मजबूर (एक औरत की दास्तान)

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रशीदा थोड़ा सा झुक कर अपना दुपट्टा गर्दन में ऊपर खींच कर सुनील को अपनी कमीज़ के गहरे गले से अंदर कैद दोनों खरबूजों के बीच की घाटी का दीदार करवाती हुई बोली, "उफ़्फ़ ये गरमी भी ना... और कहाँ पर रह रहे हो!"

सुनील: "ये वो जो ट्रेफ़िक डिपार्ट्मेंट में ऑफ़िसर हैं ना फ़ारूक साहब... उन्ही के घर पर पेईंग गेस्ट रह रहा हूँ!"

रशीदा: "अच्छा वो फ़ारूक... कितना किराया ले रहा है वो तुमसे?"

सुनील: "ये खाने का मिला कर साढ़े-तीन हज़ार रुपये दे रहा हूँ..!"

रशीदा: "ये तो बहोत ज्यादा है... पहले बताया होता तो तुम्हें नफ़ीसा के घर में रूम दिलवा देती... उसका इतना बड़ा बंगला है... और रहने वाले सिर्फ़ दो जने हैं... बेटा उनका बाहर अलीगढ़ में पढ़ रहा है...!"

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सुनील: "कोई बात नहीं मैडम मैं ठीक हूँ... कोई दिक्कत नहीं है वहाँ!"

रशीदा: "और कभी हमारे साथ भी बैठ कर बातें वातें कर लिया करो... यूँ अकेले बैठे-बैठे बोर नहीं हो जाते?"

सुनील: "जी मैडम जरूर... वो बस मैं सोचता था कि आप दोनों इतनी सीनियर हैं तो शायद आप दोनों को बुरा ना लगे कि मैं आपको परेशान कर रहा हूँ!"

रशीदा: "अरे सीनियर्स के साथ क्या बातें करने की कोई पाबंदी है.. हम क्या खा जायेंगी तुम्हें!"

सुनील: "ओहह सॉरी मैडम मेरा मतलब वो नहीं था... वैसे मैं भी बोर हो जाता हूँ... घर जाकर भी अकेले रूम में बैठा-बैठा उकता जाता हूँ..!"

रशीदा: "तुम्हारे कोई दोस्त या कोई गर्ल-फ़्रेंड नहीं है क्या..!"

सुनील: "जी नहीं मैडम वैसे भी नया हूँ यहाँ पे...!"

रशीदा: "इसी लिये तो कह रही हूँ... ज़रा मिलोजुलो लोगों से... बातचीत करो... तुम हैंडसम हो... अच्छी शक़्ल सूरत है... बॉडी भी अच्छी बनायी हुई है... क्या प्रॉब्लम हो सकती है!"

सुनील: "पर मैडम आप तो जानती है ना... आज कल की लड़कियों को बस महंगे-महंगे गिफ़्ट चाहिये और बदले में क्या... बस पैसे बर्बाद..!"

रशीदा: "अच्छा शाम को क्या कर रहे हो..?"

सुनील: "जी मैडम... कुछ खास नहीं!"

रशीदा: "तो चलो आज नफ़ीसा के घर में पार्टी करते हैं... ड्रिंक तो कर ही लेते हो ना?"

सुनील: "जी कभी-कभी!"

रशीदा: "और कोई शौक भी है तो बता दो... उसका अरेंजमेंट भी कर लेंगे..!"

सुनील: "जी शौक तो बहुत हैं... जैसे-जैसे जान पहचान बढ़ेगी... आपको पता चल जायेगा...!"

रशीदा: "अच्छा ऐसी बात है... चलो देखते हैं..!"

इस दौरान सुनील बार-बार रशीदा की बड़ी- बड़ी चूचियों को उसकी कमीज़ के गहरे गले में से देख रहा था और रशीदा टाँग पर टाँग चढ़ा कर बैठी हुई अपनी टाँग हिला रही थी तो सुनीळ की नज़रें उसके ऊँची हील वाले कातिलाना सैंडल से भी नहीं हट रही थी। रशीदा भी सुनील के लंड को ट्रैक-पैंट में झटके खाता हुआ साफ़ देख रही थी। फिर रशीदा उठी और अपनी मोटी गाँड मटकाते हुए जाने लगी। "भूलना नहीं आज शाम नफ़ीसा के घर पर... नफ़ीसा से घर का अड्रेस समझ लेना..." रशीदा ने जाते हुए कहा।

थोड़ी देर बाद नफ़ीसा उसके पास आयी, "तो क्या इरादा है सुनील!" सुनील ने चौंक कर नफ़ीसा की तरफ़ देखा... "जी मैडम इरादा तो नेक है बस आपके हुक्म का इंतज़ार है...!" नफ़ीसा अपने होंठों को दाँतों में दबाते हुए बोली, "अच्छा ये लो इसमें मेरा अड्रेस लिखा है और मोबाइल नम्बर भी... अगर रास्ता ढूँढने में तकलीफ़ हो तो फ़ोन कर देना!"

