेंट्स टॉयलेट का दरवाजा ज़रा सा खुला हुआ था। अंदर लाइट जल रही थी जिससे अंदर का नज़ारा साफ़ दिखायी दे रहा था। नफ़ीसा धीरे से थोड़ा आगे बढ़ी और दीवार से सटते हुए उसने अंदर झाँका। उसके ऊँची हील वाले सैंडल की आवाज़ ने सुनील को उसकी मौजूदगी से आगाह करवा दिया। सुनील ने अपने लंड को जड़ से पकड़ कर दबाया और उसका लंड और लंबा हो गया। जैसे ही नफ़ीसा ने अंदर देखा तो उसका केलजा मुँह को आ गया।

अंदर सुनील अपने मूसल जैसे लंड को हिला रहा था। सुनील के अनकटे लंड की लंबाई और मोटाई देख कर नफ़ीसा की चूत कुलबुलाने लगी और गाँड का छेद फुदकने लगा। सुनील ने थोड़ी देर अपने लंड का दीदार नफ़ीसा को करवाया और ट्रैक सूट का पायजामा ऊपर करने लगा। नफ़ीसा जल्दी से वापस रशीदा के कैबिन में गयी और रशीदा के पास आकर बैठ गयी। उसकी साँसें उखड़ी हुई थी और आँखों में जैसे हवस का नशा भरा हो। "क्या हुआ नफ़ीसा... तेरी साँस क्यों फूली है...?" रशीदा ने नफ़ीसा के सुर्ख चेहरे और उखड़ी हुई साँसों को देख कर पूछा। "पूछ मत यार... क्या लौड़ा है साले अपने नये हीरो का... माशाल्लह... इतना बड़ा और मूसल जैसा लंड... साला जैसे गाधे का लंड हो...!"

रशीदा: "क्या बोल रही है यार तू...?"

नफ़ीसा: "सच कह रही हूँ यार... तू भी अगर एक दफ़ा देख लेती तो तेरी चूत में भी बिजलियाँ कड़कने लगती... साले का ये लंबा लंड है... और इतना मोटा...!" नफ़ीसा ने हाथ से इशारा करते हुए दिखाया।

रशीदा: "सच कह रही है तू?"

नफ़ीसा: "हाँ सच में तेरी इस मोटी गाँड की कसम...!"

रशीदा: "चुप कर रंडी... साली जब देखो मेरी गाँड के पीछे ही पड़ी रहती है...!"

नफ़ीसा: "तो क्या बोलती है... साले चिकने को फंसाया जाये...?"

रशीदा: "पता नहीं यार... हमारे साथ जॉब करता है और बहोत जुनियर भी है... और जवान खून है... अगर साले ने बाहर किसी के सामने कुछ बक दिया तो खामाखाँ मसला हो जायेगा!"

नफ़ीसा: "अरे यार कुछ नहीं होता... तू तो हमेशा ऐसे ही ऐसे ही बेकार में घबराती है... साले को साफ़-साफ़ बोल देंगे कि मज़ा लो और अपना-अपना रास्ता नापो... बोल तू बात करेगी या मैं करूँ उससे बात!"

रशीदा: "अच्छा-अच्छा मैं देखती हूँ... पहले ये तो मालूम हो कि साले का लौड़ा चूत और गाँड मारने के लिये बेकरार है भी या नहीं...!"

नफ़ीसा: "यार कुछ भी कर पर जल्दी कर... मेरी चूत और गाँड दोनों छेदों में खुजली हो रही है... जब से उसका लंड देखा है..!"

रशीदा: "हाँ-हाँ पता है... इसी लिये तुझे बात करने नहीं भेज रही... तू तो वहीं सलवार खोल के खड़ी हो जायेगी उसके सामने... अब तू अपने कैबिन में जा कर बैठ... मैं देखती हूँ कि अपना चिकना हाथ आने वाला है कि नहीं...!"

नफ़ीसा अपने कैबिन में वापस चली गयी और रशीदा उठ कर सुनील के पास गयी और सुनील के पास जाकर कुर्सी पर बैठते हुए हंस कर बोली, "और सुनील कैसे हो... क्या बात है आज बड़े फ़ॉर्मल कपड़ों में जोब पर चले आये..!"

नफ़ीसा के इस तरह अचानक अपनी टेबल पे बैठ कर उससे बात करने से सुनील पहले तो थोड़ा घबरा गया लेकिन जल्दी ही संभल गया। उसे उम्मीद तो थी ही कि दोनों औरतों में कोई तो पहल करेगी। सुनील संभलते हुए बोला, "वो मैडम बस ऐसे ही... आज तबियत थोड़ी खराब थी... नहाने और तैयार होने का मन नहीं किया तो ऐसे ही चला आया..!"

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