सुनील: "जी मैडम ठीक है... वैसे आपके घर वाले मतलब आपके हस्बैंड को कोई ऐतराज़ तो नहीं होगा?"

नफ़ीसा: "अरे नहीं... वो तो बिल्कुल पेरलाइज़्ड हैं... बिस्तर से उठ तक नहीं सकते हैं!" ये कह कर नफ़ीसा भी चली गयी।

दोनों औरतें शाम को एक घंटा पहले ही निकल गयीं। दोनों पहले रशीदा के फ़्लैट में गयी और वहाँ पर रशीदा ने अपनी एक सलवार-कमीज़... नाइटी... सैंडल वगैरह और कुछ समान लिया। रशीदा ने अपनी सास को भी बताया कि वो आज रात को नफ़ीसा के घर पर ही रहेगी। ये कोई नयी बात नहीं थी क्योंकि वो अक्सर नफ़ीसा के घर रात बिताया करती थी। रशिदा ने अपनी कार नहीं ली और दोनों नफ़ीसा की कार में ही उसके घर की तरफ़ रवाना हो गयीं। नफ़ीसा ने रस्ते में से खाने पीने की कुछ चीज़ें खरीदीं और फिर घर पहुँची।

घर आकर उसने अपनी नौकरानी ज़ोहरा को बुलाया। उसने ज़ोहरा को रात का खाना तैयार करने के लिये कहा और उसे कहा कि वो गोल्ड-फ्लेक सिगरेट के दो पैकेट और ऑफिसर चाइस व्हिस्की की दो बोतलें अपने शौहर से मंगवा दे। ये भी कोई नयी बात नहीं थी क्योंकि नफ़ीसा अक्सर ज़ोहरा के शौहर के ज़रिये शराब और सिगरेट खरीदवाया करती थी। नफ़ीसा ने उसे पैसे दिये और ज़ोहरा पास ही अपने घर चली गयी। उसका शौहर जाकर सिगरेट के पैकेट और व्हिस्की की बोतलें ले आया और ज़ोहरा ने वो नफ़ीसा को लाकर दे दी। रात के चुदाई की पार्टी का इंतज़ाम हो चुका था और दोनों चुदैल औरतें नया बकरा हलाल करने के लिये बेकरार थीं।

दूसरी तरफ़ सुनील ने भी अपना काम खतम किया और स्टेशन से बाहर आकर अपना मोबाइल निकाल कर घर पर फ़ोन किया। फ़ोन सानिया ने उठाया तो सुनील ने उसे कहा कि आज रात कुछ जरूरी काम से उसे स्टेशन पर ही रुकना पड़ेगा। सुनील कुछ देर बज़ार में घूमता रहा। जब अंधेरा होने लगा तो उसका फ़ोन बजने लगा। फ़ोन रशीदा का था, "हैलो सुनील... कहाँ रह गये?"

"जी अभी आ रहा हूँ... थोड़ी ही देर में पहुँच जाऊँगा!" सुनील ने कहा तो रशीदा ने "ठीक है... जल्दी आओ..." कह कर फ़ोन काट दिया। सुनील ने बाइक नफ़ीसा के घर की तरफ़ घुमा दी। सुनील जानता था कि आज रात बहुत लंबी होने वाली है और दोनों औरतें बेहद चुदैल हैं... इसलिये वो एक दवाई की दुकान पर रुका और एक दो गोली वायग्रा की ले ली। वैसे तो सुनील के जिस्म और लंड में इतनी जान थी कि वो एक साथ नफ़ीसा और रशीदा की चुदाई तसल्ली से कर सकता था पर सुनील आज उन दोनों की गाँड और चूत पर अपने लंड की ऐसी छाप छोड़ना चाहता था कि वो दोनों उसके लंड की गुलाम हो जाये। सुनील ये भी जानता था कि नफ़ीसा और रशीदा दोनों मालदार औरतें है और दोनों के पास बहुत पैसा है। वो वक़्त आने पर सुनील की कोई भी जरूरत पूरी कर सकती थीं। लेकिन उसके लिये सुनील को पहले उन दोनों को अपने लंड का आदी बनाना था जैसे उसने रुखसाना को अपने लंड की लत्त लगा दी थी। यही सोच कर उसने वायग्रा खरीद ली और नफ़ीसा के घर के तरफ़ चल पड़ा। थोड़ी ही देर में वो नफ़ीसा के घर के पास पहुँच गया और उसने रशीदा को फ़ोन किया।

"हाँ बोलो सुनील... कहा पहुँचे?" रशीदा ने फोन उठाते ही पूछा। "मैडम मैं उस गली में पहुँच गया हूँ पर यहाँ सभी इतने बड़े-बड़े बंगले हैं कि समझ में नहीं आ रहा कि नफ़ीसा मैडम का घर कौन सा है!" सुनील ने पूछा तो रशीदा ने उसे समझाया, "देखो तुम सीधे गली के एंड में आ जाओ... राइट साइड पर सबसे आखिरी घर है... उसके सामने खाली प्लॉट है..!"

"ठीक है समझ गया मैडम!" सुनील ने फ़ोन काटा। "रशीदा क्या हुआ... पहुँचा कि नहीं अभी तक..." नफ़ीसा ने पूछा तो रशीदा अपने होंठों पे बेहद कमीनी मुस्कान के साथ बोली, "हाँ पहुँच गया है... तू जाकर गेट खोल और उसकी बाइक अंदर करवा ले... बहोत दिनों बाद साला आज तगड़ा बकरा हाथ में आया है... खूब मजे से उसे हलाल करके अपनी हसरतें पूरी करेंगी दोनों मिलकर!"

नफ़ीसा ने बाहर जाकर गेट खोला और इतने में सुनील की बाइक उसके घर के सामने थी। सुनील ने अपनी बाइक अंदर कर ली और नफ़ीसा ने अंदर से गेट बंद करते हुए पूछा, "ज्यादा तकलीफ़ तो नहीं हुई तुम्हें घर ढूँढने में...?"

"जी नहीं!" नफ़ीसा ने कॉटन का पतला सा हल्के सब्ज़ रंग का स्लीवलेस और तंग कमीज़ और नीचे सफ़ेद चुड़ीदार सलवार पहनी हुई थी। उसने दुपट्टा भी नहीं लिया हुआ था और उसकी कमीज़ का गला कुछ ज्यादा ही लो-कट था जिसमें से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ करीब-करीब आधी नंगी थीं और बाहर आने को उतावली हो रही थी। इसके अलावा नफिसा ने पाँच इंच ऊँची पेंसिल हील के बेहद सैक्सी सैंडल पहन रखे थे। ये सब देखते ही सुनील के लंड में सरसराहट होने लगी।

तजुर्बेकार नफ़ीसा भी सुनील की नज़र को फ़ौरन ताड़ गयी और मुस्कुराते हुए बोली, "चलो अंदर चलो... यहीं खड़े- खड़े देखते रहोगे क्या?" नफ़ीसा पहचान गयी थी कि उन दोनों को सुनील को अपने हुस्न ओर अदाओं से पटाने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा। नफ़ीसा उसे साथ लेकर हाल में पहुँची। नफ़ीसा का घर सच में बहुत बड़ा था। घर के सामने एक बड़ा लॉन था और पीछे की तरफ़ स्विमिंग पूल था... नफ़ीसा के ससुर बहुत बड़े जागीरदार हुआ करते थे और अपनी ढेर सारी दौलत और जायदाद वो नफ़ीसा के शौहर के नाम छोड़ गये थे।

नफ़ीसा ने उसे सोफ़े पर बिठाया और बोली कि वो आराम से बैठे और वो अभी आती है! सुनील ने ऐसा शानदार सजा हुआ ड्राइंग रूम और फ़र्निचर सिर्फ़ फ़िल्मों में ही देखा था। "जी वो रशीदा मैडम कहाँ हैं?" सुनील ने नफ़ीसा से पूछा। "रशीदा चेंज करने गयी है... अभी आती है..!" ये कह कर नफ़ीसा किचन में चली गयी और फिर एक गिलास में कोल्ड ड्रिंक ले आयी और सुनील को देने के बाद बोली, "तुम बैठो मैं भी चेंज करके आती हूँ..!"

जैसे ही नफ़ीसा गयी तो सुनील ने वायग्रा की एक गोली निकाली और कोल्ड-ड्रिंक के साथ निगल ली। थोड़ी देर बाद नफ़ीसा बाहर आयी तो सुनील के मुँह से सीटी निकल गयी और धड़कनें तेज़ हो गयीं। नफ़ीसा ने सिर्फ़ मैरून रंग का छोटा सा मखमली बाथरोब पहना हुआ था और पैरों में मेल खाते मैरून रंग के ही पहले जैसे पाँच-छः इंच ऊँची पेंसिल हील के बारीक स्ट्रैप वाले सैंडल। नसीफ़ा की लंबी-लंबी और सुडौल टाँगें और गोरी माँसल जाँघें बिल्कुल नंगी सुनील की नज़रों के सामने थीं। उसका लंड तो उसी वक़्त टनटना गया। उसे ये तो पता था कि आज रात दोनों औरतों ने उसे चुदाई के मक़सद से ही बुलाया है लेकिन ये नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी बेधड़क नंगी हो जायेगी। ये औरतें उसकी उम्मीद से काफ़ी ज्यादा ही फ़ॉर्वर्ड और बोल्ड थीं।

नफ़ीसा ने ज़रा इतराते हुए पूछा, "ऐसे क्या देख रहे हो...?"

सुनील खुद को संभालते हुए बोला, "वो... वो कुछ नहीं.. वो आप आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं!"

"अच्छा! वैसे तुम्हे मुझ में क्या खूबसूरत लगता है...?" नफ़ीसा ने पूछा तो सुनील बोला, "जी सब कुछ...!" नफ़ीसा मुस्कुराते हुए बोली, "फिर तो सब कुछ देखना भी चाहते होगे...!"

सुनील: "जी अगर आप मौका दें तो!"

नफ़ीसा ने सुनील के पास आकर अपना एक पैर उठा कर सोफ़े पे सुनील की जाँघों के बीच मे रखा दिया और बोली, "मौके तो आज तुम्हें ऐसे-ऐसे मिलेंगे कि तुमने सोचा भी नहीं होगा... ज़रा मेरी सैंडल का बकल तो कस दो... थोड़ा लूज़ लग रहा है!"

सुनील को ऐसी आशा नहीं थी... ये तो खुला-खुला आमंत्रण था। सुनील थोड़ा नरवस हो गया। उसने काँपते हुए हाथों से नफ़ीसा के सैंडल की बकल खोल कर उसकी सुईं अगले छेद में डाल कर बकल फिर बंद कर दिया। नफ़ीसा ने फिर दूसरा पैर वैसे ही सुनील की जाँघों के बीच में रख दिया... इस बार उसके सैंडल का पंजा और पैर की उंगलियाँ सीधे उसके टट्टों और लंड को छू रहे थे। सुनील का लंड उसके ट्रैक-पैंट में कुलांचे मारने लगा। सुनील ने उस सैंडल की बकल भी काँपते हुए हाथों से कस दी। नफ़ीसा के सैंडल इतने सैक्सी थे कि सुनील का मन हुआ कि झुक कर उसके सैंडल और नरम-नरम गोरे पैर चूम ले। नफ़ीसा के पैरों के उंगलियों में नेल-पॉलिश भी मैरूण ही थी।

"घबरा नहीं सुनील आज की रात तुम्हारे लिये यादगार होने वाली है... अभी तो कईं सर्प्राइज़ मिलने हैं... चल आजा!" ये कह कर नफ़ीसा आगे चलने लगी। सुनील खड़ा होकर नफ़ीसा के पीछे जाने लगा। नफ़ीसा उसे घर के पीछे स्विमिंग पूल की तरफ़ ले गयी। अंधेरा हो चुका था लेकिन स्विमिंग पूल के चारों तरफ़ बहुत खूबसूरत रंगबिरंगी रोशनी की हुई थी। वहाँ एक लंबी सी कुर्सी पर रशीदा आधी लेटी हुई थी। उसने भी नफ़ीसा की तरह मैरून रंग का मखमली बाथरोब पहना हुआ था और पैरों में काले रंग के ऊँची पेंसिल हील वाले बेहद कातिलाना सैंडल मौजूद थे। रशीदा ने अपनी एक टाँग लंबी कर बिछायी हुई थी और दूसरी को घुटने से मोड़ा हुआ था। उसके एक हाथ में शराब का गिलास और सिगरेट थी। "ओहह सुनील आओ... कब से हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे... यहाँ बैठो..." रशीदा ने उसे अपने पास बिठा लिया और उसकी जाँघ को सहलाते हुए बोली "सुनील क्या लोगे..!"

"जी आप जो भी प्यार से पिला दें वो मैं पी लुँगा!" सुनील ने जवाब दिया। सुनील को एहसास हो गया था कि वो शिकार करने आया था लेकिन यहाँ तो उसका ही शिकार होने वाला था।

"माशाल्लह... यार तुम तो बहोत चंट हो बातें बनाने में!" रशीदा बोली तो सुनील फिर तपाक से बोला, "जी बनाने में ही नहीं... करने में भी चंट हूँ..!" ये सुनकर रशिदा सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए बोली, "क्यों नफ़ीसा.... लगता है आज की रात यादगार होने वाली है..!"

नफ़ीसा ने पास में टेबल पर रखी व्हिस्की की बोतल से एक गिलास में व्हिस्की और सोडा डाल कर सुनील को दी और फिर रशीदा के गिलास में भी एक और नया पैग बना कर दिया और अपने लिये भी एक पैग बनाया। फिर उसने अपने लिये सिगरेट सुलगायी और सुनील को भी सिगरेट पेश की तो सुनील ने मना कर दिया। तीनों साथ में बैठ कर व्हिस्की पीने लगे। सुनील खुद तो सिगरेट नहीं पीता था लेकिन ये दोनों औरतें सिगरेट पीती हुई बेहद सैक्सी और कातिल लग रही थीं उसे। रशीदा ने अपनी सिगरेट और पैग खतम किया और अपने गिलास को टेबल पर रख कर खड़ी हो गयी, "चलो पूल में चलते हैं... उफ्फ बहोत गरमी है यहाँ पर..!" ये कहते हुए उसने अपने बाथरोब की बेल्ट को खोला और बाथरोब उतार दिया। सुनील की आँखें एक दम से चौंधिया गयी। रशीदा का फिगर देखते ही सुनील को सन्नी लियॉन की याद आ गयी।

रत्ति भर भी कम नहीं था रशीदा का जिस्म... वैसे ही अढ़तीस साइज़ के बड़े-बड़े तने हुए मम्मे और वैसे ही बाहर की तरफ़ निकली हुई गाँड... लाल रंग की छोटी सी लेस की ब्रा के साथ जी-स्ट्रिंग की चिंदी सी लाल पैंटी और ऊँची हील के सैंडल में क़हर ढा रहा था। अब रशीदा अगर सन्नी लियॉन थी तो नफ़ीसा तो कहाँ कम थी... फिगर के साथ-साथ शक़्ल-सूरत में भी हुबहु बॉलीवुड हिरोइन ज़रीन खान लगती थी। नफ़ीसा ने भी अपना पैग खतम किया और सिगरेट का आखिरी कश लगा कर ऐशट्रे में बुझा दी और अपना बाथरोब उतार दिया। उसने नीचे काले रंग की ब्रा और काले रंग की ही जी-स्ट्रिंग पैंटी पहनी हुई थी। अपने आप को इन दोनों गज़ब की सैक्सी औरतों के बीच पाकर सुनील का लंड उसके ट्रैक सूट के पायजामे में कुलांचे मारने लगा। वैसे तो रुखसाना भी रशीदा और नफ़ीसा से फिगर और खूबसूरती में कम नहीं थी लेकिन ये दोनों बेहद तेजतर्रार... डॉमिनेटिंग और बेतकल्लुफ़ थीं और रुखसाना थोड़ी शर्मिली और नरम थी।

"अब तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो... चलो कपड़े उतारो..!" नफ़ीसा ने कहा तो सुनील ने एक दम चौंकते हुए खड़े होकर अपनी टी-शर्ट उतार दी। फिर उसे याद आया कि आज तो उसने जानबूझ कर सुबह ट्रैक-पैंट के नीचे अंडरवियर पहना ही नहीं था तो वो एक दम से रुक गया। "क्या हुआ सुनील... कोई प्रोब्लेम है..?" कहते हुए रशीदा अपने सैंडल पहने हुए ही पूल में उतर गयी।

"जी मैडम वो मैंने नीचे अंडरवियर नहीं पहना!" सुनील झेंपते हुए बोला तो रशीदा हंसते हुए बोली, "तो यहाँ कौन सा कोई तुम्हें देख रहा है.... सिर्फ़ हमारे अलावा... यार कोई बात नहीं... आजा..!" नफ़ीसा ने अपने और रशीदा के लिये एक-एक पैग और बनाया और दोनों गिलास लेकर वो भी सैंडल पहने हुए ही स्विमिंग पूल मैं उतर गयी। स्विमिंग पूल ज्यादा गहरा नहीं था और सिर्फ़ कमर तक ही पानी था। सुनील ने सोचा कि साला ये तो सीधे चुदाई का आमंत्रण है... ऐसा मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहिये। सुनील ने अपना ट्रैक-सूट वाला पायजामा भी उतार दिया। नर्वस होने के कारण उसका लंड लटक सा गया था। सुनील का पहला पैग अभी खतम नहीं हुआ था। उसने अपना गिलास पूल के किनारे पे रखा और अपने झूलते हुए लंड को लेकर स्विमिंग पूल में उतर गया। जैसे ही सुनील पूल के अंदर आया तो नफ़ीसा उसके करीब आ गयी और उसके होंठों पर अपना गिलास लगाते हुए बोली, "एक जाम इस नयी दोस्ती के नाम!" सुनील ने एक सिप लिया और मुस्कुरा कर नफ़ीसा की तरफ़ देखा। रशीदा भी सुनील के करीब आयी और उसने भी अपने गिलास को सुनील के होंठों की तरफ़ बढ़ा दिया। नफ़ीसा सुनील की चौड़ी छाती को अपने एक हाथ से सहला रही थी। सुनील ने रशीदा के गिलास से भी एक सिप लिया।

सुनील ने पूल के किनारे रखा हुआ अपना गिलास उठा लिया और फिर तीनों धीरे-धीरे सिप करने लगे। रशीदा और नफ़ीसा दोनों अपने एक-एक हाथ से सुनील के चौड़े सीने को सहला रही थी। सुनील का लंड अब फिर खड़ा होने लगा था। आखिर वो बिल्कुल नंगा दो-दो इतनी सैक्सी और करीब-करीब नंगी हसीनाओं से घिरा हुआ स्विमिंग पूल में मौजूद था और ऊपर से दोनों हुस्न की मल्लिकाओं ने पूल के अंदर भी हाई हील वाले सैंडल पहने हुए थे। सुनील को तो अपनी किस्मत पे विश्वास ही नहीं हो रहा था। रशीदा बीच-बीच में अपना हाथ नीचे सुनील के पेट की ओर ले जाती तो कभी नफ़ीसा उसकी जाँघों को अपने हाथ से सहलाने लग जाती। सुनील का लंड अब धीरे-धीरे फिर से अपनी औकात में आने लगा था। सुनील भी उन दोनों के जिस्म छुना उनके मम्मे और गाँड दबाना चाहता था लेकिन उन दोनों का दबदबा ही ऐसा था कि सुनील की खुद से हिम्मत नहीं हुई। रशीदा ने जब सुनील के लंड को खड़ा होते देखा तो उसकी आँखों में चमक आ गयी और टाँगें थरथराने लगी। सुनील के खड़े होते हुए लंड का साइज़ देख कर रशीदा को समझ आया कि क्यों नफ़ीसा सुबह सुनील का लंड देख कर इतनी बेकरार हो रही थी। उसने इशारे से नफ़ीसा को नीचे की और देखने को कहा तो नफ़ीसा की चूत भी सुनील के अकड़ते हुए लंड को देख कर फुदफुदाने लगी।

रशीदा ने गटक कर अपना पैग खतम करते हुए कहा, "नफ़ीसा चलो ना अब खाना खाते हैं... बहुत हो गया..!" ये सुनकर सुनील के तो खड़े लंड पे जैसे धोखा हो गया। उसे लग रहा था कि अभी बात शायद आगे बढ़ेगी। दोनों औरतें उसे इस तरह क्यों तड़पा रही थीं। दो-दो रसगुल्ले उसके सामने थे... उसे तरसा रहे थे लेकिन वो खा नहीं पा रहा था।

तीनों पूल से बाहर आये और नफ़ीसा ने सुनील को एक तौलिया दिया। सुनील ने अपनी कमर पर तौलिया लपेटा और फिर अपने कपड़े उठा लिये। नफ़ीसा और रशीदा ने वहाँ पर बने हुए बाथरूम में जाकर अपनी गीली पैंटी और ब्रा उतार दीं लेकिन सैंडल अभी भी नहीं उतारे। फिर तौलिये से अपने जिस्म और सैंडल वाले पैर सुखा कर दोनों ने अपने-अपने बाथरोब पहने और तीनों घर के अंदर आ गये। अंदर आकर तीनों ने वैसे ही खाना खाया और फिर शराब पीने लगे। शराब और शबाब का नशा अब तीनों पर हावी होने लगा था। दोनों औरतें खुल कर बाथरोब में छुपे हुए अपने हुस्न का दीदार सुनील को कराने लगी थीं। सुनील जानबूझ कर सावधानी से थोड़ी-थोड़ी ही शराब पी रहा था लेकिन दोनों औरतें बे-रोक पैग लगा रही थीं और एक के बाद एक सिगरेट फूँक रही थीं और नशे में झूमने लगी थीं। सुनील का तो बुरा हाल हो चुका था। तौलिये के अंदर उसका लंड धड़क-धड़क कर फुफकारें मार रहा था। "तो सुनील तू कह रहा था कि तेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है..!" रशीदा ने नफ़ीसा की ओर देखते हुए कहा। दोनों औरतें अब तुम से तू पे आ गयी थीं।

"जी नहीं है!" सुनील ने भी नफ़ीसा के ओर देखते हुए कहा तो नफ़ीसा बोली, "तो इश्क़ के खेल में अभी अनाड़ी हो..?"

"जी हाँ! इश्क़ के खेल में शायद अनाड़ी हूँ पर मस्ती के खेल में नहीं..!" सुनील ने जवाब दिया। रशीदा बोली, "ओहो... तू तो फिर बड़ा छुपा रुस्तम निकला... यार नफ़ीसा मैंने कहा था ना अपना सुनील जितना मासूम दिखता है... उतना है नहीं..!"

नफ़ीसा सिगरेट का कश लगाते हुए आँखें नचाते हुए बोली, "तो तू मस्ती करने में अनाड़ी नहीं है... हमें भी तो पता चले कि तूने कहाँ और किसके साथ और कितनी मस्ती की है..!"

सुनील का सब्र टूटा जा रहा था। "छोड़िये ना मैडम... वो सब पुराने किस्से हैं...!" सुनील बोला तो नफ़ीसा अपनी कुर्सी से उठी और बड़ी ही अदा के साथ चलते हुए सुनील के करीब आयी और अपनी एक बाँह सुनील की गर्दन में डाल कर सुनील के गोद में बैठ गयी और रशीदा की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा... चाहे तो आज मस्ती के नये किस्से बना ले... क्या ख्याल है..?"

"ख्याल तो बहुत बढ़िया है...!" सुनील बोला। सुनील के कुलांचे मार रहे लंड की नफ़ीसा चुभन अपनी गाँड के नीचे महसूस कर रही थी। वो हंसते हुए बोली, "हाँ खूब पता चल रहा है कि तू क्या चाहता है!" "वो कैसे...?" सुनील ने पूछा तो नफ़ीसा बोली, "वो ऐसे कि तेरा हथियार जो बार-बार मेरे चूतड़ों पर जोर-जोर से ठोकरें मार रहा है..!"

सुनील बोला, "लेकिन मेरे अकेले के चाहने से क्या होगा..?"

"ओह हो... अब तू इतना नादान तो नहीं है... तू भी समझ तो गया ही होगा कि हम दोनों भी यही चाहती हैं!" ये कहते हुए नफ़ीसा सुनील की गोद से खड़ी हुई और सुनील का हाथ पकड़ कर झूमती हुई चलती हुई उसे बेडरूम की तरफ़ ले जाने लगी। रशीदा भी नशे में झूमती हुई उनके पीछे चल पड़ी। नफ़ीसा के मुकाबले रशीदा कुछ ज्यादा नशे में थी जबकी शराब दोनों ने तकरीबन बराबार ही पी थी... शायद इसलिये कि नफ़ीसा अक्सर शराब पीने की आदी थी जबकि रशिदा को कभी-कभार ही मौका मिलता था। नफ़ीसा की सोहबत में ही उसने शराब और सिगरेट पीना शुरू की थी।

बेडरूम में पहुँच कर नफ़ीसा ने सुनील को धक्का दे कर बेड पर गिरा दिया और रशीदा ने भी अंदर आकर पीछे से कमरे के दरवाजा को लॉक कर दिया। नफ़ीसा बेड पर चढ़ी और सुनील के ऊपर झुकते हुए बोली तो "बर्खुरदार... ज़रा हमें भी तो बता कि तू क्या-क्या जानता है!" दूसरी तरफ़ रशीदा भी बेड पर सुनील के दूसरी तरफ़ करवट के बल लेट गयी और सुनील के चौड़े सीने को एक हाथ से सहलाते हुए अपनी एक टाँग उठा कर सुनील के टाँगों पर रख दी। "जी बहुत कुछ जानता हूँ..!" सुनील ने अपने दोनों तरफ़ लेटी हुई मस्त चुदैल औरतों को देख कर कहा जो उम्र में उससे दुगुनी से ज्यादा बड़ी थीं। "रशीदा तुझे स्ट्राबेरी फ्लेवर बहोत पसंद है ना..?" नफ़ीसा की ये बात सुन कर सुनील चौंक गया कि अब साला स्ट्राबेरी फ्लेवर बीच में कहाँ से आ गया। "हाँ यार बेहद पसंद है..!" रशीदा बोली तो नफ़ीसा ने उसे कहा कि "तो उस मिनी-फ्रिज में तेरे लिये कुछ है... जा निकाल कर ले आ!"

रशीदा उठी और बेडरूम के एक कोने में मेज के नीचे रखे छोटे से फ़्रिज को खोला। उसमें एक काँच के बड़े से गिलास में स्ट्राबेरी फ़्लेवर की क्रीम मौजूद थी। उसे देख कर रशीदा की आँखों में चमक आ गयी। रशीदा वो क्रीम भरा गिलास लेकर बेड पर आकर बैठ गयी। उसने एक बार नफ़ीसा की तरफ मुस्कुराते हुए देखा तो नफ़ीसा ने सुनील के तौलिये को पकड़ कर खींचा पर तौलिया सुनील के वजन से दबा हुआ था। सुनील ने खुद ही अपने चूतड़ उचका कर तौलिया अपने जिस्म से अलग करके फेंक दिया। सुनील का आठ इंच से लंबा और खूब मोटा मूसल जैसा लंड झटके खाते हुए फुफकारने लगा जिसे देख कर दोनों चुदैल राँडों के मुँह से सिसकरी निकल गयी!। "याल्लाहा ऊँऊँहह नफ़ीसा... ये तो बहोत तगड़ा... घोड़े जैसा है..!" रशीदा ने सुनील के लंड को खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुए कहा। "मैंने तो सुबह ही तुझे बता दिया था... साले ऐसे घोड़े की ही तो सवारी करने में मज़ा है.. आज तो हमारी किस्मत खुल गयी... यार सुनील पहले मालूम होता कि तू अपनी टाँगों के दर्मियान इस कदर लंबा और मोटा लौड़ा छुपाये हुए है तो आल्लाह कसम पहले दिन ही तेरे से चुदवा लेती..!" ये कहते हुए नफ़ीसा ने हाथ बढ़ा कर सुनील के लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया और उसके लंड के आगे की चमड़ी पीछे की तरफ़ सरकायी तो सुनील के लंड का सुपाड़ा लाल टमाटर की तरह चमकने लगा जिसे देख कर दोनों की चूत कुलबुलाने लगी। रशीदा जल्दी से स्ट्राबेरी क्रीम का गिलास सुनील के लंड के ठीक ऊपर ले जाकर उस पर ठंडी क्रीम टपकाने लगी। ठंडी क्रीम को अपने लंड पर गिरता महसूस करके सुनील एक दम से सिसक उठा। "क्या हुआ बर्खुरदार?" नफ़ीसा ने सुनील को सिसकते हुए देख कर पूछा। "आहहह बहुत ठंडा है मैडम!" सुनील ने सिसकते हुए कहा।

"थोड़ा सा इंतज़ार कर... अभी देखना तेरे इस लंड को कितनी गरमी मिलने वाली है!" नसीफ़ा बोली। सुनील का लंड पूरी तरह से क्रीम से भीग गया। रशीदा ने गिलास नीचे रखा और सुनील की जाँघों के पास मुँह करके पेट के बल लेट गयी। दूसरी तरफ़ ठीक वैसे ही नफ़ीसा भी लेट गयी। रशीदा लंड पर झुकी और अपने होंठों को सुनील के लंड के मोटे सुपाड़े पर लगा दिया। सुनील मस्ती से सिसक उठा और उसने रशीदा के खुले हुए बालों को कसके पकड़ लिया। रशीदा ने इस बात का बुरा नहीं माना और अपने होंठों को सुनील के लंड के सुपाड़ा के चारों तरफ़ कसती चली गयी। थोड़ी ही देर में सुनील के लंड का सुपाड़ा रशीदा के मुँह में था और वो उसे अपने होंठों से दबा-दबा कर चूसने लगी। दूसरी तरफ़ से नफ़ीसा ने भी देर ना की और अपनी ज़ुबान और होंठों से सुनील के लंड के निचले हिस्सों और टट्टों को चाटने लगी। सुनील के लंड को अब दोहरी मार पड़ रही थी और ऊपर से वायग्रा का भी असर था। सुनील का लंड एक दम अकड़ गया था। सुनील ने अपने दूसरे हाथ से नफ़ीसा के खुले हुए बालों को पकड़ लिया। दोनों औरतें सुनील के लंड पर कुत्तियों की तरह टूट पड़ी। रशीदा तो सुनील के लंड को चूसने में मश्गूल थी और नफ़ीसा कभी सुनील के लंड की लंबाई पर अपनी ज़ुबान फिराती तो कभी सुनील की गोटियों को पकड़ कर मुँह में भर कर चूसने लगती।

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